उ.प्र: माफियाओं ने खेली खून की होली

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संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ एक बार फिर थर्रा गई। एक और सीएमओ को मौत के घाट उतार दिया गया। लगभग छह माह पूर्व मारे गए सीएमओ विनोद आर्य की मौत की गुत्थी पुलिस सुलझा भी नहीं पाई थी और इसी बीच हत्यारों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर एक और सीएमओ को मौत के मुंह में ढकेल दिया। दो अप्रैल की सुबह परिवार कल्याण विभाग में तैनात मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाक्टर बीपी सिंह की उस समय गोली मारकर हत्या कद दी गई ,जब वह मार्निंग वॉक पर जा रहे थे। दोनों सीएमओ की हत्याए करने के तरीके में इतनी समानता थी कि पुलिस को प्रथम दृष्टयता यह समझने में देर नहीं लगी कि दोनों हत्याओं के पीछे एक ही ‘ मास्टर मांइड’ हो सकता है।स्पेशल डीजीपी बृज लाल ने भी माना कि दोनों घटनाओं की ‘ माडस आपरेंडी ‘एक जैसी थी। पहले विनोद और अब बीपी सिंह की आक्समिक मौत से डाक्टरों का पारा चढ़ते देर नहीं लगी। इस वारदात के विरोध में प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संघ के आहवान पर प्रदेश के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में डाक्टर हड़ताल पर चले गए हैं। नतीजतन, स्वास्थ सेवाएं ठप हो गई,जिसकी कीमत गंभीर रूप से बीमार पांच मरीजों को मौत की कीमत देकर चुकानी पड़ी। हालांकि बाद में संघ ने पुलिस से आश्वासन मिलने के बाद कुछ दिनों के लिए अपना आंदोलन स्थगित कर दिया,लेकिन पुलिस को अभी तक कोई बढ़ी सफलता हाथ नहीं लगी है,जिससे यह कहा जा सके कि वह हत्यारों के करीब पहुंच गई है। हवा में हाथ-पैर मार रही पुलिस के लिए काम आसान नहीं लग रहा है। यह और बात है पहले जिस तरह से सीएमओ विनोद आर्य की हत्या के राज से पुलिस ने पर्दा हटाया था। ठीक उसी तरह से इस हत्याकांड का भी खुलासा न कर दिया जाए। सीएमओ विनोद आर्य हत्याकांड में पुलिस ने फैजाबाद के एक हिस्ट्रीशीटर को कथित रूप से कटघरे में खड़ा किया था, जबकि शक की सुंई एक दूसरे ‘दबंग’ पर गहरा रही थी। पुलिस ने करीब एक दर्जन लोगों को हिरासत में लेकर पूंछताछ कर चुकी है। इसमें कुछ विभागीय नेता भी शामिल हैं।सीएमओ स्वास्थ्य कल्याण विभाग का पद कितना खतरनाक है।इसका आभास इसी से हो जाता है कि विनोद आर्य की मौत के बाद कोई भी चिकित्सक इस पद पर बैठने को तैयार नहीं हुआ था।इस दौरान कई डाक्टरों के नाम शासन ने सुझाए थे,लेकिन कोई डाक्टर तैनाती को तैयार नहीं हुआ। करीब छह माह तक यह पद रिक्त रहा, इसके बाद पीएमएस एसोसिएशन के महामंत्री डा.बीपी सिंह ने शासन के निर्देश पर बड़ी मुश्किल से ज्वाइनिंग ली थी।

