‘अ’सत्यमेव जयते!

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हिमांशु शेखर

लोकप्रिय फिल्म अभिनेता आमिर खान ‘सत्यमेव जयते’ के जब छोटे पर्दे पर आए तो यहां भी वे बेहद सफल रहे और उनके कार्यक्रम को हर तरफ जमकर सराहा गया. सामाजिक मसलों को उठाने वाले उनके इस कार्यक्रम की पहली कड़ी में कन्या भ्रूण हत्या के मामले को उठाया गया और बड़ी मजबूती से इस सामाजिक बुराई के खिलाफ एक संदेश देने की कोशिश की गई. लेकिन जाने-अनजाने में आमिर खान और ‘सत्यमेव जयते’ के इस अभियान में एक ऐसी कंपनी जुड़ गई जिस पर कुछ साल पहले कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने का आरोप लगा था और अब भी यह मामला अदालत में चल रहा है.

13 कड़ियों के प्रसारण के बाद बंद हुए सत्यमेव जयते का फिलांथ्रोपी पार्टनर रिलायंस फाउंडेशन था. इस फाउंडेशन की कर्ता-धर्ता रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रमुख मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी हैं. पहले चरण में सत्यमेव जयते के कुल 13 कडि़यों का प्रसारण होना था. जिस कड़ी में जिस विषय को उठाया जाना था उसी विषय पर काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) को कार्यक्रम से जोड़ा गया था. लोगों और एसएमएस के जरिए दान के लिए जो रकम हर कड़ी में जुटती थी उतना ही पैसा रिलायंस फाउंडेशन की तरफ से दिया जा रहा था. सत्यमेव जयते की जिस पहली कड़ी में कन्या भ्रूण हत्या का मामला उठाया गया उसमें 31.62 लाख रुपये जुटाए गए और इतना ही पैसा रिलायंस फाउंडेशन ने दिया.

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कई क्षेत्रों में कारोबारी सफलता के कई नए रिकॉर्ड स्‍थापित करने के बाद 2002 में दूरसंचार के क्षेत्र में कदम रखा. इस क्षेत्र में काम करने के लिए रिलायंस ने एक नई कंपनी रिलायंस इन्फोकॉम का गठन किया. इस कंपनी को 31 जुलाई, 2002 को रजिस्टर्ड कराया गया. कंपनी गठन के कागजों की पड़ताल के बाद पता चला कि इस कंपनी की शुरुआत दो लोगों ने साझेदारी में की थी. इनमें एक हैं मुकेश अंबानी और दूसरे हैं मनोज एच मोदी. मनोज मोदी अभी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के निदेशक मंडल में हैं. 1500 करोड़ रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ शुरू हुई इस कंपनी के गठन के दस्तावेज बताते हैं कि मुकेश अंबानी और मनोज मोदी रिलायंस इन्फोकॉम में बराबर के हिस्सेदार थे. बाद में जब अंबानी परिवार में दोनों भाइयों मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच 2005 में जब विवाद पैदा हुआ तो बंटवारे के बाद रिलायंस इन्फोकॉम का स्वामित्व छोटे भाई यानी अनिल अंबानी के पास आ गया. कंपनी के दस्तावेजों में 26 जून, 2005 को बदलाव किया गया और इसमें से मुकेश अंबानी का नाम बाहर निकाला गया और प्रमोटर के तौर पर अनिल अंबानी का नाम डाला गया. कंपनी के नए निजाम ने इसका नाम बदलकर रिलायंस कम्युनिकेशंस कर दिया.

लेकिन इसके पहले ही ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ की टैगलाइन के साथ रिलायंस इन्फोकॉम ने रिलायंस इंडिया मोबाइल के नाम से मोबाइल सेवा की शुरुआत की. इस मोबाइल सेवा के तहत ही आर वर्ल्ड के नाम से मूल्य वर्धित सेवाओं का एक सेक्‍शन शुरू किया. इसमें भी वूमंस वर्ल्ड सेक्‍शन के तहत मुहैया की जा रही सेवाओं में एक सेवा ‘प्लान अ बेबी’ भी थी. इसके तहत ग्राहकों को बताया जा रहा था कि कैसे आप अपने होने वाले बच्चे का लिंग निर्धारण कर सकते हैं. इसमें यह साफ तौर पर बताया जा रहा था कि किस समय सेक्स करने से और किस तरह की डाइट लेने से लड़का या लड़की होगी. इसके अलावा इसके तहत कुछ सवालों का जवाब देकर गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग निर्धारण की सुविधा भी दी जा रही थी. इसके लिए एक खास तरह के चीनी कैलेंडर का इस्तेमाल कंपनी कर रही थी. इस चीनी कैलेंडर में गर्भ धारण का वक्त और गर्भ धारण करने वाले की उम्र डालने के बाद गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग बताया जाता था.

