एक प्रस्तावित कानून, जिसकी भ्रूण हत्या ही देशहित में है

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चम्पतराय

संयुक्त महामंत्री-विश्व हिन्दू परिषद

1. भारत सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किए गए इस बिल का नाम है ‘‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक – 2011’’

2. इस प्रस्तावित विधेयक को बनाने वाली टोली की मुखिया हैं श्रीमती सोनिया गांधी और इस टोली में हैं सैयद शहाबुद्दीन जैसे मुसलमान, जॉंन दयाल जैसे इसाई और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे धर्मनिरपेक्ष, इसके अतिरिक्त अनेक मुसलमान, इसाई और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष हिन्दू हैं। सोनिया गांधी के अतिरिक्त टोली का कोई और व्यक्ति जनता के द्वारा चुना हुआ जनप्रतिनिधि नहीं है। विधेयक तैयार करने वाली इस टोली का नाम है ‘‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’’।

3. विधेयक का क्या उद्देश्य है, यह प्रस्तावना विधेयक में कहीं लिखी नहीं गयी।

4. विधेयक का खतरनाक पहलू यह है कि इसमें भारत की सम्पूर्ण आबादी को दो भागों में बाँट दिया गया है। एक भाग को ‘‘समूह’’ कहा गया है, तथा दूसरे भाग को ‘‘अन्य’’ कहा गया है। विधेयक के अनुसार ‘‘समूह’’ का अर्थ है धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यक (मुसलमान व इसाई) तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्ति, इसके अतिरिक्त देश की सम्पूर्ण आबादी ‘‘अन्य’’ है। अभी तक समूह का तात्पर्य बहुसंख्यक हिन्दू समाज से लिया जाता रहा है, अब इस बिल में मुस्लिम और ईसाई को समूह बताया जा रहा है, इस सोच से हिन्दू समाज की मौलिकता का हनन होगा।

विधेयक का प्रारूप तैयार करने वाले लोगों के नाम व उनका चरित्र पढ़ने व उनके कार्य देखने से स्पष्ट हो जायेगा कि ‘‘समूह’’ में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को जोड़ने का उद्देश्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति के प्रति आत्मीयता नहीं अपितु हिन्दू समाज में फूट डालना और भारत को कमजोर करना है।

5. यह कानून तभी लागू होता है जब अपराध ‘‘समूह’’ (मुसलमान अथवा इसाई) के प्रति ‘‘अन्य’’ (हिन्दू) के द्वारा किया गया होगा। ठीक वैसा ही अपराध ‘‘अन्य’’ (हिन्दू) के विरूद्ध ‘‘समूह’’ (मुसलमान अथवा इसाई) के द्वारा किये जाने पर इस कानून में कुछ भी लिखा नहीं गया। इसका एक ही अर्थ है कि तब यह कानून उसपर लागू ही नही होगा। इससे स्पष्ट है कि कानून बनाने वाले मानते है कि इस देश में केवल ‘‘अन्य’’ अर्थात हिन्दू ही अपराधी हैं और ‘‘समूह’’ अर्थात मुसलमान व इसाई ही सदैव पीड़ित हैं।

6. कोई अपराध भारत की धरती के बाहर किसी अन्य देश में किया गया, तो भी भारत में इस कानून के अन्तर्गत ठीक उसी प्रकार मुकदमा चलेगा मानो यह अपराध भारत में ही किया गया है। परन्तु मुकदमा तभी चलेगा जब मुसलमान या इसाई शिकायत करेगा। हिन्दू की शिकायत पर यह कानून लागू ही नहीं होगा।

7. विधेयक में जिन अपराधों का वर्णन है उन अपराधों की रोकथाम के लिए यदि अन्य कानून बने होंगे तो उन कानूनों के साथ-साथ इस कानून के अन्तर्गत भी मुकदमा चलेगा, अर्थात एक अपराध के लिए दो मुकदमें चलेंगे और एक ही अपराध के लिए एक ही व्यक्ति को दो अदालतें अलग-अलग सजा सुना सकती हैं।

