राम कथा युग युग अटल

-डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

राम कथा युग युग से अटल चली आ रही है, इसमें कोई संदेह नहीं है। और यह राम कथा केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे ऐशिया में शताब्दियों से लोगों के आदर्श का केन्द्र है। पिछले 5 से 6 दशकों से इस कथा ने युरोप, अमेरिका और आस्ट्र्लिया तक के लोगों को नई दिशा दी है। लंदन और न्यूयार्क की गलियों में सिर मुंडा कर तन्मय भाव से हरे राम हरे राम का कीर्तन करते हुए गोरों को देखा जा सकता है। जब राम कथा युगों से युगों से अटल है तो जाहिर है राम का जन्म स्थल भी युगों युगों से अटल ही होगा। ऐसा तो हो नहीं सकता कि एक युग में राम का जन्म स्थान एक स्थान घोषित किया जा और दूसरे युग में उनका जन्म स्थान किसी दूसरे स्थान को बता दिया जाये। अयोध्या राम का जन्म स्थान है – यह भारत वर्ष का काई बच्चा भी बता सकता है। अयोध्या के केन्द्र में राम ने एक इतिहास की रचना की है। लेकिन इसे काल का फेर ही कहना चाहिए कि उसी अयोध्या को लेकर 21 वीं शताब्दी में भारत में एक नये विवाद की रचना हो गई है। भारत के सब लोग मानते हैं कि राम का जन्म स्थल अयोध्या ही है लेकिन इसके बावजूद इसे विवादस्पद कहा जा रहा है। सरकार का मानना है कि राम का जन्म स्थान विवाद का विषय है। इसका एक बहुत बड़ा विरोधाभास भी है सरकार के लोग जब घर में होते हैं तो राम का जन्म स्थल अयोध्या को ही स्वीकार करते है। लेकिन जब दफतर में जाते हैं तो वहॉ जाते ही इस स्थान को विवाद्स्पद बताना शुरू कर देते है। हद तो तब हो गई थी जब रामसेतु के मामले में राम को ही फर्जी करार दे दिया था। और यह घोषणा बकायद शप‍थ पत्र द्वारा घोषित की गई। तर्क बहुत स्पष्‍ट था जब राम ही फर्जी हैं तो उनका जन्त कैसा। जब जन्म ही नहीं हुआ तो उनका अयोध्या से नाता क्या।

सरकारी आदमी के व्यवहार में राम और अयोध्या को लेकर ऐसा द्वैत भाव क्यूं है। घर में राम असली और दफ्तर में घुसते ही राम फर्जी। घर अयोध्या जन्म भूमि ओर दफ्तर में घुसते ही जन्म स्थान विवादस्पद। शायद इसका एक कारण यह हो कि प्रशासन का यह वर्तमान तंत्र और दफतर भारतीयों को ब्रिटिश विरास्त से प्राप्त हुआ है। इसलिए ये लोग घर में भारतीय विरासत की रक्षा करते हैं। राम और उनकी जन्म भूमि अयोध्या के प्रति आस्था रखते हैं और दफतर में घुसते ही ब्रिटिश विरासत की रक्षा करने में तत्पर होकर राम को फर्जी व जन्म स्थान का विवादस्प बताने लगते है। यह ब्रिटिश तंत्र का पैदा किया हुआ द्वैत भाव है जिसे यहॉ का सरकारी आदमी आज भी ढो रहा है और इसी के कारण न्यायलय इस बात का फैसला करेगा कि अयोध्या राम का जन्म स्थान है भी या नहीं।

