1924 : जब महात्मा गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने

लालकृष्ण आडवाणी

पिछले दिनों रामकृष्ण मिशन, बेलगांव ने मुझे वहां पर निर्मित एक विशाल सभागार का औपचारिक उद्धाटन करने के लिए निमंत्रित किया, जहां पर स्वामी विवेकानन्द दक्षिण भारत की अपनी पहली यात्रा के दौरान रूके थे।

इस कार्यक्रम के लिए कलकत्ता स्थित मिशन के मुख्यालय वेल्लुर मठ के प्रमुख सहित सारे देश से रामकृष्ण मिशन ट्रस्ट के सभी ट्रस्टी वहां पहुंचे थे।

बेलगांव की मेरी यात्रा अक्षरश: इतिहास के साथ एक साक्षात्कार थी। जिस स्थान पर स्वामी विवेकानन्द नौ दिन रूके वह आज भी पर्याप्त श्रध्दा के साथ व्यवस्थित है, ऐसे स्थान पर जाकर कोई भी अपने को कृतार्थ समझेगा। यह स्थान बेलगांव किले के भीतर है, जिसके लिए एक बड़ा क्षेत्र रामकृष्ण मिशन को दिया गया है।

स्वामीजी 1892 में बेलगांव आए थे और अगले वर्ष 1893 में उन्हें विश्व धर्म संसद में भाग लेने हेतु शिकागो जाना चाहिए, का विचार भी यहीं फलीभूत हुआ माना जाता है।

इसी बेलगांव में 1924 में कांग्रेस का सेशन हुआ था, बेलगांव के निकट कित्तुर की रानी चेन्नमां द्वारा ठीक एक सौ वर्ष पूर्व ब्रिटिश शासन के विरूध्द विद्रोह करने के बाद जोकि 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से पहले की घटना है। 1997 में स्वर्ण जयंती यात्रा के दौरान कित्तुर स्थित रानी चेन्नमां को अपनी श्रध्दांजलि देने आने का मुझे स्मरण हो आया।

महात्मा गांधी का जीवनभर कांग्रेस पर असाधारण प्रभाव बना रहा। लेकिन 1924 में ही सिर्फ एक बार वह पार्टी के अध्यक्ष बने।

बेलगांव स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था। लोकमान्य तिलक ने 1916 में बेलगांव से ही अपना ‘होम रूल लीग‘ आन्दोलन छेड़ा था। इस शहर को 1924 में ऑल इण्डिया कांग्रेस के 39वें सेशन को आयोजित करने का सम्मान प्राप्त हुआ, और यही एकमात्र ऐसा सेशन था जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की और कर्नाटक में भी यही एकमात्र सेशन हुआ। इस सेशन की स्मृति में ‘वीरसौधा‘ स्मारक बनाया गया है। कैम्पस में मौजूद कुआं, कांग्रेस कुएं के नाम से प्रसिध्द है क्योंकि इसे सेशन के दौरान पीने के पानी की आवश्यकता के लिए बनाया गया था। कुएं का नाम पम्पा सरोवर और सेशन के स्थान का नाम हम्पी साम्राज्य के नाम पर विजयनगर रखा गया था।

इण्डियन नेशनल कांग्रेस के इस सेशन में अनेक ऐसे व्यक्ति एकसाथ आए थे जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष को गति दी तथा हमारे देश पर अपनी छाप छोड़ी। महात्मा गांधी के अलावा, मोतीलाल और जवाहरलाल नेहरू, लाला लाजपत राय और राजगोपालचारी, डा0 एन्नी बसेंट और सरोजिनी नायडू, चित्तरंजनदास और पण्डित मदन मोहन मालवीय, सैफुद्दीन किचलु और अबुल कलाम आजाद, राजेन्द्र प्रसाद, वल्लभभाई पटेल और ऐसे अनेक अन्य महारथी इसमें उपस्थित थे।

