मथुरा में कृष्ण जन्मस्थली से मस्जिद हटाने के लिए याचिका दायर

अशोक प्रवृद्ध

राम लला को सर्वोच्च न्यायालय से न्याय मिलने और अयोध्या में श्रीराम मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने के पश्चात

श्रीकृष्ण विराजमान भी न्याय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए पहुंच गए हैं। श्रीकृष्ण विराजमान और स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि के नाम से मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में1968 के श्रीकृष्ण जन्मभूमि व मस्जिद के बीच समझौते को अमान्य करार देने की मांग करते हुए 13.37 एकड़ की श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मस्जिद सहित) पर मालिकाना हक मांगते हुए याचिका दायर की गई है। लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री व त्रिपुरारी त्रिपाठी, सिद्धार्थ नगर के राजेश मणि त्रिपाठी एवं दिल्ली निवासी प्रवेश कुमार, करुणेश कुमार शुक्ला व शिवाजी सिंह सहित आधा दर्जन लोगों ने उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के माध्यम से मथुरा की एक अदालत में याचिका दाखिल कर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच पांच दशक पूर्व हुए अवैध समझौते को निरस्त कर मस्जिद की पूरी जमीन मंदिर ट्रस्ट को सौंपने का अनुरोध अदालत से किया है। याचिका में कहा गया है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से गलत और अवैध है तथा उसे निरस्त किया जाए। दिवानी न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) छाया शर्मा की अदालत में दाखिल किए गए वाद में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को जमीन देने को गलत बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (जो अब श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना जाता है) व शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर हुए समझौते में तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी । समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि विवादित स्थल कत्रा केशव देव (ऐतिहासिक नाम) की 13.37 एकड़ भूमि का एक-एक इंच भगवान श्री कृष्ण के भक्त एवं हिंदू समुदाय के लिए पवित्र है । याचिका में दावा किया गया है कि श्रीकृष्ण का जम्मस्थान वास्तविक कारागार मस्जिद समिति के द्वारा बनाए गए निर्माण के नीचे ही स्थित है और वहां पर खुदाई होने पर सच्चाई का पता चलेगा। उन्होंने दावा किया कि सेवा संघ और मस्जिद समिति ने समझौता करके एक मानव-निर्मित कारागार बना दिया था, ताकि राजनीतिक कारणों के चलते लोगों से सच्चाई छिपाई जा सके । याचिकाकर्ताओं ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 26 तहत उन्हें अधिकार है कि वे भगवान श्री कृष्ण विराजमान की जमीन का देखरेख कर सकें । वादियों के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया, जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है, ऐसे में सेवा संघ द्वारा किया गया समझौता गलत है । इसलिए उक्त समझौते को निरस्त करते हुए मस्जिद को हटाकर मंदिर की जमीन उसे वापस करने की मांग की गई है। इस मामले में वादियों द्वारा उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड व शाही ईदगाह ट्रस्ट प्रबंध समिति को भी प्रतिवादी बनाया गया है । इस संबंध में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट एवं श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने दायर किए गए वाद के संबंध में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से परहेज करते हुए उन्होंने ट्रस्ट के अन्य पदाधिकारियों व कानूनवेत्ताओं से परामर्श किए जाने के बाद उचित कार्रवाई किए जाने की बात कही है ।

उल्लेखनीय है कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच पहला मुकदमा 1832 में शुरू हुआ था। तब से लेकर आज तक विभिन्न मसलों को लेकर कई बार मुकदमेबाजी हुई लेकिन जीत हर बार श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की ही हुई। श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सूत्रों के अनुसार 1832 में हुए प्रथम मुकदमे में  अताउल्ला खान ने 15 मार्च 1832 में कलैक्टर के यहां प्रार्थनापत्र देकर 1815 में हुई नीलामी को निरस्त करने और ईदगाह की मरम्मत की अनुमति देने की मांग की थी। 29 अक्टूबर 1832 को कलैक्टर डब्ल्यूएच टेलर ने आदेश दिया जिसमें नीलामी को उचित बताया गया और कहा कि मालिकाना हक पटनीमल राज परिवार का है। इस नीलामी की जमीन में ईदगाह भी शामिल थी। इसके बाद तमाम मुकदमे हुए। 1897, 1921, 1923, 1929, 1932, 1935, 1955, 1956, 1958, 1959, 1960, 1961, 1964, 1966 में भी मुकदमे चले। लेकिन श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान अभी तक चले हरेक मुकदमे में जीता है। मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि नीलामी जो हुई वह ईदगाह छोड़कर हुई। जबकि कोर्ट के आदेश हुए हैं कि नीलामी में वह जगह भी शामिल थी, जहां ईदगाह बनी हुई है। श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर चतुर्वेदी का कहना है कि इस बात का सुबूत यह है कि रेवेन्यु में स्वामित्व हमारा है, नगर निगम में स्वामित्व हमारा है, ईदगाह जिस खेबट में है उसका टैक्स भी हम दे रहे हैं। शाही ईदगाह कमेटी के सचिव तनवीर अहमद ने कहा कि ये विवाद जबरन पैदा किया जा रहा है। कृष्ण की नगरी में सभी भाईचारे के साथ रहते हैं। दोनों ही धार्मिक स्थलों के रास्ते अलग-अलग हैं। पूर्व में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट में सौहार्दपूर्ण ढंग से रजिस्टर्ड समझौता हुआ था। ध्यातव्य है कि यह याचिका अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के समय सितंबर 1991 में तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा पारित किए गए कानून ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991’ के संबंध में काफी महत्वपूर्ण है, जिसमें कहा गया है कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को छोड़कर 15 अगस्त 1947 तक के पूजा स्थलों की यथास्थिति में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा । हालांकि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस कानून को चुनौती भी दी गई है । याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यह कानून असंवैधानिक है, क्योंकि यह न्यायिक समीक्षा के अधिकार को छीनता है, जो कि संविधान के महत्वपूर्ण अंग है । मथुरा में दायर इस नई याचिका में कहा गया है कि 1991 अधिनियम के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं हैं, लेकिन इस पर विस्तृत तर्क नहीं दिया गया है ।