8. कानून के अनुसार शिकायतकर्ता अथवा गवाह की पहचान गुप्त रखी जायेगी अदालत अपने किसी आदेश में इनके नाम व पते का उल्लेख नहीं करेगा, जिसे अपराधी बनाया गया है उसे भी शिकायतकर्ता की पहचान व नाम जानने का अधिकार नहीं होगा इसके विपरीत मुकदमें की प्रगति से शिकायतकर्ता को अनिवार्य रूप से अवगत कराया जायेगा।

9. मुकदमा चलने के दौरान अपराधी घोषित किए गए हिन्दू की सम्पत्ति को जब्त करने का आदेश मुकदमा सुनने वाली अदालत दे सकती है। यदि हिन्दू के विरूद्ध दोष सिद्ध हो गया तो उसकी सम्पत्ति की बिक्री करके प्राप्त धन से सरकार द्वारा मुकदमें आदि पर किए गए खर्चो की क्षतिपूर्ति की जायेगी।

10. हिन्दू के विरूद्ध किसी अपराध का मुकदमा दर्ज होने पर अपराधी घोषित किए हुए हिन्दू को ही अपने को निर्दोष सिद्ध करना होगा अपराध लगाने वाले मुसलमान, इसाई को अपराध सिद्ध करने का दायित्व इस कानून में नहीं है जब तक हिन्दू अपने को निर्दोष सिद्ध नहीं कर पाता तबतक इस कानून में वह अपराधी ही माना जायेगा और जेल में ही बंद रहेगा।

11. यदि कोई मुसलमान या पुलिस अधिकारी शिकायत करे अथवा किसी अदालत को यह आभास हो कि अमुक हिन्दू इस कानून के अन्तर्गत अपराध कर सकता है तो उसे उस क्षेत्र से निष्कासित (जिला के बाहर) किया जा सकता है।

12. इस कानून के अन्तर्गत सभी अपराध गैर जमानती माने गए है। गवाह अथवा अपराध की सूचना देने वाला व्यक्ति अपना बयान डाक से अधिकृत व्यक्ति को भेज सकता है इतने पर ही वह रिकार्ड का हिस्सा बन जायेगा और एक बार बयान रिकार्ड में आ गया तो फिर किसी भी प्रकार कोई व्यक्ति उसे वापस नहीं ले सकेगा भले ही वह किसी दबाव में लिखाया गया हो।

13. कानून के अनुसार हिन्दूओं पर मुकदमा चलाने के लिए बनाये गए विशेष सरकारी वकीलों के पैनल में एक तिहाई मुस्लिम वा इसाई वकीलों का रखा जाना सरकार स्वयं सुनिश्चित करेगी।

14. कानून के अनुसार सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति लेना आवश्यक नहीं होगा।

15. कानून को लागू कराने के लिए एक ‘‘प्राधिकरण’’ प्रान्तों में व केन्द्र स्तर पर बनेगा जिसमें 7 सदस्य रहेंगे, प्राधिकरण का अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष अनिवार्य रूप से मुसलमान या इसाई होगा, प्राधिकरण के कुल 7 सदस्यों में से कम से कम 4 सदस्य मुसलमान या इसाई होंगे। यह प्राधिकरण सिविल अदालत की तरह व्यवहार करेगा, नोटिस भेजने का अधिकार होगा, सरकारों से जानकारी मॉंग सकता है, स्वयं जॉंच करा सकता है, सरकारी कर्मचारियों का स्थानान्तरण करा सकता है तथा समाचार पत्र, टी.वी.चैनल आदि को नियंत्रित करने का अधिकार भी होगा। इसका अर्थ है किसी भी स्तर पर हिन्दू न्याय की अपेक्षा न रखे, अपराधी ठहराया जाना ही उसकी नियति होगी। यदि मुस्लिम/इसाई शिकायतकर्ता को लगता है कि पुलिस न्याय नहीं कर रही है तो वह प्राधिकरण को शिकायत कर सकता है और प्राधिकरण पुनः जॉंच का आदेश दे सकता है।

