रूपैया किलो में नमक-लहर

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संदर्भ-मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव

प्रमोद भार्गव 

imagesचुनावों में अकसर राजनीतिक दलों की लहर चलती है। किन्हीं विशेष उपलब्धियों अथवा सहानुभूति की लहर भी चलते देखने में आई है। लेकिन इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में एक अनूठी नमक-लहर चल रही है। इस लहर को उभारने का काम रूपैया किलो गेहूं और रूपैया किलो नमक ने किया है। इस लहर का सबसे ज्यादा असर आदिवासी मतदाताओं में देखा जा रहा है। यह कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है,लेकिन अब बड़ी संख्या में बदलाव की मंशा में है। निर्वाचन आयोग की सख्ती के चलते, इस बार दारू और नोट नहीं बांटने के कारण भी इस परिवर्तन की आहट बड़े पैमाने पर सुनाई दे रही है।

वैसे तो मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकबला है,किंतु बसपा प्रत्याशियों के जातीय गठजोड़ ने अनेक क्षेत्रों में त्रिकोणीय मुकाबले के हालात पैदा कर दिए हैं। बावजूद बसपा की स्वीकार्यता सर्व-समाज में नहीं बन पाई है। इस वजह से गिनी-चुनी सीटों पर ही उसे विजयश्री संभव है। ज्यादा संकट में कांगेस है। जिसे अपना पंरपरागत आदिवासी वोट बैंक बचाना भी मुश्किल हो रहा है। हालांकि गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लोगों को जो एक रूपया किलो में 35 किलो गेहूं, डेढ़ किलो चीनी और पांच लीटर मिट्टी का तेल मिल रहा है,वह केंद्र सरकार की योजनाओं की देन है। प्रदेश सरकारें केवल राशन वितरण का काम,सरकारी उचित मूल्यों की दुकानों से करा रही हैं। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चैहान सरकार ने इस राशन में चुटकी भर नमक मिलाकर लोगों को बढ़ी संख्या में रिझाने का काम जरूर किया है। राशन के साथ एक किलो आयोडीन युक्त नमक की थैली एक रूपय में दी जा रही है। जबकि इस थैली का वास्तविक मूल्य 15 रूपय है। जाहिर है,नमक का असर गेहूं,चीनी और कैरोसिन से कहीं ज्यादा है।

इस संवाददता ने हाल ही में ग्वालियर चंबल अंचल की कई सहरिया आदिवासी बहुल विधानसभा क्षेत्रों का जायजा लिया। कराहल के बारेलाल का कहना था, रूपैया किलो अनाज से नमक हरामी कैसे करें? तो मड़खेड़ा की कैलासी बोलती है,नमक को कर्ज तो चुकानो है। बैराड़ के रामलाल का कहना है,अब महल के नमक का असर तो कम हो रहा है,पर एक रूपया के आयोडीन नमक का असर बढ़ रहा है। ये चंद संवाद आदिवासी वोट बैंक की बदलती मानसिकता की बनगियां हैं। दरअसल इस पूरे ग्वालियर चंबल क्षेत्र में महल का नमक खाने का असर सिर-चढ़ कर बोलता रहा है। लेकिन अब ऐसा अहसास हो रहा है कि परंपरागत मिथक टूटने को है और उस पर षिवराज सिंह चैहान के नमक का मिथक सवार होने को आतुर है। दरअसल,षिवराज ने अटल ज्योति अभियान और जन आशीर्वाद यात्राओं के दौरान राशन की महिमा का इतना बखान किया कि जनता को यह समझने का अवसर ही नहीं दिया कि राशन आखिरकार किस सरकार की देन है। जाहिर है, शिवराज और उनका भाजपा नेतृत्व पीतल के गहने पर सोने की परत चढ़ाने में कामयाब रहे।

