सपनों का सौदागर – अरविन्द केजरीवाल

    aap  भोजपुरी में एक कहावत है – ना खेलब आ ना खेले देब, खेलवे बिगाड़ देब। इसका अर्थ है – न खेलूंगा, न खेलने दूंगा; खेल ही बिगाड़ दूंगा। दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी ‘आप’ ने चुनाव के बाद गैर जिम्मेदराना वक्तव्य और काम की सारी सीमायें लांघ दी है। दिल्ली में पिछले १० वर्षों से कांग्रेस सत्ता में थी। वहां की दुर्व्यवस्था, भ्रष्टाचार और निकम्मेपन के लिये कांग्रेस और सिर्फ कांग्रेस ही जिम्मेदार है। इस चुनाव में दिल्ली की जनता ने कांग्रेस के खिलाफ़ मतदान किया जिसकी परिणति आप के उदय और भाजपा का सबसे बड़े दल के रूप में उभरना रही। इस समय आप के नेताओं के बयान कांग्रेस के विरोध में न होकर पूरी तरह भाजपा के अन्ध विरोध में आ रहे हैं। भाजपा की बस इतनी गलती है कि उसने अल्पसंख्यक सरकार बनाने से इन्कार कर दिया है। बस, यही बहाना है ‘आप’ के पास असंसदीय शब्दों में गाली-गलौज करने का। श्री हर्षवर्धन और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के धैर्य और संयम की प्रशंसा करनी चाहिये कि उन्होंने अबतक शालीनता का परिचय देते हुए गाली-गलौज से अपने को दूर रखा है।

      आज मुझे यह कहने में न तो कोई झिझक हो रही है और न कोई संकोच कि अरविन्द केजरीवाल विदेशी शक्तियों के हाथ का खिलौना हैं। वे दो एन.जी.ओ. – ‘परिवर्तन’ तथा ‘कबीर’ और एक क्षेत्रीय पार्टी ‘आप’ के सर्वेसर्वा हैं। उनकी संस्थायें विदेशी पैसों से चलती हैं। उन्होंने अपनी संस्थाओं के लिये फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन, अमेरिका से वर्ष २००५ में १७२००० डालर तथा वर्ष २००६ में १९७००० डालर प्राप्त किये जिसके खर्चे का हिसाब-किताब वे आज तक नहीं दे पाये हैं, जबकि उक्त धनराशि प्राप्त करने की बात उन्होंने स्वीकार की है। फ़ोर्ड एक मंजे हुए उद्यमी हैं। बिना लाभ की प्रत्याशा के वे एक फूटी कौड़ी भी नहीं दे सकते। केजरीवाल की संस्थाओं के संबन्ध विश्व के तीसरे देशों की सरकारों को अस्थिर कर अमेरिकी हित के अनुसार सत्ता परिवर्त्तन कराने के लिये बेहिसाब धन खर्च करनेवाली कुख्यात संस्था ‘आवाज़’ से है। ‘आवाज़’ एक अमेरिकी एन.जी.ओ. है जिसका संचालन सरकार के इशारे पर वहां के कुछ बड़े उद्योगपति करते हैं। इस संस्था का बजट भारत के आम बजट के आस-पास है। यह संस्था अमेरिका के इशारे पर अमेरिका या पश्चिम विरोधी सरकार के खिलाफ Paid Agitation चलवाती है, वहां व्यवस्था और संविधान को नष्ट-भ्रष्ट कर देती है और अन्त में अपनी कठपुतली सरकार बनवाकर सारे सूत्र अपने हाथ में ले लेती है। जैसमिन रिवोल्यूशन के नाम पर इस संस्था ने लीबिया में सत्ता-परिवर्त्तन किया, तहरीर चौक पर आन्दोलन करवाया, मिस्र को अव्यवस्था और अराजकता की स्थिति में ढकेल दिया तथा सीरिया में गृह-युद्ध कराकर लाखों निर्दोष नागरिकों को भेड़-बकरी की तरह मरवा दिया। वही पश्चिमी शक्तियां ‘आवाज़’ और फ़ोर्ड के माध्यम से केजरीवाल में पूंजी-निवेश कर रही हैं। यही कारण है कि कांग्रेस द्वारा बिना शर्त समर्थन देने के बाद भी अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में सरकार बनाने से बार-बार इन्कार कर रहे हैं। उन्होंने दिल्ली की जनता से जो झूठे और कभी पूरा न होनेवाले हवाई वादे किये हैं, वे भी जानते हैं कि उन्हें पूरा करना कठिन ही नहीं असंभव है। दिल्ली की जनता ने उन्हें ७०/७० सीटें भी दी होती, तो क्या वे बिजली के बिल में ५०% की कटौती कर पाते, निःशुल्क पानी दे पाते या बेघर लोगों को पक्का मकान दे पाते? मुझे पुरानी हिन्दी फिल्म श्री ४२० की कहानी आंखों के सामने आ जाती है – नायक ने बड़ी चालाकी से बंबई के फुटपाथ पर सोनेवालों में इस बात का प्रचार किया कि गरीबों की भलाई के लिये एक ऐसी कंपनी आई है जो सिर्फ सौ रुपये में उन्हें पक्का मकान मुहैया करायेगी। गरीब लोगों ने पेट काटकर रुपये बचाये और कंपनी को दिये। लाखों लोगों द्वारा दिये गये करोड़ों रुपये पाकर कंपनी अपना कार्यालय बन्द कर भागने की फ़िराक में लग गई। फुटपाथ पर सोने वालों का अपना घर  पाने का सपना, सपना ही रह गया। राज कपूर ने आज की सच्चाई की भविष्यवाणी सन १९५४ में ही कर दी थी। आज भी तमाम चिट-फंड कंपनियां सपने बेचकर करोड़ों कमाती हैं और फिर चंपत हो जाती हैं। अरविन्द केजरीवाल भी सपनों के सौदागर हैं। इस खेल में फिलवक्त उन्होंने कम से कम दिल्ली में इन्दिरा गांधी और सोनिया गांधी को मात दे दी है। वे राजनीति की प्रथम चिट-फंड पार्टी के जनक है। तभी तो कांग्रेस द्वारा समर्थन दिये जाने के बाद भी, २८+८=३६ का जादुई आंकड़ा छूने के पश्चात भी राज्यपाल से मिलने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली की अधिकारविहीन सरकार के पास गिरवी रखने के लिये  है भी क्या? कोई ताजमहल भी तो नहीं है। वे चन्द्रशेखर की तरह भारत के प्रधान मंत्री भी नहीं होंगे जो देश के संचित सोने को गिरवी रखकर कम से कम चार महीने अपनी सरकार चला ले।

