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नज़्म/ मेरे महबूब - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मेरे महबूब ! उम्र की तपती दोपहरी में घने दरख्त की छांव हो तुम सुलगती हुई शब की तन्हाई में दूधिया चांदनी की ठंडक हो तुम ज़िन्दगी के बंजर सहरा में आबे-ज़मज़म का बहता दरिया हो तुम मैं सदियों की प्यासी धरती हूं बरसता-भीगता सावन हो तुम मुझ जोगन के…