परिवर्तनकारी दौर के अर्धविराम पर…

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partiesनरेश भारतीय

 

देश की दिशा में परिवर्तन के संकेत स्पष्ट हैं. राजनीतिक दंगल में उतरने वालों को अब देश की दशा में निर्णायक परिवर्तन लाने के लिए सशक्त जन आह्वान सुनने को मिल रहा है. विधानसभा चुनावों का वर्तमान दौर पूरा हो चुका है और प्राप्त परिणामों का विश्लेषण करते हुए पार्टी नेतृत्व अब अपनी अपनी आगामी रणनीति पर विचारमंथन में जुट रहे हैं. दोनों मुख्य पार्टियां, कांग्रेस और भाजपा, राज्य विधानसभा स्तर पर अपने अभियानों की होड़ में राष्ट्र स्तरीय चुनाव दंगल के लिए मैदान में उतारे गए अपने दो मुख्य नेताओं की जयपराजय क्षमता का प्रत्यक्ष प्रमाण भी पा चुकी हैं. प्रकटत: भाजपा को मिली सफलता से उसका कार्यकर्ता वर्ग और समस्त नेतृत्व भविष्य के लिए भी आश्वस्त और उत्साहित हैं. निस्संदेह भाजपा के लिए यह ‘विजय ही विजय’ का सन्देश है और एकल परिवारवाद में जकड़ी कांग्रेस के लिए उसकी घोर पराजय यह चेतावनी कि वह अपने रंग ढंग और नेतृत्व में परिवर्तन करे अन्यथा उसे राष्ट्रीय स्तर पर भी मुंह की खानी पड़ सकती है.

दिल्ली में भाजपा के बावजूद आम आदमी पार्टी का कांग्रेस को धराशायी करने में सफल भूमिका निभाने के बाद राजनीति में प्रवेश उसके लिए आत्ममुग्धता का अवसर है. यह स्वाभविक ही है क्योंकि जनता ने उसे विधानसभा स्तर पर ही सही लेकिन पहले ही प्रयास में एक और विकल्प के रूप में मान्यता दी है. अपनी इस नई भूमिका में आम आदमी पार्टी के नेता जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के अपने दावों पर कितना खरे उतरते हैं इस पर निश्चय ही जनता की कड़ी नजरें उस पर बनी रहेंगी. बहरहाल, ये चुनाव परिणाम अपने आप में यह स्पष्ट निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं कि जनता निश्चित रूप से कांग्रेस से तो बुरी तरह से असंतुष्ट है.

भारतीय लोकतंत्र में पनपी जय पराजय की चुनावी राजनीति में सर्वजन समानता के स्थान पर दुर्भाग्यवश समाज विघटनकारी जातिवाद और अल्पसंख्यकवाद को निर्बाध पनपने दिया गया है. ये तत्व सर्वजन हितकारी विकास और सुशासन की सफल प्रस्थापना में बाधक और गति-अवरोधक रहे हैं. जनसामान्य को वोट बैंकों में विभाजित करके उनके राजनीतिक शोषण की प्रचलित घोर स्वार्थपूर्ण राजनीति ने देश को पूर्ण नागरिक समानता के संवैधानिक अधिकार के अनुरूप विकास लाभ प्राप्त करने से वंचित किया है. फलत: बहुचर्चित छद्म-सेकुलरवाद की छत्रछाया में पनपने वाली विभेदकारी साम्प्रदायिक राजनीति पर से पर्दा हटा. उसके दुष्प्रभावों को भुगतने वाली जनता के समक्ष जब गुजरात और मध्यप्रदेश की भाजपा सरकारों के द्वारा किए गए विकास कार्यों का खुलासा हुआ तो उनकी आँखें खोल देने वाला साबित हुआ. वह असमानता और विभेदकारी कथित वादों की राजनीति से तंग आकर सत्य के साथ साक्षात्कार करने के लिए तत्पर दिखाई देने लगी है. भारत निश्चय ही एक परिवर्तनकारी चुनावी दौर में प्रवेश कर चुका है. सामान्य मतदाता अब पूर्वापेक्षा अधिक जागरूकता के साथ अपना भला बुरा सोचते हुए किसी पार्टी या व्यक्ति को समर्थन देने का फैसला करने को तत्पर दिखाई देने लगा है.

