एक वैश्विक साझेदारी

लालकृष्ण आडवाणी

भारत की दृष्टि से, बराक ओबामा की नई दिल्ली यात्रा अत्यंत संतोषजनक रही। केंद्रीय कक्ष में सांसदों को उनके सम्बोधन की विषय वस्तु और भाषण देने की कला-दोनों ही सर्वोत्तम रही।

उनके द्वारा दिए गए भाषण का संक्षेप रूप् में राष्ट्रपति के शब्दों में ही, मैं यहां उदृत कर रहा हूं।

यह कोई संयोग की बात नहीं है कि एशिया की यात्रा पर भारत मेरा पहला पड़ाव है, या यह कि राष्ट्रपति बनने के बाद से यह मेरी किसी अन्य देश की सबसे लंबी यात्रा है।

एशिया में और विश्व भर में भारत केवल उभरता हुआ देश नहीं है; भारत उभर चुका है।

और मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि अमेरिका और भारत का रिश्ता – जो हमारे साझे हितों और हमारे साझे मूल्यों की डोर से बंधा है -21वीं शताब्दी को परिभाषित करनेवाली साझेदारियों में से एक होगा।

हमारे साझे भविष्य में मेरे विश्वास की जड़ें, भारत के बहुमूल्य अतीत के प्रति मेरे आदर में जमी हुई हैं -एक ऐसी सभ्यता जो हज़ारों वर्षों से विश्व को आकार देती आई है।

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि हमारे सूचना–युग की जड़ें भारतीयों के खोजकार्यों में जमी हुई हैं –जिनमें शून्य की खोज भी शामिल है।

भारत ने केवल हमारे दिमागों को ही नहीं खोला, उसने हमारी नैतिक कल्पनाओं का भी विस्तार किया -ऐसे धार्मिक पाठों के ज़रिये जो आज भी आस्थावानों को मान-मर्यादा और संयम का जीवन जीने के लिये पुकारते हैं,

मेरे और मिशेल के लिये इस यात्रा का, इसलिये, एक विशेष अर्थ रहा है। मेरे संपूर्ण जीवन में, जिसमें एक युवा के रूप में शहरी ग़रीबों की लिये मेरा कार्य भी शामिल है, मुझे गांधीजी के जीवन से और उनके इस सीधे सादे और गहन सबक से प्रेरणा मिलती रही है कि हम विश्व में जो परिवर्तन लाना चाहते हैं, स्वयं वे बनें।

विज्ञान और नवाचार की एक प्राचीन संस्कृति; मानव प्रगति में एक मूलभूत विश्वास – यह है वह मज़बूत बुनियाद जिस पर आपने अर्धरात्रि का घंटा बजने के उस क्षण से निरंतर निर्माण किया है जब एक स्वतंत्र और स्वाधीन भारत पर तिरंगा लहराया था। और उन संदेहवादियों के बावजूद जिनका कहना था कि यह देश इतना ग़रीब है, या इतना विशाल है, या इतना विविधतापूर्ण है कि यह सफल हो ही नहीं सकता, आपने दुर्दमनीय विषमताओं पर विजय प्राप्त की और विश्व के लिये एक आदर्श बन गये।

विभाजन के आगे घुटने टेकने की बजाय, आपने दिखा दिया है कि भारत की शक्ति – भारत का मूल विचार ही -है सभी रंगों, सभी जातियों, सभी धर्मों का आलिंगन, उन्हें अपनाना। वह विविधता जिसका आज इस सभाकक्ष में प्रतिनिधित्व हो रहा है। आस्थाओं की वह समृद्धि जिसका एक शताब्दी से भी अधिक समय पूर्व मेरे निवास-नगर शिकागो आनेवाले एक यात्री ने अनुष्ठान किया था -विख्यात स्वामी विवेकानंद। उन्होंने कहा था कि “पवित्रता, शुद्धता, और दानशीलता विश्व में किसी भी चर्च की एकांतिक मिल्कियत नहीं है, और कि हर दर्शन-शास्त्र ने सर्वाधिक उदात्त चरित्र वाले स्त्री-पुरुष पैदा किये हैं।”

इस मिथ्या धारणा की ओर आकर्षित होने की बजाय कि प्रगति स्वतंत्रता की क़ीमत पर ही प्राप्त हो सकती है, आपने उन संस्थाओं का निर्माण किया जिन पर सच्चा लोकतंत्र निर्भर करता है -स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, एक स्वाधीन न्यायपालिका और क़ानून का शासन।

