समाज निर्माण में मीडिया साक्षरता की महत्ता

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मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है | किसी भी समाज के निर्माण व संचालन में सूचनाओं का अहम योगदान होता है और इन सूचनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में मीडिया अपनी भूमिका निभाती है | आज मीडिया का हस्तक्षेप हमारे जीवन के हर हिस्से में हैं, चाहे वह हमारा व्यक्तिगत जीवन हो या सामाजिक | प्रायः हम सूचनाओं की प्राप्ति के लिए और किसी सूचना को जनमानस तक प्रेषित करने के लिए मीडिया पर ही आश्रित रहते हैं | सूचनाओं का प्रसार और लोगों पर उसका प्रभाव, इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम किस माध्यम का चयन कर रहे हैं |

     आम तौर पर हम टेलीविजन, रेडियो और अखबार को ही सूचनाओं का प्रमुख माध्यम मानते रहे हैं, लेकिन उदारीकरण के बीज पनपने के बाद सोशल मीडिया ने अपनी विशेष जगह बनाई | अब सूचनाओं का आदान-प्रदान बहुत आसान हो गया है, हर किसी को अपनी बात रखने का एक बेहद ही आसान प्लेटफोर्म मिल चुका है, जो अब वृहद् रूप ले चुका है | आज भले ही ग्रामीण क्षेत्र के घरों में अखबार और टीवी की पहुँच हो न हो, लेकिन मोबाईल और इंटरनेट की पहुंच लगभग जगहों पर है | जो सूचना टीवी और अखबार तक आसानी से नही पहुँच सकती या यूं कहें कि नहीं पहुँच सकती, वह सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है | यहाँ हर किसी के हाथ में एक अदृश्य कलम है , जिसकी ताकत वह समय- समय अपर दिखाता रहता है, लेकिन इसके कुछ दुष्परिणाम भी सामने आते हैं, जिसका भुगतान हमें व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर भी करना पड़ता है | क्योंकि यहाँ गलत सूचनाएं व अफवाह  भी बहुत तेजी से फ़ैल रही हैं, जिसे न कोई भी जांचने परखने व संपादित करने वाला नही है |
आकड़ों के अनुसार दुनिया भर में व्हाट्सएप के मासिक एक अरब से ज्यादा सक्रिय यूजर्स में से 16 करोड़ यूजर्स केवल भारत में हैं |  वहीं फेसबुक इस्तेमाल करने वाले भारतीयों की संख्या 14.8 करोड़ और ट्विटर अकाउंट्स की संख्या 2.2 करोड़ है |  ऑल्टन्यूज के अनुसार, “फेक न्यूज के फैलने की दो वजह हैं-  पहली यह कि हाल के वर्षों में स्मार्टफोन के दाम लगातार कम हुए हैं, जिससे आज हर वर्ग और व्यक्ति के हाथ में स्मार्ट फोन है | दूसरा इंटरनेट डाटा के दामों में आने वाली कमी है |  ग्रामीण क्षेत्र के रहवासी सोशल मीडिया पर चलने वाली लगभग हर ख़बर और बात पर विश्वास कर लेते हैं |” 2016 में स्टैनफोर्ड हिस्ट्री एजुकेशन ग्रुप की एक रिपोर्ट  के अनुसार स्मार्टफोन और टैबलेट की संख्या बढ़ने से आज की पीढ़ी के छात्रों की पहले की तुलना में सूचनाओं तक पहुंच काफी आसान हो गई है | वहीं अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का धड़ल्ले से इस्तेमाल करने वाले छात्रों में से 80% विज्ञापन और ख़बरों के बीच फर्क़ नहीं कर पाए | इसका मतलब यह है कि छात्रों को जिस बड़े पैमाने पर सूचनाओं से जूझना पड़ रहा है, उसमें वे सच या झूठ का फ़र्क  नहीं करने में ख़ुद को असहाय पा रहे हैं |
     ऐसे में भारत में फेक न्यूज की समस्या लगातार बढ़ रही है , जिससे विभिन्न समुदायों, जातियों और धर्मों के बीच मतभेद पैदा हो रहे हैं | वही आज यह समस्या केवल सोशल मीडिया तक ही सिमित नही है बल्कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया और थोड़ा बहुत प्रिंट में भी देखने को मिल रहा है | मीडिया के विश्वनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं, समाज में अराजकता फ़ैल रही है, जबकि मीडिया का काम समाज में सौहार्द्र, सामाजिकता और समानता बनाए रखने के साथ साथ लोगों को जागरुक करने का है, लेकिन मौजूदा दौर में स्थितियाँ इसके उलट ही नजर आ रही हैं |  क्योकिं तेजी से खबरों के प्रचार-प्रसार और अराजकता फैलाने में सोशल मीडिया का सबसे अधिक हाथ है, इसके बाद बिना जांचे परखे, सबसे तेज और आगे दिखने के होड़ में टेलीविजन पर खबरों का प्रसारण होना |

