काला धन अपनी सत्ता खो बैठा

modi-डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर धमाका कर दिया है । अचानक पाँच सौ और एक हज़ार के नोटों को अर्थ व्यवस्था से बाहर कर दिया है । काला धन मुक्त भारत । इस देश में ज़्यादा देर तक कांग्रेस और सोनिया कांग्रेस का ही शासन रहा है इसलिए कांग्रेस और काले धन का चोली दामन का साथ हो गया है । चुनावों से पूर्व मोदी ने जनता से दो वायदे किए थे । कांग्रेस मुक्त भारत और काला धन मुक्त भारत । इस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने अचानक पाँच सौ और एक हज़ार के वर्तमान नोटों को शक्तिहीन कर दिया । आम जनता ने दीवाली मनाई लेकिन सोनिया कांग्रेस के पूर्व वित्त मंत्री और अपने आप को अर्थशास्त्री कहने वाले पी चिदम्बरम ने इस क़दम का डट कर विरोध किया । चिदम्बरम से बेहतर कोई नहीं जानता कि इस पहल का सोनिया कांग्रेस के लिए क्या अर्थ है । इसलिए उनको विरोध करना ही चाहिए था क्योंकि मोदी के इस क़दम ने सोनिया कांग्रेस की सत्ता में वापिसी की रही सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है । पश्चिमी बंगाल में शारदा चिट फ़ंड घोटाले को देखते हुए ममता बनर्जी के विरोध को गंभीरता से न लें , तो सभी ने मोदी की इस पहल का स्वागत किया है । मोदी के इस प्रहार की सबसे बड़ी सफलता यही है कि इसे पूर्ण रुप से गुप्त रखा गया । अन्यथा जिस प्रकार की प्रशासनिक व्यवस्था देश में प्रचलित है , उसके चलते किसी महत्वपूर्ण निर्णय की गोपनीयता बनाए रखना अत्यन्त कठिन माना जाता है । पोखरण परमाणु बम विस्फोट के समय जिस प्रकार की गोपनीयता अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने दिखाई थी ,उसी का प्रदर्शन मोदी सरकार ने इस आर्थिक प्रहार के समय किया और इसी के कारण यह प्रहार सफल हो सका । कहा जाता है कि इस समय देश में चौदह लाख करोड़ का पैसा काले धन के रुप में विद्यमान है । एक मोटे अनुमान के अनुसार देश की अर्थ व्यवस्था का पाँचवा हिस्सा , गोरा न होकर काला है । यही काला देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है और यह देश को घुन की तरह खा रहा है । भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करने में इस काली अर्थ व्यवस्था का सबसे बड़ा हाथ है । देश में आतंकवाद का पूरा वित्तीय आधार इयी काली अर्थ व्यवस्था पर टिका हुआ है । पाकिस्तान में बैठा दाऊद इसी काले धन के बल पर उछल रहा है । इसलिए सबसे ज्यादा खलबली , आतंकवाद के सूत्र संचालित करने वालों की गुफ़ाओं में मची हुई है । कश्मीर घाटी में पिछले सौ दिनों से अलगाववादी जिस आंदोलन को सींच रहे थे , उसके स्रोतों में पड़ा करोड़ों रुपया क्षण भर में मिट्टी हो गया । गिलानी से लेकर हमदानी तक सब के घरों में मातम पसरा हुआ है । जाली करंसी अपनी मौत ख़ुद मर जाएगी । देश का आम आदमी ख़ुश है ,लेकिन जिन पर यह भीषण प्रहार हुआ है,वे सकते में हैं । एक और वर्ग इस पहल की चुभन बहुत ही बुरी तरह अनुभव कर रहा है । बड़े नौकरशाह , जिन्होंने दलालों के माध्यम से करोड़ों रुपए नक़द अपने घरों में और गुसलखानों में छिपा कर रखे हुए थे । उसको ढूँढ़ने में भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते हलकान हो रहे थे लेकिन उपलब्धि नगण्य होती थी । अब बह पैसा अपने आप मिट्टी हो गया । ऐसे घरों में भी रुदन हो रहा है ।
