अमित अनिलचंद्र शाह एक कुशल नेता

narendra-modi-amit-shahडा. राधेश्याम द्विवेदी
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा:- अमित अनिलचंद्र शाह का जन्म मुम्बई में एक बड़े व्यवसायी अनिलचंद्र शाह के घर 22 अक्तूबर 1964 को हुआ था। वे गुजरात के एक रईस परिवार से ताल्लुक रखते है। उनका गाँव पाटण जिले के चँन्दूर मे है । सोलह वर्ष की आयु तक वह अपने पैत्रक गांव मान्सा, गुजरात में ही रहे और वहीँ स्कूली शिक्षा प्राप्त की। स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात उनका परिवार अहमदाबाद चला गया। बालपन में वह सदैव महान राष्ट्रभक्तों की जीवनियों से प्रेरित हुआ करते थे, उसके फलस्वरूप उन्होंने भी मातृभूमि की सेवा करने और राष्ट्र की प्रगति में योगदान देने का स्वप्न देखा।मेहसाणा में शुरुआती पढ़ाई के बाद बॉयोकेमिस्ट्री की पढ़ाई के लिए वे अहमदाबाद आए, जहां से उन्होने बॉयोकेमिस्ट्री में बीएससी की, उसके बाद अपने पिता का बिजनेस संभालने में जुट गए। राजनीति में आने से पहले वे मनसा में प्लास्टिक के पाइप का पारिवारिक बिजनेस संभालते थे।
व्यक्तिगत जीवन:- शाह का विवाह सोनल शाह से हुई, जिनसे उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिनका नाम जय है। वे अपनी माँ के बेहद करीब थे जिनकी मृत्यु उनकी गिरफ्तारी से एक माह पूर्व 8 जून 2010 को एक बीमारी से हो गयी।
राजनीतिक करियर:-उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिए भाजपामें प्रवेश किया। मार्च में उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया। गुजरात स्टेट चेस एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे तथा गुजरात राज्य क्रिकेट एसासिएशन के उपाध्यक्ष भी रहे। कुछ समय तक उन्होंने स्टॉक ब्रोकर का भी कार्य किया। उसी दौरान वह आरएसएस से जुड़े और उसके साथ ही बीजेपी के सक्रिय सदस्य भी बन गए थे.भाजपा सदस्य बनने के बाद उन्हें अहमदाबाद के नारायणपुर वार्ड में पोल एजेंट का पहला दायित्वा सौंपा गया, तत्पश्चात् वह उसी वार्ड के सचिव बनाए गए। इन कार्यो को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद उन्हें उच्चतर दायित्वों हेतु चुना गया और भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाया गया और तत्पाश्चात् गुजरात भाजपा के राज्य सचिव एवं उपाध्यक्ष का दायित्व दिया गया । अपनी इन भूमिकाओं में उन्होंने युवा राजनीतिक पार्टी के आधार विस्तार हेतु सक्रियता के साथ प्रचार कार्य किया ।
1982 में उनके अपने कॉलेज के दिनों में शाह की मुलाक़ात नरेंद्र मोदी से हुयी। 1983 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इस तरह उनका छात्र जीवन में राजनीतिक रुझान बना। वह विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रीयवादी भावना तथा उनके दृष्टांत से प्रेरित व प्रभावित हुए तथा अहमदाबाद में संघ के एक सक्रिय सदस्य बन गए। जिसने उनका जीवन सदा के लिए परिवर्तित कर दिया एवं उन्हें भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की प्रभावशाली यात्रा की और उन्मुख किया।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल होने के बाद अमित भाई ने संघ की विद्यार्थी शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (ABVP) के लिए चार वर्ष तक कार्य किया। उसी अवधी में भाजपा, संघ की राजनितिक शाखा बन कर उभरी और अमित भाई 1984-85 में पार्टी के सदस्य बने। शाह 1986 में भाजपा में शामिल हुये थे । 1987 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का सदस्य बनाया गया। 1990 के दौरान गुजरात की राजनितिक उथल – पुथल ने स्थापित जनों के भाग्यों को पलट डाला और भाजपा राज्य में कांग्रेस के सामने मुख्य एवं एकमात्र विपक्षी पार्टी बन के उभरी। उस दौरान अमित भाई ने श्री नरेन्द्र मोदी के मार्ग दर्शन में (तत्कालीन गुजरात भाजपा संगठन सचिव) समग्र गुजरात में पार्टी के प्राथमिक सदस्यों के दस्तावेजीकरण के अति महत्व के कठिन कार्य को प्रारंभ कर उसे सफलतापूर्वक परिणाम तक पहुचाया । शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला 1991 में, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। पूर्व गृहमंत्री तथा लाल कृष्ण आडवाणी के सबसे क़रीबी माने जाते थे। पार्टी की शक्ति एवं चुनावी कौशल को संचित करने की दिशा में यह उनका पहला महत्वपूर्ण कदम था । इसके पश्चात् राज्य में भाजपा को जो चुनावी विजयें प्राप्त हुई उन्होंने दर्शाया कि पार्टी को राजनैतिक मजबूती देने में कार्यकर्ताओं का जोश तथा उनकी सहभागिता कितनी महत्पूर्ण होती है। गुजरात में भाजपा की प्रथम विजय अल्पकालीन सिद्ध हुई, 1995 में सत्ता में आने वाली पार्टी की सरकार 1997 में गिर गई। किन्तु उस अल्पावधि में ही अमित भाई ने गुजरात प्रदेश वित्त निगम के अध्यक्ष के रूप में निगम का कायापलट कर दिया और उसे स्टॉक एक्सचेंज में भी सूचीबद्ध करवाने का महत्वपूर्ण काम किया। शाह को दूसरा बड़ा राजनीतिक मौका 1996 में मिला, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया। इस चुनाव में भी उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला।
