एक नाटक- चलो सम्भल के

school bus                                    
पात्र      एक बड़ा बच्चा                   सूत्रधार
एक बच्चा                          ड्राइवर
{ ड्राइवर की वेस भूसा में }
दूसरा बच्चा                       स्कूल बस    {पीले कपड़ों में }
           चार बच्चों की                  प्रथम  टोली    { स्कूल ड्रेस में }
चार बच्चों की                  द्वतीय  टोली   { स्कूल ड्रेस में }

{ पर्दा खुलता है प्रकाश के घेरे में सूत्रधार  दिखाई देता है तबले की ताल पर उसकी  बुलंद आवाज़ ]

यह एकांकी चेतावनी है उनके लिए,                 {तबले की थाप }
जो नशे की हालत में चलाते हैं वाहन|               { तबले की थाप }
और देते हैं दुर्घटनाओं को आमंत्रण |              {तबले की डबल थाप }
और उन्हें भी चेतावनी ,                             {एक थाप }
जो वाहन तेज रफ्तार चलाते हैं|                   {तबले की डबल थाप }
खुद तो जोखिम उठाते ही हैं ,                      {एक थाप }
राहगीरों को भी मौत के
दरवाजे तक  पहुंचाते हैं |                           { तबले की डबल थाप }

अन्धेरा होता है सूत्रधार चला जाता है   और पुन:प्रकाश होता है |

एक बच्चा ड्राइवर की कुर्सी पर  बैठा है ,स्टेयरिंग हाथ में है |वह वाहन चलाने  की भाव मुद्रा में है
|उसके पीछे दूसरा बच्चा पीले  वस्त्रों में ढका हुआ जमीन पर लेटा, स्कूल बस बना हुआहै |उसके पीछे चार चार बच्चों की दो टोलियां बेंचों पर बैठीं हैं |बस के मुंह से {बसा बने बच्चे के मुंह से }
धर्र धर्र की आवाज़ आ रही है |

स्कूल बस  -मुझे इतना तेज रफ्तार से क्यों चला रहे हो |देखते नहीं सड़क पर कितनी भीड़ है ,आराम से नहीं कल सकते क्या ?
ड्राइवर -क्या कहा ,आराम से !तुम्हें क्या मालूम नहीं है कि आराम हराम  होता है | क्या आराम करने वाले कभी आगे भी बढ़ पाते हैं ?ऊंह बड़ी आई आराम  वाली |{विचित्र सा मुंह बनाता है }
स्कूल बस -मेरा मतलब है इतनी भीड़ है ,सड़क पर चलने को जगह नहीं है और तुम मुझे इतनी रफ्तार से चला रहे हो ,कहीं दुर्घटना हो गई तो लेने के देने पड़
जायेंगे |मेरी तो टूट फूट होगी ही, तुम्हारा भी सर फूट सकता है | और ये नन्हें फूल से बच्चे, इनका क्या होगा जानते हो?
ड्राइवर -जा जा चुप रह, बहुत  बोलने लगी है आजकल|स्कूल वालों ने तुझे पीले रंग से क्या पोत दिया तू स्कूल बस बनकर इतराने लगी है |मै  तुम्हारा
ड्राइवर हूँ तुझे तेज चलाऊँ अथवा धीरे मेरी मर्जी तुम कौन होती हो रोकने वाली |
स्कूल बस -ए भाई ज्यादा अकड़ मत दिखाओ ,यह बस है हवाई जहाज नहीं है कि ले उड़ो |सड़क  पर इतनी भीड़  भड़क्का …..

अचानक मंच पर अन्धेरा हो जाता है |सूत्रधार प्रकाश के
घेरे में फिर दिखाई देता है |
उसके  गीत की आवाज  आने  लगती है लय और ताल के साथ –
चलो सम्भल के  ,चलो सम्भल के ,
यह तो बस है चलो सम्भल के |
ना समझो यह वायुयान है ,
ना समझो नभ की उड़ान है|
यह तो  वाहन भाई सड़क का
सड़कों पर है भीड़ भड़क्का |
अगर सम्भल के नहीं चलाया ,
तो समझो वाहन टकराया |
चलो सम्भल के  ,चलो सम्भल के ,
यह तो बस है चलो सम्भल के |

