बैलो ने रहट चलाई
कुँए के मृदु जल ने
खेतो की प्यास बुझाई
खाद बीज हुये सब महंगे
महँगाई ने कमर अब तोड़ी
कैसे उगाये फसल हलधर
उसके पास है न फूटी कोडी
पेट पालने फसल उगाने अब
हलधर बणिक से ऋण लाया
सूद सूद में बेचारे हलधर ने
जीवन भर उसने सूद चुकाया
चुका ना सका वह मूलधन
ऋण लेकर वह अब पछताया
ऋण चुकाने के चक्कर में
वह जीवन भर न उठ पाया
बैलो की जगह आये ट्रेक्टर
रहट की जगह नलकूप आये
कहाँ से लाये इतना धन वह
जो इनको वह खरीद पाये
काटे चक्कर उसने बैंको के
कही नही ऋण मिल पाया
गिरवी रक्खी जमीन उसने
मुश्किल से ऋण ले पाया
आर के रस्तोगी
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