जिस अन्ना हजारे के कंधे पर खड़े होकर उन्होंने प्रसिद्धि पाई, उसी का साथ छोड़ा। अन्ना ने पिछले साल ६ दिसंबर को संवाददाता सम्मेलन में केजरीवाल को स्वार्थी और घोर लालची कहा था। अन्ना कभी झूठ नहीं बोलते। केजरीवाल का उद्देश कभी भी व्यवस्था परिवर्त्तन नहीं रहा है। सिर्फ हंगामा खड़ा करना और अव्यवस्था फैलाना ही उनका मकसद है। भारत को सीरिया और मिस्र बनाना ही उनका लक्ष्य है। साथ देने के लिये सपना देखने वाले गरीब, हत्या को मज़हब मानने वाले नक्सलवादी और पैन इस्लाम का नारा देनेवाले आतंकवादी तो हैं ही। लेकिन पानी के बुलबुले का अस्तित्व लंबे समय तक नहीं रहता। जनता सब देख रही है। जिस जनता ने राहुल की उम्मीदों पर झाड़ू फेर दिया है, अपनी उम्मीदों और सपनों के टूटने पर सपनों के सौदागर केजरीवाल के मुंह पर भी झाड़ू फेर दे, तो कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं होगा। शुभम भवेत। इति।

22 COMMENTS

  1. =====>Ford foundation: managing dissent in India — Sandhya Jain <========
    लेखिका संध्या जैन का, उपरोक्त आलेख कुछ अधिक स्पष्टता कर पाएगा।यदि इ मैल पता भेजे, तो मैं आपको आलेख ( सुविधानुसार) भेज सकता हूँ।

