2 अक्टूबर : अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस

gandhiडा. राधेश्याम द्विवेदी
संयुक्त राष्ट्र ने सन 2007 से महात्मा गांधी के जन्मदिन ( 2 अक्टूबर) को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया है।अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गांधी के योगदान को सराहने के लिए इस दिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का फ़ैसला किया गया था। इस सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के रखे गए प्रस्ताव को व्यापक समर्थन मिला था। महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी ज़्यादा देशों ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया था। इनमें अफ़गानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा अफ़्रीका और अमरीका महाद्वीप के कई देश शामिल थे। मौजूदा विश्व व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को मानते हुए बिना मतदान के ही सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया था। अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस 2 अक्टूबर को मनाया जाता है। 2 अक्टूबर की तिथि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्म की तिथि है। महात्मा गाँधी ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन का नेतृत्त्व किया था और अहिंसा के दर्शन का प्रचार किया। यह माना जाता है कि अहिंसा के दर्शन का विकास महात्मा गाँधी ने प्रसिद्ध रूसी लेखक लेव तालस्तोय के साथ मिलकर किया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने15 जून, 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर दुनिया से यह आग्रह किया था कि वह शांति और अहिंसा के विचार पर अमल करे और महात्मा गाँधी के जन्म दिवस को “अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” के रूप में मनाए।
इतिहास:- महात्मा गाँधी (बापू) का जन्मदिन 2 अक्टूबर को मनाया जाता है। अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गाँधी के योगदान को सराहने के लिए ही इस दिन को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाने का फ़ैसला किया गया। इस सिलसिले में ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ में भारत द्वारा रखे गए प्रस्ताव का भरपूर समर्थन किया गया। महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी ज़्यादा देशों ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया। इनमें अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश,भूटान जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा अफ़्रीका और अमरीका महाद्वीप के कई देश भी शामिल थे। मौजूदा विश्व व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को मानते हुए बिना वोटिंग के ही सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया था। 15 जून, 2007को महासभा द्वारा पारित संकल्प में कहा गया कि- “शिक्षा के माध्यम से जनता के बीच अहिंसा का व्यापक प्रसार किया जाएगा।” संकल्प यह भी पुष्ट करता है कि “अहिंसा के सिद्धांत की सार्वभौमिक प्रासंगिकता एवं शांति, सहिष्णुता तथा संस्कृति को अहिंसा द्वारा सुरक्षित रखा जाए।”
गाँधीजी की विचारधारा:- गाँधीजी का दर्शन और उनकी विचारधारा सत्य और अहिंसा भगवद गीता और हिन्दू मान्यताओं, जैन धर्म और लियो टॉल्स्टॉय की शांतिवादी ईसाई धर्म की शिक्षाओं से प्रभावित हैं। गाँधीजी एक शाकाहारी और ब्रह्मचर्य के हिन्दू विचार के अनुयायी थे। वे आधात्यमिक और व्यवहारिक शुद्धता का पालन करते थे और सप्ताह में एक दिन मौन व्रत रखते थे। उनका विश्वास था कि बोलने पर संयम रखने से उन्हें आंतरिक शांति मिलती हैं, यह प्रभाव हिन्दू सिद्धांत मौन और शांति से लिया गया है। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गाँधीजी ने पश्चिमी शैली के कपड़े पहनना छोड़ दिया था, जो उनकी सम्पन्नता और सफलता से जुड़ा था। उन्होंने स्वदेशी रूप से बुने गए कपड़े अर्थात खादी का समर्थन किया। वे और उनके अनुयायियों ने सूत से बुने गए खादी के कपड़े को अपनाया। उन्होंने कपड़े को अपने आप चरखे से बुना और अन्य लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। यह चरखा आगे चलकर ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ के ध्वज में शामिल किया गया। गाँधीजी ने दर्शन के बारे में और जीवन की शैली के बारे में अपनी जीवन कथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग की कहानी में बताया है।