     इसका मुख्य वजह मीडिया शिक्षा का अभाव और बेतहाशा व्यावसायिक लाभ की लालसा है | मीडिया शिक्षा का लोग अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। लेकिन मीडिया शिक्षा का  अर्थ अखबार, रेडियो और टेलीविजन का प्रशिक्षण देने भर से नही है बल्कि  इसका तात्पर्य लोगों को मीडिया के प्रति जागरूक बनाने की पढ़ाई, चीजों के प्रति समझ उत्पन्न करने और नजरिए में पारदर्शिता  से है और इसका उद्देश्य लोगों में नैतिकता जगाना भी है।  वहीं मीडिया साक्षरता में उन प्रथाओं को शामिल किया गया है जो लोगों को मीडिया का उपयोग करने, गंभीरता से मूल्यांकन करने और निर्माण या हेरफेर करने की अनुमति देता है। मीडिया साक्षरता किसी एक माध्यम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर माध्यम और उसके विभिन्न पहलुओं के प्रति आपकी समझ को विकसित करता है |
मीडिया साक्षरता का महत्व आज पहले से ज्यादा इसलिए भी है क्योंकि बाज़ार और व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा की वजह से मीडिया का स्वरूप बहुत बदल चुका है।
आज भारी मात्रा में भारत में लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं और औसत रूप से लगभग 2 से 3 घंटे देते हैं लेकिन अधिकतर लोगो को इसका उद्देश्य नही पता है | उन्हें स्वंय से निम्न प्रश्न करने की आवश्यकता है –
१- वे सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप आदि ) का उपयोग किस उद्देश्य से कर रहे हैं?
२- वे सोशल मीडिया पर किस तरह के खबरों को देख रहे हैं ?
३- वे सोशल प्लेटफोर्म पर दिखने वाले खबरों कि क्या जांच-पड़ताल करते हैं?
४- क्या वे खबरों को आगे भेजते हैं? अगर हाँ तो उसका उद्देश्य क्या है?
५- क्या वे किसी कंटेंट को केवल आनंद या मजे के लिए शेयर कर रहे हैं ?
६- उनके द्वारा शेयर किये जाने वाले कंटेंट से समाज व परिवेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
७- सोशल प्लेटफोर्म पर दिखने वाले किसी ख़बर का सोर्स क्या है और वह कितना विश्वसनीय है?

