वर्तमान मीडिया … झूठ का व्यापार

-श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’-  media
बात तब की है तब में एक अंतर्राष्ट्रीय न्यूज चैनल के लिए अपने जिले का प्रतिनिधि संवाददाता हुआ करता था। सर्दी के मौसम में मेरे पास उक्त चैनल के राजस्थान हैड का फोन आया और ठंडक पर एक खबर करके भेजने को कहा जबकि उस समय बीकानेर में इतनी ठंड नहीं, थी परंतु हैड साहब ने मुझे यह कहकर समझाया कि मैं चार मफलर लूं और राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाकर किसी ऊॅंटगाड़े वाले को पकडूं और एक मफलर ऊॅंट को पहनाऊ एक गाड़े वाले को पहनाऊ और स्वयं पहनकर कर पीटीसी करूं कि बीकानेर में भयंकर ठंड का मौसम है। मैंने स्पष्ट तौर पर इस तरह की खबर करने से मना कर दिया लेकिन उस समय मेरे समझ में यह बात जरूर आ गई कि मीडिया में जो दिखता है वह होता नहीं है बल्कि वह दिखाया जाता है जो कि बिकता है। ऐसे कईं उदाहरण मेरे पिछले पत्रकारिता के जीवनकाल से जुड़े हैं जिसमें मैंने व्यक्तिगत तौर पर व काफी समीपता से मीडिया में फैले झूठ को देखा समझा और महसूस किया। मैं यहां यह जरूर कहना चाहूंगा कि यह झूठ इलेक्ट्रोनिक मीडिया और वेब मीडिया में प्रिंट मीडिया की अपेक्षा ज्यादा देखा जा रहा है। किसी भी तथ्य को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना और बात का बतंगड़ बनाना वर्तमान में मीडिया की आदत का शुमार हो गया है और मीडियाकर्मी ऐसा करना अपना धर्म मानते हैं। मैंने अपने साथ काम करने वाले एक मीडियाकर्मी से जब यह पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो तो उसने कहा कि ऐसा करने का मन तो नहीं होता परंतु करें क्या चटपटी व धमाकेदार खबर के बिना चैनल की चर्चा नहीं होती। झूठ के इस व्यापार में मीडिया के मालिकों से लेकर स्थानीय संवाददाताओं तक का हाथ होता है और बड़ी बेखूबी से यह व्यापार फल फूल रहा है। प्रसिद्ध समाचार पत्रों व प्रसिद्ध न्यूज चैनलों की वेबसाइट पर जाकर देखो तो पता चलता है कि न्यूज की हैडिंग इतनी जबरदस्त व मसालेदार लगाई जाती है कि कोई भी पाठक उस पर क्लिक करके उसको पढ़ेगा और पूरी न्यूज पढ़ कर भी उसको न्यूज की हैडिंग से मिलता जूलता कुछ भी न्यूज में नजर नहीं आएगा। इस तरह की झूठे शीर्षक जहां पाठकों को गुमराह करते हैं, वहीं मीडिया की विश्वसनीयता भी समाप्त करते हैं। यहां यह कहने में मुझे बिल्कुल भी हिचक नहीं है कि वर्तमान इलेक्ट्रोनिक न्यूज चैनल पर भरोसा करना पाठक की मुर्खता की निशानी है। 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में जितना झूठ और अस्पष्ट वर्तमान में मीडिया से निकलकर समाज में आ रहा है उतना और कहीं से भी नहीं आ रहा है।