इस परिप्रेक्ष्य में यदि इन विधानसभा चुनावों को आगामी लोकसभा चुनावों के लिए प्रतिस्पर्धी पार्टियों का पूर्वाभ्यास मान लिया जाए तो देश की जनता को भाजपा के नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के राहुल गांधी के बीच हुए प्रखर वाकयुद्ध और उसके स्तर का ध्यान आएगा. एक की विषय-प्रवण वाक्पटुता दूसरे की असहायता उसके सामने आएगी. सकारात्मक संवाद और प्रतिसंवाद का अभाव रह रह कर उसे बहुत कुछ सोचने पर विवश कर रहा है. वर्तमान भारतीय परिवेश में यह महत्वपूर्ण है कि जनता जाने कि देश की सर्वांगीण प्रगति और विकास संबंधी अधिक कारगर कार्य-योजना किसके पास है? कौन प्रभावी तरीके से उसे जनता के दरबार में प्रस्तुत करने को सक्षम है? किसके पास है सर्वजन हितपरक विचार दृष्टि, उपलब्धियों पर आधारित प्रामाणिक क्षमता, देश के अन्दर सुशासन प्रदान करने और शेष विश्व के साथ योग्य सम्बन्ध निभाने के लिए आवश्यक श्रेष्ठ राजनयिकता और नेतृत्व गुण? इसलिए भाजपा की और से नरेंद्र मोदी के बने रहते अब कांग्रेस को यह फैसला करना होगा कि उसके पक्ष की और से प्रधानमन्त्री पद के लिए उसका उम्मीदवार कौन होगा. अभी भी राहुल या कोई और?

कांग्रेस पार्टी के अन्दर गहरे आत्ममंथन के संकेत मिल रहे हैं. सार्वजानिक रूप से सोनिया गाँधी और राहुल के द्वारा पार्टी की पराजय स्वीकार करने के बयानों के अलावा अभी कोई भी बताने की जल्दी में दिखाई नहीं देता. असफलता जनित निराशा के इस वातावरण में प्रकटत: पार्टी के अनुशासन का सम्मान करते हुए उसके प्रवक्ता अन्दर चल रही उहापोह की सार्वजानिक चर्चा से बचेंगे. लेकिन प्रधानमंत्री श्री मनमोहनसिंह समेत कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ताओं के द्वारा भाजपा के नरेंद्र मोदी को अब एक चुनौती के रूप में स्वीकारने की बात स्पष्ट करती है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में चले चुनाव अभियानों की असफलता की वे अधिक समय तक उपेक्षा नहीं कर सकते. कांग्रेस पार्टी तत्संबंधी समीक्षा और रणनीती परिवर्तन पर विचार करने के लिए के लिए बाध्य हो रही है. इस बीच यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाते नरेंद्र मोदी के नाम की पुन: पुष्टि कर दी है. पार्टी के शेष नेता भाजपा की सफलता के उभरते संकेतों के बीच एकजुटता के प्रदर्शन को अब पूर्वापेक्षा अधिक महत्व देते दिखाई पड़ते हैं. क्या कांग्रेस भी इस चुनौती का सामना करने के लिए एकल परिवारवाद से मुक्त हो कर मुद्दों की राजनीति में लौटते हुए एक सशक्त विकल्प बने रहने का अवसर बनाए रखने की दूरदर्शिता दिखाएगी? सफल जनहितपरक लोकतंत्र के लिए एक मज़बूत सत्ताधारी दल और वैसा ही मज़बूत विपक्ष होना अपरिहार्य आवश्यकता है.

अभी पांच महीने का समय है. अर्धविराम के इस पड़ाव पर बने रहते अनेक तानेबाने बुने जाएंगे. गठबन्धनों की राजनीति गत अनेक वर्षों से हावी रही है. उसकी निष्पक्ष समीक्षा सहज निष्कर्ष देती है कि इसमें किसी एक मुख्य पार्टी की चुनाव अभियानों में अभिव्यक्त विचारदृष्टि सत्ता की कुर्सियों के हत्थे थामते ही कमज़ोर पड़ने लगती है. गठबंधन की राजनीति समझौतों की राजनीति होने के कारण जनता के दरबार में की गईं बड़ी बड़ी घोषणाओं को निगलती चली जाती है. मुख्य सत्ताधारी दल से कुछ कहते नहीं बनता और जनता मुंह देखती मन मसोस कर रह जाती है. एक पार्टी की सरकार का बनना जनता के लिए भी यह संभव बनाता है कि वह किसी पार्टी के पक्ष में दिए गए अपने जनादेश की अवधि पूरा हो जाने पर सरकार की उपलब्धियों या उसकी असफलताओं का सम्यक लेखा जोखा करके उसके अगले चुनावों में अपने भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करे. पूर्ण बहुमत के साथ बनी सरकार अधिक साहस और बेहतर आत्मविश्वास के साथ सुशासन के लिए जनता की अपेक्षाओं की परीक्षा में पूरा उतरने के लिए प्रयत्नशील रहती है. क्या वर्ष २०१४ में मिलेगा किसी एक दल को केंद्र में पूर्ण बहुमत? मेरी दृष्टि में, देश की जनता के करने योग्य यह महत्वपूर्ण फैसला अब एक चुनौती बन कर खड़ा है.

