बही खाता खरीदने का शुभ मुहूर्त 2016

bahi-khataज्योतिष शास्त्र व ज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते हैं, वे अपनी आपबीती एवं अनुभवों की बातें सुनते हैं। उन बातों मेंज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी में सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं में थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओं में कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी – कभार ज्योतिषी कीभविष्यवाणी सच होती है ? इस सच के साथ क्या कोई संपर्कज्योतिष शास्त्र का है?ज्योतिषियों कीभविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ?
ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष में क्या – क्या तर्क देते हैं ? यह तर्क कितना सही है ?ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते हैं? इन सब बातों की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क – वितर्क हो रहा है ; उस बारे में जानना सबसे पहले जरुरी है। तो आइये , देखें क्या कहता हैंज्योतिषशास्त्र।
ज्योतिष को चिरकाल से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । वेद शब्द की उत्पति “विद” धातु से हुई है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान है ।ज्योतिष शास्त्रतारा जीवात्मा के ज्ञान के साथ ही परम आस्था का ज्ञान भी सहज प्राप्त हो सकता है ।
ज्‍योतिष शास्‍त्र मात्र श्रद्धा और विश्‍वास का विषय नहीं है, यह एक शिक्षा का विषय है।
पाणिनीय-शिक्षा41 के अनुसर”ज्योतिषामयनंयक्षुरू”ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नैत्रा है। इस वाक्य से प्रेरित होकर ” प्रभु-कृपा ”भगवत-प्राप्ति भी ज्योतिष के योगो द्वारा ही प्राप्त होती है।
मनुष्य के जीवन में जितना महत्व उसके शरीर का है, उतना ही सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों अथवा आसपास के वातावरण का है। जागे हुए लोगों ने कहा है कि इस जगत में अथवा ब्रह्माण्ड में दो नहीं हैं। यदि एक ही है, यदि हम भौतिक अर्थों में भी लें तो इसका अर्थ हुआ कि पंच तत्वों से ही सभी निर्मित है। वही जिन पंचतत्वों से हमारा शरीर निर्मित हुआ है, उन्हीं पंच तत्वों से सूर्य, चंद्र आदि ग्रह भी निर्मित हुए हैं। यदि उनपर कोई हलचल होती है तो निश्चित रूप से हमारे शरीर पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा,क्योंकि तत्व तो एक ही है। ‘दो नहीं हैं। o का आध्यात्मिक अर्थ लें तो सबमें वहीं व्याप्त है, वह सूर्य, चंद्र हों, मनुष्य हो,पशु-पक्षी, वनस्पतियां,नदी, पहाड़ कुछ भी हो,गहरे में सब एक ही हैं। एक हैं तो कहीं भी कुछ होगा वह सबको प्रभावित करेगा। इस आधार पर भी ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। यह अनायास नहीं है कि मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा चलते हैं।
दिन, सप्ताह, पक्ष,मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र में रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव,सामाजिक त्योहार,महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने में समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार में समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो।
यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता। कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते हैं या कर सकते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।
ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है।
—सिद्ध योग देखना—

अगर शुक्रवार को नंदा तिथि पड़ती हो , बुधवार को भद्रा तिथि पड़ती हो , शनिवार को रिक्त तिथि पड़ती हो ,

मंगलवार को जया तिथि पड़ती हो तथा गुरूवार को पूर्णा तिथि पड़ती हो तो उस दिन सिद्ध मुहूर्त होता है | नंदा तिथि, भद्रा तिथि, रिक्ता तिथि, जया तिथि तथा पूर्णा तिथि के बारे में जानने के लिए कृपया पंचांग एवं कलेंडर के वेबपेज पर देखें |
—-वस्तु या चीज खरीदने बेचने का मुहूर्त—-

