स्वामी दयानन्द जी ने वेद पढ़ने का सबको अधिकार दिलवायाः डा. महेश विद्यालंकार’

0
199

मनमोहन कुमार आर्य

गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली आर्यों का तीर्थ स्थल है। प्रत्येक वर्ष दिसम्बर के महीने में यहां वार्षिकोत्सव आयोजित किया जाता है। अनेक वर्षों से यहां वार्षिकोत्सव के अवसर पर चतुर्वेद पारायण यज्ञों का अनुष्ठान भी किया जाता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह एक गुरुकुल है जहां वर्तमान में लगभग 150 ब्रह्मचारी आर्ष व्यापकरण सहित शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। गुरुकुल के सहस्रों स्नातक हैं जो देश के विभिन्न भागों में अनेक सम्मानित कार्यों को कर रहे हैं। इस गुरुकुल की आत्मा यशस्वी स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी हैं जो इस गुरुकुल सहित देश में अन्य 7 गुरुकुलों का संचालन कर रहे हैं। यह गुरुकुल उड़ीसा, केरल व छत्तीसगढ़ आदि स्थानों में सफलतापूर्वक चल रहे हैं। स्वामी जी को आज के युग का स्वामी श्रद्धानन्द कह सकते हैं जो सब सुधारों का सुधार आर्ष व्याकरण शिक्षा को मानकर रात दिन इसकी सफलता के लिए कार्यरत है। हमारी दृष्टि में एक योगी व ईश्वर का साक्षात्कार करने वाला तो अपना निजी कल्याण ही करता है परन्तु हमारे स्वामी प्रणवानन्द जी को अपनी कम व देश व समाज की अधिक चिन्ता है। यह गुण उन्हें महर्षि दयानन्द जी के जीवन से ही मिला है जिन्होंने अपना समस्त जीवन देश व समाज की धार्मिक व सामाजिक उन्नति सहित वेद व वैदिक शिक्षा के प्रचार व प्रसार के लिए समर्पित किया था।

 

हम विगत अनेक अवसरों पर गुरुकुल गौतम नगर के वार्षिकोत्सवों में गये हैं। इस बार भी स्थानीय गुरुकुल के आचार्य डा. धनंजय आर्य जी की प्रेरणा हुई तो हम भी उनके साथ उत्सव में चलने के लिए तैयार हो गये। 17 दिसम्बर, 2016 को प्रातः 5 बजे चलकर दिन के लगभग 12.30 बजे दिल्ली पहुचें और लगभग 1 घंटा बाद मेट्रो व पैदल मार्ग से होते हुए गुरुकुल पहुंच गये। जाने पर हमें भोजन कराया गया और विश्राम की सुन्दर सुविधाजनक व्यवस्था प्रदान की गई। यात्रा में गुरुकुल पौंधा के आचार्य डा. यज्ञवीर जी हमारे साथ थे। गुरुकुल के आचार्य धनंजय और श्री चन्द्रभूषण शास्त्री सहित अनेक ब्रह्मचारी रेलगाड़ी के दूसरे कोचों में यात्रा कर रहे थे। अतः हमें लगभग साढ़े सात घंटे डा. यज्ञवीर जी की संगति में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसमें आपने आर्यसमाज विषयक अनेक महत्ववपूर्ण बातों से हमें अवगत कराया। यात्रा के साढ़े सात घंटें ऐसे बीते कि पता ही नहीं चला। डा. यज्ञवीर गुरुकुल झज्जर के स्नातक हैं। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, डा. धर्मवीर जी, डा. रघुवीर वेदालंकार, डा. महावीर जी, डा. सोमदेव शास्त्री, डा. ज्वलन्तकुमार शास्त्री गुरुकुल झज्जर में परस्पर साथ पढ़े हैं। पं. राजवीर शास्त्री जी उन दिनों ब्रह्मचारियों को यहां पढ़ाते थे। डा. यज्ञवीर अपने व्यवसायिक जीवन में दिल्ली के निकट एक विद्यालय के प्रधानाचार्य रहे हैं और सेवानिवृति के बाद से गुरुकुल पौंधा में अपनी निःशुल्क सेवायें दे रहे हैं। गुरुकुल के निकट ही भूमि लेकर आपने यहां अपने लिए एक निवास भी बनवाया है। मनसा, वाचा,, कर्मणा आप गुरुकुल की उन्नति में सम्मिलित हैं।