  2. भविष्य के भारत को शक्तिशाली बनने से रोकने का उद्देश्य है, सब से बडी महा सत्ता का। कैसे? पढें। चाहे तो, मेरा तर्क खण्डन कीजिए। संक्षेप में बिंदुवार पढें।
    (१)भारत शक्तिशाली बनकर उभरे, ऐसी इच्छा महासत्ताओं की नहीं है। संसार की अग्रणी सत्ताएँ, चीन, अमरिका, और अब भारत भी(३रे क्रमपर), माना जा रहा है।हम उनके प्रतिस्पर्धी हैं।
    (२) भारत कुछ धनी भी माना जा रहा है; जो हमें पारदर्शी रूपसे दिखता नहीं है, कारण हमारा अंतिम पंक्तिका ग्रामीण, गरीब और कृषक, इत्यादियों की उपेक्षा हमने की है।धन का संचार, भ्रष्टाचार ने रोक रखा है।
    (३)महासत्ताएँ वर्चस्ववादी ही हैं। वे विश्वबंधुत्व का चोला पहन भारत जिससे दुर्बल बने, ऐसे उपायों से भारत की राजनीतिको प्रभावित कर,भारत को भविष्य में, दुर्बल बनाने, छद्म मार्ग चुनकर हमारी राजनीति में हस्तक्षेप करती है।
    (४) फ़ोर्ड फाउण्डेशन का आधार लेकर, आ. आ. पा. को सहायता देने के पीछे सी. आय. ए. का यह पैंतरा है। “आप” आगे आए,–> मोदी पीछे फेंका जाएँ, –>भारत आगे ना बढे; यह उसका उद्देश्य मुझे दिखाई देता है। मोदी को वीसा ना देना इत्यादि भी, इसी परोक्ष प्रभावका अंग है।
    (४) प्रतिस्पर्धी को, दुर्बल बनाने में परदेशी सत्ताएँ कार्यरत हुआ करती है।जैसे भी, भारत का कोई पक्ष प्रबल होनेका संकेत उन्हें मिलेगा, उसके विरोधी को सहायता देना। यह उसका कूटव्यूह है।
    (५) मोदी विजय की संभावना को, अर्थात भारत “प्रबल विश्वसत्ता” बनने की संभावना को, वे भी गुप्त रूपसे मान रहे हैं। जितनी मोदी में चतुराई और कुशलता है, वैसी किसी और पक्षमें नहीं है।इस लिए और भी डर है। (६) सी. आय. ए.(अमरिका की, जासूसी संस्था) फ़ोर्ड फा.की ५० प्रतिशत आर्थिक सहायता, सी. आय. ए. क्यों करती होगी? इसका उत्तर आप सोचिए।
    आ आ पा यदि सफल हो कर मोदी का विरोध करती भी है, तो भी अंततोगत्वा भारत ही दुर्बल होगा, इतनी बात समझ लीजिए।(७) आप से हमें लडकर क्या मिलनेवाला है? “आप” जीतकर भारत को विश्वसत्ता थोडे ही बना पाएगी?अधिक से अधिक, वह, भारत को दुर्बल ही बना पाएगी। आप की विजय भारत की विजय सहायक नहीं बाधक होगी।

  3. स्थापित राजनैतिक पार्टियों के कमीनेपन से आम आदमी पार्टी टक्कर लेने में अभी असमर्थ है,पर उसके संचालकों और कार्यकर्ताओं का लग्न और कटिबद्धता इस कमीनेपन पर भारी पड़ रहा है. जो लोग फोर्ड फाउंडेशन या उसके द्वारा दिए गए अनुदान की बधिया उधेड़ कर आम आदमी पार्टी को बदनाम कर रहे हैं,वे भूल रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के बीस करोड़ के चंदे में एक पैसा भी फोर्ड या ऐसे ही किसी दूसरे फाउंडेशन का नहीं है.अगर ऐसा होता ,तो सुब्रमण्यम स्वामी जैसे लोग आम आदमी पार्टी को खा गए होते. आम आदमी पार्टी के चंदे के एक एक पैसेका हिसाब इंटरनेट पर मौजूदहै,पर क्या वे बता सकते हैं कि उनकी चहेती पार्टियों का दामन इस मामले में कितना साफ़ है? ,.जहां कांग्रेस के फंड का ९३% और बीजेपी के फंड का ७४% बेनामी है,वहाँ यह क्यों नहीं माना जा सकता कि ये सब बेनामी फंड आतंवादियों और तस्करों ने दिया है.? रही मोदी बात सत्तासंभलने और उसके विरोध की बात तो मोदी भक्त क्या यह चाहते हैं कि मोदी के विरोध में कोई आवाज ही न उठे? क्या वे वे भारत में विपक्ष बर्दास्त ही नहीं कर सकते?

