एक भगवा लेख

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-राजीव दुबे

हाल ही में देश के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा देश के शीर्ष पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक में ‘भगवा आतंक – saffron terror‘ जैसे शब्दों का प्रयोग काफी विवाद एवं निंदा का विषय रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में कई और वक्तव्य एवं घटनाएँ भी घटी हैं। इस संदर्भ में कुछ विषयों पर विचार नए आयाम खोल सकता है।

निश्चय ही इस शब्द-युग्म का प्रयोग आतंकवादियों के रंग से संबद्ध तो नहीं ही था, यह तो उससे कहीं ज्यादा सोची समझी विचारधारागत बात थी। गृह मंत्री आतंकवादियों के किसी कूट संकेतात्मक षड्यंत्र की भी बात नहीं कर रहे थे। वह तो किसी एक ऐसी धारणा की ओर इशारा कर रहे थे जो कि उनके एवं उनकी विचारधारा से सहमत लोगों के आपसी संवाद का एक हिस्सा थी। यह लोग आपस में मिल बैठकर इस धारणा के आधार पर देश में कानून एवं व्यवस्था का एक नया खाका तैयार कर रहे थे। इस खाके के कुछ उदाहरण सामने भी आने लगे हैं !

गृहमंत्री के उस वक्तव्य के बाद वैचरिक विमर्श की स्थिति कुछ ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलती दिख रही है।

देश का गृहमंत्री – वह भी भारत का – काफी शक्तिसंपन्न व्यक्ति होता है। फिर उस मंत्रणा कक्ष में बैठे पुलिस अधिकारी भी सत्ता की असीम शक्तियों से सुसज्जित होते हैं। देशवासी उनके सामने विनम्रता से अपने को नाचीज कह सकते हैं ! बस !

ऐसा हो सकता है कि अब बढ़ते हुये ‘रंग पर आधारित’ शंका-पूर्ण परिवेश में कई लोग यात्रा के समय अपना सामान सावधानी पूर्वक चुनेंगे। उनके सूटकेस और ब्रीफकेस कहीं सुरक्षा बलों द्वारा तलाशे गए और कहीं उनमें एक भगवा कपड़ों की जोड़ी निकल आई तो अपने कर्तव्य पालन पर उतारू पुलिस अधिकारी ऐसी भगवा कपड़ों की जोड़ी को गृह मंत्री के दिशानिर्देशों के आधार पर न जाने क्या-क्या समझ बैठे !

और तो और, यदि कोई धार्मिक पुस्तक बैग में मिल गई तो? बहुसंख्यक समाज की अधिकतर पुस्तकों पर एक भगवा रंग के कपड़े की जिल्द होती है। ऐसी विचित्र परिस्थिति में सर्वाधिकार सम्पन्न पुलिस अधिकारी क्या कर सकता है इस विषय में विचार मात्र ही कई लोगों को अपनी यात्रा रद्द करने के लिए मजबूर कर देगा …!

एक और समस्या है … धार्मिक उपदेशों से संबद्ध। बहुसंख्यक समाज के अधिकतर संत लोग प्रवचन देने भगवा कपड़ों में आते हैं। क्या जनसाधारण को अब धार्मिक उपदेश सुनने जाना चाहिए या फिर कि इंतजार करना चाहिए कि संत लोग एक नए रंग के कपड़ों को पहनें और तभी लोग उपदेश सुनने जाएँ। ऐसा भी हो सकता है कि कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारीगण गृहमंत्री पी चिदम्बरम के ‘भगवा आतंकवाद’ से संबद्ध वक्तव्य के बाद हर भगवा वस्त्र धारी साधु – संत की जाँच पड़ताल शुरू कर दें और जो भी लोग इन संतों की धार्मिक सभाओं में जाते हों उन्हें भी पुलिस स्टेशन बुलाया जाए और उनसे विस्तृत पूछ-ताछ की जाये। उन्हें घंटों पुलिस स्टेशन में बैठना पड़े और हो सकता है हर हफ्ते पुलिस स्टेशन में अपनी गतिविधियों का ब्योरा देने जाना पड़े।

यह भगवा रंग कहाँ कहाँ उपयोग में आता है? केसरिया के नाम से यह हमारे राष्ट्रध्वज में भी है। अब क्या करें? हमें अपने राष्ट्र ध्वज से अतुलनीय प्रेम है और हमारा स्वभिमान हमारे राष्ट्रध्वज से जुड़ा है।

होली के त्योहार पर क्या होगा? मन लो किसी ने एक बाल्टी भर भगवा रंग लिया और किसी पर डाल दिया और लगा गुन गुनाने मौज भरे गीत कि तभी एक कर्तव्यपरायण पुलिस अधिकारी उधर आ पहुँचा … ऐसे रंग रँगीले त्योहार के समय भी लोगों को अब सतर्क रहना होगा… !

और तो और – जितना सोंचें समस्या उतनी ही बढ़ती जा रही है। हमारे नन्हें मुन्नों की चित्रा कला की कक्षा में अगर भगवा रंग को पसंद करने वाला अध्यापक आ गया तो …अब हमें अपने बच्चों की चित्रकला के विषय में भी सतर्क रहना होगा, कहीं वहाँ भी यह भगवा समस्या उत्पन्न हो गई…? लेकिन बच्चों को तो पुलिस स्टेशन नहीं जाना पड़ेगा शायद। उनके लिए तो सुधार गृह हैं। लेकिन क्या पता बच्चों के अपराध के लिए उत्साही पुलिस अधिकारी माता पिता को दोषी मानने लगे, तब क्या होगा?