कुछ समय तक रिलायंस यह सेवा अपने ग्राहकों को मुहैया कराती रही और जमकर पैसे बनाती रही. लेकिन इसी बीच रिलायंस की इस सेवा पर उच्चतम न्यायालय में वकालत करने वाले रवि शंकर कुमार की नजर पड़ी और उन्होंने संबद्ध एजेंसियों के पास रिलायंस की इस सेवा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. वे बताते हैं, ‘रिलायंस की यह सेवा प्री-कांसेप्शन ऐंड प्री-नटल डायगनॉस्टिक टेक्नीक्स (पीएनडीटी) एक्ट, 1994 के प्रावधानों के खिलाफ थी. साथ ही रिलायंस की यह सेवा सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 और भारतीय टेलीग्राफ कानून, 1885 के प्रावधानो के खिलाफ भी थी.’ उन्होंने 2004 के अक्टूबर महीने में दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग और केंद्र सरकार के परिवार कल्याण विभाग के पास रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ शिकायत भेजी और इस मामले में उचित कार्रवाई की मांग की. रिलायंस इन्फोकॉम कंपनी के तौर पर मुंबई में रजिस्टर्ड थी इसलिए केंद्रीय परिवार कल्याण विभाग ने महाराष्ट परिवार कल्याण विभाग को इस मामले की जांच का निर्देश दिया.

इसके बाद यह मामला नवी मुंबई महानगरपालिका के संबंधित अधिकारी को सौंपा गया और शिकायत की जांच के बाद नवी मुंबई महानगरपालिका ने 4 नवंबर, 2004 को रिलायंस इन्फोकॉम को नोटिस जारी किया. इस नोटिस में यह माना गया है कि रिलायंस इन्फोकॉम ने ‘प्लान ए बेबी’ सेक्शन के तहत जो सेवाएं मुहैया कराई हैं, वे पीएनडीटी एक्ट की धारा 22;2द्ध का उल्लंघन हैं. नोटिस का जवाब देने के लिए कंपनी को 15 दिनों की मोहलत दी गई. इसके बाद नवी मुंबई महानगरपालिका ने 8 नवंबर, 2004 को रिलायंस इन्फोकाॅम को एक और नोटिस भेजा. इसमें कंपनी को बताया गया कि अब भी देश के कुछ हिस्सों में आपकी वेबसाइट पर ‘प्लान अ बेबी’ सेक्शन दिख रहा है. नोटिस में कंपनी से कहा गया कि आप यह सुनिश्चित करें कि यह सामग्री अब आपकी वेबसाइट पर नहीं दिखे.

दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग के पास जो शिकायत भेजी गई थी उसका नतीजा यह हुआ कि दिल्ली सरकार ने रिलायंस इन्फोकॉम के खिलाफ अदालत में मुकदमा दर्ज करा दिया. इस मामले की सुनवाई के लिए पहली तारीख 23 दिसंबर, 2004 मुकर्रर की गई. इसके बाद अदालत के निर्देश पर स्पेशल सेल ने 30 जनवरी, 2005 को रिलायंस के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया. जिस वक्त एफआईआर दर्ज हुआ उस वक्त न तो रिलायंस इन्फोकॉम के कर्ता-धर्ता मुकेश अंबानी और न ही कंपनी के किसी और अधिकारी को अभियुक्त बनाया गया. कंपनी के खिलाफ पीएनडीटी एक्ट की धारा-22 के उल्लंघन के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया. दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग ने मुकदमा दर्ज कराते हुए यह कहा कि यह मामला न सिर्फ पीएनडीटी एक्ट और आईटी एक्ट के उल्लंघन का है बल्कि इससे कन्या भ्रूण हत्या को भी बढ़ावा मिलता है और रिलायंस के इस कदम से समाज में कन्याओं की स्थिति पर आघात हुआ है. विभाग ने अदालत से यह मांग की कि कंपनी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए.

इसके बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मामले की जांच शुरू की. 8 अप्रैल, 2005 को जब रिलायंस इन्फोकॉम के प्रेसीडेंट महेश प्रसाद से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने यह बताया कि उनके कार्यकाल में ही ‘प्लान अ बेबी’ सेवा की शुरुआत हुई थी. उन्होंने यह भी बताया कि इस सेवा की सामग्री कंपनी के कंज्यूमर एप्लीकेशंस के प्रमुख सुनील जैन की देखरेख में कंपनी की प्रोडक्ट मैनेजर मनीषा राठौर ने तैयार करना शुरू किया था. बकौल महेश प्रसाद कुछ समय बाद इन दोनों ने कंपनी की नौकरी छोड़ दी और इनकी जगह क्रमशः कृष्ण मोहन दुरबा और किंजल पोपट ने ली और इस सेवा से संबंधित बची हुई सामग्री इन दोनों ने मिलकर तैयार की.