 

गुरुकुल में भोजन कर कुछ समय विश्राम किया। चतुर्वेद पारायण यज्ञ का सांयकालीन सत्र आरम्भ हो गया था। हम वहां एक श्रोता व श्रद्धालु के रूप में उपस्थित रहे। गुरुकुलों के सहयोगी लाला बाल मुकुन्द जी हमसे बहुत स्नेह करते हैं। वह यज्ञ के आसन पर विराजमान थे। एक ब्रह्मचारी भेजकर उन्होंने हमें अपने पास बुलवाया और आहुतियां देने का निर्देश दिया। हमने उनके आदेश से कुछ समय तक यज्ञाग्नि में आहुतियां समर्पित की और फिर कार्यक्रम को देखने व नोट करने लगे। अथर्ववेद के उन्नीसवें काण्ड का कोई सूक्त समाप्त हुआ तो यज्ञ के ब्रह्मा डा. महावीर जी ने मन्त्र की व्याख्या करते हुए कहा कि जो सदा अपनी हवि पूजा, अपनी प्रार्थनायें परम पिता परमात्मा को समर्पित करते हैं, माता-पिता व आचार्य आदि देवों का सम्मान करते हैं, जो पूज्यों का ही सम्मान करते हैं वह देव कैसे होते हैं? सबसे पृथक प्रायः भीड़ से पूर्णतयः अलग प्रथम दर्जें के लोग होते हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य कोटि के लोग अच्छे कार्य प्रारम्भ ही नहीं करते, मध्यम कोटि के लोग कार्य तो आरम्भ करते हैं परन्तु बीच में कठिनता व विघ्न होने पर छोड़़ देते हैं, उत्तम श्रेणी के लोग वह लोग होते हैं जो कार्य में व्यवधान आये तो भी उस काम को जारी रखते हैं और उसे पूर्ण करके ही छोड़ते हैं। विद्वान वक्ता डा. महावीर जी ने कहा कि एक श्रेणी ऐसे लोगों की भी देखने में आती है कि जो दूसरों को अच्छे काम करते देख ईर्ष्या व द्वेषवश उस कार्य को बिगाड़ने में तत्पर रहते हैं, भले ही उनका अपना भी काम कितना ही बिगाड़ को क्यों न प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि जो दूसरों का हित करते हैं वह उत्तम श्रेणी के लोग होते हैं। डा. महावीर जी ने कहा कि जो सदा देवताओं को अपनी आहुतियां देते हैं वह असम्भव कार्यों को भी सम्भव बना देते हैं। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य यज्ञीय नौका पर सवार नहीं हो पाया वह इस संसार की दल दल में दब कर नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद कुछ समय तक यज्ञ हुआ और मध्य में दिल्ली के विख्यात आर्य विद्वान डा. महेश विद्यालंकार का यज्ञ के महत्व पर प्रवचन हुआ।

 

