वैश्विक महामारी Covid-19 के बाद देश में एक नई आर्थिक शुरूआत

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श्रवण बघेल

वैश्विक महामारी Covid-19 के कारण आज हमारे देश में आर्थिक प्रगति रुक गयी है | अगर हम वर्तमान समय को देश में अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखें, तो भारत की स्वतंत्रता के बाद से प्रथम बार भारत इस प्रकार का आपातकाल देख रहा है , हमारी पीढ़ी के लिए तो यह एक दम नया अनुभव है । यह संकट वर्ष 2008-09 में आये देश में वित्तीय संकट से भारी और खतरनाक है, परन्तु तब कम से कम हमारे श्रमिक बन्धु अपने काम पर जा रहे थे, हमारा आर्थिक तंत्र मजबूत था, और सरकारी कोष भी अच्छी स्थिति में था । उनके रोजगार और आजीविका पर कोई संकट नही था | इस महामारी के दौर में सभी स्थितियां विपरीत हैं । फिर भी सही प्राथमिकताओं और समाधान का निर्धारण करके हम देश को खड़ा रख सकते हैं । और देश की आर्थिक रफ़्तार को बढ़ा सकते है | मजदूर और जरूरतमंद लोगो की सहायता कर सकते है | वैसे सम्पूर्ण विश्व की आर्थिक हालात इस समय अच्छी नही है | इस महामारी को रोकने के उपायों पर अभी कार्य हो रहा है | बड़े बड़े देशो में भी आर्थिक हालात अस्थिर हो रहे है | उद्योग धंधे बंद है, व्यापारिक गतिविधियों पर भी रोक है | लोगो की आजीविका पर संकट व्यापत है | देश को इस महामारी से बचाने के लिए सरकार ने सम्पूर्ण देश में लॉकडाउन लागु कर रखा है | भारत में अभी चौथे चरण का लॉकडाउन चल रहा है | आगे क्या स्थिति होगी अभी तय नही किया जा सकता है | सरकारे इस बीमारी से निपटने के लिए लगातार कार्य कर रही है | मगर लॉकडाउन समाप्त के बाद भी वायरस का आतंक समाप्त नहीं होता है, तो हमें पर्याप्त सावधानी और सुरक्षा के साथ एक नए और आत्मनिर्भर भारत की शुरूआत की तैयारी करनी होगी । • सर्वप्रथम, हमें संक्रमण के स्तर के सही डेटा की जानकारी उपलब्ध हो । काम पर वापस आने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य की जांच, सुलभ परिवहन, पीपीई, कार्यक्षेत्र में सामाजिक दूरी आदि की सुविधा की व्यवस्था करनी होगी । • स्वस्थ युवाओं को सामाजिक दूरी के साथ काम पर लगाया जा सकता है । विनिर्माण उद्योगों में आपूर्ति श्रृंखला को वापस लाने के लिए प्रोत्साहित देना होगा । • इस बीच निम्न मध्यवर्गीय जनता के जीवन का इस प्रकार से ख्याल रखा जाए कि वे संकट की अवधि का सामना कर सकें । • केन्द्र और राज्यों में सार्वजनिक और गैर सरकारी संगठनों की पहल इस प्रकार की हो कि भोजन, स्वास्थ्य और आश्रय स्थलों की तुरन्त व्यवस्था की जा सके। निजी स्तर पर अगले कुछ माह तक ऋण की अदायगी और मकान किराए को लेकर हड़बड़ी न मचायी जाए । • निर्धनों की मदद करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए । परन्तु हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिका और यूरोप की तरह सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत व्यय करने का बीड़ा नहीं उठा सकती । हम पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं । अतः हमें