नये साल में होगी कार्यकर्ताओं के लिये भाजपा में नियुक्ति

0
220

दीपावली मिलन और उसके बाद विदेश मंत्रालय का मीडिया लंच और अब मंगलवार को दिल्ली की भाजपाई पार्टी जिसमें प्रदेश अध्यक्ष के साथ साथ सभी सांसद भी होगें । यह बात कुछ हजम नही हो रही,तीनों ंही दिल्ली की मीडिया को खुश रखने के लिये था,इन बातों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। लेकिन जिस तरह से उसका प्रभाव मीडिया पर पडना चाहिये था वह नही पडा, मोदी के कार्यक्रम के बाद जीन्यूज ने जहां अपनी साख मजबूत करने का काम किया वहीं एबीपी न्यूज व एनडीटीवी ने प्रधानमंत्री पर कई हमले बोले। क्या यह सब प्रायोजित है, या कोई और खेल चल रहा है, इस बात को लेेकर सभी परेशान है लेकिन करें क्या जब तक कुछ निकल कर सामने नही आता तब तक सभी कुछ कहने से बच रहें है। फिलहाल जो इस समय परेशान है, वह केेजरीवाल है और अरूण जेटली, दोनों एक दूसरे को पटखनी देने में लेगे ही थे कि किर्ती आजाद ने माहौल को गरमाने का प्रयास किया और निलम्बित हो बैठे। ,जहा तक जेटली व केजरीवाल की बात है तो दोनो में बस एक बात जो मिलती जुलती है वह यह है दोनों अर्थ विभाग में अपना कार्यकाल किये और ज्यादा समय बिताया लेकिन इस लडाई में उंट किस करवट बैठेगा यह अभी समय की गर्त में है।
वर्तमान समय की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी के अंदर बहुत कुछ अप्रासंगिक चल रहा है और इसका फायदा वह लोग उठा रहें है जिन्हें भारतीय जनता पार्टी से कोई सरोकार नही है। चाहे वह आम आदमी पार्टी के नुमाइदें हो या फिर कांग्रेस के, एैसा कोई नही है जिसके यहां मतभेद न हुआ हो या इससे पहले पार्टी से बाहर लोग न निकाले गये हो किन्तु किर्ती आजाद निलम्बित हुए तो उनके स्वर इसलिये प्रखर हो गये क्योंकि उन्हे ंपार्टी के दिग्गज नेता शत्रुध्न सिन्हा पर तंज कसने का मांैका मिल गया। विपक्षी चाहते थे कि पार्टी में अन्दरूनी कलह हो जिसका लाभ उनको मिले और वह मिला। पार्टी के मार्गदर्शक का मुकुट घारण करने वाले तीनों नेेता अब इस बात को लेकर प्रयास में है कि उनको अब मुख्यधारा में आकर अतिक्रमण कर लेना चाहिये और उनकी यह मंशा भी अब तक पूरी हो जाती यदि नितिन गडकरी व राजनाथ सिंह उनके साथ खडे हो जाते। लेकिन अच्छे दिन तभी तक रहते है जब तक आप दूसरे का बुरा नही सोचते , यह बात अब उनको भी समझ आने लगी है।
लोगों को लगता है कि दिल्ली चुनाव व बिहार चुनाव हारने के बाद पार्टी इस पर विचार करेगी और कुछ ठोस निर्णय लेगी लेकिन जिस तरह से अरूण जेटली के बचाव में पार्टी के प्रवक्ताओं की टीम आयी है उसे देकर नही लगता कि कुछ बदलाव आने वाले समय में देखने को मिलेगा। पार्टी नें जिस तरह से दीपावली मिलन का कार्यक्रम अचानक किया उससे यही लगता है कि मोदी ने मीडिया के बीच इसलिये सेलफी दी कि उसकी आड में मीडिया से अमित शाह कुछ बातें कर सके और उनके करीब जा सके। इसके अलावा एक बडी टीम को इस काम में लगाया जिससे की मामले में चार चांद लगाने जैसी बात हो जाय। मीडिया भी खुश की मोदी मिले और अमित शाह ने उनकी बातें सुनी और सभी नेेता मीडिया से दूर हो गये थे वह उनके पास आ गये। किन्तु जब विदेश मंत्रालय ने अपने कार्यक्रम में मीडिया को बुलाया तो गिने चुने लोगों को यह कहकर बुलाया कि वह उनकी बीट देखते है और बात को घुमा दिया जबकि सच बात यह थी यह उन नेताओं का कार्यक्रम था जो सत्ता में आने के लिये आतुर थे या फिर सत्ता में आने के बाद अपना वजूद खोते जा रहे थे। भला विदेश मंत्रालय के कार्यक्रम पार्टी के पदाधिकारियों का क्या काम ? मीडिया कर्मी से ज्यादा विदेश मंत्रालय के लोग ही थे। आखिर इस भोज का उदेश्य क्या था जिसमें मीडिया से ज्यादा उन लोगों ने दावत का लुफत उठाया जिन्हें सरकार एक लम्बा पैसा पगार के नाम पर देती है।