कांगे्रस से इस हकीकत को सामने लाने की उम्मीद थी,लेकिन कांग्रेस शिवराज सरकार के भ्रष्‍टाचार को उछालने, गड्रढ़ो में सड़के जताने और अटल ज्योति के फरेब को प्रकट करने में ही लगी रही। जबकि कांग्रेस को सोचना चाहिए था कि ढांचागत संसाधनों से कहीं ज्यादा वंचित तबके को आजीविका के संसाधनों की जरूरत है। लिहाजा कांग्रेस भजपा के अन्य फरेबों की बजाय राषन के फरेब को ही उजागर व सही संदर्भों में परिभाषित करती तो उसे कहीं ज्यादा लाभ होता और पंरपरागत आदिवासी वोट-बैंक के खिसकने के खतरे का सामना नहीं करना पड़ता। तय है, भाजपा ने कांग्रेस के सबसे बड़े और मजबूत मतदाता समूह को भेदकर तीसरी पारी खेलने का रास्ता प्रशस्त कर लिया है।

इसमें कोई दोराय नहीं कि कांग्रेस के पास बेदाग खिलाड़ी ज्योतिरादित्य सिंधिया ही थे। उन्हें प्रदेश चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने चुनावी दांव खेल भी लिया। लेकिन सिंधिया प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह और दिग्विजय की नुमाइंदगी करने वाले कांग्रेस के अन्य कद्दावर नेताओं को नहीं साध पाए। यह दरार तब खुले तौर से देखने में आई जब सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में राहुल गांधी सभा को संबोधित करने आए थे। अव्वल तो इस सभा में दिग्विजय सिंह कुछ बोलने को तैयार नहीं थे, लेकिन बार-बार ज्योतिरादित्य के आग्रह और राहुल के इशारे पर वे बोलने को तैयार हुए, तो एक तरह से उन्होंने अपनी पीड़ा जाहिर की। कहा,‘डूबते सूरज को कौन पूजता है,सभी उगते सूरज को नमन करते हैं। यह सूरज उग रहा है। इसे पूजें‘। दिग्विजय का यह भाषण जहां कांगेसियों को विचिलत व विस्मित करने वाला था, वहीं श्रोताओं को कांग्रेसी फूट का अहसास करा गया। प्रसिद्ध कहावत भी है कि ‘फूट खेत में उपजे, सब कोई खाए, घर में उपजे तो घर मिट जाए‘ । इस फूट का असल दोषी कौन है, यह चूंकि कांग्रेस का अंदरूनी मामला है,इसलिए इसकी पड़ताल कर समाधान निकालने का दायित्व बुजुर्गवार कांग्रेसियों का है। इस फूट से जो बड़ा नुकसान हुआ, वह तय है कि ज्योतिरादित्य के मैदान संभालने से कांग्रेस के पक्ष में जिस महौल के बनने की शुरूआत हुई थी,वह छीनने लग गयी है। और महल के कर्ज का ढाई सौ साल से चला आ रहा नमक के प्रति कृतज्ञता का भाव दरकाने लग गया है। इस खाली हुई जगह की आपूर्ति शिवराज के द्वारा एक रूपया किलो दिए जा रहे नमक ने शुरू कर दी। यह हालात कांग्रोस के लिए बड़ा झटका है। इसकी भरपाई होना फूट की स्थिति में और भी मुश्किल है।

लोहे से लोहा काटे जाने की कहावत तो दुनिया में प्रचलन में है, लेकिन नमक से नमक की काट पहली बार देखने में आई है। जहां तक मेरा अनुमान है,यह परिणति भाजपा की राजनीतिक रणनीति का भी हिस्सा नहीं रही। प्रदेष सरकार की मंशा अनाज के साथ नमक की थैली देना एक उदार व जन हितैशी फैसला रहा होगा। नमक प्रतिबद्ध मतदाता की इच्छा बदलने का काम भी करेगा,यह कल्पना संभवतःमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की नहीं रही होगी? राजनीति में नमक हरामी के किस्से बहुत हैं,लेकिन रियाया नमक हरामी करें,ऐसा देखने-सुनने में नहीं आता। रूख बदलकर अब गरीब प्रजा रूपया किलो गेहूं व नमक का कर्ज जरूर चुकाने को उत्साहित नजर आ रही है।

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