सत्याग्रह:- भारतीय संविधान मौलिक अधिकारों के माध्यम से भारत के सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है। यह जाति, धर्म, नस्ल, लिंग या जन्म के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है और अस्पृश्यता को समाप्त करता है। भारत सत्य और अहिंसा की मान्यताओं का पालन करता है, क्योंकि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था स्वराज की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है। महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह को इन लोगों की परिस्थितियों में सुधार लाने और इन्हें सामाजिक न्याय दिलाने के साधन के रूप में इस्तेमाल किया, जैसे- सार्वभौमिक शिक्षा, महिलाओं के अधिकार, सामुदायिक सौहार्द, निर्धनता का उन्मूलन, खादी को प्रोत्साहन देना आदि। गाँधीजी ने सात सामाजिक बुराइयाँ गिनाई थीं, जो निम्नलिखित हैं-
1. सिद्धांतों के बिना राजनीति
2. परिश्रम के बिना संपत्ति
3. आत्म चेतना की बिना आनंद
4. चरित्र के बिना ज्ञान
5. नैतिकता के बिना व्यापार
6. मानवता के बिना विज्ञान
7. बलिदान के बिना पूजा
गाँधीजी को श्रद्धांजलि:-‘महात्मा’ के शब्द को संस्कृत शब्दों से बनाया गया है- ‘महा’ का अर्थ है ‘बड़ा’ और ‘आत्म’ का अर्थ है ‘आत्मा’। महात्मा गाँधी को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘महात्मा’ की उपाधि दी थी। उन्होंने महत्वपूर्ण नेताओं और राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित किया था। गाँधीजी को कई महापुरुषों ने इस प्रकार श्रद्धांजलि दी थी-
1.”महात्मा गाँधी आए और भारत के लाखों वंचित परिवारों के साथ खड़े हो गए” – रवीन्द्रनाथ टैगोर
2.”रोशनी की एक मात्र किरण, वे इन अंधेरे दिनों में हमारी सहायता के लिए प्रकाश की एक मात्र किरण थे” – ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान
3.”आने वाली पीढ़ियाँ इस बात पर शायद ही यकीन करेंगी कि हाड़-मांस का बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति किसी समय इस पृथ्वी पर आया था” – एल्बर्ट आइंस्टाइन
4.”अन्य अधिकांश लोगों के समान मैंने भी गाँधी को सुना है, परन्तु मैंने कभी गंभीरतापूर्वक उनका अध्ययन नहीं किया। जब मैंने उन्हें पढ़ा तो मैं अहिंसा के प्रतिरोध पर आधारित उनके अभियानों को देखकर चकित रह गया… सत्याग्रह की संपूर्ण संकल्पना मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी।” – डॉ. मार्टेन लूथर किंग, जूनियर
5.”मैं और अन्य क्रांतिकारी महात्मा गाँधी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शिष्य हैं, न इससे कम न इससे अधिक” – हो चि मिह्न
6.”गाँधीजी के प्रभाव? आप हिमालय के कुछ प्रभावों के बारे में पूछ सकते हैं” – बर्नार्ड शॉ
7.”महात्मा गाँधी को इतिहास में महात्मा बुद्ध और ईसा मसीह का दर्जा प्राप्त होगा” – अर्ल माउंटबेटन
विशुद्ध मानव:- यदि किसी ‘विशुद्ध मानव’ जो सब नैसर्गिक मानवीय गुणों से परिपूर्ण हो, इसकी मूर्त कल्पना करनी हो तो ‘राम’, ‘कृष्ण’, ‘बुद्ध’ के अवतार के बाद गाँधीजी का व्यक्तित्व उभरकर आता है। गाँधीजी से बढ़कर मानव पूजक दिखलाई देना आसान नहीं है। वे सदैव मानव अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति समर्पित सभी संस्थाओं और व्यक्तियों के आदर्श के रूप में देखे जाएँगे। गाँधी विचारों के प्रसिद्ध मीमांसक आचार्य दादा धर्माधिकारी ने गाँधीजी के मानवाभिमुखी विचारों और आचरणों का गौरव करते हुए उनके व्यक्तित्व को ‘मानवता का मानदंड’ विशेषण दिया है। उनके व्यक्तित्व का गौरव वे इन शब्दों में करते हैं- “गाँधी विचार और आचार प्रणाली अत्यंत उदात्त, शास्त्र शुद्ध और वस्तुनिष्ठ है। दुनिया में सब जगह जातिवाद और संप्रदायवाद का बोलबाला हो, चारों तरफ तलवार और शस्त्रास्त्रों की भाषा सुनाई दे रही हो, मानव, मानव का बैरी बनने में ही अपने जीवन को सार्थक मान रहा हो, ऐसे में जो महामानव उच्च स्वर में, ‘मुझे मेरी अहिंसा की शर्म महसूस नहीं होती’- ऐसा नम्र आत्म प्रत्यय के साथ कहता हो, मानव-द्रोह के विषैले झंझावात में जिसकी मानव निष्ठा बुझने के बदले और अधिक प्रज्वलित होती हो, उसका चरित्र और चारित्र्य, उसका तत्वज्ञान और नीति, सागर के समान व्यापक है।”

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