क्षमाशीलता

forgiveness कृष्ण कान्त वैदिक

क्षमाशीलता का अर्थ है निंदा, अपमान और हानि में अपराध करने वाले को दंड देने का भाव न रखना। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनका यह विशेष गुण रहा है। मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं जिनमें क्षमा का मुख्य स्थान है। आपस्तम्ब स्मृति के अनुसार- ‘क्षमागुणो हि जन्तूनामिहामुन्न सुखप्रदः’ अर्थात् क्षमा प्राणियों का उत्तम गुण है। क्षमा इस जन्म और दूसरे जन्म में भी सुख प्रदान करती है। किसी व्यक्ति द्वारा किए गए   दुर्व्यवहार, शारीरिक कष्ट या आर्थिक हानि किए जाने से मन में क्रोध उत्पन्न होता है, जो शब्दों में प्रकट कर दिया जाता है या प्रतिक्रिया स्वरूप मानसिक या शारीरिक कष्ट दिया जाता है। सज्जन व्यक्ति अपने विरुद्ध किए गए अपराध को भूल जाते हैं तथा क्षमा प्रदान कर देते हैं। ईश्वर कर्मों का यथावत् फल देता है। क्षमा के सम्बन्ध में, दूसरे के अपराध को क्षमा करने की उदारता, हम में होनी चाहिए। यदि जिनके प्रति अपराध हुआ है, उनसे हम लज्जावश क्षमा नहीं मांग पाते हैं। स्वयं मन नही मन अपनी गलती मानते हुए पश्चाताप करने से चित्त का पूर्ण परिष्कार नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति के प्रति जाने-अनजाने में हुए दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगने से एक-दूसरे के प्रति मनोमालिन्य सदा के लिए समाप्त हो जाता है।

महाभारत के अनुसार क्षमारूपी गुण सब को वश में कर लेता है। क्षमा से क्या सिद्ध नहीं किया जा सकता है। क्षमारूपी तलवार जिसके हाथ में है, उसका दुर्जन क्या बिगाड़ेगा? महाभारत में ही अन्यत्र यह भी कहा गया है कि क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, यह निश्चय ही परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है और बलवानों का आभूषण है। जैसे तृणरहित स्थान में जलती हुई अग्नि अपने आप शांत हो जाती है, उसी प्रकार क्षमावान् व्यक्ति के साथ बैर रखने वाले का बैर भी कुछ हानि नहीं पहुंचा सकता है। क्षमावान् लागों के लिए कहा गया है कि यह संसार क्षमावान् सज्जनों के लिए है क्योंकि ये लोग इस लोक में आदर पाते हैं। क्षमावान् को लोग निर्बल मान लेते हैं तथा क्षमाशीलता के गुण को भीरुता मानते हुए अवगुण समझने लगते हैं परन्तु यह परम बल है क्योंकि केवल शक्तिशाली व्यक्ति ही क्षमा कर सकता है।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here