सबसे ज्यादा मातमीं धुनें रियल एस्टेट वालों के यहाँ बज रहीं हैं । क्योंकि ज़्यादातर माफ़िया का पैसा रियल एस्टेट विजनस में ही लगा हुआ है । जिनके पास काली कमाई है , उसको सोना का अंडा देने वाली मुर्ग़ी में तब्दील करने के लिए रियल एस्टेट से अच्छा रास्ता कोई नहीं है । यही कारण है कि हर जगह फ़्लैट और मकान के भाव आसमान को छूने लगे हैं । ( पाठक वर्ग याद रखें , फ़्लैट वह है जो आसमान में लटका है और मकान वह है जो ज़मीन पर खड़ा है ) दरअसल जिनके पास काली कमाई है उन्हें पचास लाख का फ़्लैट एक करोड़ में ख़रीदने में भी भला क्या दिक़्क़त हो सकती है ? इसमें भी उसका लाभ ही है । उसकी हराम की कमाई हलाल की हो गई । इस कृत्रिम अर्थ व्यवस्था से फ़लैट/मकान के भाव इतने ज़्यादा हो गए कि सफ़ेद कमाई वालों की पहुँच से ही बाहर हो गए । लेकिन मोदी के इस नए प्रहार ने ऐसे धन पशुओं के घरों में छिपे धन को मिट्टी में बदल दिया । इस लिए जिन्होंने गगनचुम्बी इमारतों का निर्माण कर रखा था , उन्हें ग्राहक मिलने कम होते जा रहे हैं । यही कारण है कि वे अपने मकानों को उस दाम पर बेचने को भी तैयार हो रहे हैं , जिस पर कम से कम उनकी लागत तो बच जाए । अब तक देश की अर्थ व्यवस्था को काली या सफ़ेद बनाने के कौशल में लगे नक़ाबपोश भी मानते हैं कि मोदी के इस क़दम से फ़्लैटों के भाव ज़मीन चाटते नज़र आएँगे ताकि आम जनता भी उनको पकड़ सके । ( वैसे मैंने भी अपने मित्रों को सचेत कर दिया था कि जिस दिन किसी फ़्लैट की कीमत तेरह लाख पर आ जाए , तो मुझे बता देना ताकि मैं भी एक फ़्लैट ले सकूँ , क्योंकि मेरे पास अब तक कि कुल जमा पूँजी तेरह लाख की एफ़ डी ही है । इससे वे निराश हो गए हैं । क़ीमत इतनी कम हो जाएगी , ऐसा वे मानने को तैयार नहीं हैं )
दुर्भाग्य से जिनके घरों में मातमी धुनें बज रही हैं , उन्होंने कुछ सीमा तक लोक संचार के माध्यमों पर क़ब्ज़ा किया हुआ है । यही कारण है कि शुरु में कुछ चैनल किसी नत्थू राम को लेकर खड़े हैं । वह किसी रेलगाड़ी से उतरा है । उसके पास पाँच सौ का नोट है । वह रेलवे स्टेशन पर खड़ी चाय बेचने वाली रेहडी से चाय पीना चाहता है । चाय बेचने वाला चाय देने को तैयार नहीं है । क्योंकि उसके लिए पाँच सौ का नोट तो बेकार हो चुका है । वह खुले पैसे माँग रहा है । नत्थू राम कैसे चाय पिए ? चैनल का आग्रह है कि इस नई आर्थिक नीति के उपयोगी होने या अनुपयोगी होने का मूल्याँकन नत्थू राम की चाय पीने की इस इच्छा को आधार बना कर करना चाहिए । दूसरा चैनल पहले का भी बाप है । उसने रेलवे स्टेशन पर ही किसी तोता राम को पकड़ रखा है । तोता राम भी ट्रेन से उतरा है । उसे टैक्सी पकड़ कर अपने घर जाना है । टैक्सी वाला पाँच सौ का नोट लेने को तैयार नहीं है । इससे आम जनता में इस नई नीति से भारी असंतोष पैदा हो रहा है । देश की जनता को समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे । मोदी ने देश में अव्यवस्था फैला दी है । नत्थू राम चाय नहीं पी सकता , तोता राम टैक्सी करके घर नहीं जा सकता । इन दो उदाहरणों को आधार बना कर चैनल पर एक भरा पूरा विशेषज्ञ दल इस नई आर्थिक नीति की समीक्षा में जुटा हुआ है । लोगों को इस झूठी बहस में उलझा कर चैनल का मालिक नोट गिन रहा है कि जल्दी से जल्दी इस का क्या किया जाए ।