  4. बहुत खूब सिन्हा जी….. कुमार विश्वास जी का एक विडियो क्लिप आया है, जिसमे वो बोलते हैं कि,
    ” हमें ये पता नहीं कि हम दिल्ली में जीतेंगे या नहीं लेकिन हमें ये पता है कि हम रायता फ़ैलाने आए हैं और रायता पूरा फैला के जायेंगे”.

    इसी वक्तव्य से “आप” कि मानसिकता का पता चल जाता है कि “आप” की मंसा क्या है? खैर दिल्ली वालों ने सर माथे पे बैठाया है, शेष वही जाने. अभी १८ मांगे आई हैं फिर ११८ आ जाएंगी. दोनों पार्टियां समर्थन कर रही हैं फिर राज करने में क्या हानि है? काम जो मिला है वो करें. अगर कोई किसी काम में अडंगा लगाता है तो फिर चुनाव में उतरो. लेकिन पर्याप्त संख्या बल होते हुए भी दूसरों पे शर्तें लादो, ब्लैक मेल की राजनीति ठीक नहीं है. लेकिन ये बात पक्की है जनता पहले भी बेवकूफ थी आज भी बेवकूफ है. समर्थन कम से कम एक को तो दो जिससे की सरकार बने. खिचड़ी बना के बर्तन फोड़ देना उचित नहीं है.

    मेल आईडी दीजियेगा तो वो विडियो क्लिप भेज दूंगा आपको.

    सादर,

  5. (१)आज एक समाचार(इ मैल से) आया है, कि, कैसे अमरिका की “सी. आय. ए.” परदेशों की राजनीति को अमरिका के हितों के लिए, प्रभावित करने के लिए, फ़ोर्ड फाउण्डेशन का उपयोग करती है। बहुत, बहुत चौंकानेवाला समाचार है।
    (२)इस स्रोत (फोर्ड फाउण्डेशन )के नाम से किसी को संदेह होनेकी कम ही संभावना मानता हूँ।
    (३)अभी बहुत व्यस्तता चल रही है, नहीं तो, पूरा आलेख बना डालता।
    फिर भी इ मैल पता देने पर मैं अंग्रेज़ी की सामग्री जो मेरे पास आयी है, उसे भेज सकता हूँ।
    (४) आप पाठकों ने ध्यान में लिया होगा ही, कि, जब मोदी के नेतृत्व में, भा ज पा की विजय हुयी, उसी दिन से दो दिन तक रूपये की अपेक्षा, डालर की कीमत गिर रही थी।
    (५) अटलजी ने अणु परीक्षण, पोखरण में करवाया था। अब “नरेंदरवा” से इसी लिए अमरिका भयभीत है। कश्मिर, पाकिस्तान, सीमाएं इत्यादि (६) विसा भी इसी लिए रोक रखा है।
    (6) डालर की कीमत ऊंची रखकर ही ४.५ % जनसंख्या वाला यह देश, संसार की ४४ से ४५ % प्राकृतिक संपदा का उपभोग करता है। अपनी जनसंख्या से दस गुणा।

    ये सारी कार्यवाही अकेले नरेंद्र मोदी के डर से हो रही है।

    अच्छे समयोचित आलेख के लिए, लेखक को बहुत बहुत धन्यवाद।

  6. सच्चाई से दूर दूर भी इस आलेख का वास्ता नजर नही आता। हम लोग बुद्विजीवी है हमे भाजपा, कांग्रेस की बात नही करनी चाहिये सच को दबाना या झुठलाना सिर्फ राजनेताओ का काम है हम लोगो को सच्चाई के साथ रहना चाहिये इस वक्त सच्चाई ये है कि यदि केजरीवाल इसी प्रकार देश में आम आदमी की लडाई लडते रहे और आम आदमी को दो वक्त की रोटी चैन और सुकून से मिलने लगी तो आने वाले वक्त में देष उन्हे प्रधानमंत्री पद से नवाज दे।