बीच में यह एक फैशन चला था कि कुछ न्यूज भूतों की स्टोरी और भूतों की खबरें दिखाकर अपनी दुकान चलाते थे और उनका अपने लोकल संवाददाताओं पर यह दबाब रहता था कि वे जैसे तैसे करके भूतों की स्टेारी पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित करें। इसका परिणाम यह हुआ कि उन दिनों में चैनलों को देखकर यह मालूम पड़ता था कि यह देश भूतों का देश है जहां पर भूतों का राज है। देश के प्रसिद्ध स्मारकों तक में भूत होने की खबरें उन दिनों बाजार में आई। इसी से जुड़ा किस्सा है कि हमारे शहर बीकानेर में भी संवाददाताओं ने भूतों की खबरों को करना शुरू कर दिया। उन दिनों बीकानेर में न्यू कोर्ट कैम्पस तैयार हो रहा था और निर्माण कार्य में एक मजदूर की मौत हो गई थी तो एक चैनल ने यह खबर चलाई थी कि न्यू कोर्ट कैम्पस में भूत है और जो मजदूर मरा है उसकी आत्मा यहां भटक रही है। इसी तरह बीकानेर के प्रसिद्ध तालाब व शिव मंदिर ‘फूलनाथ जी के तालाब’ के कैम्पस में भी भूत होने की खबर एक चैनल ने चलाई जिसका घोर विरोध हुआ और उक्त चैनल के रिपोर्टर को माफी मांगनी पड़ी। उसी दौरान गंगाशहर के बंगले में भूत की खबर चलाई गई। इसी तरह वर्तमान में राजनीति में झूठ की खबरें परवान पर है। देश के किसी भी हिस्से से राजनीतिक जोड़ तोड़ हो रहा है और कोई कुछ कह रहा है। जैसी अनाप शनाप खबरें इस देश में धड़ल्ले से बड़ी निरंकुशता से चल रही है।
लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ अगर इतना मदमस्त होकर निरंकुश हाथी की तरह विचरण करेगा तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा। आज लोग मीडिया पर विश्वास रखते हैं और आम आदमी यह सोचता है कि उसने जो टीवी में देखा है या इंटरनेट पर पढ़ा है वह सच है लेकिन झूठी खबरों को अपने नीजी स्वार्थ के लिए खुलेआम फैलाकर वर्तमान मीडिया अपने सामाजिक सरोकारों से पीछे हट रहा है और इस देश में अराजकता का माहौल पैदा कर रहा है। मीडिया की यह गैर जिम्मेदारी देश की आने वाली पीढ़ी कोे गुमराह कर कर रही है, क्योंकि वर्तमान पीढ़ी के पास ज्ञानार्जन का तरीका ही इलेक्ट्रोनिक चैनल व इंटरनेट रह गया है।ऐसी स्थिति में देश का युवा जो देखता व पढ़ता है उसे ही सच मानता है। तो क्या यह मीडिया की जिम्मेदारी नहीं है कि भारत देश के युवाओं में झूठ की नींव न डालें और देश के भविष्य की ईमारत को कमजोर न करें। अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए और अंधे होकर आर्थिक लाभ कमाने की लालसा के लिए बड़े-बड़े धनकुबेर मीडिया के मालिक बन गए हैं और उनके लिए पत्रकारिता मिशन न होकर व्यापार रह गया है। एक व्यापारी की तरह जैसे तैसे करके लाभ कमाने की लालसा ने मीडिया को झूठ और वो भी चटपटा झूठ बोलने के लिए प्रेरित किया है।
क्या यह सरकारों की जिम्मेदारी नहीं है कि वे इस तरह के फैल रहे झूठ पर अंकुश लगाए। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 {1} {क} में दी गई वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह कभी मतलब नहीं है कि आप जो मन में आए वो बोलो बल्कि उसके मायने यह है कि आप जो भी बोलो वो जिम्मेदारी से बोलो । सरकारों को इस आजादी पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने का अधिकारी भी संविधान ने दिया है तो ऐसी स्थिति में लोकतांत्रिक व्यवस्था में तंत्र से उम्मीद की जाती है वे लोक में मीडिया के जरिये फैल रहे झूठ को रोकें और इस देश के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दें।