तीनों पूर्वा, विशाखा, भरनी, कृतिका, अश्लेषा, नक्षत्र तथा शुभ दिन शुक्र, गुरु, सोमवार, बुधवार, आदि इन वारों में वस्तु या चीज को बेचना चाहिये | तथा चित्रा, रेवती, स्वाति, शतभिषा, अश्विनी, धनिष्ठा, श्रवण नक्षत्रों में एवं और गुरूवार, शुकवार, सोमवार, बुधवार, इन वारों में वस्तु या चीज खरीदना चाहिये यह शुभ रहता है ||
—-सामान खरीदना- रिक्ता तिथि न हो,वार कोई भी हो, रेवती, शतभिषा, अश्विनी, स्वाति, श्रवण और चित्रा नक्षत्र शुभ है।
—बही खाता लिखने का प्रारंभिक मुहूर्त —

—–नई बही मुहूर्त की सामग्री—-

मंगल कलश, लाल कपड़ा, अष्टद्रव्य धुले हुए, धूपदान 1, दीपक 2, लालचोल 1 मीटर, सरसों 50 ग्राम, थाली 1, श्रीफल 1, लोटा जल का 1, लच्छा (मोली) 1 गट्टी, शास्त्र 1, धूप 50 ग्राम, अगरबत्ती, पाटे 2, चौकी 1, कुंकुम 50 ग्राम, केसर घिसी हुई, कोरे पान 5, दवात, कलम 2, नई बहियाँ।

सिंदूर-घी मिलाकर (श्री महालक्ष्मयै नमः और लाभ-शुभ दुकान की दीवार पर लिखने को) नई बहियाँ, माचिस, कपूर देशी, सुपारी आदि।

—-अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, श्रवण, रेवती नक्षत्र के साथ रवि, सोम, बुध, गुरु, शुक्रवार, 2, 3, 5, 7, 8, 10, 11, 12, 13, 15 तिथियाँ हों तो चर लग्न एवं द्विस्वभाव लग्न में बही खातालेजर लिखना आरंभ करना चाहिये। केन्द्र-त्रिकोण में शुभग्रह रहना ठीक है।

—–बहियाँ, दवात-कलम आदि पास में रख लें। घी का दीपक दाहिनी ओर तथा बाईं ओर धूपदान करना चाहिए। दीपक में घृत इस प्रमाण से डालें कि रात्रिभर वह दीपक जलता रहे।

पूजा करने वाले को पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पूजा करनी चाहिए। जो परिवार में बड़ा हो या दुकान का मालिक हो वह चित्त एकाग्र कर पूजा करे और उपस्थित सब सज्जनों को तिलक लगाना व दाहिने हाथ में कंकण बाँधना चाहिए। बही खातों का पूजन करने के लिए पूजा मुहुर्त समय अवधि में नवीन बहियों व खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से अथवा लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए | इसके बाद इनके ऊपर “श्री गणेशाय नम:” लिखना चाहिए. इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए |

इसके साथ ही निम्न मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए—
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,

या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।,

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभि र्देवै: सदा वन्दिता,

सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।

ऊँ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम: ||

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जानिए वर्ष 2016 में दिवली पर बहीखाता/चोपड़ा खरीदने केलिए शुभ मुहूर्त–

—- रविवार–02 अक्टूबर 2016 –रवि योग—

—-गुरुवार–06 अक्टूबर 2016 — सर्वार्थ सिद्धि योग–

–मंगलवार–11 अक्टूबर 2016 –रवि योग–

—बुधवार–12 अक्टूबर 2016 –रवियोग–

–रविवार– 16 अक्टूबर 2016 —

—-शुक्रवार–21 अक्टूबर 2016 –रवियोग–

—शनिवार–22 अक्टूबर 2016 –सिद्ध योग —

—रविवार–23 अक्टूबर 2016 — रवि पुष्ययोग–

— गुरुवार–27 अक्टूबर 2016 —

— शुक्रवार–28 अक्टूबर 2016 –धन तेरस सुयोग–

—-रविवार—30 अक्टूबर 2016 –दीपावली सुयोग–

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