पुत्तिंगल मंदिर : ये हादसा है या लापरवाही

पुत्तिंगल
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सुरेश हिंदुस्थानी
केरल के कोल्लम जिले के पुतिंगल मंदिर पर लगी आग के बाद फिर से वैसे ही सवाल उठने लगे हैं, जैसे कि हर घटना के बाद उठते हैं। प्रशासन ने भले ही अनुमति नहीं होने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडऩे का प्रयास किया हो, लेकिन यह बात भी प्रशासन की जिम्मेदारी की परिधि में आती है कि बिना अनुमति के इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ इकट्ठे क्यों किए गए। अगर यह प्रशासन को बिना बताए किए गए थे तो भी इसके लिए प्रशासन की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती। बल्कि गैर कानूनी कामों को रोकने की जिम्मेदारी भी प्रशासन की ही होती है। पुतिंगल मंदिर के हादसे में अब तक 110 लोगों के मरने की पुष्टि की जा चुकी है। इतना ही नहीं 400 से ज्यादा घायलों की संख्या भी है। आगे यह आंकड़ा किस सीमा तक जाएगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।
हम जानते हैं कि भारत दुनिया का असीमित श्रद्धा वाला देश है, यहां विभिन्न धर्मों के सैकड़ों आस्था केन्द्र हैं और इन धार्मिक स्थलों पर वर्ष में कई अवसर ऐसे आते हैं, जिन पर हजारों, लाखों की भीड़ बिना बुलाए आती है। भारत के कई स्थानों पर लापरवाही के कारण हादसे होते रहे हैं, लेकिन हमने इन हादसों से कोई सबक नहीं लिया। आखिर कब तक हम इन लापरवाही का शिकार होते रहेंगे। पुत्तिंगल मंदिर हादसे ने हमे एक बार फिर से यह सोचने के लिए मजबूर किया है कि हम कब चेतेंगे। प्राय: देखा गया है कि जिन धार्मिक स्थलों पर इस प्रकार के आयोजन होते हैं, उस धार्मिक स्थलों का कामकाज संभालने वाले लोगों के पास उस प्रकार की व्यवस्थाएं नहीं होती कि किसी भी हादसे को रोकने के लिए प्रयास कर सकें। इसके लिए मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा प्रशासन की सहायता ली जाती है। पुत्तिंगल मंदिर हादसे में जो कहानी सामने आ रही है, उसके अनुसार मंदिर का संचालन संभालने वाले लोगों की खामियां ही सामने आ रहीं हैं। सबसे बड़ी खामी तो यही है कि आतिशबाजी चलाने के लिए नियम कानूनों का ध्यान नहीं रखा गया। अगर नियमों के तहत आतिशबाजी का कार्यक्रम किया जाता तो संभवत: घटना का इतना बड़ा रूप नहीं होता। सुनने में आया है कि हर वर्ष की अपेक्षा इस बार आतिशबाजी के लिए सामग्री चार गुना लाई गई थी। कहा यह जा रहा है कि परंपरा के निर्वहन के लिए मंदिर में आतिशबाजी की जानी थी, लेकिन अब ऐसी परंपराओं पर सवाल उठने लगे हैं। आखिर ऐसी परंपराएं किस काम की, जिनमें श्रद्धालुओं की जान चली जाए। ऐसी परंपराओं पर रोक लगनी चाहिए। हादसे के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि धार्मिक कार्यक्रमों के लिए मान्य विधानों की परवाह क्यों की गई। जिन धार्मिक परंपराओं में नियम कानूनों की अवहेलना की जाती है, वह प्रथम दृष्टया ध्र्म का काम हो ही नहीं सकता। नियम कानून का पालन करना भी एक धर्म है। पुत्तिंगल मंदिर में आतिशबाजी की अनुमति न लेकर एक प्रकार से अधर्म का ही काम किया है। धर्म स्थानों पर अगर इसी प्रकार का अधर्म चलता रहेगा तो हम किस प्रकार के धर्म की बात करते हैं। बेहिसाब आतिशबाजी पदार्थों का इकट्ठा करना अधर्म का परिचायक है। अगर यह परंपरा का हिस्सा है तो परंपरा का निर्वाह प्रतीक रूप में भी किया जा सकता था, लेकिन मंदिर प्रबंधन ने ऐसा नहीं किया। उसके परिणाम स्वरूप इस भयानक कांड में निर्दोष श्रद्धालुओं की जान चली गई। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जिसमें निर्दोष लोग मारे गए हैं, इससे पूर्व भी 1984 से अब तक 32 से ज्यादा बार मंदिरों में हादसे हुए हैं, जिनमें सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई है। केरल में ही 1999 में एक हिंदू धार्मिक स्थल पर मची भगदड़ में 51 लोग मारे गए थे, तो 14 जनवरी 2011 को सबरीमाला मंदिर में हुए भगदड़ में 106 लोगों की जानें गई थीं और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इसके अलावा हरिद्वार में कुंभ के दौरान भगदड़, हिमाचल के नैना देवी मंदिर हादसे, राजस्थान के जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में हादसे, मध्यप्रदेश में रतनगढ़ माता मंदिर का हादसा, इलाहाबाद कुंभ के दौरा भगदड़, महाराष्ट्र के सतारा में हादसे प्रमुख हैं। सभी हादसे प्रबंधन की लापरवाही के चलते हुए हैं।
यह हमारी सरकारें और मंदिर प्रबंधन के लिए वर्तमान का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्र है कि हम धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा के कड़े नियम नहीं बना पाए हैं। कोल्लम के पुतिंगल मंदिर हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए गए हैं। मुआवजे का भी ऐलान कर दिया गया है, लेकिन जरूरत इस बात की है हम अपने धार्मिक स्थलों को सुरक्षित कैसे बनाएं, ताकि श्रद्धालु काल कवलित न हों। पुतिंगल मंदिर हादसे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना देरी किए कोल्लम पहुंचे, उन्होंने राहत बचाव अभियान का जायजा लिया, वे घायलों से अस्पतालों में मिले। लेकिन केरल में चुनावों के चलते कांगे्रस ने राजनीति करना शुरु कर दी है। वास्तव में ऐसे हादसों पर किस हद तक राजनीति होनी चाहिए। जांच की प्रक्रिया पर कांगे्रस ने सवाल खड़े किए हैं। इस हृदय विदारक हादसे पर राजनीति करना किसी भी दल के लिए उचित नहीं है। यह समय संवेदना जताने और पीडि़तों को अधिक से अधिक मदद पहुंचाने का है। इस हादसे से सबक लेते हुए राज्य सरकारों को चाहिए कि वे धार्मिक स्थलों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करवाएं और प्रबंधकों पर नकेल कसें।
पुत्तिंगल मंदिर हादसे के बाद हमारी सरकारों को चाहिए कि वह मंदिरों पर होने वाले वार्षिक कार्यक्रमों के लिए दिशानिर्देश जारी करे। इसके अलावा हर श्रद्धालु को अपने आपको व्यवस्था का हिस्सा बनकर काम करना होगा। क्योंकि यह काम केवल सरकारों के सहारे या फिर मुदिर प्रबंधकों के सहारे नहीं हो सकता। इसके लिए हर देशवासी को एक स्वयंसेवक की तरह काम करना होगा। जब हम सभी सावधान होंगे तो ही ऐसे हादसों पर लगाम लगाई जा सकती है।

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