राहुल जी को भी आता है गुस्सा

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राजकुमार साहू

मुझे अभी-अभी पता चला कि हमारे भावी प्रधानमंत्री कहे जाने वाले युवराज

को भी गुस्सा आता है। इससे पहले मैं तो इतना ही जानता था कि वे शांत व

सौम्य व्यक्तित्व के धनी हैं। उनमें कई खूबियां हैं, वे गरीबों के घर

भोजन करने से परहेज नहीं करते। गरीबों की दाल-रोटी उन्हें खूब रास आती

हैं, उनके बच्चे बड़े प्यारे लगते हैं। तभी, कभी भूखे-नंगे बच्चे उनकी गोद

की शान बनते हैं तो हमेशा मुरझाया चेहरा, उनके साथ होते ही उमंग में

हिलोरे मारने लगता है।

बच्चों को भी उनकी दुलार हमेशा याद आती है। यह स्वाभाविक भी है, उनके

जैसी सेलिब्रिटी यदि किसी को छू भी ले तो वह रातों-रात कहां से कहां

पहुंच जाता है। इतना जरूर है कि सब कुछ हो सकता है, किन्तु गरीबी दूर

नहीं हो सकती। वे पचास साल पहले जहां थे, वहीं रहेंगे। थोड़े समय के लिए

सेलिब्रिटी की गोद में उचकने भर से गरीबी पीछे नहीं छोड़ने वाली। गरीबों

से उसका नाता जनमो-जनम का है। ऐसा नहीं होता तो हमारे युवराज के माध्यम

से जिन्हें पहचान मिली, उनकी गरीबी छू-मंतर हो गई होती। गरीबी जितनी

बेचारी होती है, उतने ही गरीब भी बेचारे होते हैं। वे बलि के बकरे बनते

रहते हैं, गला काटने के लिए ओहदेदार हर पल लगे रहते हैं। थोड़ा भी फड़फड़ाए

तो पर कतर देते हैं। अंततः गरीबी व गरीब, जहां के तहां खड़े रहते हैं और

सेलिब्रिटी का आना-जाना लगा रहता है।

अब अपन मुख्य मुद्दे पर आते हैं कि युवराज कहे जाने वाले राहुल जी ने

अपने दिल की गहराई में छुपी बात, अब जाकर बताई है। उन्हें राजनीति में

पदार्पण किए करीब दशक भर का समय हो गया है, लेकिन उन्होंने गुस्से की बात

कभी नहीं की। किसानों के हितों के लिए वे पदयात्रों पर निकल पड़ते हैं,

भूखे-नंगे लोगों के बीच कई दिन गुजारते हैं, देश के अलग-अलग इलाकों के

छात्रों से मिलते हैं और उनके विचार जानते हैं, यहां उन्हें कई कड़वे सवाल

का सामना करना पड़ता है, फिर भी वे शांत रहते हैं। उन्हें गुस्सा नहीं

आता। एक नेता उन्हें ‘बछड़ा’ तक कह देता है, उनकी ही पार्टी की एक नेत्री

उनकी काबिलियत पर सवाल खड़ी करती हैं। इसके बाद भी राहुल जी उस रीति पर

बने नजर आते हैं, जिसके तहत यदि कोई आप पर जितना भी कीचड़ उछाले, शांत बने

रहो। कोई तुम्हारे एक गाल पर तमाचा जड़े तो दूसरा गाल आगे कर दो।

हमारे युवराज ने अपने गुस्से की बात तब कही, जब वे देश के सबसे बडे़

राज्य उत्तरप्रदेश पहुंचे थे। यहां सियासी भंवर तेजी से करवट ले रहा है,

क्योंकि चुनाव जो नजदीक है। चुनावी वैतरणी पार लगाना है तो गरीब का हित

चिंतक बनना लाजिमी है। अब राहुल जी को कौन समझाए कि यही उत्तरप्रदेश हैं,

जहां आपकी ही सरकार बरसों तक जमी रही और और आपके लोगों की एकतरफा चली। उस

समय तो विपक्षी नाम की कोई चिड़िया भी होती थी, यह कहना केवल लफ्फाजी

होगी। आपके लोग जो कर देते तथा कह देते, वहीं अंतिम होता था। पहले गरीबों

के भाग्य विधाता, आपके लोग ही थे। गरीबों की बेबसी व लाचारगी पर आंसू

बहाना ठीक है, लेकिन जैसी आपकी छवि उभरकर आई है, वह दिखे तो ठीक नहीं तो

फिर ऐसा गुस्सा किस काम का ?

राहुल जी, आपको किसानों के दर्द देखकर अब गुस्सा आने लगा है। निश्चित ही

आप उन राज्यों के किसानों के दर्द को महसूस करिए, जहां आपकी अपनी सरकार

है। जहां आपकी चलती है, जरा वहां किसानों की तकलीफों को मिनटों में हल

कीजिए ? मैं आपके दर्द को समझ सकता हूं, क्योंकि मैं भी किसान का बेटा

हूं। जब आप किसानों के हितों की बात करते हैं, मुझे बहुत खुशी होती है,

किन्तु जब दोमुंही बातें होती हैं, तब मैं सोचने लगता हूं कि क्या देश के

किसान व गरीब दो पाटों में पीसने के लिए ही बने हैं ? आप गुस्सा करिए,

इसमें हम जैसों को कोई आपत्ति नहीं, मगर यह गुस्सा समग्र करें तो आप जैसे

शांत मनोभाव के लिए ठीक है और देश की शांत अवाम के लिए भी। अचानक आपका

गुस्सा सामने आया है, इससे रोकिए मत। कभी न कभी तो यह गुस्सा फूटकर बाहर

आएगा ही और आप जैसा चाहते हैं, वैसा होकर रहेगा। बस, लगे रहिए।

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