अब लोक संचार माध्यमों पर दूसरा चरण शुरु होता है । नत्थू राम/तोता राम प्रकरण के बाद बैंकों के बाहर लम्बी लाईनों पर देश के सारे चैनल केन्द्रित हो गए हैं । बैंकों के आगे लम्बी क़तारों में लोग खड़े दिखाई देते हैं । वैसे ये लम्बी लाईनें अनेक बार रेलवे स्टेशनों पर भी देखी जाती हैं । कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि जो काले धन को सफ़ेद करवाना चाहते हैं , उन्होंने भी अपने कर्मचारियों को लाईनों में खड़े कर रखा है । दिल का दौरा पड़ने से कुछ लोगों की लाईन में खड़े खड़े मौत हो गई -ऐसी कुछ ख़बरें भी आई हैं । लोगों को दिक़्क़त हो रही है , इसमें कोई संशय नहीं है । यह संक्रमण काल की दिक़्क़त है । यह हर युग और हर परिवर्तन काल में होती है । इसी दिक़्क़त में से परिवर्तन का नया सूर्य उदय होता है । इस देश में से अंग्रेज़ों को भगाने के लिए जब महात्मा गान्धी सत्याग्रह करते थे तो आम जनता को उस समय अनेक प्रकार की दिक़्क़तें होती थीं लेकिन देश की जनता उनको हंस कर बर्दाश्त ही नहीं करती थी बल्कि उसमें गान्धी जी का साथ भी देती थी क्योंकि उसे पता था इन्हीं संकटों में से नया सूर्योदय होगा । महात्मा गान्धी के समय अंग्रेज़ों से मुक्ति का सत्याग्रह था और इक्कीसवीं सदी में यह काले धन से मुक्ति का सत्याग्रह है । लेकिन उस समय भी मुल्क की अंग्रेज़ी अख़बारें जनता की दिक़्क़तों का हवाला देकर महात्मा गान्धी के सत्याग्रह का विरोध करती थीं , उसी तरह आज भी कुछ लोक संचार माध्यम उन्हीं आधारों पर नरेन्द्र मोदी द्वारा काले धन के ख़िलाफ़ चलाए इस सत्याग्रह का विरोध कर रहे हैं । सभी जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार का देश की अर्थ व्यवस्था को साफ़ सुथरा करने का यह ऐसा अभियान है जिसका विरोध तार्किक आधार पर करना संभव नहीं है । इस लिए अब उन्होंने नया रास्ता निकाला है । मोदी का यह क़दम तो ठीक है लेकिन सरकार ने पहले से इसकी तैयारी नहीं की थी । उसे यह तैयारी करने के बाद ही इसे लागू करना चाहिए था । ऐसे तर्क देने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि यदि पहले से ही बड़े स्तर पर इसकी तैयारी शुरु तर दी जाती तो यह योजना सफल ही न हो पाती । सब धनपशुओं और मगरमच्छों को इसकी भनक लग जाती और वे अपना काला मुँह सफ़ेद कर लेते । इस योजना की सफलता का कारण ही इसकी आकस्मिकता रहा है । इस लिए सरकार विरोधी जत्थे बैंकों के आगे लगी लाईनों की स्क्रिप्ट को ही आधार बना कर अपनी नौटंकी कर रहे हैं ।
एक दिन इस नौटंकी में राहुल गान्धी भी कूद पड़े । वे एक बैंक के सामने खड़े होकर अपने चार हज़ार के नोट बदलाने के डायलाग बोलने लगे । उनके आने से आम जनता परेशान हो गई क्योंकि उनकी सुरक्षा के मुद्देनजर उस स्थान की घेराबन्दी कर ली गई थी । लेकिन राहुल गान्धी को यह छोटी सी बात समझ में नहीं आ रही थी । वे लाईन में खड़े होकर ही नोट बदलवाने के अपने संवाद बोलते रहे । लेकिन शायद राहुल गान्धी को पता नहीं था कि इस प्रकार के नुक्कड़ नाटकों में दर्शकों को भी संवाद बोलने की सुविधा होती है । यह बात उन्हें तब समझ आई जब लाईन में खड़े अनेक लोगों ने कहना शुरु कर दिया कि सबसे ज़्यादा दिक़्क़त राहुल के आने से हो रही है ।