डा. महेश विद्यालंकार जी ने कहा कि आर्यसमाज की विचारधारा की पहचान दिल्ली में गुरुकुल गौतमनगर है। उन्होंने कहा कि इस गुरुकुल के 83वें वार्षिकोत्सव पर 27 नवम्बर से 18 दिसम्बर, 2016 तक 37 वें चतुर्वेद ब्रह्मपारायण यज्ञ होने से यहां कि भूमि सौभाग्यशाली हो गई है। उन्होंने कहा कि पहले स्वामी दीक्षानन्द जी, डा. धर्मवीर जी, डा. ज्वलन्तकुमार शास्त्री तथा डा. रघुवीर जी ने यहां वेद पारायण यज्ञ कराये और अब डा. महावीर जी इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि डा. महावीर जी अब सेवानिवृत हो जाने पर अपनी इस प्रकार की सेवायें आर्यसमाज को देते रहेंगे। उन्होंने आगे कहा कि भारत के पास जैसे महापुरुष हैं वैसे पूरे विश्व में नहीं हुए हैं। यज्ञ भारत की विश्व को एक बहुत बड़ी देन है। यज्ञ आपको आर्यसमाज से इतर और कहीं नहीं मिलेगा। भारत की संस्कृति ही यज्ञीय संस्कृति है। उन्होंने कहा कि बांटकर खाने की हमारी संस्कृति है। हम दयानन्द जी को नमन करते हैं। उन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया है। उन्होंने हमें यज्ञ के साथ जोड़ा। यज्ञ को उन्होंने श्रेष्ठतम् कर्म बताया। वेद पढ़ने का स्वामी दयानन्द जी ने सबको अधिकार दिलवाया। विद्वान वक्ता ने कहा कि यज्ञीय वातवारण में बैठने से तन व मन के रोग दूर होते हैं। यज्ञ में बैठने से मनुष्य के तमोगुण व रजोगुण सात्विक गुण में बदल जाते हैं। उन्होंने कहा कि यज्ञ एक चमत्कार है जो हमारे मन को सात्विक गुणों के भावों से भर देता है।

 

डा. महेश विद्यालंकार जी ने कहा कि यज्ञ हमारे जीवन का आधार है। इसकी महिमा अनन्त है। यज्ञ हमारे जीवन से जुड़ा है। जन्म से मृत्यु पर्यन्त हमारा जीवन यज्ञ से जुड़ा रहता है। यज्ञ स्वर्ग का सोपान है। भक्ति व आत्मा के शोधन सहित बाहर की शुद्धि यज्ञ से होती है। पर्यावरण प्रदुषण व हिंसात्मक विचारों की निवृत्ति भी यज्ञ से होती है। हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि यज्ञ की अग्नि की तरह हमारे हृदय में ज्ञान की अग्नि प्रज्जवलित हो। यज्ञ अपने में पूर्ण विज्ञान, चिकित्सा, दर्शन है जो हमें मनुष्य जीवन को इसके लक्ष्य तक पहुंचाता है। आपने यज्ञ को नित्य कर्म बताया। उन्होंने कहा कि यज्ञ भोजन की तरह है जिसे प्रतिदिन प्रातः व सायं किया जाता है। यज्ञ से बढ़िया निष्काम कर्म करने का अन्य कोई कार्य व साधन नहीं है। यज्ञ हमारे जीवन की उन्नति में सहायक बनता है।

 