यहां भारत में अलग-अलग पार्टियों के नेतृत्व वाली, एक-दूसरे के बाद आनेवाली दो सरकारों ने यह पहचाना कि अमेरिका के साथ अधिक गहन साझेदारी स्वाभाविक भी है और ज़रूरी भी। और संयुक्त राज्य अमेरिका में मेरे दोनों पूर्व-वर्तियों ने – जिनमें एक डेमोक्रेट था, और एक रिपब्लिकन -हम दोनों को और निकट लाने के लिए कार्य किया, जिसके परिणाम में व्यापार बढ़ा और एक ऐतिहासिक सिविल-परमाणु-समझौता संपन्न हुआ।

हम संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति बनाये रखने के मिशनों में एक प्रमुख योगदान-कर्ता के रूप में भारत के लंबे इतिहास को सलाम करते हैं। और हम भारत का स्वागत करते हैं जबकि वह राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में अपना स्थान ग्रहण करने की तैयारी कर रहा है।

संक्षेप में, जबकि भारत विश्व में अपना न्यायोचित स्थान ग्रहण कर रहा है, हमारे लिए अपने दोनों देशों के बीच संबंधो को आनेवाली शताब्दी को परिभाषित करने वाली साझेदारी बनाने का ऐतिहासिक अवसर मौजूद है। और मेरा विश्वास है कि हम तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में साथ-साथ काम करके ऐसा कर सकते हैं।

प्रथम, वैश्विक साझेदारों के रूप में हम दोनों देशों में खुशहाली को बढ़ावा दे सकते हैं।

हमें रक्षा और नागरिक अंतरिक्ष क्षेत्रों जैसे उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में साझेदारियां निर्मित करनी चाहियें।

हम संयुक्त अनुसंधान और विकास को आगे बढ़ा सकते हैं ताकि हरित रोज़गार पैदा हों; भारत को अधिक स्वच्छ और वहन-योग्य ऊर्जा तक अधिक पहुंच हासिल हो; कोपनहागन में दिए गए अपने वचनों को हम पूरा कर सकें; और निम्न-कार्बन विकास की सम्भावनाओं को प्रदर्शित कर सकें। मिलकर, हम कृषि को मज़बूत बना सकते हैं।

जबकि हम अपनी साझी खुशहाली के संवर्धन के लिये कार्य करेंगे, हम एक दूसरी प्राथमिकता की दिशा में भी साझेदार बन सकते हैं -और वह है हमारी साझी सुरक्षा।

मुम्बई में, मैं साहसी परिवारों और उस बर्बर हमले से जीवित बचे लोगों से मिला। और यहां संसद में, जिसे स्वयं निशाना बनाया गया क्योंकि यह लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करती है, हम उन सबकी स्मृति को श्रद्धांजलि देते हैं जो हमसे छीन लिये गये, जिनमें 26/11 को मारे गये अमेरिकी नागरिक और 9/11 को मारे गये भारतीय नागरिक शामिल हैं। यह है वह बंधन जो हम शेयर करते हैं। इसी कारण हमारा यह आग्रह है कि निर्दोष स्त्री, पुरुष और बच्चों की हत्या को कभी भी, कुछ भी, उचित नहीं ठहरा सकता। यही कारण है कि हम आतंकवादी हमले रोकने के लिए किसी भी समय के मुक़ाबले, अधिक निकटता से मिलकर काम कर रहे हैं और अपने सहयोग को और ज़्यादा गहन बना रहे हैं।

और हम पाकिस्तान के नेताओं से यह आग्रह करना जारी रखेंगे कि उनकी सीमाओं के भीतर आतंकवादियों के सुरक्षित शरण–स्थल स्वीकार्य नहीं हैं, और कि मुम्बई हमलों के पीछे जो आतंकवादी थे उन्हें न्याय के कटघरे में ख़डा किया ही जाना होगा।

दो वैश्विक नेताओं के रूप में अमेरिका और भारत विश्व-व्यापी सुरक्षा के लिए साझेदार बन सकते हैं -विशेष कर अगले दो वर्षों में जबकि भारत सुरक्षा परिषद के सदस्य के रूप में कार्य करेगा। वास्तव में, अमेरिका जो न्यायपूर्ण और जीवनक्षम अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था चाहता है उसमें एक ऐसा संयुक्त राष्ट्र संघ शामिल है जो कार्यकुशल, प्रभावी, विश्वसनीय और वैध हो। यही कारण है कि आज मैं कह सकता हूं, कि आनेवाले वर्षों में, मैं उत्सुकता से एक सुधरी हुई राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद की प्रतीक्षा कर रहा हूं जिस में भारत एक स्थायी सदस्य के रूप में शामिल हो।