देश की अर्थ व्यवस्था पर पैनी नज़र रखने वाले मानते हैं कि सरकार के इस क़दम से जम्मू कश्मीर के आतंकवादियों और नक्सल प्रभावित इलाक़ों में माओवादियों की कमर टूट गई है । जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों की रणनीति को गहरा धक्का लगा है । लेकिन जम्मू कश्मीर के ग़ुलाम नवी आज़ाद इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं । ग़ुलाम नवी सोनिया गान्धी के खेमे के राजनीतिज्ञ हैं । सोनिया गान्धी ने उन्हें एक बार प्रान्त का मुख्यमंत्री भी बना दिया था । उन्हें इस बात का दुख है कि सरकार ने बड़े नोट बन्द क्यों कर दिए हैं । इससे जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों पर नकेल कसी जाएगी , इससे उन्हें कुछ लेना देना नहीं है । जबकि ज़मीनी सच्चाई यह कि सरकार के इस क़दम से सबसे ज़्यादा घबराहट ग़ुलाम नवी आज़ाद के अपने राज्य जम्मू कश्मीर के आतंकी संगठनों में ही मची हुई है । सरकार के इस क़दम से घबराहट तो पाकिस्तान की आई एस आई में है , पाकिस्तान के उन तस्करों में है जो नेपाल और बंगलादेश के रास्ते तस्करी में अरसे से संलग्न थे । नोटों के बन्द होने से इन की कमर टूट गई है । सीमा के उस पार भी घबराहट है और जो आतंकी अन्दर घुस चुके हैं , उनके भी हाथ पाँव फूले हुए हैं । काग़ज़ के जिन नोटों की झलक दिखा कर वे घाटी के लोगों को सड़कों पर नाच नचवाते थे उन नोटों की ताक़त अब समाप्त हो गई है । कश्मीर घाटी के आतंकी संगठनों की हालत पंचतंत्र के उस चूहे के समान हो गई है , जिस के बिल के नीचे से स्वर्ण मुद्राओं से भरा घड़ा निकाल लिया गया है और अब वह लाख ज़ोर लगाने पर भी दूर खूँटी पर लटके सत्तू के थैले तक नहीं पहुँच पा रहा है । आतंकवादियों और उनके प्रत्यक्ष परोक्ष पैरोकारों को छोड़ कर बाक़ी सभी लोग सरकार के इस फ़ैसले से ख़ुश हैं । वहाँ पत्थरबाज़ी की घटनाएँ समाप्त हो गईं हैं क्योंकि एक पत्थर मारने के लिए जो पाँच सौ रुपए मिलते थे , वे आतंकवादियों के हाथों में रखे रखे ही मिट्टी हो गए हैं । पाकिस्तान आतंकी संगठनों को जाली भारतीय करंसी मुहैया करवाता था , वह मशीन बन्द हो गई है । आशा बनने लगी है कि जम्मू कश्मीर में सामान्य जन जीवन पटरी पर लौटने लगा है । जम्मू कश्मीर के वाशिंदे होने के नाते ग़ुलाम नवी को तो सरकार के इस साहसी क़दम का स्वागत करना चाहिए था । जम्मू कश्मीर का आतंकवादी उद्योग जिस काले धन के बलबूते फलफूल रहा था , वह काला धन भारत सरकार ने इस साहसी पहल से मिट्टी कर दिया है ।