16. कानून के अनुसार शिकायतकर्ता को तो सब अधिकार होंगे परन्तु जिसके विरूद्ध शिकायत की गई है उसे अपने बचाव का कोई अधिकार नहीं होगा वह तो शिकायतकर्ता का नाम भी जानने का अधिकार नहीं रखता।

17. प्रस्तावित कानून के अनुसार किसी के द्वारा किए गए किसी अपराध के लिए उसके वरिष्ठ (चाहे वह सरकारी अधिकारी हो अथवा किसी संस्था का प्रमुख हो, संस्था चाहे पंजीकृत हो अथवा न हो) अधिकारी या पदाधिकारी को समान रूप से उसी अपराध का दोषी मानकर कानूनी कार्यवाई की जायेगी।

18. पीडित व्यक्ति को आर्थिक मुआवजा 30 दिन के अंदर दिया जायेगा। यदि शिकायतकर्ता कहता है कि उसे मानसिक पीडा हुई है तो भी मुआवजा दिया जायेगा और मुआवजे की राशि दोषी यानी हिन्दू से वसूली जायेगी, भले ही अभी दोष सिद्ध न हुआ हो। वैसे भी दोष सिद्ध करने का दायित्व शिकायतकर्ता का नहीं है। अपने को निर्दोष सिद्ध करने का दायित्व तो स्वयं दोषी का ही है।

19. इस कानून के तहत केन्द्र सरकार किसी भी राज्य सरकार को कभी भी आन्तरिक अशांति का बहाना बनाकर बर्खास्त कर सकती है।

20. अलग-अलग अपराधों के लिए सजाए 3 वर्ष से लेकर 10 वर्ष, 12 वर्ष, 14 वर्ष तथा आजीवन कारावास तक हैं साथ ही साथ मुआवजे की राशि 2 से 15 लाख रूपये तक है। सम्पत्ति की बाजार मुल्य पर कीमत लगाकर मुआवजा दिया जायेगा और यह मुआवजा दोषी यानी हिन्दू से लिया जायेगा।

21. यह कानून जम्मू-कश्मीर सहित कुछ राज्यों पर लागू नहीं होगा परन्तु अंग्रेजी शब्दों को प्रयोग इस ढंग से किया गया है जिससे यह भाव प्रकट होता है मानो जम्मू-कश्मीर भारत का अंग ही नहीं है।

22. यह विधेयक यदि कानून बन गया और कानून बन जाने के बाद इसके क्रियान्वयन में कोई कठिनाई शासन को हुई तो उस कमी को दूर करने के लिए राजाज्ञा जारी की जा सकती है; परन्तु विधेयक की मूल भावना को अक्षुण्ण रखना अनिवार्य है साथ ही साथ संशोधन का यह कार्य भी कानून बन जाने के बाद मात्र दो वर्ष के भीतर ही हो सकता है।

23. कानून के अन्तर्गत माने गए अपराध निम्नलिखित है-

डरावना अथवा शत्रु भाव का वातावरण बनाना, व्यवसाय का बहिष्कार करना, आजीविका उपार्जन में बाधा पैदा करना, सामूहिक अपमान करना, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, निवास आदि सुविधाओं से वंचित करना, महिलाओं के साथ लैंगिक अत्याचार। विरोध में वक्तत्व देना अथवा छपे पत्रक बॉंटने को घृणा फैलाने की श्रेणी में अपराध माना गया है। कानून के अन्तर्गत मानसिक पीडा भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है जिसकी हर व्यक्ति अपनी सुविधानुसार व्याख्या करेगा।