उल्लेखनीय है कि मथुरा अवस्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थान सदियों से भारत के बहुसंख्यकों के लिए पवित्र, धार्मिक, आस्था- बिश्वास का केंद्र रहा है। विष्णु अवतार श्रीकृष्ण की जन्मस्थली होने के कारण मथुरा जनपद सम्पूर्ण विश्व में अतिप्राचीन काल से एक धार्मिक स्थल के रूप में लोकख्यात है, परन्तु श्रीकृष्ण जन्म स्थल पर स्थित संरचना से वर्तमान में लगी हुई जामा मस्जिद के कारण यह विवादों में आ गया है। राष्ट्रीय महत्व के प्रतीक श्रीकृष्ण जन्मस्थली पर वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से एक भव्य आकर्षक मन्दिर के रूप में स्थापित है। अत्यंत प्राचीन काल से ही  देशी- विदेशी सभी नागरिक भगवान श्रीकृष्ण को आराध्य के रूप में मानते हुए उनके दर्शनार्थ यहाँ नित्य ही आते रहे हैं। यही कारण है कि विधर्मियों ने देश के बहुसंख्यकों की आत्मा को ठेस पहुँचाने के लिए देश के अन्य मन्दिरों की भांति ही यहाँ अवस्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थली से सम्बन्धित आस्था के केन्द्रविन्दु को ध्वस्त कर वहां पर एक मस्जिद का निर्माण कर दियां, जिसे उन्होंने जामा मस्जिद अथवा ईदगाह मस्जिद का नाम दे दिया। मान्यता है कि जिस जगह आज श्रीकृष्ण जन्मस्थान है, वह पांच हजार साल पहले कंस कारागार था। सत्रहवीं शताब्दी में मुग़ल शासक औरंगजेब के आदेश पर वहां अवस्थित श्रीकृष्ण से सम्बन्धित प्रतीक स्थल व मंदिर को तोड़कर वहां पर मस्जिद बना दिया गया था। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार प्रथम बार कृष्ण जन्मभूमि पर अर्जुनायन शासक अरलिक वसु ने तोरण द्वार के रूप में पहला निर्माण करवाया था लेकिन यहां प्रथम मंदिर का निर्माण भरतपुर नरेश के पूर्वज यदुवंशी राजा ब्रजनाम ने 80 वर्ष ईसा पूर्व में कराया था। कालक्रम में हूण, कुषाण आदि हमलों में इस मंदिर के ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सन 400 ई० में दूसरे वृहद मंदिर का निर्माण करवाया। परंतु इस मंदिर को महमूद गजनवी ने ध्वस्त कर दिया। तत्पश्चात महाराज विजयपाल देव तोमर के शासन काल में हिन्दू जाट शासक जाजन सिंह ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया। यह मथुरा क्षेत्र में मगोर्रा के सामंत शासक थे इनका राज्य नील के व्यापार के लिए जाना जाता था।

शासक जाजन सिंह तोमर (कुंतल) ने 1150 ईस्वी में करवाया। इस जाजन सिंह को जण्ण और जज्ज नाम से भी सम्बोधित किया गया है। खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से भी जाजन सिंह (जज्ज) के मंदिर बनाने का पता चलता है।

यह मंदिर भी 16 वीं सदी में सिकंदर लोधी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। 1618 ई० में ओरछा के बुन्देला राजा वीरसिंह जूदेव ने विशाल मन्दिर का निर्माण जन्म भूमि कराया यह मंदिर इतना विशाल था कि आगरा से दिखाई देता था। इस मंदिर को भी मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 में नष्ट कर दिया। इस मंदिर को वीर गौकुला जाट ने नहीं गिराने दिया व उनके बलिदान के बाद ही इसे गिराया जा सका फिर जाटों ने मुगलो की राजधानी आगरा पर आक्रमण कर दिया था।

फिर पुनः इसका निर्माण यहां के जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया जिसका विस्तार महाराजा जवाहर सिंह ने किया। 21 फरवरी 1951 को कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना करने के साथ ही यह मंदिर ट्रस्ट के अधीन चला गया जबकि इससे पहले इसकी जिम्मेदारी भरतपुर नरेशों के पास थी। क़ानूनी मुकद्दमों में जीतने के बाद यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और अन्यान्य निर्माण कार्य कराया गया ।

बहरहाल श्रीकृष्ण विराजमान और स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि के नाम से याचिका दाखिल होने के बाद सभी विष्णु भक्त और श्रीकृष्ण प्रेमियों की निगाहें इस विशेष मुकदमे की ओर अभी से ही लग गई है। अब देखना यह है कई न्यायालय स्वयं श्रीकृष्ण विराजमान और स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि के नाम से दाखिल मामले क्या रूक अपनाती है और भवन श्रीकृष्ण को न्याय मिल पाटा है अथवा नहीं?

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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