लेकिन ग़ुलाम नवी ख़ुश नहीं हैं । वे एक ही स्थान पर अड़ गए हैं । उनका कहना है कि सेना के उड़ी शिविर पर हमला करके पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जो उन्नीस भारतीय सैनिक शहीद कर दिए थे , उसी तर्ज़ पर बैंक के आगे दिल का दौरा पड़ने से स्वर्गवास हो गए व्यक्ति को शहीद मान लिया जाए । यदि गहराई से विशलेष्ण किया जाए तो ग़ुलाम नवी के कहने का अर्थ है कि उड़ी में भारतीय सैनिक पाकिस्तान के आतंकवाद का शिकार हुए हैं और बैंक के आगे दिल का दौरा पड़ने से स्वर्गवास हुआ व्यक्ति सरकार के आतंक से मरा है । इतनी गहरी बात ग़ुलाम नवी ही कह सकते हैं और उस पर अडे भी रह सकते हैं । पाकिस्तान सरकार का भी यही आरोप है कि भारत सरकार जम्मू कश्मीर में लोगों को अपने आतंक का शिकार बना रही है । ग़ुलाम नवी ने भी लगभग यही बात कहीं है । अन्तर केवल इतना ही है कि बैंक के आगे दिल के दौरे से स्वर्गवास हो जाने वाला कोई व्यक्ति अभी तक जम्मू कश्मीर का नहीं है , इसलिए उन्हें फ़िलहाल यह कहने का मौक़ा नहीं मिला कि सरकार का यह क़दम जम्मू कश्मीर के लोगों पर एक और प्रहार है । हो सकता है वे जम्मू कश्मीर में से काले धन/नक़ली नोटों/तस्करी की अर्थव्यवस्था को समाप्त करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए इस क़दम पर चर्चा करने के लिए भी राज्य के सभी सटेकहोलडरज को बातचीत के लिए आमंत्रित करने की माँग भी कर दें । सभी जानते हैं कि सोनिया कांग्रेस स्टेकहोल्डरज में हुर्रियत कान्फ्रेंस को भी मानती है और हुर्रियत वाले इसमें पाकिस्तान को भी शामिल को भी शामिल करते हैं । ग़ुलाम नवी आज़ाद को पूरी आज़ादी है कि वे सरकार के इस फ़ैसले का विरोध करें । यदि वे मानते हैं कि यह क़दम जन विरोधी है तो उन्हें इसकी तार्किक आलोचना भी करनी ही चाहिए । लेकिन आख़िर ग़ुलाम नवी इस फ़ैसले की तुलना जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों के हाथों मारे गए सैनिकों से क्यों कर रहे हैं ? कहीं इसका उद्देष्य लोगों का ध्यान कश्मीर घाटी में आतंकियों की पैशाचिक हरकतों से हटाना तो नहीं है ? या फिर ग़ुलाम नवी भारत सरकार को भी पाकिस्तान समर्पित आतंकी संगठनों के समकक्ष पेश करना चाहते हैं ? जम्मू कश्मीर आजकल जिस प्रकार पाकिस्तानी हमलों का शिकार हो रहा है , उस वातावरण में ग़ुलाम नवी के ग़ुलाम बोल सचमुच व्यथित करते हैं । इस प्रकार के विश्लेषणों से पाकिस्तान समर्थक आतंकियों को सम्मान मिलता है । उन्होंने पुराने नोटों का चलन बंद होने से हुई इक्का दुक्का घटनाओं की तुलना उड़ी के शहीदों से कर , एक प्रकार से उन शहीदों का ही नहीं , बल्कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ चल रही इस लड़ाई में शहादत प्राप्त किए हर शहीद का अपमान किया है । लेकिन इतना भी पक्का है कि ग़ुलाम नवी अपने इस व्यवहार पर मुआफ़ी नहीं माँगेंगे । क्योंकि नरेन्द्र मोदी का विरोध करने में वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं । मोदी ने इस पूरी जमात को सत्ता च्युत कर दिया है । उसी सत्ता की लालसा में सोनिया कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान में जाकर वहाँ के लोगों से कह सकते हैं कि आप मोदी को हटाओ तो ग़ुलाम नवी मोदी सरकार को पाकिस्तान के आतंकियों के बराबर कैसे नहीं ठहरा सकते ? राजनीति का इतना पतन हो जायेगा , ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी । लेकिन ग़ुलाम नवी के ग़ुलाम बोल । वे आख़िर किस की ग़ुलामी कर रहे हैं । कहीं ऐसा तो नहीं कि वे ख़ुश होने के लिए भी आज़ाद नहीं हैं ?