कम महत्वपूर्ण खर्चों में कटौती करते हुए, निवेशकों का विश्वास जीतना होगा । अपनी एक स्वतंत्र आर्थिक परिषद् के गठन की प्रतिबद्धता के साथ सरकार को मध्यावधि ऋण के लक्ष्य को तय करना चाहिए । एन के सिंह समिति ने भी ऐसी ही सिफारिश की है । • पिछले कुछ वर्षों से अनेक लघु और मझौले उद्यमों की हालत खराब है । इनके लिए आर्थिक मदद के रूप में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर तथा अन्य साधनों का सहारा लिया जा सकता है। इससे घरों में चलने वाले सूक्ष्म उद्योगों को सर्वाधिक लाभ होगा। • अधिक संख्या में श्रमिकों को रोजगार देने वाले उद्यमों के लिए स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया को कुछ राहतकारी शर्तों के साथ ऋण देने को तैयार करना होगा । सरकार को चाहिए कि इन छोटे उद्यमों के वृद्धिशील बैंक ऋण की पहली हानि का उत्तरदायित्व लेने को तैयार रहे । • इस समय बड़ी फर्में भी छोटे सप्लायर के लिए निधि का इंतजाम कर सकती हैं । ये बांड मार्केट में धन की वृद्धि कर, इसका लाभ आगे दे सकती हैं । दुर्भाग्यवश, आज के कार्पोरेट बांड मार्केट को इससे ज्यादा लेना-देना नहीं है । इसके लिए आरबीआई अधिनियम में बदलाव की आवश्यकता होगी । • निजी फर्मों की वांछित तरलता को बनाए रखने के लिए प्रत्येक सरकारी एजेंसी और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को अपने बिलों का तुरंत भुगतान करना चाहिए। • आरबीआई ने बैंकिंग में पहले ही काफी तरलता बना रखी है। ऋण घाटे के लिए और तरलता काम नहीं करेगी। गैर निष्पादित सम्पत्ति बढ़ेगी। बेरोजगारी बढ़ने के साथ रिटेल ऋण भी बढ़ेगा। सरकार को चाहिए कि वह आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों से अति शीघ्र परामर्श लेकर देश को आर्थिक संकट से ऊबारे । यह कहा ही जाता है कि भारत में संकट के दौरान ही सुधार होते हैं । यह वही उत्तम समय है, जब सरकार को सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को सुधारने की दिशा में तत्परता दिखानी चाहिए । देश के आदरणीय प्रधानमंत्री जी लगभग इन सभी विचारो को ध्यान में रखकर देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए 22 लाख करोड़ का राहत पैकेज घोषित कर दिया है | देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी भारत की वर्तमान सरकार संकल्प के साथ कार्य कर रही है | जिसके कारण इस वैश्विक महामारी के समय हम अपनी और देश की स्थिति को मजबूत रखा संकेंगे | यह देश की आर्थिक और सामाजिक मजबूती के लिए अति महत्वपूर्ण कदम है | अन्त्योदय दर्शन से ही देश आत्मनिर्भर बनेगा राष्ट्रवाद की प्रेरणा, अंत्योदय के दर्शन और सुशासन के मंत्र के साथ देश के पुनर्निर्माण के लिए संकल्पित सामान्यजनों के कल्याण की प्रमाणिक भावना से योजनायें व नीतियों को जब शासन के द्वारा जब लागू किया जाता है | तब समाज में उनके द्वारा लोगो में उद्यमशीलता बढ़ती है, वे कार्यप्रवण होते है, वे राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका की भी चिंता करते है | सभी सरकारी और गैर सरकारी योजनायो के