24. इस कानून के अन्तर्गत अपराध तभी माना गया है जब वह ‘‘समूह’’ यानी मुस्लिम/इसाई के विरूद्ध किया गया हो अन्यथा नहीं अर्थात यदि हिन्दुओं को जान-माल का नुकसान मुस्लिमों द्वारा पहुंचाया जाता है तो वह उद्देश्यपूर्ण हिंसा नहीं माना जायेगा, कोई हिन्दू मारा जाता है, घायल होता है, सम्पत्ति नष्ट होती है, अपमानित होता है, उसका बहिष्कार होता है तो यह कानून उसे पीड़ित नही मानेगा। किसी हिन्दू महिला के साथ मुस्लिम दुराचारी द्वारा किया गया बलात्कार लैंगिक अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा।

25. ‘‘समूह’’ में अनुसूचित जाति जनजाति का नाम जोडना तो मात्र एक धोखा है, इसे समझने की आवश्यकता है। यह नाम जोड़कर उन्होंने हिन्दू समाज को कमजोर करने का भी काम किया।

26. यदि शिया और सुन्नी मुस्लिमों में, मुस्लिमों व इसाईयों में अथवा अनुसूचित जाति-जनजाति का मुस्लिमों/इसाईयों से संघर्ष हो गया अथवा किसी मुस्लिम दुराचारी ने किसी मुस्लिम कन्या के साथ बलात्कार किया तब भी यह कानून लागू नहीं होगा।

27. प्रत्येक समझदार व्यक्ति इस बिल को पढे, इसके दुष्परिणामों को समझे, जिन लोगों ने इसका प्रारूप तैयार किया है उनके मन में हिन्दू समाज के विरूद्ध भरे हुए विष को अनुभव करें और लोकतांत्रिक पद्धति के अन्तर्गत वह प्रत्येक कार्य करें ताकि यह बिल संसद में प्रस्तुत ही न हो सके और यदि प्रस्तुत भी हो जाये तो किसी भी प्रकार स्वीकार न हो। इस कानून की भ्रूण हत्या किया जाना ही देशहित में है।

14 COMMENTS

  1. क्या अन्ना की आंधी में ये विधेयक कहीं उड़ गया है? जिस विषय पर एक बार चर्चा शुरू हो चुकी है, उसे अंजाम तक पहुँचाना भी तो हम सभी पाठक मित्रों का ही दायित्व है! लेखक महोदय तो लेख का आधार और स्त्रोत भी नहीं बता पाए और गहरी चुप्पी साध गए! क्या पाठक भी इसे जन लोकपाल के निर्णय तक लंबित छोड़ चुके हैं या मूल प्रस्तावित विधेयक का पाठ सामने आ जाने से लेख की असलियत सामने आ गयी है! इसलिए चुप हैं? कुछ तो लिखा जाना चाहिए!

  2. मुझे मेरे किसी मित्र ने, मेरे आग्रह पर सर्च करके हिन्दी में उक्त प्रस्तावित विधेयक की पीडीएफ प्रति भेजी है, जिसे मैं अभी तक पढ़ तो नहीं पाया हूँ लेकिन उसे प्रवक्ता के पाठकों की जानकारी हेतु पेश कर रहा हूँ| कृपया निम्न लिंक पर पढ़ें :
    ‎’सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-2011′ का पूरा पाठ हिन्दी एवं अंगरेजी में पढ़ें!
    https://baasvoice.blogspot.com/2011/08/11.html

  3. इस प्रकार के कानून की आवश्यकता काफी समय से महसूस की जा रही थी! अगर वास्तव में ऐसा कानून है तो उसे जल्द से जल्द पारित हो जाना चाहिए! ये एक तरह से सभी दलितों के हित में ही है वैसे भी अभी तक राष्ट्र अथवा राज्य स्तर पर लक्षित हिंसा अल्पसंख्यको और दलितों के विरुद्ध ही हुई है! चाहे वो देशव्यापी १९८४ के सिख विरोधी दंगे हो या १९९२ में बाबरी मस्जिद से सम्बंधित देशव्यापी मुस्लिम विरोधी दंगे हो या २००२ में गुजरात सरकार समर्थित पुनः मुस्लिम विरोधी दंगे हो! ये विहिप वाले तो इसलिए परेशान हो रहे है कि अगर ये क़ानून पारित हो गया तो ये लोग देश में वैसे दंगे कैसे करवा पाएंगे जैसे अपने कार्यकाल में १९९२ और २००२ में करवाए थे! इस क़ानून के भरपूर समर्थन होना ही चाहिए!