{ मंच पर प्रकाश हो जाता है } सूत्रधार चला जाता है |

ड्राइवर बस   की रफ्तार और तेज क़र देता है अपने मुंह से जोर जोर से धर्र धर्र की आवाज़ निकालने लगता है |   स्कूल बस-ड्राइवर जी तुमने सुना नहीं क्या? ,क्या बहरे हो गये हो ?क्या कोई नशा किया है?मैं धीरे चलने को कह रही हूँ  और तुम स्पीड बढाए जा रहे हो |क्या तुम पागल हो गये हो |
ड्राइवर -हाँ हाँ मैनें नहीं सुना, मैं बहरा हो गया हूँ ,मैंने शराब पीहै ,नशे में हूँ बोलो अब क्या कहती हो ?जानेमन  शराब पीकर वाहन चलाने के अपने अलग ही मज़े हैं|सारा भय समाप्त हो जाता है |कितना भी तेज चलाओ, कोई रोकटोक नहीं |तुम थोड़ी सी पीकर तो देखो,पीने का आनंद कुछ और ही चीज है |अरे ‘बस मेडम’ बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद |देखो कितना शानदार रोड है काली नागिन की तरह लहराता हुआ |मजा आ रहा सौ की रफ्तार से चल रहा हूँ |मालूम भी  नहीं पड़  रहा है |और रफ्तार बढ़ाता हूँ … अरा रा रा रा…. ये गाय कहाँ
से आ गई |{जोर से ब्रेक लगाने का  भाव }

बच्चों की -प्रथम टोली –  अरे अरे यह क्या करते हो ड्राइवर अंकल ,हम लोग सीट पर लुढ़क रहे हैं ,हमारे सर छत से टकरा रहे हैं धीरे  चलो प्लीस हमें डर  लग
रहा है |
द्वतीय टोली – नहीं अंकल और तेज चलाओ बहुत मज़ा आ रहा है |हम लोग सीट को जोर से पकड़ के बैठे हैं |खूब तेज चलाओ खूब तेज हवाई जहाज बना दो अंकल |हा हा  हा हा हु हु हू हू ,……अडवंचर्स….. एरोप्लेन जैसा ……………..खूब तेज   ….|
स्कूल बस- बच्चो क्या तुम्हें अपना जीवन प्यारा नहीं है ?मैं ११० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हूँ |ड्राइवर मेरा कहना नहीं मान रहा है |तुम लोग उसे समझाओ रफ्तार कम करवाओ |
प्रथम  टोली -हां हां दीदी आप ठीक कह रहीं हैं |इतनी ज्यादा रफ्तार में तो भयंकर दुर्घटना हो सकती है |गाड़ी टकरा सकती है , पलट भी सकती है फिर हम
लोगों का क्या होगा|ड्राइवर अंकल गाड़ी रोको नहीं तो  हम लोग कूद जायंगे हमें डरलग रहा है|
अचानक  मंच पर अन्धेरा हो जाता है और एक प्रकाश के एक गोल घेरे में
सूत्रधार दिखता है |
तबले की ताल; के साथ फिर  गीत गाने लगता है |
कहर न इस बस पर बरपाओ ,
इसे नशे में नहीं चलाओ |
तेज चले तो सर फूटेगा ,
वाहन टूटेगा  ,टूटेगा |

हाथ पैर सर रखो सलामत ,
आने दो मत भाई कयामत |
गति नियंत्रण में रखना है,
हमें टालना दुर्घटना है |
चलो सम्भल के चलो सम्भल के
यह तो बस है चलो सम्भल के |
{ प्रकाश आ जाता है} सूत्रधार चला जाता है |

प्रथम टोली -बस दीदी आप स्वयं क्यों नहीं रुक जातीं |बिना आपकी इच्छा के चालक आपको कैसे चला सकता है |अच्छे लोगों के सामने तो बुरे लोगों की तो
पराजय होती ही है |

