सेवा हमारी और मौत उनकी

दिल्ली के एक मलकूप (सेप्टिक टैंक) को साफ करने में दो सगे भाइयों की बलि कैसे चढ़ गई, यह सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जैसे ही जहांगीर और एजाज़ मलकूप में घुसे, जहरीली गैस ने उनका दम घोंट दिया। उन्हें देखने के लिए उनके पिता युसुफ ने उस टैंक में उतरने की कोशिश की तो वह भी बेहोश हो गया। फायर ब्रिगेड ने इन तीनों को किसी तरह बाहर निकाला तो दोनों भाइयों के प्राण पखेरु उड़ चुके थे।

ऐसा नहीं है कि यह घटना दिल्ली में पहली बार हुई है। पिछले एक माह में यह तीसरी घटना है। 6 अगस्त और 15 जुलाई को भी दो मलकूपों की सफाई करते हुए तीन-तीन लोगों की मौत हो चुकी है। दिल्ली शहर में इन मलकूपों को साफ करने के नाम पर दर्जनों मजदूरों की बलि चढ़ती रही है लेकिन सरकार और जनता के सिर पर जूं भी नहीं रेंगती।

और यह तब हो रहा है जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह के कामों के लिए सुरक्षा की अनिवार्य व्यवस्था के आदेश दे रखे हैं। जो लोग अपने निजी मलकूपों को साफ करवाते वक्त ठेकेदारों और मजदूरों से यह नहीं पूछते कि उनके सुरक्षा-उपकरण कहां हैं, क्या अदालत के सामने वे गुनाहगार नहीं माने जाएंगें ? उन ठेकेदारों को तो इन मौतों के लिए जिम्मेदार ठहरा कर कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। बेचारे मजदूर तो मजबूर होते हैं। उनके सामने पेट भरने की समस्या होती है। वे 100-200 रु. के लिए अपनी जान झोंक देते हैं।

ज़रा हम सोचें कि ये लोग हम पर कितनी बड़ी मेहरबानी करते हैं ? क्या हम उनका अहसान इसी निर्ममता के साथ नहीं चुकाते हैं ? सेवा हमारी और मौत उनकी ! स्थानीय सरकारों को चाहिए कि जहां भी इस तरह के मलकूपों की सफाई हो, वहां वे कड़े प्रावधान लागू करें। उनका उल्लंघन करने वाले हर व्यक्ति को यदि कड़ी सजा होने लगे तो इस तरह की दर्दनाक घटनाओं को टाला जा सकता है। जो मजदूर मरे हैं, उनके परिवारजन को इतनी बड़ी मात्रा में हर्जाना मिलना चाहिए कि उनके आश्रितों का लालन-पालन सही ढंग से हो सके।

हर्जाने की यह राशि सरकार तो दे ही, ठेकेदार और मलकूप का मालिक भी दे। तभी जाकर लोग सावधान होंगे। दिल्ली सरकार ने तुरंत एक जांच कमेटी बिठाकर ठीक किया है लेकिन यह काफी नहीं है। हताहतों को उसे तुरंत मुआवजा भी देना चाहिए (हालांकि इस दुर्घटना से उसका कोई सीधा संबंध नहीं है) और इस संबंध में कड़ा कानून भी बना देना चाहिए।

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