रवि शंकर कुमार ने रिलायंस इंडिया मोबाइल पर गर्भ निर्धारण के लिए उपलब्ध कराई जा रही सेवा के जो वीडियो बनाए थे उसे पुलिस ने उनके कंप्यूटर से जाकर निकाला और उन्हें कंप्यूटर को सुरक्षित रखने के लिए 5 मई, 2005 को एक नोटिस भी दिया. इसके बाद स्पेशल सेल ने वीडियो को हैदराबाद के जीईक्यूडी लैब में जांच के भेजा और लैब ने जांच करने के बाद वीडियो को सही पाया और रिपोर्ट दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल को भेजी. इस दरम्यान स्पेशल सेल मामले की जांच करती रही और इस मामले से जुड़े विभिन्न पक्षों से सवाल-जवाब करती रही. शुरुआत में इस मामले की जांच खुद स्पेशल सेल के एसीपी एन सेरिंग ने की लेकिन बाद में उन्होंने यह मामला जांच के लिए सब इंस्पेक्टर जेएस मेहता को सौंप दिया. इसके बाद 5 सितंबर, 2005 को मेहता ने रिलायंस इन्फोकॉम का वह सर्वर जब्त कर लिया जिसके जरिए ‘प्लान अ बेबी’ सेवा मुहैया कराई जा रही थी. इसके अलावा उन्होंने इस सेवा से संबंधित अन्य कई दस्तावेज और हार्ड डिस्क जब्त किए.

जेएस मेहता का स्थानांतरण होने के बाद इस मामले की जांच का जिम्मा सब इंस्पेक्टर एएस रावत को 4 जुलाई, 2006 को सौंपा गया. और फिर यह मामला 13 जनवरी, 2007 को सब इंस्पेक्टर धर्मेंद्र कुमार के पास पहुंच गया. धर्मेंद्र कुमार ने कृष्ण मोहन दुरबा और किंजल पोपट से पूछताछ की और दोनों ने माना कि यह सेवा उनके कार्यकाल में शुरू हुई. हालांकि, इसे उनके कंपनी मे आने के पहले से विकसित किया जा रहा था. रिलायंस की इस सेवा के लिए साॅफ्टवेयर तैयार करने का काम बेंगलुरु की कंपनी वेरिटी टेक्नोलॉजिज प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी ने किया था. धर्मेंद्र कुमार ने वेरिटी के निदेशक ऋषित झुनझुनवाला और यह सॉफ्टवेयर बनाने वाले इंजीनियर रवि चंद्रा एन से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में दोनों ने माना कि उन्होंने यह साॅफ्टवेयर रिलायंस की मनीषा राठौर के कहने पर विकसित किया था. धर्मेंद्र कुमार ने वेरिटी से वे सारे दस्तावेज और ईमेल जब्त किए जो रिलायंस से इस कंपनी को भेजे गए थे और ‘प्लान अ बेबी’ सेवा से संबंधित थे.

पर स्पेशल सेल ने 4 दिसंबर, 2007 को जो आरोप पत्र तीस हजारी कोर्ट में दाखिल किया उससे साफ हो गया कि पुलिस इस मामले की असली गुनहगारों को पकड़ने के बजाए प्यादों पर ही निशाना साध रही है. इस आरोप पत्र की एक प्रति हमारे पास है. इसमें न तो रिलायंस इन्फोकॉम के उस वक्त के मुख्य प्रबंध निदेशक मुकेश अंबानी को आरोपितों की सूची में शामिल किया गया है और न ही कंपनी को. बल्कि कंपनी के पांच अधिकारियों और सॉफ्टवेयर मुहैया कराने वाली कंपनी के दो अधिकारियों को ही आरोपित बनाया गया है. इस बारे में रवि शंकर कुमार कहते हैं, ‘आरोप पत्र से साफ है कि पुलिस कंपनी और कंपनी के मालिक को बचाना चाहती है. यह सच है कि जिन अधिकारियों को आरोपितों की सूची में डाला गया है वे रिलायंस के इस अपराध के गुनहगार हैं. लेकिन कंपनी कानून में यह स्पष्ट प्रावधान है कि ऐसे अपराध में सिर्फ अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर न तो कंपनी का मालिक पल्ला झाड़ सकता है और न ही कंपनी.’ जिन सात अधिकारियों के नाम आरोप पत्र में हैं उनमें महेश प्रसाद, कृष्ण मोहन दुरबा, सुनील जैन, मनीषा राठौर, किंजल पोपट, ऋषित झुनझुनवाला और रवि चंद्रा एन शामिल हैं. इनके खिलाफ न सिर्फ पीएनडीटी एक्ट के तहत आरोप तय किया गया बल्कि भारतीय दंड संहिता की धारा 420/511 के तहत भी आरोप तय किए गए.