  7. ==> अधिक से अधिक “आप” नरेन्द्र मोदी को प्रधान मंत्री बनने से रोक पायेगी। इससे देश का कल्याण नहीं होगा। इस “आप” के पाप का भागी बनना मैं, नहीं चाहता।<===

    (क) वर्षों वर्षों का सपना साकार हो गया है गुजरात में, वह भी केवल शासकीय भ्रष्टाचार के घटनेसे।
    अब सारे भारत को उसका लाभ मिलनेकी संभावना को "आप" मतों का विभाजन कर के रोक रहा है।
    (ख) मोदी ने अनगिनत विरोधी दाँवपेंचो को असफल कर दिया है। यह अतीव अद्भुत उपलब्धि ही मानता हूँ। कोई अहरा गहरा, दशकों से ऐसा नहीं कर पाया है।
    (ग) भ्रष्टाचार को उन्हों ने बडी कुशलता से घटाया है। जो पूरे आलेख की सामग्री है। २४ घण्टे पानी, और बिजली, महामर्गॊ को बिछाना, इत्यादि अनगिनत प्रकल्प किए गए है।
    (घ) नरेंद्र मोदी ने अपना कर्तृत्व, प्रामाणिकता और चतुराई, भयंकर विरोधों के बीच, प्रदर्शित की है।
    (च)गुजरात की शासकीय उपलब्धियों के इतिहास के साथ भ्रष्टाचार जुड़ा नहीं है।
    (छ)अवसर वादी इस "आप" के रथ पर चढ़ सकते हैं और भारत का भविष्य बिगाड़ सकते हैं
    (ज) और अननुभवी पार्टी जल्दी में, कैसे सावधानी बरतेगी? एक केजरीवाल कितने और कहाँ कहाँ, भाग सकते हैं।
    (झ)भारत के उगनेवाले सूरज को पीछे धकेलने वालो कहीं "आप"की प्रगति का मार्ग "नर्क" में तो नहीं ले जा रहा भारत को?

    .
    (ट) ऐसी चुनौती का केवल एक ही परिणाम हो सकता है, कि भारत को और पीछे धकेल दे सकते हैं। जो सूरज उगने जा रहा है, उसको पीछे ठेल दोगे। आप मोदी का नहीं भारत का विचार करें। भारत केंद्र है।

    (ठ) "आप" की ताकत है, तो भारत के भविष्य सूर्य को उगने में रोडा अटकाने की, इतना ही मैं इसका अर्थ लगाता हूँ।
    अधिक से अधिक यही कर पाएंगे। आज ऐसा ही अनुमान करता हूँ।

  8. यह वही सुर है कि चित भी मेरी पट्ट भी मेरी. भाजपा सरकार नहीं बनाएगी,पर आम आदमी पार्टी को दोषी करार देगी.अपने १३०० करोड़ चंदे में ९५० करोड़ का कोई हिसाब नहीं देगी ,पर दूसरे पर लांछन लगाएगी. क्या फर्क है कांग्रेस और भाजपा में ? अगर दिल्ली सरकार भ्रष्ट है,तो भाजपा द्वारा शासित एम्.सी.डी ईमानदार है क्या? दिल्ली में भ्रष्टाचार के पैमाने पर पहला स्थान दिल्ली पुलिस का है.दूसरे पादान पर एम् सी डी है.तीसरे पादान पर ट्रांसपोर्ट विभाग है.दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है.अतः भ्रष्टाचार के पैमाने पर दिल्ली सरकार से पहले एम् सीडी का स्थान है.एम् सीडी पर पिछले सात वर्षों से बीजेपी का शासन है. अब कोई बताये कि भ्रष्टाचार के मामले में दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी में कोई अंतर है क्या? कवीर और परिवर्तन के ऑडिट किये जा चुके हैं और उसका रिपोर्ट आर,टी. आई के जरिये उपलब्ध किया जा सकता है. आपलोग याद रखिये कि वह ज़माना लद जब बार बार बोलकर झूठ को सच में बदला जा सकता था.