5 COMMENTS

  1. जो बात आप प्रवक्ता.काम के माध्यम से कह रहे हैं,वही बात अरविंद केजरीवाल ने अपने ढंग से कहने का प्रयत्न किया था,तो सब उनपर चढ़ बैठे। उनका कसूर केवल इतना था कि उन्होने अप्रिय सत्‍य बोलने की गलती की थी।


  2. ​इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की वर्तमान कारगुजारी का काला चिट्ठा खोलता बहुत सुंदर लेख. निःसंदेह आज का मीडिया, पत्रकारिता के धर्म को छोड़ नफा नुकसान का सीधा धंधा बन गया हैं. हर जगह सेटिंग ही काम कर रही हैं. जिसकी जहाँ सेटिंग हो गई वही धर्म हो गया है. जिसकी नहीं हुई वो चीखें मार रहा है.

    “140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में जितना झूठ और अस्पष्ट वर्तमान में मीडिया से निकलकर समाज में आ रहा है उतना और कहीं से भी नहीं आ रहा है।”

    अब थोड़ा आपके लेख के आंकड़ों पर भी खींच तान कर ली जाए …… सब जगह यही चर्चा है कि भारत कि आबादी लगभग १२५ से १२७ करोड़ के बीच है. (थोड़ा बहुत ऊपर नीचे होगी ) लेकिन आपके लेख पर आपने सीधे १४० करोड़ लिखा है. पाकिस्तान वाले लगभग १८ करोड़ हैं, तो उनको तो जोड़ा नहीं है. नहीं तो १४० करोड़ से ज्यादा हो जाते। ओके ओके समझ गया आपने बांग्लादेश (लगभग १५ करोड़ ) वालों को भी यहीं जोड़ दिया है। वैसे भी ये सब भारत के घर जमाई बनते जा रहे हैं.

    दूसरों की चीरफाड़ के साथ साथ जरा अपनी सनसनी पर भी ध्यान दे लेते। दूसरे का छेद गड्ढा और अपना गड्ढा ?

    सादर

  3. रंगा जी आपने बेहद संवेदनशील और महत्‍वपूर्ण मुददा उठाया है लेकिन सवाल यह है ि‍क मीडिया को मनमानी, दुष्‍प्रचार और समाज को गुमराह करने से रोकने के लिये राजनेताओं और सरकार में जो नैतिक बल होना चाहिये वह तो है ही नहीं….ऐसे में कोई कानून अगर जैसे तैसे बन भी जाये जैसा कि आप जानते हैं कि पहले से भी ऐसे कानून मौजूद हैं. इसके बावजूद भ्रष्‍ट प्रशासन और पुलिस उसका इस्‍तेमाल करते हुए डरती है. इसका मेरी नजर में एक ही समाधान है ि‍क जनता में शिक्षा और चेतना का स्‍तर बढ़ाया जाये जिससे वह इस तरह के मीडिया के जाल से बच सके.

    • media ko badhava dene vale desh ke poletition he.
      bharat me Aam aadmi khali bolte hi rahe jaye ga.
      or desh ke gaddar media ke vajah se aage bad jate he.
      desh ka sara ka sara media bikau he.
      ye sab sudhar jaye ga.
      desh me shasun ye partike hatme ho
      jise desh se lagav ho.
      Desh sudharna konsi badi bat he.
      dil me ichha ho to desh kya duniya bhi sudhar jaye gi bas is ke liye sabse pahale khud sudharna hoga.
      or yesh insanke hatme sarkar aagai to desh sudharna konsi badi bat he.bas gaddaroke hatme satta nahi jani chahiye.
      jai hind.

    • media ko badhava dene vale desh ke poletition he.
      bharat me Aam aadmi khali bolte hi rahe jaye ga.
      or desh ke gaddar media ke vajah se aage bad jate he.
      desh ka sara ka sara media bikau he.
      ye sab sudhar jaye ga.
      desh me shasun ye partike hatme ho
      jise desh se lagav ho.
      Desh sudharna konsi badi bat he.
      dil me ichha ho to desh kya duniya bhi sudhar jaye gi bas is ke liye sabse pahale khud sudharna hoga.
      or yesh insanke hatme sarkar aagai to desh sudharna konsi badi bat he.bas gaddaroke hatme satta nahi jani chahiye.
      jai hind.media ko badhava dene vale desh ke poletition he.
      bharat me Aam aadmi khali bolte hi rahe jaye ga.
      or desh ke gaddar media ke vajah se aage bad jate he.
      desh ka sara ka sara media bikau he.
      ye sab sudhar jaye ga.
      desh me shasun ye partike hatme ho
      jise desh se lagav ho.
      Desh sudharna konsi badi bat he.
      dil me ichha ho to desh kya duniya bhi sudhar jaye gi bas is ke liye sabse pahale khud sudharna hoga.
      or yesh insanke hatme sarkar aagai to desh sudharna konsi badi bat he.bas gaddaroke hatme satta nahi jani chahiye.
      jai hind.

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