डा. महेश जी ने कहा कि यदि हमें 100 ग्राम घृत को किसी जनसमूह में बराबर बराबर बांटना हो तो यज्ञ के अतिरिक्त और कोई सुगम साधन नहीं है। यज्ञ करने वाले के पड़ोसी व आस-पास के पशु-पक्षी भी उसके द्वारा किये जाने वाले यज्ञ से प्राण वायु पाते हैं जो संसार का सबसे उत्तम पदार्थ है। अनेक रोगों की चिकित्सा अलग-अलग यज्ञीय सामग्री वा ओषधियों के द्वारा यज्ञ करने से होती है। उन्होंने कहा कि यज्ञ में बैठने से अनेक समस्यायें व विवाद दूर हो जाते हैं। डा. महेश जी ने कहा कि यज्ञ के द्वारा हम अपने लक्ष्य की ओर प्रवृत्त हों। हम भाग्यशाली हैं कि हमें मानव जीवन मिला है। ईश्वर का इसके लिए धन्यवाद है। उन्होंने कहा कि अधिकांश लोगों को तो श्रेष्ठ मनुष्य जीवन का प्रयोजन ही पता नहीं है। आर्यसमाज व गुरुकुलों से हमारा संबंध जुड़ा, इसके लिए हम स्वयं को भाग्यशाली मानते है। डा. महेश जी ने कहा कि विद्वान, वक्ता, लेखक आदि गुरुकुल से ही मिलते हैं। हम गुरुकुलों से पढ़कर ही आपके बीच में हैं। आचार्य महेश विद्यालंकार जी ने विश्व हिन्दू परिषद के प्रख्यात नेता अशोक सिंघल जी का उदाहरण दिया और कहा कि उन्होंने कहा था कि मैं तो वेद तो नही पढ़ा परन्तु मैं दूसरों को वेद पढ़वा सकता हूं। उन्होंने इलाहाबाद में एक केन्द्र स्थापित किया हैं जहां 10 वेद पाठी हैं जो वेद पाठ के आठों प्रकार के पाठों का अध्ययन करते व उनका प्रचार करते हैं। इसे उन्होंने आर्यसमाज का ही कार्य बताया। डा. साहब ने कहा कि गुरुकुल एक प्रकार का जीवन दर्शन है। अपने बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि सन् 1960 में उनके पिता उन्हें स्वामी ब्रह्मानन्द जी दण्डी के पास गुरुकुल एटा ले गये थे। पिता जी ने दण्डी जी से पूछा था कि मेरा बेटा क्या बनेगा? दण्डी जी ने उत्तर में कहा था कि बनेगा तो जिला कलेक्टरों का गुरु बनेगा नहीं तो भीख मागेंगा। डा. महेश विद्यालंकार ने कहा कि मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाया है। उन्होंने बताया कि स्वामी रामदेव जी के गुरु आचार्य प्रद्युम्न जी वर्षों पूर्व मोती लाल नेहरू कालेज में उनके पास प्रथम वर्ष में पढ़ने आये थे। मुझे सर कह कर बातें कर रहे थे। उन्होंने मुझसे पूछा था कि आप कहां पढ़े हैं। मैंने उन्हें गुरुकुल एटा में भेजा था। डा. महेश विद्यालंकर जी ने कहा कि आज आचार्य प्रद्युम्न जी हमारे भी पूज्य हैं। उन्होंने मुझे अपनी तीन पुस्तकें दी हैं। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए डा. महेश जी ने कहा कि आर्य समाज को गति देने के लिए हमें अपने गुरुकुलों को बढ़ाना होगा। अच्छे संस्कारों व शास्त्रीय ज्ञान से अपने ब्रह्मचारियों व युवाओं को अलंकृत करना होगा। इसके साथ ही आपका व्याख्यान समाप्त हो गया।

 

स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने अपने सम्बोधन में आचार्य महेश विद्यालंकार जी की प्रशंसा की। स्वामी जी ने अमेरिका के मिशीगन से पधारे आर्यबन्धु श्री जय भगवान जी का परिचय कराया जिन्होंने ब्रह्मचारियों के अध्ययन के लिए लाखों रूपये की स्थिर निधि बनाकर गुरुकुल को प्रदान की हैं। यज्ञ के समापन से पूर्व डा. महावीर जी ने कहा कि यज्ञीय भूमि में बैठने मात्र से जीवन को बहुत लाभ होता है। डा. महावीर ने गाय चराने वालों में परस्पर विवाद होने पर उन्हीं के एक वृद्ध साथी ने उनका विवाद समाप्त कराया। उसने एक न्यायाधीश की भांति उनका निर्णय किया। उसने जिस स्थान पर बैठकर न्याय किया, बाद में पता चला कि वह राजा विक्रमादित्य का ऐतिहासिक न्यायासन था। आचार्य महावीर जी ने कहा कि स्थान का अपना प्रभाव होता है। यज्ञ के समापन से पूर्व आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध गीतकार व गायक यशस्वी पं. सत्यपाल पथिक जी ने हारमोनियम पर यज्ञीय प्रार्थना गाकर सम्पन्न की। शेष कार्यक्रम का विवरण हम अगली किश्त में प्रस्तुत करेगे। ओ३म् शम्।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here