स्कूल बस – बच्चो मैं रुक तो सकतीं हूँ किन्तु अचानक रुकने से खतरा भी है |मेरा संतुलन बिगड़ सकता है ,मैं पलट सकती हूँ और तुम लोगों को चोट आ सकती
है |
प्रथम टोली -तुम अपना गेयर खराब कर लो न दीदी ,अथवा टेंकर का सारा डीज़ल बहादो |ब्रेक भी तोड़ सकती हो |
स्कूल बस- नहीं बेटे नहीं ,मैं यह कुछ नहीं कर सकती| वाहन बहुत तेज रफ्तार है मैं क्या करूं ? कुछ भी नहीं कर सकती | सब भगवान भरोसे है |
द्वतीय टोली -आप भी बस  दीदी कहाँ  इन कायरों के चककर में आ गईं |तेज रफ्तार में कितना आ रहा है | दुनिया चाँद और मंगल पर जा रही है और आप  लोग
११० की रफ्तार में डर रहे हैं |कायर हैं सब |डरपोंक कहीं के |
प्रथम टोली -माई डियर फ्रेंड्स ,हम लोग सड़क पर हैं ,सेटेलाइट में नहीं बैठे हैं |ऐसा एडवंचर क्या काम का जिसमें मौत सरासर सामने दिख रही हो ,जान के
लाले पड़ रहे हों |देखो सड़क किनारे के बोर्डों में क्या लिखा ,पढ़ भी नहीं पा रहे हैं |वाहन चालक नशे में है उसे होश कहाँ है |
द्वतीय  टोली -शराब पीने से क्या होता है बस  तो चल ही रही है न |
प्रथम टोली -वाह मेरे मिट्टी के शेरो ,शराब में अल्कोहल होता है जो पेट मेंजाकर  एसिटिलडिहाइड में बदल  जाता है जिससे अनुमस्तिक प्रभावित होता है और दिमाग काम करना बंद क़र देता है स्मरण शक्ति समाप्त हो जाती है इंसान भ्रमित हो जाता है  और…….और
द्वतीय टोली -अरे बाप रे क्या कह  रहे हो |तब तो यह वाहन चालक बस को कहीं मार ही देगा |ये नशे में है {सब मन में बुद्बुटाते हैं }प्रगट में  रोको, स रोको ड्राइवर अंकल
रोको बस के सारे बच्चे जोर से हल्ला क़र रहे हैं |
स्कूल बस- यह ड्राइवर नहीं मानेगा ,उसे होश ही कहाँ है |बच्चो अब सतर्क हो जाओ मैं धीरे धीरे पंचर हो रही हूँ |
दोनों टोलियां -धीर धीरे क्यों दीदी जल्दी  करो न, अब समय नहीं है |
स्कूल बस -अरे एकदम पंचर होने से मैं खुद को नहीं सम्भाल पाऊँगी और पलट जाऊंगी और तुम सब पर कहर  टूट पडेगा |अब ज्यादा बातें मत करो |सीटों को जोर से पकड़े रहना मैं रुकूँगी तो झटका लग सकता है |
बस में से फुस्स्स्स्स्स्स  की आवाज आने लगती है {बस बना हुआ बच्चा ही जोरों  से फुस्स की आवाज़ निकाल रहा है  }और बस धीर धीरे रुक जाती
है |ड्राइवर कूद कर भाग जाता है |
मंच पर अन्धेरा हो जाता है | प्रकाश होता तो प्रकाश के गोले में सूत्रधार दिखाई देता है उसके हाथ में एक बोर्ड है ” जिसमें लिखा है
दुर्घटना से देर भली ”
सूत्रधार गाता है
दुर्घटना से देर भली है ,
ऐसे लिखे ढेर से नारे |
पढ़ो सूचना आँख खोलकर ,
बोर्ड लगे हैं सड़क किनारे |

वाहन इतना तेज चलाओ ,
रहे नियंत्रण में हाथों के |
अगर नियंत्रण टूट गया तो,
समझो पल  अंतिम साँसों के |
धीरे चलो सम्भल क़र चलना ,
यही बजुर्गों की शिक्षा है,
आँख खोलकर बड़े धैर्य से,
आगे बढ़ना ही  अच्छा है |
थोड़ी सी लापरवाही से,
कितने  लोग जा रहे मारे ,
पढ़ो सूचना आँख खोलकर ,
बोर्ड लगे हैं सड़क किनारे |

{पर्दा गिरता है }
समाप्त

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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