इसके साथ एक मुद्दा और भी जुड़ा हुआ है। उसका फैसला भी न्यायलय ही करेगा वह मुद्दा है कि राम जन्म भूमि पर मालिकाना हक हिन्दुओं का है या सुन्नी वक्फ बोर्ड का दुनियॉ जानती है कि राम त्रेता में पैदा हुए थे। हिन्दुस्थान में सुन्नी का आगमन महज सात आठसौ साल पुराना है और जहॉ तक वक्फ बोर्ड का सम्बन्ध है वह कल की घटना है। लेकिन इसके बावजूद मालिकाना हक के लिए बक्फ बोर्ड का दावा अपनी जगह कायम है। तीसरा मुद्दा और भी मजेदार है कि राम जन्म भूमि पर तथा कथित बाबरी ढांचे का निर्माण मन्दिर को गिरा कर किया गया थ अथवा नही। पुरात्तव विभाग के पास ऐसे हजारों मन्दिरों की सुचियॉ विद्यामान जिन्हें मालिकाना हक के लिए दावा ठोक रहे सुन्नियों ने गिरा दिया था और उन पर मस्जिदों का निर्माण किया था। अभी भी ऐसे अनेक मन्दिरों के भगना विशेष हिन्दुस्थान की हर दिशा में देखे जा सकते हैं। मन्दिर तोड़ने का यह अभियान अभी भी बन्द नहीं हुआ है। बामियान में बुद्ध की मुर्तियों तोड़े जाने की घटना इसका जीता जागता उदाहरण है। हर राज्य के अजयबघर में ऐसी अनेक खंडित मूर्तियां भरी पड़ी हैं जिन्हें इन्हीं सुन्नियों के कोप का शिकार होना पड़ा है। अयोध्या का राम मन्दिर भी क्या तोड़ा गया था -इसके लिए भी न्यायलय के निर्णय की प्रतीक्षा है।

कुछ प्रश्‍न ऐसे होते है जिनका निर्णय जनमानस में शताब्दियों से हो चुका होता है। राम और उनकी जन्म भूमि अयोध्या ऐसे ही प्रष्न है लेकिन हर युग की सरकार का एक तंत्र होता है सरकारी काम उसी तंत्र के अनुसार चलता है। बाबर की सरकार का अपना तंत्र था। उस तंत्र में मन्दिर गिरा कर उसकी जगह मस्जिद बनाना प्रमुख सरकारी कार्य था। आज की सरकार का अपना तंत्र है। इस तंत्र में राम और राम जन्म भूमि को प्रष्नित करना ही प्रमुख सरकारी कार्य है। पुरी सरकार इसी काम में जुटी हुई है सरकार अपना काम कर रही है और लोग अपना काम कर रहे हैं वे भी वर्ष भर में लाखों की संख्या में अयोध्या जा कर सरयू में स्नान करके राम का पुजन कर रहे हैं। सरकार को यह पूजन दिखाई नहीं देता। लोगों की राह अलग और सरकार की राह अलग है।

लेकिन न्यायलय तो अपना निर्णय देगा ही। 24 सितम्बर को यह निर्णय आने वाला है। युग की अपनी अपनी रीत है राम के वंषज इस युग की रीत को भी देखेंगे ही। आस्थांए और भावनाऐ तर्कों पर अधारित नहीं होती लेकिन राम जन्म भूमि के मामले में तो इन आस्थाओं और भावनाओं के पक्ष में भी हजारों हजारों तर्क खड़े हैं बाबरी ढंाचा टुटने पर और नीचे जमीन की खुदाई पर मिली टुटी फुटी देव मुर्तियॉं अपनी व्यथा कथा स्वयं कह रहीं हैं। बाबर के सेना पति द्वारा गिराये राम मन्दिर के पुनर्निर्माण के लिए न जाने कितनी लड़ाईयां इस देष के लोगों ने लड़ी हैं। न जाने कितने नौजवानों ने अपना रक्त पानी की तहर बहाया है। न जाने भारतीयों की कितनी पढ़ीयों ने मरते मरते अपने बच्चों को राम मन्दिर के पूर्ननिर्माण का संकल्प घुट्टी में पिलाया है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जिस प्रकार महमूद गजनवी के सोमनाथ मन्दिर विधंवस के कंलक को समाप्त करने के लिए भारतीय संसद ने प्रस्ताव पारित किया था। सोमनाथ मन्दिर अपनी पुरी भवीयता के साथ पुनः दिखाई दे रहा है, उसी प्रकार अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण के लिए संसद पहल करे और बाबर के इस कंलक को समाप्त करके इतिहास के एक नये पन्ने की रचना करे। ऐसा होता है या नहीं होता यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इतिहास के नये पन्ने की रचना तो हो रही है। पूरा देश भव्‍य राम मन्दिर के निर्माण के लिए अंगड़ाई ले रहा है। आखिर निर्णय तो हो गा ही। एक निर्णय गुरू जी ने किया था जब उन्होंने घोषणा की कि राम कथा युग युग अटल दूसरा निर्णय भारत के लोग करें गे कि राम जन्म भूमि भी युग युग अटल।

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