बुख़ारी से ज़्यादा सियासत तो आम मुसलमान समझता है !

इक़बाल हिंदुस्तानी- ahmad_bukhari_264619447

मज़हब के नाम पर अपील से हिंदू ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में?

पहले दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने एक सियासी डील के तहत यूपी में सपा को सपोर्ट किया था लेकिन वहां जब आज़म खां के कारण उनकी दाल नहीं गली और उनके दामाद को न तो विधानसभा चुनाव में जीत मिली और ना ही विधान परिषद और राज्यसभा में भेजा जा सका तो उन्होंने मौका देखकर पाला बदल लिया। अजीब बात यह है कि जो कांग्रेस भाजपा पर हिंदू वोटों की साम्प्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाती है, वही मुसलमानों के वोट साम्प्रदायिक आधार पर लेने के लिये दो कौड़ी के एक इमाम को अपने पक्ष में अपील करने के लिये मैदान में उतार रही है।

इमाम बुखारी का एक दौर था जब वे किसी पार्टी के पक्ष मेें मुसलमानों से वोट करने की अपील करते थे तो मुसलमान लब्बैक कर उनकी हां में हां मिलाता था और वह भी बाबा रामदेव की तरह एक अपील ही होती थी ना कि फतवा जिसका प्रचार मीडिया में जोरदार तरीके से इस्लाम को बदनाम करने के लिये किया जाता रहा है। कम लोगोें को ही यह बात पता होगी कि इस्लाम में फतवा कोई मफती ही दे सकता है, जिसके लिये बाकायदा डिग्री लेनी होती है जबकि बुखारी एक मस्जिद के मामूली इमाम हैं जिनको फतवा देने का ना तो अधिकार है और ना ही वे अपनी अपील को फतवा बता सकते हैं। अब यह बात आम मुसलमान समझ चुका है कि इमाम साहब का एजेंडा सदा ही निजी होता है और वे उनके वोट का सौदा अपने फायदे नुकसान के हिसाब से करते हैं।

दूसरी बात मुसलमानों में तालीम और तरक्की बढ़ने से उनकी सोच भी कुछ हद तक प्रगतिशील और तर्कशील हो रही है जिससे उनको यह बात समझने में आने लगी है कि जब वे भाजपा की हिंदू साम्प्रदायिकता की राजनीति को नापसंद करते हैं तो उनका धर्म के नाम पर किसी पार्टी विशेष को वोट करना और इसकी प्रतिक्रिया में हिंदू वोटों को ध्रुवीकरण ना होना कैसे संभव है? सच तो यह है कि जिस तरह से बुराई का मुकाबला हो तो बड़ी बुराई जीतती है, उसी तरह से अगर साम्प्रदायिकता का मुकाबला होगा तो बड़ी साम्प्रदायिकता यानी बहुसंख्यक हिंदू साम्प्रदायिकता की ही जीत होना तय है।

आज जब कांग्रेस ने मुसलमानों की हालत अपने 50 साल से ज्यादा के राज में दलितों से भी बदतर कर दी है जिसकी पोल सच्चर कमैटी ने खोली है,  और भ्रष्टाचार और महंगाई में अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं, ऐसे में बुखारी साहब का यह कहना कि भ्रष्टाचार से बड़ी बुराई साम्प्रदायिकता है, सुनकर हैरत ही होती है। साम्प्रदायिकता तो अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों की भी बुरी है लेकिन उसको बुखारी खाद पानी ही नहीं दे रहे बल्कि उसके नाम पर मुसलमानों का और नुकसान ही कर रहे हैं। बुखारी से ज्यादा बेहतर और असरदार सियासी समझ तो खुद मुसलमान बना चुका है जो कांग्रेस या किसी एक सेकुलर पार्टी के साथ ना जाकर हर सीट और हर राज्य में उसको जो भाजपा को हराने में सक्षम नज़र आता है, उसके पक्ष में टेक्टिकल वोटिंग करके हर बार भाजपा के लिये बड़ी मुसीबत खड़ी करने में कामयाब हो जाता है।

