जब गुजरती हूँ
उन राहों से,
मेरी तेज धड़कने
आज भी
तेरे होने का एहसास
करा जाती है ।
जब गुज़रती हूँ
उन गलियों से,
मेरे खामोश कदमों से भी
आहट तुम्हारी आती है ।
देखो…
देखो ….
उन सीढ़ियों पर बैठकर,
तुम आज भी मेरा हाथ
थाम लेते हो;
देखो ….
उन गुजरते हुए पलों में,
आज भी तुम
साथ मेरे
चलते हो ।
सोचती हूँ
ऐसे गुजर जाऊ
उन पलों में कि
कुछ याद ही ना आये;
कभी कदमों को तेज
कर लेती
तो कभी मोबाइल से
खुद को
भुलावा देती;
फिर भी वो एक आवाज
आ ही जाती
कि “ठहर जाओ” ।
जैसे किसी की निगाह
फिर से ऐसे पड़ी हो,
कि मुझे अपना
बनाना चाहती हो
कि जैसे फिर से
किसी ने हाथ मेरा
वैसे ही थामा हो
जैसे….
कभी जुदा होना नहीं चाहता,
वो फिक्र
अब किसी और के चेहरे में
नज़र आती नहीं।
जो उसकी आँखों में
देखा था कभी
ख़ुद के लिए;
और कहता हो
देखो…
मैं आज भी
वहीं खड़ा हूँ ।
निगाहों में वही प्यार लिए;
और मैं चुपचाप
जेहन में पाबंदियों की परवाह
लिए
नयनों में जज़्बात
बस
यही कह पाती हूँ
कि मैं भी तो आगे बढ़ नहीं पायी।।
अनुप्रिया
I can feel the whole view literally,while reading the poem..
#fab
#overwhelmed
#adorable
#hats off #Anupriya_ji & #Praveen_sir
Amazing poem
It is a outburst poem showing the depth of poetess… I salute her…. Keep it continue good luck
very good poem
Anupriya ‘s poem , Mai bhi to aage nahi badh paiee, very good, heart touching