इसी तरह, जब भारतीय वोट डालते हैं तो सारा संसार देखता है। हज़ारों राजनीतिक पार्टियां, लाखों मतदान केंद्र, दसियों लाख उम्मीदवार और मतदान कर्मिक -और 70 करोड़ मतदाता। इस ग्रह पर इस तरह का और कुछ भी नहीं है। इतना कुछ है जो लोकतंत्र की ओर संक्रमण कर रहे देश भारत के अनुभव से सीख सकते हैं, इतनी अधिक विशेषज्ञता जो भारत विश्व के साथ साझा कर सकता है। और यह भी ऐसा है जो तब संभव है जब विश्व का सबसे विशाल लोकतंत्र वैश्विक नेता के रूप में अपनी भूमिका को गले लगाये।

हमारा विश्वास है कि चाहे आप कोई भी हों, कहीं से भी आये हों, हर व्यक्ति अपनी ईश्वर-प्रदत्त संभावनाओं को साकार कर सकता है, बिलकुल वैसे ही जैसे एक दलित डॉक्टर अम्बेदकर ने स्वयं को ऊपर उठा कर उस संविधान के शब्द रचे जो सभी भारतवासियों के अधिकारों की हिफ़ाज़त करता है।

हमारा विश्वास है कि चाहे आप कहीं भी रहते हों – पंजाब के किसी गांव में या चांदनी चौक की किसी पतली गली में -कोलकोता के किसी पुराने इलाके में या बैंगलोर की नई ऊंची इमारत में -हर व्यक्ति को सुरक्षा और सम्मान के साथ जीने का, शिक्षा प्राप्त करने का, रोज़गार खोजने का, अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य देने का समान अवसर प्राप्त होना चाहिये।

यह एक सीधा-सा पाठ है जो कहानियों के उस संग्रह में निहित है जो शताब्दियों से भारतवासियों का मार्गदर्शन करता रहा है -पंचतंत्र। और यह उस शिलालेख का सार है जिसे इस महान सभा-भवन में प्रवेश करने वाला हर व्यक्ति देखता है: “एक मेरा है और दूसरा पराया, यह छोटे दिमागों की विचारधारा है। लेकिन बड़े हृदय वालों के लिये सारा संसार उनका परिवार है।”

सन् 2008 में अपने चुनाव अभियान के दौरान बराक ओबामा ने टिप्पणी की थी कि : ”पाकिस्तान और भारत के साथ कश्मीर संकट को गंभीर रूप से सुलझाने के प्रयास” उनके प्रशासन के महत्वपूर्ण कामों में से एक होगा।

सेंट्रल हॉल के अपने सम्बोधन में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत की महान सभ्यता, इसके बहुलवाद और लोकतंत्र की प्रशंसा की। उन्होंने विवेकानन्द, गांधी, टैगोर और डा0 अम्बेडकर के बारे में बोला। उन्होंने कहा कि वे भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में देखने को उत्सुक हैं।

उन्होंने जो कहा वह सभी भारतीयों के दिलों को छू लेने वाला था। लेकिन उन्होंने जो नहीं कहा, वह मेरे विचार से कम महत्वपूर्ण नहीं है। उनके भाषण में कश्मीर शब्द का कोई उल्लेख नहीं था।

जब श्रीमती सुषमा स्वराज ने उनसे अपनी मुलाकात में जोर देकर बताया कि आम भारतीय नागरिकों की अमेरिका के प्रति दुनिया के इस भाग में यह धारणा है कि : वाशिंगटन के लिए पाकिस्तान एक सहयोगी है, भारत एक बाजार।

मैं समझता हूं कि संसद के सेंट्रल हॉल में अपने भाषण में उन्होंने इस धारणा को बदलने की कोशिश की कि अमेरिकियों के लिए भारत केवल एक बाजार है, और कुछ नहीं। ओबामा के संबोधन का अंतिम पैराग्राफ निम्न था :

”और अगर हम इस सीधी-सादी विचारधारा को अपना मार्गदर्शक बनने दें, यदि हम उस स्वप्न पर कार्य करें जो मैंने आज बयान किया – वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए एक वैश्विक साझेदारी – तो मुझे कोई संदेह नहीं कि आनेवाली पीढ़ियां – भारतीयों की और अमेरिकियों की – एक ऐसे विश्व में जियेंगी जो अधिक खुशहाल, अधिक सुरक्षित और अधिक न्यायपूर्ण होगा, रिश्तों के उन बंधनों के कारण जो हमारी पीढ़ी ने आज गढ़े हैं । आपका धन्यवाद, जयहिंद। और भारत तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच साझेदारी जिंदाबाद।”