        ऐसे तमाम सवाल हैं, जो एक सोशल मीडिया यूजर को खुद से पूछने चाहिए, क्योंकि आज हर कोई
इसका उपयोग तो कर रहा लेकिन उसके दुष्परिणाम और प्रभाव से पूरी तरह अवगत नही है, या यूं कहें कि वह मीडिया साक्षर नही है | आज सोशल मीडिया को लेकर आज ज्यादा चिंतित होने की जरूरत इसलिए भी है क्योकि आज हर कोइ पत्रकार है, सबके पास अपनी कलम है वहीं प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक माध्यम भी सोशल मीडिया पर अपने पाँव पसार चुके हैं | ऐसे में मीडिया साक्षरता की जरूरत आज ज्यादा महसूस होती है, क्योकि इसके अभाव में आम समाज और जन-जीवन में एक अदृश्य जहर फैलता जा रहा है, जो लोगो को भौतिक क्षति के बजाय मानसिक रूप से खोखला और बीमार बना रहा है | लोगो में अन्दर ही अन्दर किसी एक निश्चित पक्ष के प्रति बेतहासा लगाव तो किसी क प्रति द्वेष की भावना पनप रही है, जिसमें सही व गलत समझने की संभावना ख़त्म हो रही है |
वहीं टेलीविजन न्यूज़ चैनल टीआरपी की होड़ और अधिक मुनाफ़ा कमाने के चक्कर में सामाजिक सरोकार, समाज के प्रति अपने दायित्व और नैतिकता को ताक पर रखते हुए खुद एक-दूसरे को टक्कर दे रहे हैं, गलत सही ठहराए जा रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माने जाने वाले मीडिया, जिसपर पूरा देश समुदाय आँख बंद कर के भरोसा करता था, आज उसे ही अपने सही होने और सच्ची खबरें दिखाने का प्रचार क्यों करना पड़ रहा है | आज मीडिया को यह कहने /दिखाने या यूं कह लें कि साबित करने की जरूरत क्यों पड़ रही कि वह निष्पक्ष और साफ़ है | क्योकि इसलिए भी कि खुद मीडिया घरानों के व्यवसायिक लालच ने उन्हें मूल पत्रकारिता और समाज के प्रति उनके दायित्वों और नैतिकता से इतर ला खड़ा कर दिया है, लेकिन अफ़सोस कि हम-आप उसे देख नही पा रहे हैं |
मौजूदा हालात को देखते हुए भारत में मीडिया साक्षरता को लेकर एक उचित कदम उठाने की जरूरत है और मीडिया शिक्षा को भी एक नया रूप देने की जरूरत महसूस होती है | आज भी कौन सी सूचना सही है और कौन सी गलत, इसका पूर्ण रूप से पता लगाना मुश्किल है | हालाकि आज तमाम फैक्ट चेकर उपलब्ध हैं लेकिन वह सही व गलत का आकलन करने हेतु पर्याप्त नही है | किसी सूचना के जांच पड़ताल के लिए एक बेहतरीन तकनीक से इतर देश में लोगो को मीडिया साक्षर बनाने की तरफ पहले कदम उठाया जाना चाहिए | आज डिजिटलाइजेशन के दौर में लोगो तक पहुचना आसान हो गया है, ऐसे में सरकारी स्तर पर ऑफलाइन और ऑनलाईन माध्यम से आम जनमानस को इसके प्रति जागरूक करने का अभियान शुरू किया जाना चाहिए | साथ ही स्कूली स्तर पर मीडिया साक्षरता बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए |
    आज भी हमारे देश में स्कूली शिक्षा का सिमित प्रारूप है, जिसमें बच्चा सलेबस के बोझ तले दबा होता है, वही एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी के नाम पर औपचारिकता देखने को मिलती है | ऐसे में स्कूल स्तर से ही छात्रो को डिजिटल मीडिया के प्रयोग, उस पर मौजूद कंटेंट व खबरों के प्रति जागरूक करने और सही व फेक खबरों में अंतर सिखाने का काम शुरू किया जाना चाहिए, जिससे किशोरावस्था से ही बच्चो में मीडिया के प्रति समझ विकसित हो सके, क्योंकि उनके कंधो पर भविष्य व समाज निर्माण की बड़ी जिम्मेदारे होती है, जो एक स्वस्थ्य मानसिक समृद्धि व समझ से ही संभव है |  

  मीडिया साक्षरता की जरूरत केवल छात्रों को नही अपितु पूरे समाज को है, ऐसे में एक बेहतर समाज के निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों को भी है, जिससे वह फ़ेक खबरों की समस्या और उसके दुष्प्रभावों को बेहतर तरीके से समझ पाए और उसके खिलाफ उचित कदम उठा पाए | हमें यह समझना होगा कि किसी सोशल प्लेटफोर्म पर दिखने वाला हर ख़बर सही ही हो, इसकी गारंटी नही है | उस कंटेंट की जांच पड़ताल जरूरी है, उसे यूं ही दूसरे से साझा करना उचित नही है | आज अखबार और टेलीविजन के खबरों की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, ऐसे कई मौके रहे जब मीडिया को बढ़ा-चढ़ा कर, मिर्च-मसाला लगा गलत खबरों को पेश करते हुए देखा गया | ऐसे में  सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि एक बेहतर मानक तैयार करे और साथ ही हर वर्ग को मीडिया साक्षर बनाने हेतु एक स्लेबस तैयार कर इसे पाठ्यक्रम में शामिल करें, जिससे बेहतर और सही सूचनाओं का आदान प्रदानऑनलाइन हो सके और स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके |

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