मौजूदा जो हालात भाजपा के है उसमें उसके पास विचार करने के लिये बहुत कुछ है । उसे सबसे पहले यह विचार करना चाहिये कि कार्यकर्ता अपनी तकलीफंे लेकर आखिर किसके द्वार पर जाये और अपनी बाते रखें। न तो उनको कोई पूछने वाला है और न ही उनकी बाते सुनकर चिट्ठी आदि लिखकर देने वाला , पिछली ईकाई में एैसा नही था , दरबार भी चलता था और लोग चिट्ठी लेकर , रोटी खाकर व आवश्यकता पडने पर किराया लेकर भी जाते थे , यह हमेशा से भाजपा में होता रहा है चाहे वह राजनाथ सिंह अध्यक्ष रहें हो या नितिन गडकर या वेकैयानायडू , यह बात भाजपा कैसे भूल गयी उसे इस बात पर तत्काल विचार कर लेना चाहिये, ताकि कार्यकर्ताओं का पलायन रोका जा सके।इसके लिये एक एैसे आदमी की तलाश कर जिम्मेदारी देनी चाहिये जो इस कसौटी पर खरा उतर सके , अब यह काम लालकृष्ण आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार , शत्रुध्न सिन्हा, यशवंत सिंन्हा से बेहतर कोई नही कर सकता, इनके पास कोई जिम्मेदारी भी नही , पार्टी के कदावर नेता भी है इनको सभी जानते भी है इसलिये इनकी बात कोई काट भी नही सकता।
दूसरा एक सवाल और भी है इन कदावर नेताओं के हालात भी यही है पिछले कुछ सालों में कार्यकर्ताओं से दूर तक कोई नाता नही रहा और इनसे वहीं मिल सकते है जिनसे इनको लाभ हो या फिर यह खुद मिलना चाहते हो,इसके अलावा रामलाल हो सकते थे लेकिन अब वह किसी से मिलना भी चाहते और मार्गदर्शकों वाली राह पकड ली है।सिद्धार्थ नाथ ंिसह व कैलाश विजयवर्गीस इस मामले में काफी कुछ कर सकते है लेकिन उनसे यह होगा कि नही , यह कहना मुश्किल सा है, अब जाहिर सी बात है कि संजय विनायक जोशी सरीखे किसी सख्स को अमित शाह के साथ जोडना होगा जो कि उनकी छवि को कार्यकर्ताओं के बीच अच्छे राह पर ले जा सके।इस माहौल में लेकिन एक बात तो तय है कि अध्यक्ष अमित शाह रहें या न रहें , पार्टी इस काम को लेकर एक एैसे आदमी को दायित्व जरूर देगी जो कि इस काम को कर सके क्योंकि पार्टी को भी लगने लगा है जमीन पर उतर कर काम करना पडेगा और कुछ ठोस निर्णय लेने होेगें जो पार्टी को व्यक्तिवाद से निकालकर समाज से जोड सके और आने वाले समय में उसका लाभ मिल सके।
फिलहाल इस समय जो भाजपा की प्रचार टीम है उसमें सिद्धार्थ नाथ ंिसंह , शहनवाज हुसैन व श्रीकांत को निकाल दिया जाय तो लगभग सभी प्रवक्ता नौ सिखिये से है। वह इस बात का प्रचार भी नही कर सके कि केन्द्रीय कार्यालय में सोमवार से शुक्रवार तक प्रत्येक दिन एक केन्द्रीय मंत्री लोगों की समस्याये तीन बजे शाम से पांच बजे तक सुनता है और उस पर तुरंत आदेश देता है । इसके अलावा प्रधानमंत्री को पत्र लिखा जा सकता है और वह भी आनलाइन जो सीधे उनके करीब तक पहुचंता हंै और निश्चित कारवाई होती हैं। इसके लिये किसी के आगे गिडगिडाने की जरूरत नही है। यदि यह काम वह कर लेते तो कम से कम उनकी उपलब्धि में एक इजाफा हो जाता । सरकार की उपलब्धियों पर बोलने का तो कोई मतलब ही नही होता।
खैर क्या होगा , क्या नही , भाजपा दिल्ली में अध्यक्ष वाला सिद्धान्त अपनायेगी या परिवर्तन करेगी यह समय ही बतायेगा लेकिन प्रयास बदलाव के लिये होना चाहिये , और पार्टी के मार्गदर्शक इस दिशा में अपने उम्रदराजी को दरकिनारे कर प्रयास कर रहें है। यह अच्छा है लेकिन अगर यह मंशा किसी पद या मुकाम तक पहुंचने की है तो पार्टी के लिये यह काफी घातक है क्योंकि पुराने हटेगें तभी नये लोगों को जिम्मेदारी मिलेगी नही तो कायाकल्प की कहानी किताबों तक सिमट कर रह जायेगी । वैसे इस मामले में भाजपा के कर्णधारों को विश्व हिन्दू परिषद के पुरोधाओं से सीख लेना चाहिये जिन्होंने अपने जीवन रहते ही दूसरों को जिम्मेदार बनाकर उनके कंधों पर भार रख दिया ताकि इसे और आगे तक ले जाया जा सके। आज भी नब्बे साल के बुजुर्ग अपने अधीनस्थों को पदविहिन होते हुए रास्ता दिखाते मिल जायेगें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here