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दोहे - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
नींद नहीं मेरी सखी,मुश्किल से है आय, चौक कर खुल जाय कभी,फिर नख़रा दिखलाय। सपनों का घर नींद है , निंदिया का घर नैन नींद नैन आवे नहीं , ना सपनों को चैन। कच्चा घर है नींद का , टूट कभी भी जाय बार- बार टूटे कभी , बन न…