  4. मीणा जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि इस विधेयक की मूल प्रति नेट पर उपलब्ध करवाई जानी चाहिए ताकि विषय की गंभीरता पर सही दिशा में चर्चा हो सके.

  5. श्री आर सिंह जी ने 13.08.2011 को टिप्पणी में लिखा है कि-

    “ऐसे इस पर सार्थक बहस के लिए यह आवश्यक है की इस प्रस्तावित बिल का प्रारूप देखा जाये .इसमे प्रवक्ता सम्पादक या स्वयं चम्पत राय जी भी सहायक हो सकते हैं,चम्पत राय जी के पास तो इसकी प्रति अवश्य होगी.अतः यह उम्मीद की जानी चाहिए की वे प्रवक्ता के पाठकों को इसकी पूर्ण जानकारी अवश्य देंगे!”

    इससे पूर्व 12 .08 .2011 को मैं इस कानून की हिन्दी प्रति के बारे में प्रवक्ता के सभी लेखकों और टिप्पणी करों से निवेदन कर चूका हूँ, लेकिन अभी तक सब मौन हैं? ये निवेदन फिर से दुहरा रहा हूँ!

    यह मौन और इतना लम्बा मौन आश्चर्यजनक है! इससे मुझे दो बातें लगती हैं-

    (1) लेखक ने लेख किसी के कहने से लिखा है या कहीं से नक़ल किया है? अन्यथा उनके पास मूल प्रस्तावित कानून होना चाहिए और उसे यहाँ प्रस्तुत किया जाना चाहिए था?

    (2) लेखक जिस कानून के बारे में जो-जो बातें लिख रहे हैं वे सब गलत हैं और अपने आकाओं के कहने पर सरकार को बदनाम करने के लिए लिखी गयी हैं?