  9. Arvind Kejariwal has mislead the people of Delhi and on the basis of his so called success he is now planning to fight the election nationwide and would cause chaos like what we have seen in Egypt and spreading all over middle east and now arrived in Hindusthan which will lead to chaos, confusion, lawlessness and violence we have never seen which may be worse than 1947-48 .
    He has no vision, no plan, no organisation and has no one to guide or administer even if he wins.
    He must come forward to form the government in Delhi with other parties to prove his mentle but he is SAPANO KA SAUDAGAR and may be good for nothing.
    Vote to aam aadami Party is a waste of not only vote but money, time effort. People must rethink on his day dreaming. Iwould not vot AAP in future that is definite.
    VANDE BHARAT MATARAM. JAYA HIND.

  10. जितना सपने देखना व दिखाना आसान है उतना ही ज्यादा कठिन उन कू साकार करना.आप का उद्देश्य बेशक अच्छा था लेकिन बिलों को कम करना व राजस्व के दुसरे उपाय ढूँढना कठिन.केजरीवाल अभी उतने परिपक्व राजनीतिज्ञ नहीं जो सब समस्याओं का एक रात में हल कर दें.सच तो यह है कि स्वयं केजरीवाल को इतना समर्थन मिलने की उमीद न थी.अब वे बोखला गएँ हैं.और रास्ते ढूंढ रहें हैं.

  11. आपकी इस बात से में सहमत नहीं हूँ जी ,रही बात बिजली ५०% नहीं ६०% तक कम कि जा सकती है अगर लागत के हिसाब से चले ,और ५०% कम के लिए तो बहुत सी छोटी प्राइवेट कंपनिया ही लाईन में खड़ी हो जायेंगी, अगर मुख्यमंत्री और अन्यों को कोई हिस्सा न देना पड़े

    • वाह शर्मा जी, बहुत अच्छी बात बताई है, फिर शपथ लेने में क्या हानि है? शपथ लें और करके दिखाएँ न. गपोड़े क्यूँ मार रहे हैं? समर्थन उन्हें मिल ही रहा है.

      हकीकत ये है कि गप्प मारने और काम करने में बहुत अंतर है, ये आप वाले भी जानते हैं, इसी लिए नानुकुर चल रही है और “रायता फैलाया जा रहा है”.

      • अब जब अरविन्द केजरीवाल सरकार बनाने पर तैयार हो गए हैं,तब आपलोग क्या कहेंगे? क्या माननीय श्री हर्षवर्द्धन का बयान दोहराएंग कि अरविन्द केजरीवाल ने सत्ता की लालच में सिद्धांतों से समझौता कर लिया?

        • जब “आप” लोग मन माफिक बयान दे सकते हैं तो बाकी लोगों के मुंह में दही तो जमी नहीं है, और हम तो आपके बयानों को ही आधार बनाकर अपनी बात बोलेंगे. याद कीजिये नतीजों कि घोषणा हुई थी और नतीजों के बाद “आप” का बयान आया था कि हम न किसी से समर्थन लेंगे ना ही देंगे? और अब? कहाँ है नैतिकता? १५ दिन बाद ही नैतिकता गई तेल लेने? जो बात बोलो उस पे अडिग तो रहो. बेपेंदे के लोटे बनना ठीक बात है क्या? और ऐसे बयान देने कि क्या जरूरत थी? “अध् जल गगरी छलकत जाए”. “चूहे को हल्दी की गांठ मिली वो पंसारी बन बैठा”. ये मुहावरे शायद इन्ही परिस्थितियों को देख के लिखे गए होंगे. उसी रात किसी चैनल में श्रीमान केजरीवाल जी इंटरव्यू के दौरान उन्होंने भाजपा को ईंगित करते हुए कहा था (सरकार बनाने और बहुमत की कमी को देखते हुए) “इनकी बेशर्मी” पे भरोसा रखिये. और अब “आप” की “बेशर्मी”? जिनके खिलाफ लड़े उनके समर्थन से ही सरकार, वाह जी वाह चित भी मेरी पट भी मेरी अंटा मेरे बाप का.

          रोज नए पाखंड और रोज नए नाटक. अब दिल्ली के लोगों को सिनेमा और नाट्यशाला के टिकट खरीदने की जरूरत नहीं रहेगी. सर्व सुलभ नाटक अपने “आप” रोज दर्शन हुआ करेंगे. जितने महीनों की सरकार उतने नए नाटक.