5 COMMENTS

  1. मैंने इसी बेबसाईट पर एक लेख लिखा है पढ़ लीजिये पहले अमेरिकी निशाने पर दवा उद्योग अभी और लिखता हू स्वदेशी जागरण मंच वाले आजकल खुदरा बाजार पर जादा चिन्तित है अगर आडवाणी जी को दम है तो समझौते को राष्ट्र के सामने लाये पता चल जागेगा कौन गलत कौन सही है हमें जहा तक जानकारी है अपना फर्ज निभा रहा हू मानव एकात्मवाद पर बोलने वाले दीनदयाल जी दंतोपंथ ठेगढ़ी को भूल गए क्या कौन सा विकास अमेरिकी जहा पर ८० प्रतिशत संसाधनों पर २० प्रतिशत अमेरिकी उद्योगपतियों का कब्ज़ा है जहा समाज भूगोल संस्कृति को ताख पर रख कर विकाश होता है व्यक्ति से बढ़ा दल दल से बढ़ा देश होता है और व्यक्ति से बढ़ा संगठन और संगठन से बढ़ा समाज होता है महोदय मई अनपढ़ गवार जनता नहीं हू जो बेवकूफ बना देगे मेरे लिए भारतीय कृषि उद्योग शिक्षा स्वाश्थ की रक्षा अहम् है अमेरिकी विदेश मंत्री का बयान पढ़ लिजिगे

  2. श्री लालकृष्ण आडवाणी ने यहाँ राष्ट्रपति बराक ओबामा के संक्षिप्त वक्तव्य को दोहराते लिखा है कि उन्होंने अपने भाषण में काश्मीर जैसे महत्वपूर्ण शब्द का उल्लेख नहीं किया| मुझे नहीं मालुम राष्ट्रपति ने काश्मीर का उल्लेख क्यों नहीं किया| लेकिन मेरा प्रश्न है उनसे ऎसी अपेक्षा क्योंकर की जाए? भारत व पाकिस्तान के बीच काश्मीर को लेकर क्या वे उनसे कोई सहानुभूती या फिर भारत के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक चातुर्य में कुछ अंक पा लेने की अभिलाषा रखते है? क्या भारत ने काश्मीर को देश का अखंड भाग बता कर सदैव अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता को केवल भारत के आतंरिक समस्या में हस्तक्षेप मात्र नहीं कहा है? दूसरी ओर राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा को वैश्विक सांझेदारी की संज्ञा दे श्री आडवाणी ने एक अच्छी सूझ-बुझ की पहचान दी है| आज के शांतिपूर्ण युग में जब क्षेत्रीय वृद्धि के लिए आक्रमण और युद्ध नहीं होते, वैश्विक सांझेदारी ही देश की उन्नति और देश की प्रजा के जीवन स्तर को उंचा करने में समर्थ है|

    हरपाल सेवक की टिप्पणी पढ़ मन व्याकुल हो उठा है| न खुद की जाने न दादा जी की सुने!

  3. अमेरिका और भारत की पीड़ा साझा है. लेकिन ओबामा के शब्दों की विस्वसनीयता संदिग्ध है. ओबामा कब ओसामा के साथ खडा होगा और कब शांती के पक्ष में यहाँ कहना मुश्किल है.

  4. mahoday lagata hai aapko amerika se jada pyar hai apne mp cm chauhan ki bhi sun liyiye bhopal gais kand ko lekar bechare bahut dukhi hai kitani urja chahiye aapko parmanu urja ke badale nahi de paya to gulami karuga aap ki aap jaise na samajh log bharat ki aguaae karege to katora lekar bhikh hi magana parhega amerika ke samane kas dindayal jee hote to aap ko jada samjhapate rajniti chorh kar bhagwat bhajan kariye aapki umra ab esi kam layak hai kuchh pap kat jagega nahi to narak me bhi jagah nahi milegi

  5. एक वैश्विक साझेदारी – by – लालकृष्ण आडवाणी

    बराक ओबामा भारत पधारे, उनका स्वागत किया श्री अशोक चव्हान महाराष्ट्र राज्य के मुख्य मंत्री नें.
    ज्यो ही, उनका हवाई जहाज़ भारत प्रस्थान के लिए निकला, श्री अशोक चव्हान जी की छुट्टी.
    त्यों ही, भारत में फैले शर्मनाक भ्रष्ट्राचार का सन्देश समस्त विश्व को उची आवाज़ में विदित हुआ.

    भारत की यही बदहाली विश्व ने जानी, बराक ओबामा की भारत यात्रा के साथ.

    कितना खेद है.

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