—विनय कुमार विनायक
जब भी किसी ने गाया जिंदगी के गाने,
तब-तब कुछ कुत्ते शुरू करते हैं रिरियाने!
लेकिन क्या ऐसे में बंद कर दोगे बंधुवर,
छेड़ना इंसानियत व सद्भावना के तराने!
कुत्ते की नियति है कि वह कुत्ता ही होता,
कभी हो सकता नहीं है, इंसानों के जैसा!
लेकिन इंसान की बिरादरी सुरक्षित रखेगी
कुत्ते की प्रजाति, भले ही इस प्रयत्न में!
कुछ लोगों को क्यों नहीं बनना पड़े कुत्ता,
खेद है कि कुत्ता, इंसान बन नहीं सकता!
इंसान बन जाता दुराग्रही भोंकूँ,काटू कुत्ता,
जो इंसानियत को काट-काट करके खाता!
हर जीव-जंतु स्वआचरण का पालन करते,
एक मानव ही पशुता का अनुकरण करते!
मनुष्य को बुद्धि विवेक मिला विशेष में,
मानव छेड़छाड़ करके जाते स्वअवशेष में!
मानव, मानव बनकर धरा में आते मगर,
धरा से जाते हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई बनकर!
खुदा भी परेशान हैं बनिए दुकानदार जैसे,
बनिए वापस लेते नहीं विकृत सामान को!
जब सेठ वापस लेते नहीं बिके समान को,
ईश्वर क्यो वापस ले ऐसे गिरे इंसान को!
ईश्वर से तन मिला उसमें नहीं कोई खोट,
ईश्वर को जो लौटा रहे उसमें बहुत कचोट!
अपने किए कुकर्म का भोगते सब कोई दंड,
मानव से कई गुना क्रूर यमराज के मुस्टंड!
—विनय कुमार विनायक