इस आरोप पत्र में पुलिस ने अदालत को यह बताया था कि सुनील जैन और मनीषा राठौर से पूछताछ नहीं हो पाई है क्योंकि दोनों देश से बाहर हैं और वे कहां हैं, इसका पता नहीं चल पा रहा है. दोनो के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया था ताकि अगर वे विदेश से भारत लौटते हैं तो हवाई अड्डे पर ही उन्हें रोका जा सके. इसके बाद 25 जनवरी, 2008 को मनीषा राठौर को विदेश से लौटते वक्त नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्टीय हवाई अड्डे पर रोका गया और उनसे अगले दिन पूछताछ की गई. इस पूछताछ में मनीषा राठौर ने इस बात को स्वीकार किया कि ‘प्लान अ बेबी’ सेवा शुरू करने का प्रस्ताव उन्होंने ही दिया था जिसे कंपनी ने स्वीकार कर लिया और बाद में उन्होंने सुनील जैन की देखरेख में इस सेवा को विकसित करने का काम किया. मनीषा राठौर से पूछताछ के बाद पुलिस ने उनके खिलाफ अलग से एक आरोप पत्र 3 अगस्त, 2009 को अदालत में दाखिल किया. 30 दिसंबर, 2011 को सुनिल जैन को भी विदेश से लौटने पर इंदिरा गांधी अंतरराष्टीय हवाई अड्डे पर रोका गया और उनसे पूछताछ की गई. इस पूछताछ के बाद सुनील जैन पर भी पुलिस ने आरोप तय किए और उनके खिलाफ 26 मार्च, 2012 को तीस हजारी कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया गया.

पिछले तकरीबन साढ़े सात साल से इस मामले में अदालत तारीख पर तारीख दिए जा रही है लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई न तो किसी अधिकारी के खिलाफ हो पाई और न ही कंपनी के खिलाफ. इस मामले की आखिरी सुनवाई बीते 26 जुलाई को हुई थी और अगली सुनवाई के लिए 27 सितंबर, 2012 की तारीख अदालत ने मुकर्रर की है. रवि शंकर कुमार कहते हैं, ‘यह मामला बताता है कि कन्या भ्रूण हत्या को लेकर हमारी व्यवस्था कितनी गंभीर है. एक तरफ तो सरकार इसके खिलाफ कई तरह के अभियान चलाती है लेकिन जब रिलायंस जैसी देश की एक बड़ी कंपनी पैसे कमाने के लिए भू्रण हत्या को बढ़ावा देने वाली सेवा मुहैया कराती है तो उसे बचाने में पूरा तंत्र लग जाता है. कभी पैसा कमाने के लिए कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने वाली कंपनी रिलायंस ने अपने पाप को छुपाने के लिए आमिर खान की छवि का भी इस्तेमाल सत्यमेव जयते की फीलांथ्रोपी पार्टनर बनकर किया.’ रिलायंस और मुकेश अंबानी को बचाने में पूरा तंत्र कैसे लग गया, यह बताते हुए वे कहते हैं, ‘रिलायंस जो सेवा मुहैया करा रही थी, वह आईटी एक्ट की धारा 67 का उल्लंघन है. इसमें पांच साल तक की कैद का प्रावधान है. लेकिन इस मामले में रिलायंस के खिलाफ आईटी एक्ट के तहत मुकदमा नहीं दर्ज किया गया. साथ ही ऐसे मामले की जांच डीएसपी से नीचे के स्तर का अधिकारी नहीं कर सकता लेकिन इस मामले की जांच तो सब इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारियों ने ही की है. इससे पता चलता है कि पूरा तंत्र किस तरह से रिलायंस और मुकेश अंबानी को बचाने में लगा हुआ है. मामले की जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कर रही है और दिल्ली पुलिस के नए आयुक्त नीरज कुमार की छवि एक ईमानदार अधिकारी है तो ऐसे में अगर इस मामले को पुलिस रफा-दफा करने की कोशिश करती है तो नए पुलिस आयुक्त की छवि भी खराब होगी.’

रवि शंकर कुमार कहते हैं, ‘अगर इस मामले में सिर्फ अधिकारियों को सजा होती है और कंपनी व इसके उस वक्त के कर्ताधर्ता मुकेश अंबानी बच जाते हैं तो इससे यह समाज में यह संदेश जाएगा कि यह व्यवस्था ताकतवर लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती चाहे वे कितना भी बड़ा गुनाह क्यों न करें. इसलिए मुकेश अंबानी के खिलाफ कार्रवाई करके भी एक सशक्त संदेश दिया जाना चाहिए कि कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने का काम कोई भी करेगा तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी. यह सीधे तौर पर आपराधिक षडयंत्र का मामला है और पीएनडीटी एक्ट का इससे बड़ा उल्लंघन देश में इसके पहले कभी नहीं हुआ.’

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