निस्संदेह, भारत की जनता इस अर्धविराम की अवस्था में चिन्तन मनन करने के अपने अधिकार और कर्तव्य का उपयोग यह सोचते हुए अधिक मनोयोग के साथ करेगी कि प्रस्तुत परिवर्तन अवश्यम्भावी है. जनता निराशा के वातावरण में स्वयंस्फूर्त सशक्तीकरण की दिशा में आगे बढ़ी है. इसमें उदीयमान नई पीढ़ी का बढ़ता योगदान परिणामकारी है क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में देश का युवा मतदाता सूचियों पर अपनी उपस्थिति दर्ज होते देखने की आयु में पहुंचता चला जा रहा है. संभावित दिशा परिवर्तन के साथ साथ देश की दशा में सुधार की आवश्यकता पूति के लिए युवाशक्ति की भूमिका नितांत आवश्यक है. किसका चयन करेगा युवावर्ग? क्या यह भी सुनिश्चित करेगा देश का मतदाता कि अब चर्चा हो तो केवल मुद्दों पर हो जो उसके सीधे सरोकार के हैं?

5 COMMENTS

  1. श्री आर.सिंह जी का कथन किसी हद तक सही है.आज निसंदेह भाजपा ने श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस मिनी महा चुनाव में बहुत हु उत्साहवर्धक परिणाम प्रस्तुत किया है. लेकिन आम आदमी पार्टी कि अद्वित्तीय सफलता का प्रभाव केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं रहेगा. कल भी कुछ चुनावी विश्लेषकों ने इस तथ्य कि ओर इशारा किया था कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी यदि दोनों प्रमुख दलों से इतर कोई आम आदमी पार्टी जैसा दल होता तो स्थिति भिन्न होती.और कुछ छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी दल इस स्थिति को उत्पन्न करना चाहेंगे. ताकि मोदीजी के विजय रथ को रोकने का प्रयास किया जा सके.कांग्रेस भी इस स्थिति को बढ़ावा देने का प्रयास करेगी.भाजपा के चिरविरोधी तो ऐसी स्थिति चाहेंगे ही.भाजपा को इस खतरे के प्रति सजग व सतर्क रहना होगा.साथ ही युवाओं को अपने साथ जोड़ने के लिए नए सिरे से रणनीति बनाकर प्रयास करने होंगे.बेहतर होगा कि २५ से ३० के आयु वर्ग के नए जुझारू नेतृत्व को आगे आने दिया जाये.जो मोदी जी की टीम में नए विचारों को आगे लाने में सफल होंगे.किसी भी संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति को पार्टी से दूर ही रखा जाये.

  2. देश के हित में बहुत स्वस्थ सही व् सटीक समीक्षा की है.
    युवा और हमारे एक बहुत बड़े गरीब तबके के हित में उन्हीं
    के जीवन को छूते और उनके जीवन धोरण के सुधार के मुद्दों और
    अन्य जरूरी सर्वहितकारी मुद्दो को लेकर ही जो पार्टियां चुनाव
    में उतरेगी 2014 में, तो ही शायद उन्हीं का बेडा पार होगा. अपनी
    छवि और करनी को भी स्वच्छ रखनी होगी और दोहरी
    कुटिलता से भी बचना होगा…

  3. विद्वान लेखक ने यद्दपि संकेत दिया है कि जनता ने आम आदमी पार्टी को विधानसभा स्तर पर ही सही लेकिन पहले ही प्रयास में एक और विकल्प के रूप में मान्यता दी है.,तथापि वे भूल रहे हैं कि यह विकल्प अब केवल एक राज्य तक सीमित नहीं है.अरविन्द केजरीवाल का राष्ट्रीय स्तर पर अपने को प्रस्तुत करना अब एक औपचारिकता मात्र रह गया है. हो सकता है आज मेरा यह वक्तव्य मुंगेरी लाल के सपने जैसा लगे,पर वे प्रधान मंत्री पद केलिए एक मजबूत विकल्प सिद्ध होंगे ऐसा मेरा विश्वास है.

    • सिंह साहब, आप का, और आप को भी अभिनंदन।
      इन समाचारों का मेरा भाष्य ===>
      (१) हमारे मतदाता ने सोच विचार कर मतदान किया।
      (२) “आप” को भी कर्तृत्व के लिए अवसर देने की, मतदाता की उदारता, इस अर्थ में मुझे प्रतीत होती है।
      (३) आप (आर. सिंह) का लिखा हुआ, आलेख भी मुझे, ए. ए. पी. का दृष्टिकोण समझने में सहायक हुआ था।
      ===यह प्रवक्ता की भी सफलता मानता हूँ।
      (४) ए. ए. पी. को अभियान का विस्तार करना चाहिए। अरविंद केजरीवाल जैसे और कार्यकर्ता भी तैयार करने होंगे। (मैं ने और नाम सुने नहीं है।) –क्या मैं सही हूँ?
      धन्यवाद।

      • डाक्टर साहब धन्यवाद. मैं आपसे सहमत हूँ कि ‘आप ‘ को अभियान का विस्तार करना चाहिए.संगठन में बहुत से ऐसे लोग हैं,जोअपने कार्य कर रहे हैं और अधिक से अधिक लोगों को जोड़ रहे हैं.अरविन्द का स्थान अवश्य सर्वोपरि है,पर वे अकेले नहीं है,पर अगर ‘आप’ लोकसभा का चुनाव लड़ती है,तो इसके मंच को जल्द से जल्द अधिक से अधिक विस्तार करना होगा.

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