गृह मंत्री महोदय, यह तो एक बड़ी भारी समस्या बनती दिख रही है ! आपने तो बड़ी सारगर्भित बात कह दी। क्या आपने इस विषय पर अपनी काँग्रेस पार्टी में माननीय देवियों एवं सज्जनों से चर्चा की है? सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के इस विषय पर क्या विचार हैं? वैसे हम साधारण भगवा-सम्बद्ध लोगों की इतनी पहुँच कहाँ कि हमें इतने महत्वपूर्ण लोगों के विचार पता चलें ! क्या पता आपने जो कहा वह एक नई उभरती हुई विचारधारा हो आपकी पार्टी में। पता नहीं क्या बात चल रही है वहाँ पर!

यदि गृह मंत्री के वक्तव्य के अनुसार इस देश में कानून एवं व्यवस्था का क्रियान्वयन होने लगा तो देश में बहसंख्यक समाज के लिए यह बात एक नई परिवर्तनकारी क्रांति की तरह होगी। लेकिन क्या हमारे पास कुछ ‘चुनाव’ करने जैसी बात बची है? क्या हम आपके सामने एक तुच्छ जीव मात्र हैं? क्या हम कुछ नहीं कर सकते सिवाय घुटने टेकने के? जब आप बोलें तो क्या हमें डर कर कहीं छुप जाना चाहिए? क्या आपके कहने मात्र से हमें अपनी संस्कृति एवं विचारधारा बदल देनी चाहिए? लेकिन आपके दल की सरकार बने इसका चुनाव तो हमारा भी था … हम शायद इतने शक्तिहीन नहीं हैं … क्या लगता है?

हम अपने देश के प्रति समर्पित हैं, और, आपकी नजरों में आपके सारगर्भित वक्तव्यों के कारण उभरी हमारी संदिग्ध भगवा-पृष्ठभूमि के बाद भी हम लगे रहेंगे – हमें इस भगवा रंग से असीम प्रेम है और यह प्रेम हमें इस देश पर जीने मरने के लिए जन्म-जन्मांतर तक प्रेरित करता है !

शायद यह बात दोहराने योग्य है … आपके दल की सरकार बने इसका चुनाव हमारा भी था … हम इतने शक्तिहीन नहीं हैं !

6 COMMENTS

  1. बहुत अच्छा आलेख .शब्द चयन और अभिव्य्न्जनायें सटीक हैं .किसी को केशरिया ,किसी को भगवा किसी को हरा किसी को लाल रंग प्रिय होना स्वाभाविक है और इसी तरह इनकी नापसंदगी भी स्वाभाविक है ..यह नैसर्गिक और राजनेतिक परिप्रेक्ष्य दोनों में चरितार्थ होना भी लाजिमी है.श्रेष्ठतम स्थिति वह है जब सारे रंगों को प्रकृति का सृजन मानकर उन्हें इन्द्र धनुष के रूप में देखा जाये .बशर्ते विजिन का मूल उदात्त हो .

  2. raajeev dube jee aap ne sahee sanket diyaa hai. spasht hai ki desh ki sarwoch sattaa par baithe log bhgawaa shatrutaa paale hue hain aur usakee durdashaa ke manasube banaa rahe hain. paathkon ko yaad hogaa ki keral mein kamunist aur kangres ke sahyog se un hinduon par atyaachaar hote rahe hain jo apane waahanon, makaanon par hindu prateek lagaate hain. yane isaaii aur saamyawaadee aatank jhelane kee teyaaree hindu samaaj ko kar lenee chaahiye, jaske spasht sanket anekon baar chidambaram, rahul, aadi de chuke hain.

  3. एक शिशुने वास्तवमें अपने पितासे प्रश्न पूछा, कि बापु (गुजराती में पिता के अर्थ में) क्या अर्जुन और कृष्ण शाखामें जाते थे? तो फिर रथपर भगवा झंडा क्यों लगाते हैं?
    राजीव जी सही अवसर पर, और सही ढंगसे, आप लेखनी चला रहे हैं।लिखते रहिए। आनंद, आनंद। ऐसे लेखन के लिए; मराठी में एक शब्द प्रयोग है, अर्थ है==> शाल के आवरण में (छुपाया हुआ) जूता। {शाल ज़ोडीतला ज़ोड़ा}
    अर्जुन के रथपर भी भगवा ध्वज देखा था। कहीं अर्जुन और कृष्ण आर एस एस की शाखामें न जाते हो? फिर शिवाजी, राणा प्रताप। सोचिए यह सारे के सारे शाखामें जाकर दक्ष, आरम करते हुए। एक ही तति में, अग्रेसर कृष्ण, शिवाजी, राणा प्रताप(यह चेतक से नीचे उतरे भी कभी दिखे नहीं) लेकिन शाखाका अनुशासन मानते हैं। फिर अर्जुन, चंद्रगुप्त, …… भाई यह तो बडी लंबी लाईन लग जाएगी।राम भी शाखामें गया हो सकता है, अपने ३ भाईयों के साथ। अंतमें बजरंगबली। तभी तो भगवा वाले उनके आराध्य श्री राम का मंदिर बनाने का आंदोलन कर रहे हैं।बढिया। लगे रहो।

  4. श्री दुबे जी बिलकुल सही कह रहे है. वाकई देश के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा कहा गया “भगवा आतंक” शर्मनाक है. वोह पूरी भारतीय संस्कृति को बदनाम कर रहे है.

  5. प्राचीन काल से भारत के हिन्दू अपने जीवन में चार आश्रमों का पालन करते हुए अंतिम प्रहार में सन्यास आश्रम में प्रवेश करते है तो भगवा परिधान में. अब हमारे चिदम्बरम जी की माता श्री सन्यास आश्रम में कैसे प्रवेश कर पायेंगीं ‘भगवा आतंकी का बेटा ………………..

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