          अंत का नाटक भी अभी से ही बता देता हूँ. कांग्रेस अपना समर्थन वापस ले लेगी. “आप” की सरकार अल्पमत में आ जाएगी. फिर यही लोग भाजपा से कहेंगे की आप सदन से अनुपस्थित हो जाएं हमारी सरकार बच जाएगी और ये न करने पर कांग्रेस के बजाए भाजपा पे आरोप लगाएंगे की सदन में भाजपा ने हमें समर्थन नहीं दिया, हम अच्छा काम कर रहे थे. हमारी सरकार गिरा दी गई, इत्यादि इत्यादि. और ये आरोप “आप” और कांग्रेस मिल के इकठ्ठा लगाएंगे. और इतना रोना पीटना मचा देंगे की आम आदमी कन्फ्यूज हो जाएगा की करना क्या है. मीडिया इनके साथ है.

          देखते रहिए “आप” का “आजतक”. फिर विश्वास साहब कहेंगे ” हम दिल्ली का चुनाव जीते या ना जीतें, हम रायता फ़ैलाने आए हैं और रायता पूरा फैला के जाएंगे”.

          हमारी शुभकामनाएं, नई सरकार को, ये अपना कार्यकाल पूरा करे और जन आकांक्षाओं पर पूरी खरी उतरे, जिससे की राजनीति की नई परिपाटी की शुरुआत हो. इति शुभम.

        • किसी कि भी अंधभक्ति अच्छी नहीं होती. केजरीवाल कांग्रेस के छद्म एजेंट हैं. वे कांग्रेस के मुहरे हैं. सरकार बनाने के उनके निर्णय ने यह सिद्ध कर दिया है. भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस किसी को समर्थन दे सकती है और केजरीवाल आतंकवादी, नक्सलवादी या वंशवादी कांग्रेस या भ्रष्टाचारी लालू, मुलायम, सोनिया या राजा किसी का समर्थन लेकर सरकार बना सकते हैं. वर्तमान घटनाक्रम के बाद संदेह कि कोई गुंजायश रह गई है क्या.

  12. जिनके विरोध मे आये हैं उनसे समर्थन नहीं लेंगे, वो बड़े घाघ हैं अगले दिन से सरकार गिराने की तैयारी मे जुट जायेंगे और फिर कांग्रेस और भाजपा एक सुर मे, बुलन्द आवाज़ मे नाकामयाब घोषित करेंगे। ‘आप’ से ज़्यादा संख्या भाजपा की है वो भी सरकार बनाने को मना कर आये हैं फिर आप पर दबाव क्यों?

    • आप ने कहा न लेंगे और न देंगे, कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ आप को समर्थन करेगी तो बीजेपी कैसे सरकार बना सकती है!

      • उदय जी,ऐसे सच पूछिए तो बीजेपी के लिए भी यह एक अच्छा मौका था,जिसे उसने गवां दिया.उसे सरकार बनाना चाहिए था.इन दोनों पार्टियों में से अकेले कोई बीजेपी की सरकार को नहीं गिरा सकता था.अगर सरकार गिराने के लिए दोनों मिल जाते ,तो भी बीजेपी इस वक्तव्य के बाद सरकार भंग कर देती कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक दूसरे से मिले हुए हैंऔर तब लोग इस पर पूरी तरह विश्वास कर लेते.

        • पेंदेदार और बेपेंदे के लोटे में यही फर्क होता है कि वो मौका परस्त नहीं होता है, और यही भाजपा और शेष पार्टियों का अंतर है.

    • बीनू बहन अगर सरकार गिरती है तो भी तो फायदा “आप” को ही होना है, जिन्होंने उन्हें वोट दिया है या जिन्होंने उनको वोट नहीं दिया है, अगर उनका काम अच्छा होगा तो वो भी तो देखेंगे कि कमी कहाँ पर है और सरकार गिराने वालों को सबक सिखाएंगे. और रही बात भाजपा के सरकार बनाने कि तो कांग्रेस भाजपा को समर्थन नहीं कर रही है और अपनी बी टीम “आप” को कर रही है.

      काम करने और ढोल पीटने में बहुत अंतर होता है, ये वही अंतर है जिसके कारण “आप” सरकार नहीं बना रही है.

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