जलवायु परिवर्तन और हमारी भूमिका

jalvayuसुरेश हिन्दुस्थानी

वर्तमान में जलवायु परिवर्तन को लेकर जिस प्रकार का मंथन किया जा रहा है, उसकी आवश्यकता बहुत पहले से महसूस की जा रही थी, लेकिन जब जागो तभी सवेरा की तर्ज पर अभी इसकी विकरालता को रोकने का उपक्रम किया जा रहा है, यही समय की मांग है। जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए जैसे प्रयास किये जाने चाहिए। उनमें कहीं न कहीं कमी देखी जा रही है। इन कमियों को उसी सूरत में पूरा किया जा सकता है, जब मानव समाज इसके प्रति जागरूक रहकर इसमें सक्रिय भागीदारी निभाए।
कहा जाता है कि जिसका चिन्तन और कार्य समस्त विश्व की भलाई के लिए होता है, उसका पहले विरोध भले ही हो, लेकिन जब सबकी समझ में आता है कि यह भलाई का मार्ग है, तब दुनिया उसका अनुसरण करने लगती है। अच्छे कामों की हर जगह प्रशंसा होना स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व समुदाय की भावना को समझते हुए जिस प्रकार की भारतीय अवधारणा को प्रस्तुत किया है, वह निश्चित रूप से सराहनीय तो है ही साथ ही विश्व की बहुत बड़ी समस्या से छुटकारा दिलाने का प्रयास भी है। हम जानते हैं कि वर्तमान में विश्व जलवायु की समस्या से ग्रसित है। विश्व के कई देशों पर इसके बारे में सार्थक बहस और चिन्तन भी दिखाई देता है, लेकिन उसकी परिणति ढाक के तीन पात के रूप में ही सामने आती है।

जलवायु परिवर्तन के चलते जहां वायुमंडलीय दुष्प्रभाव दिखाई दे रहा है, वहीं मानव जीवन के स्वास्थ्य पर भी इसका नकारात्मक असर हो रहा है। दुनिया में जितने भी भौतिकवादी पदार्थ मानव की सुविधा के लिए बनाए गए हैं, उससे तत्क्षण तो मानव को सुविधा का आभास होता है, लेकिन यही सुविधाएं अप्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन को किस प्रकार से नुकसान पहुंचा रहीं हैं, इसका आंकलन किए जाने पर कई प्रकार के चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। हम जिस हवा में सांस लेते हैं, वर्तमान में वह प्रदूषित है। यह सब मानवीय आकृतियों के द्वारा किए जा रहे कार्यों का ही परिणाम है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में ”सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया” के भाव का प्रदर्शन करते हुए विश्व को सुख पूर्वक जीवन जीने के लिए जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट पर अपनी चिन्ता प्रकट की है। ऐसा सार्थक चिन्तन उसी व्यक्ति के में आ सकता है जो दूसरों का भला सोच सकता हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वास्तव में ही हर अच्छे काम की तारीफ करते हैं, उनकी नजर में कहीं भी तुष्टीकरण का भाव नहीं है। सारे देश की जनता प्रधानमंत्री का अपना परिवार है। तभी तो कानपुर की रहने वाली एक मुस्लिम महिला नूरजहां के कामों को एक आदर्श उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है। नूरजहां ने जो काम किया है, वह भारत के हर नागरिक को करना चाहिए, क्योंकि उदाहरण इसलिए ही दिए जाते हैं कि उदाहरणों से लोग प्रेरणा ले सकें। नूरजहां ने सौर ऊर्जा से संचालित किए जाने वाला एक संयंत्र लगाकर गांव वालों को विद्युत प्रदाय करके प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाने में अभिनव पहल का सूत्रपात किया है। इस संदेश में सबसे पहले तो यही संकेत मिलता है कि हमें विद्युत की बचत का मार्ग अपनाना चाहिए। जब विद्युत की बचत अपनाने की पहल प्रारंभ होगी, तब तापमान नियंत्रित होने का मार्ग प्रशस्त होगा और जब तापमान नियंत्रित होगा तब जलवायु का चक्र अपने आप ही मानव जीवन के लिए उपयुक्त होगा।

वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या धरती के बढ़ते तापमान को लेकर है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते विश्वभर में हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति का संतुलन बिगडऩे लगा है। अनेक पर्यावरणविदों व वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते हो रहा जलवायु परिवर्तन निकट भविष्य में कई प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। जलवायु परिवर्तन का सबसे दूरगामी प्रभाव पड़ता है उस क्षेत्र में रहने वाली प्रजातियों पर। तापमान के कुछ डिग्री सेंटीग्रेट ऊपर-नीचे होने भर से कई प्रजातियाँ के विलुप्तीकरण का खतरा पैदा हो जाता है। ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है क्षेत्र के स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र पर, जो बहुत ही नाजुक होते हैं। भारत में विशेषज्ञों का अनुमान है कि बाघों के सबसे बड़े क्षेत्र सुंदरवन डेल्टा में लगातार मैंग्रोव के जंगल गायब होते जा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव क्षेत्र को समुद्र के स्तर में वृद्धि का भयानक परिणाम अपनी गोद में पल रही कई अनमोल प्रजातियों की जान से चुकाना पड़ रहा है। मानव प्रजाति के भी खतरे में आने की शुरुआत हो चुकी है। बेतहाशा आबादी और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन ग्लोबल वार्मिंग को तेज कर रहा है। प्रकृति की हर प्रजाति कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी है, एक प्रजाति का सर्वनाश दूसरी प्रजाति पर आसन्न खतरे को अधिक विकट बनाता है। घटते संसाधनों और बढ़ती माँग ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया है, जिसे जल्दी सुलझाना पूरी पृथ्वी के हित में होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आहवान निश्चित रूप से पूरी दुनिया को सुखमय जीवन देने की कल्पना से प्रेरित है, जिसका हर हाल में सक्रियता के साथ पूरी दुनिया को अनुसरण करना होगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब दुनिया के सभी देश इस संकट की गिरफ्त में होंगे।

जलवायु परिवर्तन के चलते जो विनाशकारी स्थितियां पैदा हुई हैं, उस सबसे पीछे हमारी स्वयं की विफलता ही मानी जाएगी। प्रकृति की मौजूदा दुश्वारियां हमारी स्वयं की देन हैं। हम अगर एक पेड़ काटते हैं तो हमको दस पेड़ लगाने भी चाहिए, लेकिन हमारा ध्यान केवल पेड़ काटने पर ही है, लगाने पर नहीं। पर्यावरण के संतुलन के लिए जब तक मानव समाज जागरूक नहीं होगा तब तक अच्छे परिणामों की कल्पना करना बेकार है। सरकारें केवल योजनाएं बना सकती है। पालन हम सभी को करना है।

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