  6. – लेखक महोदय से निवेदन है की इस कानून के मुख्य मसौदे पर उपलब्ध मूल सामग्री का कोई लिंक उपलब्ध हो तो उसे देवें. आशा है की श्री सुरेश चिपलूनकर जी के पास त्तथा ‘ जनोक्ति ‘ पर यह सामग्री उपलब्ध होगी.
    – एक निवेदन यह है की समस्याओं की जड़ को जब तक नहीं उखाड़ेंगे तब तक सारे प्रयास पत्तों को सींचने जैसे हैं. देश के विरुद्ध चल रहे अनगिनत भयावह षड्यंत्रों के पीछे कौन है, इसे जाने बिना सारे प्रयास हवाई हैं, व्यर्थ हैं. अतः देश की जनता को पता चलना चाहिए की कौन है जो बार-बार देश के विनाश के निर्णय कर या करवा रहा है. एंडरसन को भगाना, आतंक्वादियुओं को शरण और सुरक्षा देना, देश का अरबों-खरबों रुपया विदेशों में ( निरंतर ) ले जाने वालों की सुरक्षा करना, विदेशी बदनाम कंपनियों को देश के बड़े-बड़े ठेके देना (विशेष कर इटली की कंपनियों को). आखिर हो क्या गया है जो देश में सब कुछ उलटा और गलत हो रहा है और रुक नहीं रहा, कोई एक भी सही निर्णय और कार्यवाही हो ही नहीं रही ? . – देशभक्त संगठनों व व्यक्तियों की दुर्दशा हो रही है और देश द्रोहियों का बोलबाला हो रहा है. कुछ ही वर्षों में इतने बुरे हालात होने की कारण क्या हैं, कौन हैं ये देश के दुश्मन ? इनकी जल्द से जल्द पहचान होनी चाहियें. जो इसमें रुकावट डालें, कहने की ज़रूरत नहीं की वे देश के शत्रु होंगे.
    :: एक विशेष बिंदु की और ध्यान खेंचना चाहूंगा – डा. सुब्रमण्यम स्वामी की उन रपटों और शपथ पत्रों पर परदे क्यूँ डाले जाते हैं जो कहते हैं की सोनिया जी ने देश के साथ अनेक बार धोखा किया है, झूठ बोला, झूठे शपथ पत्र दायर करने का अपराध किया है, देश की अमूल्य संपत्ति की तस्करी करके अपनी बहन अनुष्का की दुकान पर इटली में बेचने का काम किया है (शायद अब भी कर रही हों).
    – प्रधानमन्त्री पद का त्याग करने के झूठ की पोल भी डा. स्वामी ने खोली है. डा. स्वामी की मुकद्दमा चलाने के धमकी के बाद ही सोनिया जी ने प्रधानमंत्री पद पर अपना दावा छोड़ा था. – सोनिया जी की असलियत को जानना हो तो डा. सुब्रमण्यम स्वामी की वेबसाईट पर देख लें. फिर सब समझ आजायेगा की देश में इतना विनाश क्यूँ हो रहा है.
    – देश की जनता को अधिकार है की वह जाने की उनपर शासन चलाने वाले लोग किस चरित्र के हैं, उनकी असलियत क्या है. कोई अपराधी या विदेशी एजेंट देश की सत्ता पर काबिज न हो ; इसके लिए ज़रूरी है की सत्ता के शीर्ष पर जाने वालों के जीवन और पूरी पृष्ठ भूमि को देश की जनता जाने. संदिग्ध भूमिका के लोग या महिला द्वारा देश के सत्ता सूत्र संभालने से तो देश का विनाश होना तो सुनिश्चित है. कहीं ऐसा ही हो तो नहीं रहा ?
    – सोनिया जी का जीवन यदि निष्कलंक है तो फिर फिर उन्हें या उनके साथियों को डर काहेका ? जो भी सच है वह सामने आना चाहिए. जितना परदे डाले जायेंगे उतना शक और गहरा होगा. सोनिया जी से जानने योग्य कुछ प्रश्न ये हो सकते हैं ::: * सोनिया जी का जन्म स्थान कौनसा है ? * उनकी सही जन्म तिथि क्या है ? *उनकी शिक्षा कितनी और कहाँ हुई ? *विवाह से पहले उनका नाम क्या था ? *राजीव गांधी से उनका किस चर्च में विवाह हुआ और तब राजीव गांधी का ईसाई नाम क्या रखा गया ? * के.जी.बी. से उनके सम्बन्ध हैं तो क्या हैं (और उनके पिता के क्या थे) ? *उनके पिता और माता क्या करते थे ? *पीता रूस की जेल में क्यूँ और कब रहे ? * केवल उन्ही को जेल से जल्द रिहा क्यूँ किया गया ? *सोनिया जी पर तस्करी के जो आरोप सुब्रमण्यम स्वामी ने लगाए हैं, उनके बारे में उनका क्या कहना है ? आदि कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर देश की जनता को पाने का अधिकार है और देश के हर जन प्रतिनिधि का कर्तव्य है की वह देश की जनता को अपने पर लगे आरोपों का उत्तर दे.