कांग्रेस का बेलगांव सेशन प्रसिध्द संगीतज्ञ विष्णु दिगम्बर पलुसकर द्वारा गाए गए वंदेमातरम के साथ शुरू हुआ। तत्पश्चात् कन्नड के दो गीत गाए गए, इनमें से एक को एक छोटी लड़की गंगूबाई हंगल ने गाया जिसके आत्मीय स्वर ने गांधीजी को भाव विभोर कर दिया। बाद में गंगूबाई देश की सर्वोत्कृष्ट संगीतज्ञों में एक बनीं।

उन दिनों में प्रत्येक वर्ष कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना जाता था। तब से कितना बदल गया है! आजकल पार्टी का अध्यक्ष पद लगता है एक परिवार का एकाधिकार बन गया है और वह भी जीवनभर के लिए!

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अपने राजनीतिक जीवन में, मैंने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। 1980 की शुरूवात में जनता पार्टी के अंतिम दिनों वाले दौर को मैं सर्वाधिक पीड़ादायक मानता हूं। जनता पार्टी बुरी तरह चुनाव हार चुकी थी। पार्टी के जनसंघ सदस्यों को नेतृत्व द्वारा बोझ समझा जाने लगा था और दोहरी सदस्यता के नाम पर हमें बाहर करने के प्रयास चल रहे थे। और यह पीड़ा अप्रैल 1980 में ही तब समाप्त हुई जब जनसंघ से सम्बन्ध रखने वाले हम लोगों ने जनता पार्टी से किनारा कर भाजपा की नींव रखी।

इसी ‘पीड़ादायक दौर‘ के दौरान एक बार मैंने कहा था ”यह जनता पार्टी लगता है आत्महत्या करने की मन:स्थिति में है!” एक मित्र ने टिप्पणी की कि ”यह साधारणतया माना जाता है कि आत्महत्या करना सिर्फ मनुष्य की ही विशेषता है न कि पशुओं की। लेकिन स्केनडिनेवियन देशों में एक चूहे जैसा जीव पाया जाता है जिसे ‘लेम्मिंग‘ नाम से पहचाना जाता है, के बारे में कहा जाता है कि यह अपने आप में अलग प्रजाति है: बगैर किसी स्पष्ट कारण के ये ‘लेम्मिंग‘ सामूहिक आत्महत्या करते हैं। अपने लेखन में उन दिनों अक्सर मैं जनता पार्टी के बारे में कहा करता था कि यह ”लेम्मिंग कॉम्पलेक्स” से ग्रसित है। हालांकि बाद में मुझे पता चला कि यह मात्र ऐसा माना जाता है, वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है।

गत् सप्ताह मुझे ‘हिन्दू‘ समाचारपत्र में सम्पादकीय पृष्ठ पर इसके सुपरिचित पत्रकार पी0 साईनाथ का ”दि लर्च ऑफ लेम्मिंग्स” शीर्षक से लेख पढ़ने को मिला। साईनाथ ने लेख को इन शब्दों में समाप्त किया है: 2 जी, राडिया, अवैध फण्ड और एक जिद्दी सीवीसी, यूपीए सरकार के घोटाले लेम्मिग्ंस की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।” इससे किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि क्या यू.पी.ए. सरकार भी आत्महत्या के मूड में आती दिख रही है्!

‘हिन्दू‘ में ही घोटाले विषय पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल स्टडीज के सेंटर फॉर इकानॉकिक्स स्टडीज़ एण्ड प्लानिंग के चेयरमैन अरूण कुमार का ‘ऑनेस्टी इज़ इंडीविसिवल‘ शीर्षक से लेख प्रकाशित हुआ है। वे शुरूवाती पैराग्राफ में लिखते हैं:

”भारतीय सत्ताधारी वर्ग को 2010 में विश्वसनीयता के गंभीर संकट का सामना करना पड़ा है। उनका अतीत उजागर हुआ है और इसके घोटाले तथा घपले सामने आते जा रहे हैं। घोटालों का काली अर्थव्यवस्था से प्रतीकात्मक सम्बन्ध है।