सम्बन्ध में मेरा मानना है कि प्रशासनिक अधिकारीयों के हाथ से, अनेक स्तरों से छनकर नीचे पहुँचते-पहुँचते उनके अमल का व परिणाम का स्वरुप क्या बनता है इसकी यथातथ्य सूचना सब ओर से प्राप्त करने की व्यवस्था होनी चाहिए | शासन के उद्देश्यों की प्रमाणिकता, परिवर्तन के लिए आवश्यक साहसी वृत्ति, प्रमुख लोगो की पारदर्शिता व साख, परिश्रम इस पर सभी का अटूट विश्वास है | बहुत वर्षो के बाद प्राप्त यह सौभाग्य पूर्णफलदायी हो इसके लिए उपरोक्त मुद्दों का विचार करना पड़ेगा | त्रुटिपूर्ण होकर भी सकल घरेलु उत्पाद का मानक अर्थव्यवस्था की सुदृंढता व बाट की गति का मापक इस नाते से प्रचलित है | खाली हाथो को काम मिलना चाहिए, उसमे से आजीविका की न्यूनतम पर्याप्त व्यवस्था होना यानि रोजगार, वह भी अपने देश की मुख्य आवश्यकता मानी जाती है | इन दोनों में सबसे बड़ा योगदान हमारे लघु, मध्यम, कुटीर उद्योगों का, खुदरा व्यापर तथा स्वरोजगार के छोटे-छोटे नित्य चलने वाले अथवा तात्कालिक रूप से काम करने वालो का सहकार क्षेत्र का तथा कृषि एवं कृषि पर निर्भर कार्यो का है | जागतिक व्यापर के क्षेत्र में होने वाले उतार-चढाव तथा आर्थिक भूचालो से समय-समय पर वे हमारी सुरक्षा का भी कारण बने है | अभी भी सुदृढ़ बनी हुई हमारी परिवार की आजीविका में योगदान करती रहती है | कभी-कभी इसको अनौपचारिक अर्थव्यस्था भी कहा जाता है | कुल मिलाकर हमारे आर्थिक चिंतन में अर्थव्यस्था उत्पादन को विकेन्द्रित, उपभोग को सयंमित, रोजगार को परिवर्धित तथा मनुष्य को संस्कार केन्द्रित बनाने वाली हो तथा ऊर्जा की बचत करने वाली व पर्यावरण को सुरक्षित रखने वाली हो ऐसा सोचकर बढ़े बिना; देश में अन्त्योदय तथा अंतर्राष्ट्रीय जगत में संतुलित धारणक्षम व गतिमान अर्थव्यस्था का उदाहरण बनने का हमारा स्वप्न साकार नही हो सकेगा | अन्त्योदय दर्शन का सिद्धांत विश्व के सामने भारत का मूलभूत चिंतन, आशा की किरण नजर आता है | यह सिद्धांत भारत की संस्कृति, भारत के संस्कार, उस आत्मनिर्भरता की बात करते हैं जिसकी आत्मा वसुधैव कुटुंबकम है | देश जब आत्मनिर्भरता की बात करता है, तो आत्मकेंद्रित व्यवस्था की वकालत नहीं करता | भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख,सहयोग और शांति की चिंता होती है | यही हमारा सर्वे भवन्तु सुखिनः और सबके कल्याण का दर्शन है | अगर हमे महात्मा गाँधी और दीनदयाल जी के विचार दर्शन में देश को आत्मनिर्भर बनाना है तो यह आज के परिपेक्ष्य में संभव कार्य है और आज के समय की जरुरत भी है | अगर हम गाँधी जी और पंडित जी के जीवन दर्शन की तुलना करे तो हमे दोनों के ही दर्शन में आत्मविश्वास की भावना दिखती है | जीवन के हर पड़ाव में इन दोनों महान विभूतियों ने असख्य उदाहरण प्रस्तुत किये है | जैसे अपना भोजन स्वयं तैयार करना, अपने कपड़े धोबी से न धुलवाकर खुद धोना हो, साधारण जीवन जीना हो , अपने दैनिक व्यक्तिगत कार्यो के लिए किसी और पर अवलम्बित न रहना आदि ये ऐसे उदाहरण है जो हमें कभी ज्यादा न महत्वपूर्ण लगे हो और हमे वो समझ न आये हो तो आज की