बहरहाल, सीएमओ बीपी सिंह का अंजाम भी विनोद आर्य जैसा ही हुआ। इसका मतलब साफ है कि दोनों हत्याओं के पीछे स्वास्थ विभाग में दखल रखने वाले दबंगों का ही हाथ था। यह बात पुलिस भी जानती और समझती है। कहा यह जा रहा है कि दो दवा कम्पनियों का भुगतान बिल बीपी सिंह ने पास करने से मना कर दिया था।बाद में सत्ता के एक ताकतवर एमएलसी के माध्यम से भी सीएमओ पर भुगतान के लिए दबाव बनाया गया था,लेकिन बीपी सिंह गलत काम करने को तैयार नहीं हुए।संदेह में पुलिस ने स्वास्थ कल्याण विभाग की कई फाइलें अपने कब्जे में ले ली हैं। पुलिस हत्या का कोई सुराग नहीं लगा पा रही है तो दूसरी तरफ माया सरकार ने यह साफ कर दिया कि मामले की सीबीआई जांच नहीं होगी। स्पेशल डीपीपी बृज लाल एवं गृह सचिव दीपक कुमार ने कहा कि सीबीआई जांच का कोई विचार नहीं हो रहा है।एक ही पद पर तैनात रहे दो सीएमओ की हत्या हो जाती है और सरकार मामले की जांच सीबीआई जैसी विश्वसनीय संस्था से कराने को इंकार करे यह बात शायद ही किसी को हजम हो।

सीएमओ बीपी सिंह हत्याकांड के घटनाक्रम के बारे में लखनऊ के पुलिस उपमहानिरीक्षक डीके ठाकुर का कहना था कि परिवार कल्याण विभाग में बतौर मुख्य चिकित्सा अधिकारी तैनात डाक्टर बीपी सिंह सुबह सैर करने के लिये गोमतीनगर स्थित अपने घर से निकले थे कि रास्ते में विशेष खंड इलाके में मोटरसाइकिल सवार दो बदमाशों ने करीब सवा छह बजे सिंह उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। बदमाश वारदात को अंजाम देने के बाद भाग गए। ठाकुर ने बताया कि मामले की तफ्तीश की जा रही है।उधर स्वास्थ्य संगठनों ने मामले की गहराई से जांच कराने की मांग की है। श्री सिंह करीब छह महीने पहले ऐसी ही वारदात में मारे गए तत्कालीन मुख्य चिकित्साधिकारी डाक्टर विनोद कुमार आर्या के पद पर तैनात किये गए थे। आर्या की गत अक्क्तूबर में विकास नगर स्थित आवास के पास सैर के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।उत्तार प्रदेश सरकार ने लखनऊ में हुई परिवार कल्याण विभाग के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉक्टर बीपी सिंह की हत्या के जिम्मेदार लोगों के बारे में सुराग देने वाले व्यक्ति को दो लाख रुपए का इनाम देने की घोषणा की है। इससे भी साफ हो जाता है कि पुलिस के हत्थे हत्याकांड सुलझाने के लिए कोई अहम सुराग नहीं लगा है।

छह माह में परिवार कल्याण विभाग के दो सीएमओ की हत्याएं ही नहीं हुई,बल्कि बीते दस माह के भीतर दो कर्मचारियों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के अलावा 10 से अधिक का निलंबन भी हुआ। 30 से अधिक तबादले किए गए। यह इतिहास है स्वास्थ्य कल्याण विभाग का। जब सीएमओ का एक पद था तो ऐसा कुछ नहीं होता था।गौरतलब हो मई 2010 के पूर्व तक प्रत्येक जिले में सीएमओ का एक पद होता था। सीएमओ ही परिवार कल्याण्ा और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन(एनआरएचएम)की समस्त योजनाओं का संचालन करता था।मई 2010 के बाद माया सरकार ने सीएमओ परिवार कल्याण विभाग का नया पद गठित करके एनआरएचएम से जुड़ी सभी योजनाएं सीएमओ परिवार कल्याण के अधीन कर दीं।उत्तर प्रदेश में पिछले वित्तीय वर्ष में एनआरएचएम का सालाना बजट तीन हजार करोड़ रूपए का था। नए सीएमओ का पद बनते ही पूरे प्रदेश में परिवार कल्याण और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के बीच 36 का आंकड़ा हो गया।माया सरकार का यह फैसला किसी को रास नहीं आ रहा था।वहीं मलाईदार इस पद पर बैठने मे कई जूनियर डाक्टर भी सफल हो गए।करीब पांच माह पूर्व केन्द्र सरकार ने भी दो सीएमओ का पद गठित करने पर राज्य को कड़ा पत्र भेजा था।वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी यह मामला पहुंच गया था। कोर्ट ने भी दो पदों के गठन और सीनियर की उपेक्षा कर जूनियर डाक्टरों को सीएमओ के पद पर बैठाने के मामले पर सवाल उठाया था।