घोटालों की संख्या बढ़ती जा रही है और इसी तरह काली अर्थव्यवस्था का आकार भी, जोकि दंग कर देने वाले सकल घरेलू उत्पाद के 50 प्रतिशत स्तर तक पहुंच गई है और इससे प्रति वर्ष 33 लाख करोड़ रूप्ये की काली कमाई होती है। 1980 के दशक में आठ मुख्य घोटाले देखने को मिले, 1991 से 1996 की समयावधि में 26 और 2005-08 के बीच इनकी संख्या करीब 150 है।”

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पेट्रिक फ्रेंच की भारत पर ताजा पुस्तक ”इण्डिया: एन इंटीमेट बायोग्राफी ऑफ 1.2 बिलियन पीपुल” शीर्षक से प्रकाशित हुई है। पुस्तक पर मिश्रित समीक्षाएं प्रकाशित हुई हैं। लेकिन लेखक द्वारा प्रस्तावना में वर्णित एक घटना मुझे काफी रोचक लगी। यह इस प्रकार है:

न्यूयार्क शहर के बैंक में एक भारतीय गया और उसने ऋण अधिकारी के बारे में पूछा। उसने ऋण अधिकारी को बताया कि वह व्यवसाय के लिए दो सप्ताह हेतु भारत जा रहा है तथा उसे 5,000 डॉलर ऋण की जरूरत है। ऋण अधिकारी ने बताया कि इसके लिए बैंक को किसी किस्म की गारण्टी की जरूरत पड़ेगी। इस पर भारतीय ने बैंक के सामने की गली में खड़ी अपनी नई फेरारी कार की चाबियां उसे सौंप दी। उसने सम्बन्धित सभी कागजात उसे दिए जिसे बैंक ने जांचा। ऋण अधिकारी कार की गारण्टी के बदले ऋण देने को तैयार हो गया।

बैंक के अध्यक्ष और उसके अधिकारी इस भारतीय द्वारा 5000 डॉलर ऋण के लिए 2,50,000 डॉलर की फेरारी का उपयोग करने पर खूब हंसे।

ऋण अधिकारी ने कहा, ”श्रीमान, हम आपके साथ व्यवसाय करने से खुश हुए और यह लेन-देन अच्छे ढंग से सम्पन्न हो गया, लेकिन हम थोड़े असमंजस में हैं। जब आप यहां नहीं थे तो हमने जांच करने पर पाया कि आप करोड़पति हैं। हमें यह असमंजस है कि फिर भी आपने 5000 डालर का ऋण क्यों लिया?”

भारतीय ने जवाब दिया: ”सिर्फ 15.41 डॉलर में दो सप्ताह तक और कहां मैं न्यूयार्क शहर में अपनी गाड़ी पार्क कर सकता था। और वापसी पर इसके मिलने की भी?”

वाह, क्या भारतीय दिमाग है!

4 COMMENTS

  1. आप se anek bato me matabhed hote huve bhi yah lekh bahut achchha लगा,आश्चयर is bat bat ka hai ki इस उम्र में bhi ap itane sakriy hai??ज्कभी समय मिले जो हम जैसे नव युवको के liye fitanes tips bhi dijiyega…………….अगर में kahu हम se jyada navyuvak ap hai to shayad galat mahi hoga………..

  2. आदरणीय लाल कृष्ण आडवानी जी के आलेख से स्वामी विवेकानंद के बारे में बेशकीमती जानकारी मिली ,धन्यवाद …

  3. देखे थे बह आज भी है . मैंने १९९२ मैं विवेकानंद भारत परिक्रमा मैं स्वामी जी से जुडी बहुत सारी चीजो को अनुभूत किया था. आप भी गांधीधाम मैं आये थे. ओर उस दिन नगरनिगम, विधानसभा, लोकसभा तीनो के बिपक्ष के नेता एक ही मंच पर थे.

  4. माननीय आडवानी जी,
    बेलगाम में स्वामी विवेकानंद की प्रयोग की हुई छड़ी, कुर्सी, पलंग, आज भी सुरक्षित रखे हुए है. यहाँ से स्वामी जी गोवा भी गए थे . जहा ४०० साल के कछुए जो स्वामी जी ने dekhe

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