हालातों में मज़बूरी में समझ आ रही हैं | निजी स्तर पर हो या देश के स्तर पर, अगर सबसे बड़े सुधार की कहीं जरूरत है तो वह आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में अपनी स्थिति सुधारने की ही दिख रही है | राष्ट्र में खाद्यान्न उत्पादन से लेकर, अन्य उत्पादों के लिए बाजार तैयार करने तक हर क्षेत्र में हमें आत्म निर्भरता चाहिए | इस महामारी के आपातकाल के कारण देश के मौजूदा आर्थिक हालात बता रहे हैं कि स्थितिया जटिल हो गई हैं कि हमे गांधी जी के स्वराज्य दर्शन और दीनदयाल जी के अन्त्योदय दर्शन को एक बार फिर पलट कर देखने की मज़बूरी समझ आ रही है | इस समय हमें समझ में आ रहा है कि वस्तुओ के निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा होने से होता क्या है ? स्वतंत्रता के पश्चात हमें यह पहली बार महसूस हो रहा है कि सिर्फ आयात के सहारे अर्थव्यवस्था को चलाना संभव नही है | मगर आज हमे सबसे ज्यादा अगर किसी सुझाव और उस पर सजगता की आवश्यकता है तो वह हमारी अर्थव्यवस्था है | हमे और देश को अब आत्मनिर्भरता की ओर अब अग्रेषित होना ही पड़ेगा | हमारा भारतीय चिंतन समावेशी विकास की बात करता हैं उसमें हर नागरिक के उत्थान के लिए उसे मदद मुहैया कराने की बात पर जोर दिया जाता है | मगर मेरा मानना है कि इस बात का महत्वपूर्ण बिंदु ये होना चाहिए की किसी भी व्यक्ति की ऐसी मदद की जाए जिससे वो आगे खुद अपनी मदद करने के लिए सक्षम हो जाए | वह आत्मनिर्भर बने, स्वावलंबी बने | पिछले एक दशक से अकुशल भारतवासियों को कार्य कुशल बनाने की कौशल विकास मुहिम चल रही है वह चलते चलते इस मुकाम पर आ गई है कि देश में कुशल और प्रौद्योगिकी के स्नातकों की फौज खड़ी हो गई है और आज बेरोज़गारी की पहाड़ जैसी समस्या से हम रूबरू हैं | हमे प्रौद्योगिकी शिक्षा के साथ साथ व्यवहारिक रोजगार और व्यावसायिक रोजगार शिक्षा को लागु करना पड़ेगा | जिसमे सिर्फ रोजगार ही नही स्व-रोजगार भी बढ़ सके | हमे देश में सिर्फ शहरी चिंतन ही नही करना हमे ग्रामीण और वनवासी चिंतन भी करना होगा तभी देश को सम्पूर्ण स्तर पर आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है | समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए हमे एकात्म मनाव दर्शन और ग्रामोदय जैसे विचारो को देश में प्रतिस्थापित करना पड़ेगा | आज के भारत में समतुल्य वितरण की बाते बड़े काम की साबित हो सकती है | जब देश में नए अर्थशास्त्री आर्थिक विकास के लिए अधिक से अधिक उपभोग की कार्य योजना बनाने में लगे हुए है | अर्थशात्र के विशेषज्ञों के अनुसार अगर देश में ज्यादा उपभोग बढ़े तो ज्यादा मांग हो और ज्यादा मांग हो तो ज्यादा उत्पादन हो | नई सोच के मुताबिक इसी को हम आर्थिक विकास समझ रहे हैं | इस चिंतन का प्रयोग पहले भी देश में प्रयोग करके देख लिया गया है पहले तो कुछ गुजाइश भी थी, लेकिन लंबे वक्त तक यह स्थिति बनाए रखना संभव नहीं है | आज की वैश्विक मंदी और महामारी में क्या हम उस स्थिति को खारिज होता हुआ नहीं देख रहे हैं | आज हमे अपने गांव तक जरूरत का न्यूनतम