भारत की अर्थ व्यवस्था में लम्बे अरसे से इस पहल की जरुरत थी । देश की एक समानान्तर अर्थ व्यवस्था बैंकों से बाहर ही चल रही थी । इसका निवेश उत्पादन क्षेत्र में नहीं होता था ।अब इस अर्थ व्यवस्था को मजबूरन बैंकों के दायरे में आना पड़ेगा । बैंकों के दायरे में आने का अर्थ है , उसका लाभ देश के विकास में लिया जा सकेगा । अब तक यह काली समानान्तर अर्थ व्यवस्था कुछ गिने चुने धन-पशुओं के भोग विलास का साधन थी । मैं यह मानने को तैयार नहीं की डा० मनमोहन सिंह इस की आवश्यकता को समझते नहीं होंगे । लेकिन उनका नियंत्रण सोनिया गान्धी के पास था , वह शायद उन्हें यह क़दम उठाने की अनुमति नहीं देती होंगी । क्योंकि इस क़दम से अन्ततः कांग्रेस पार्टी ही ज़्यादा घायल होती ।
ब्रह्मांड के हर विषय पर चीं चीं करने वाले अरविन्द केजरीवाल जो इस समय दिल्ली शहर के मुख्यमंत्री हैं , को शुरु में तो जैसे लकवा ही मार गया हो । अंत में ममता बनर्जी को समर्थन देकर अपने पुराने राजनैतिक गुरु अन्ना हज़ारे का नाम बदनाम किया । अब वे फिर चहकने लगे हैं । नोट बंद करने को भी वे एक बड़ा घोटाला बता रहे हैं । दिल्ली में कभी सब्ज़ी मंडी जाकर खड़े हो जाते और बताने लगते हैं कि इस निर्णय से सभी ग़रीब कितना हलकान हो रहे हैं । मंडी के सभी ग़रीब लोग हँसते हैं और बीच बीच में मोदी मोदी कहने लगते हैं । पंजाब में जाकर भाषण कर रहे हैं । मोदी ने नोट बंद करके ग़रीब आदमी की कमर तोड़ दी है । लोग तालियाँ बजाते हैं और टैलीविजन वालों को बताते हैं कि मोदी ने यह क़दम उठा कर भ्रष्टाचारियों पर नकेल कंस दी है । मायावती और मुलायम सिंह का कुनबा पूछ रहा है कि इस क़दम से भ्रष्टाचार कैसे रुकेगा ? काला धन कैसे बाहर आएगा ? शायद इन दोनों से बेहतर कोई नहीं जानता कि मोदी के इस क़दम का बाक़ी लोगों पर जो असर पड़ेगा , उसका पता बाद में चलेगा , लेकिन इन दोनों की हवा इस पहल ने निकाल दी है । इन दोनों का विरोध ही यह दर्शाता है कि चोट कितनी गहरी और घातक है । चुनाव सिर पर हैं और मोदी ने सब गुड गोबर कर दिया । नोटों के बँधे बँधाए बंडलों को वहीं पड़े पड़े मिट्टी कर दिया । मिट्टी से चुनाव जीता जाता है क्या ? मायावती , मुलायम , राहुल गान्धी , केजरीवाल, शरद यादव सब मिल कर चलने की कोशिश कर रहे हैं ताकि एटम के बाहर खड़े लोगों को जाकर बता सकें कि वे कितने कष्ट में हैं । लोग हैं कि लाईन में खड़े धक्का मुक्की भी हो रहे हैं लेकिन बीच में कह भी देते हैं । कहो जो मर्ज़ी , लेकिन मोदी ने कमाल कर दिया ।

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  1. मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शासन के समर्थकों की सामान्य जानकारी के लिए उच्च कल्पना, दृढ़ता, समस्या सुलझाते और विश्लेषणात्मक कौशल में परिपूर्ण डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री जी के लेख अवश्य ही लाभकारी हैं| उन्हें सभी भारतीय भाषाओं में प्रकाशित करना चाहिए|

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