इसके साथ ही मुसलमान की इसी रण्नीति का नतीजा यह होता है कि सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, राजद और अन्य सेकुलर क्षेत्रीय दल चुनाव में मुसलमान के वोट से जीतने के बाद भाजपा को सपोर्ट देने में हिचकिचाते हैं। अगर मुसलमान डूबते जहाज़ कांग्रेस के साथ सपोर्ट में चले जायेंगे तो क्षेत्रीय धर्मनिर्पेक्ष दलों को एनडीए में जाने में क्या दिक्कत हो सकती है? क्या बुखारी साहब नहीं जानते कि सेकुलर कहलाने वाले दलों का सेकुलरिज़्म मात्र एक बहाना और ढकोसला ही अधिक है। जब तक उनको ऐसा कहकर मुसलमानों के वोट और राज्यों या केंद्र की सत्ता मिल रही है वे तब तक सेकुलर हैं वर्ना तो पासवान, ममता, नीतीश और मायावती की तरह भगवा होने में उनको देर नहीं लगती, इसका नमूना वे पहले ही पेश कर चुके हैं। इससे पहले कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हज़ारे का आंदोलन एक एतिहासिक आंदोलन रहा है।

इस आंदोलन को लेकर बुखारी साहब ने दावा किया था कि इसके पीछे आरएसएस, भाजपा, और विदेेेेेशी ताक़तों का हाथ है। हैरत की बात है कि  बुखारी साहब ने उस समय यह अजीबो गरीब बयान दे दिया कि मुसलमानों को इस आंदोलन से दूर रहना चाहिये, क्योंकि इसमें वंदेमातरम और भारत माता की जय के नारे लग रहे हैं। सवाल यह नहीं है कि बुखारी साहब की बेतुकी बात का मुसलमानों पर कितना असर होगा, बल्कि मसला यह है कि बुखारी एक मस्जिद के मामूली इमाम हैं। उनको इमामत करनी चाहिये। सियासत की न उनको समझ है और ना ही मुसलमानों को उनकी सलाह की ज़रूरत है। सच तो यह है कि बुखारी जैसे कट्टरपंथी, जिस कांग्रेस के पक्ष में आज मुसलमानों से भाजपा की साम्प्रदायिकता को रोकने की अपील कर रहे हैं, वह खुद ही तआस्सुबी हैं।

यह बात समझ से बाहर है कि बुखारी साहब को जिस बात की एबीसीडी पता ही नहीं है उसमें जबरदस्ती टांग अड़ाने की ज़रूरत ही क्या है? उनको एक बात और समझ लेनी चाहिये कि उनकी हैसियत अब ऐसी रह भी नहीं रह गयी है कि उनकी बात पर बड़ी तादाद में मुसलमान कान तक दें। उनका जिस कांग्रेस से अच्छा तालमेल रहा है, उसको आज मुसलमान बाबरी मस्जिद के विवाद में भाजपा से भी बड़ा कसूरवार मानता है। बुखारी साहब को पता होना चाहिये कि अभी मुसलमानों ने कर्बला के 1400 साल पुराने हादसे के लिये यज़ीद को ही माफ नहीं किया है तो केवल 22 साल पुराने मामले के लिये कांग्रेस को कैसे माफ कर सकते हैं? उनको शायद पता नहीं है कि भ्रष्टाचार से गरीब सबसे ज़्यादा परेशान है और आंकड़े बता रहेे हैं कि मुसलमान आज सबसे अधिक ग़रीब है जिससे भ्रष्टाचार अपने आप ही मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है।

बुखारी मुसलमानों के इमरान मसूद की तरह नादान दोस्त हैं जो सही मायने में भाजपा का ही भला अधिक कर रहे हैं, यही वजह है कि इस बार केवल मुस्लिम बुद्धिजीवी ही नहीं, बल्कि मज़हबी रहनुमा भी बुखारी की इस गंदी और घटिया सियासी डील के खिलाफ खुलकर आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। हमें तो पूरा भरोसा है कि मुसलमान खुलकर भाजपा के साथ तो नहीं जा सकता लेकिन आज जब पूरा मुल्क कांग्रेस के खिलाफ खड़ा है तो मुसलमान भी बुखारी की अपील को अनसुना करके गैर कांग्रेस गैर भाजपा दलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मतदान करता नज़र आयेगा।

मसलहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,

तुम नहीं समझोगे सियासत तुम अभी नादान हो।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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