सामान पहुंचाने में बहुत दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है, वहां किसान और ग्रामवासियों के पास आर्थिक किल्लते भी बढ़ रही है | छोटा सा शहरी मध्यवर्ग अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहा है | फिर भी उसको काफी संघर्ष करना पड़ रहा है समतुल्य वितरण का लक्ष्य हासिल करने के लिए | ऐसी गंभीर आर्थिक हालातों में हमे गाँधी जी और दीनदयाल जी के दर्शन से प्रेरणा लेनी होगी जिसमे स्वदेशी, आत्मनिर्भरता, लघु व कुटीर उद्योग, भारी उद्योग, कृषि और ग्राम व शहर के मध्य आपसी संबंधो को मजबूती प्रदान करनी पड़ेगी | उन सभी को आपस में एक दुसरे पर आत्मनिर्भर बनाना पड़ेगा | हमे इस आत्मनिर्भर के चिंतन को और गहराई से समझने के लिए गाँधी के विचार को समझना होगा वैसे तो दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं जो गांधी जी की उपेक्षा कर पाया हो | महत्वपूर्ण तथ्य है कि गांधी जी के अपने काल में वैश्विक स्तर पर औद्योगिकीकरण का रूप विकसित हो चुका था | उस समय जो विकसित देश थे उनके द्वारा गांधी जी को एक आध्यात्मिक व्यक्ति से ज्यादा नहीं समझा गया. जबकि गांधी के सत्याग्रह अलौकिक या आध्यात्मिक क्रिया कलाप की बजाए लौकिक या भौतिक या आर्थिक सामाजिक जगत के ही थे | गांधी सत्य यानी न्याय का आग्रह कर रहे थे | यह मांग सौ फीसद लौकिक जगत से जुड़ी मांग थी | अगर एकदम आज की वैश्विक स्थितियों को गौर से देखें तो हमें लौकिक जगत में परजीवी और आत्मनिर्भरता विषय पर विमर्श करने की जरूरत दिखने लगेगी | जिन्हें हम विकसित अर्थव्यव्यस्था या विकासशील अर्थव्यवस्थाएं कह रहे हैं उनमें कितनी ऐसी हैं जो आत्मनिर्भर हैं | इस लिहाज़ से देखें तो वैश्विक स्तर पर जितने भी परजीवी हैं उन्हें संबोधित करने के लिए गांधी जी हमे याद आते हैं | उनका सत्याग्रह सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था | वे आत्मनिर्भर भारतीय समाज के निर्माण के लिए निजी स्तर पर भी आत्मनिर्भर होने का आग्रह करते थे | उनकी दूरदृष्टि सोच ने शायद आज की परिस्थिति का आंकलन कर लिया हो कि इस वैश्विक संकट में यह हमारी सबसे बड़ी चुनौती होगी | देश में कुटीर उद्योगों के लिए उनकी अपील देशवासियों को निजी स्तर पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए थी | उन्होंने जरूरतमंदों को प्रत्यक्ष मदद की बात नहीं कही | जरूरतमंद को कुशल बनाने की बात कही जिससे वह अपनी मदद खुद कर सके | अगर आधुनिक सामाजिक प्रौद्योगिकी को देखें जिसे वैज्ञानिक सामाजिक कार्य कहा जाता है, उसके मुताबिक जरूरत मंदों को प्रत्यक्ष सहायता उन्हें परतंत्र ही बनाएगा | लेकिन कितनी उलट बात है कि सिर्फ हम ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपनी सत्ता की स्थापना के लिए जरूरतमंदों को प्रत्यक्ष भेंट का लालच दिया जाता है | गांधी वैसे छदम मानवतावाद के खिलाफ थे | हमे लोगो के लिए सीधी मदद नही उसको आत्मनिर्भर बनाकर रोजागर और का के द्वारा ही उसकी सहायता करनी चाहिए |

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