विनोद आर्य और बीपी सिंह की हत्या भले ही छह माह के भीतर हुई हो लेकिन स्वास्थ्य और कल्याण विभाग में हत्याओं का खेल काफी समय से चल रहा है। इससे पहले 23 जुलाई 2000 को तत्कालीन चिकित्सा महानिदेशक डा. बच्ची लाल की सुबह टहलने के लिएघर से निकलते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने इस मामले में धनंजय गुट को दोषी ठहराते हुए सुपारी लेकर हत्या का आरोप लगाया था,लेकिन सुपारी किसने दी वह यह नहीं साबित कर पाई थी।डा. बच्ची लाल की हत्या के बाद परिवार कल्याण विभाग में प्रशिक्षण निदेशक के पद पर तैनात डा. राधे श्याम को घर में घुसकर बदमाशों ने गोली मार दी थी।बदमाश मरीज बनकर आए थे।पुलिस ने जिन लोगों को आरोपी बनाया वह बाद में मुठभेड़ में मार दिए गए थे।पुलिस ने विभाग के ही एक अधिकारी को हत्या की साजिश रचने के आरोप मेें गिरफ्तार किया था,परंतु इस प्रकरण में भी पुलिस यह नहीं पता लगा सकी कि डा. शर्मा की हत्या क्यों करवाई गयी थी। छह माह पूर्व विकास नगर में 26 अक्टूबर 2010 को सीएमओ परिवार कल्याण डात्र विनोद आर्य की भी सुबह टहलते समय हत्या की गई थी।पुलिस ने काफी समय बाद दावा किया कि जेल में बंद माफिया अभय सिंह ने पांच लाख की सुपारी शूटर सुधाकर पांडेय से आर्य की हत्या कराई थी।पुलिस ने इस बार हत्या के जो कारण बताए वह किसी के गले नहीं उतरे। डाक्टर बीपी सिंह की हत्या के बाद उनके घर जुटे परिवार कल्याण विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों ने कहा कि छह माह पूर्व डा विनोद आर्य हत्याकांड का खुलासा पुलिस ने फर्जी तरीके से न किया होता तो आज यह दिन नहीं देखने को मिलता। अभय सिंह का क्या ? उस पर तो कई मुकदमें चल रहे थे एक और सही।नतीजा डाक्टर बीपी की मौत के रूप में सामने आया।पुलिस ने जिस तरह से डा. आर्य की हत्याकांड का पर्दाफाश का दावा किया था उससे पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्नचिंह लगे थे।

स्वास्थ्य कल्याण विभाग के सीएमओ की हत्या पर विभिन्न राजनैतिक दलों ने भी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है।भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उत्तर प्रदेश में अधिकारियों की हत्या को सरकार तथा लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हुए कहा कि इससे शासकीय तथा विकास कार्य प्रभावित होगा।प्रदेश में जंगलराज कायम हो गया है।समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी हत्या की नींदा करते हुए घटना की सीबीआई से जांच कराने की मांग की। अखिलेश ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार का अपराधियों को संरक्षण देने का ही परिणाम है प्रदेश में अपराधों की बाढ़ आ गई है।सरकारी स्तर पर वसूली का जो धंधा चल रहा है उससे अफसरों का काम करना कठिन हो गया है।

 

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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