  7. पता नहींक्यों मुझे हमेशा महसूस होता है की जो लोग अच्छी बात भी कहना चाहते हैं तो उसमे एक ऐसा मुद्दा घुसेड देते है की मुख्य बात गौड़ हो जाती है.अब इसी क़ानून को लीजिये जिसकी चर्चा .विश्व हिदू परिषद् के पदाधिकारी कर रहे हैं.उनका इस क़ानून के द्वारा हिन्दुओं पर अन्याय का भय वास्तविक भी हो सकता है,पर जब वे ये कहते हैं की “सोनिया गांधी के अतिरिक्त टोली का कोई और व्यक्ति जनता के द्वारा चुना हुआ जनप्रतिनिधि नहीं है।” तो वे अपने को उसी श्रेणी में खड़ा कर देते हैं जिसमे जन लोकपाल बिल के मामले में कांग्रेस खड़ी है.मेरा कहना केवल यही है की आपलोग व्यक्ति या व्यक्तिओं की सीमा से ऊपर उठकर मुद्दे की बात कीजिये.अगर प्रस्तावित बिल जनहित में नहीं है तो यह देखने से क्या लाभ की उसके रचयिता कौन है? उसी तरह अगर वह जनहित में है तो भी यह जानने आवश्यकता नहीं है कीउसको बनाने वाली समिति में कौन है या कौन नहीं है?
    ऐसे इस पर सार्थक बहस के लिए यह आवश्यक है की इस प्रस्तावित बिल का प्रारूप देखा जाये .इसमे प्रवक्ता सम्पादक या स्वयं चम्पत राय जी भी सहायक हो सकते हैं,चम्पत राय जी के पास तो इसकी प्रति अवश्य होगी.अतः यह उम्मीद की जानी चाहिए की वे प्रवक्ता के पाठकों को इसकी पूर्ण जानकारी अवश्य देंगे.

  8. सोनिया और नेहरु खानदान का पदैशी धर्म तथा वर्नितों के माता पिता कौन है ये कहाँ के नागरिक हैं क्या कोई बताएगा …बताने से पहले नेट पर उपलभ्द ये लिंक जरूर देख लें तो प्रश्न क्यों पूछा गया है व् वो ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं सब समझ आ जाएगा …… https://www.krishnajnehru.b​logspot.com/

  9. इस प्रस्तावित काले कानून से सब को समझ आना चाहिए की ये सोनिया सरकार किस दिशा में कार्य कर रही है और इस देश की कैसी दुर्दशा करने वाली है. ऐसी सरकार से देश जीतनी जल्द मुक्ति पाले उतना ही अच्छा होगा.

  10. अभी तक मैंने ‘‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक – 2011’’ पर जितने भी लेख पढ़े हैं, उनमें कहीं भी इसके अधिकृत हिन्दी पाठ का कोई लिंक नहीं दिया गया है, यदि किसी बन्धु के पास ये लिंक हो तो कृपया अवगत करावें|

    अन्यथा प्रवक्ता के माध्यम से सभी “अंगरेजी से हिन्दी” में सही और ईमानदारी से अनुवाद कर सकने में सक्षम विद्वान बन्दुओं से मेरा विनम्र निवेदन है कि कृपया इस ‘‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक – 2011’’ का हिन्दी और यदि संभव हो तो भारत की सभी क्षेत्रीय भाषाओँ में भी “ज्यों का त्यों” यथावत अनुवाद उपलब्ध करावें|

    अनुवादक विधेयक के प्रावधानों पर अपनी व्याख्या या टिप्पणी नहीं लिखें, जिससे देशवासियों को सच्चाई का पता चल सके|

    यदि लिखे जा रहे लेखों में जो कुछ लिख जा रहा है, वह सब सही है तो देश के लोगों को देश की भाषा में ही सचाई बतानी होगी| विशेष कर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन जाति के मामले में ये मुझे जरूरी प्रतीत हो रहा है| तब ही कोई भी संघर्ष सफल हो सकता है!

    आशा है कि पाठक और लेखक बन्धु इस बारे में गौर करेंगे!

    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    98285-02666

  11. यह एक काले कानून का विधेयक है जो मुगलकालीन इस्लामिक कानूनों से भी बदतर है। इसमें जाजिया कर वसूलने की पूरी व्यवस्था है। मैं इसका पूरी शक्ति से विरोध करने और इसके खिलाफ़ जन जागरण करने की प्रतिज्ञा करता हूं। इसके कानून बनते ही अपने ही देश में हम हिन्दू दोयम दर्जे के नागरिक बन जाएंगे। सोनिया का असली चेहरा अब बेनकाब होने लगा है।

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