भाजपा सरकार गिरने के बाद पेशे से स्टॉक ब्रोकर अमित शाह ने 1997 में गुजरात की सरखेज विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की।उपचुनाव में पहली बार अमित भाई का चुनावी रण में पदार्पण हुआ, उन्होंने सरखेज से विधानसभा 25,000 मतों के अंतर से सीट जीतने में सफल रहे| मतदाताओं के विश्वास तथा जनादेश को पुनः प्राप्त करने की उत्कट आवश्यकता का अनुभव करते हुए अमित भाई ने स्वयं को प्रदेश में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए समर्पित कर दिया। साथ ही साथ वह विधायक के तौर पर अपना कर्तव्य भी निभाते रहे और 1998 में उन्होंने वही सीट पुनः 1.30 लाख मतों के अंतर से जीती।
सहकारी आंदोलन में जीत:- अमित भाई के राजनीतिक कॅरियर की एक प्रमुख उपलब्धि है- गुजरात के सहकारी आंदोलन पर कांग्रेस की पकड़ को तोड़ना जो कि उनके लिए चुनावी ताकत और असर का स्त्रोत था। 1998 तक सिर्फ एक सहकारी बैंक को छोड़ कर बाकी सभी सहकारी बैंकों पर कांग्रेस का नियंत्रण था। लेकिन अब यह सब बदलने वाला था, इसका श्रेय अमित भाई की राजनीतिक कुशाग्रता और लोगों को साथ में लाने की क्षमता को जाता है। उनके प्रयासों के फलस्वरूप भाजपा ने सहकारी बैंकों, दूध डेयरियों और कृषि मंडी समितियों के चुनाव जीतने शुरु किए। इन लगातार विजयों ने गुजरात में भाजपा की राजनीतिक शक्ति को स्थापित किया तथा ग्रामीण व अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी के प्रभाव कायम किया। यद्धपि उनकी सफलता केवल चुनावी मामलों तक ही सीमित नहीं थी। उनकी अध्यक्षता में एशिया का सबसे बड़ा सहकारी बैंक – अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक केवल एक वर्ष के भीतर लाभकारी बन गया।1999 में वे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक (एडीसीबी) के प्रेसिडेंट चुने गए। एक दशक में पहली बार बैंक ने लाभांश भी घोषित किया। उनके व्यापक अनुभव और सराहनीय सफलता को देखते हुए अमित भाई को 2001 में भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय संयोजक बना दिया गया। जमीनी स्तर के मुद्दों पर ध्यान देने और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ स्थायी संपर्क की योग्यताओं के बल पर उन्होंने अपनी संगठनात्मक क्षमताओं को प्रखर किया। उनकी ये योग्यताएं तब लोगों के ध्यान में आई जब वह अहमदाबाद नगर के प्रभारी बने, उस समय उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन तथा एकता यात्रा के पक्ष में व्यापक स्तर पर जनसंपर्क किया। तदोपरान्त गुजरात में भाजपा के लिए भारी समर्थन का उभार हुआ। 2003 से 2010 तक उन्होने गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृहमंत्रालय का जिम्मा संभाला। 2012 में नारनुपरा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से उनके विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने तीन बार सरखेज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे गुजरात के सरखेज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार क्रमश: 1997 (उप चुनाव), 1998, 2002 और 2007 से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं।गुजरात के सबसे चर्चित और फर्जी मुठभेड़ के प्रमुख षड्यंत्रकारी अमित शाह गुजरात के मुख्यमंत्री के सबसे चहेते माने जाते हैं। अमित शाह सबसे कम्र उम्र के गुजरात स्टेट फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष बने। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी माने जाते हैं।
विधायक एवं मंत्री पद:- 2003 में जब गुजरात में दुबारा नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी, तब नरेन्द्र मोदी ने उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया और उन्हें गृह मंत्रालय सहित कई तरह की जिम्मेदारियां सौंपीं। अमित शाह बहुत ही जल्द नरेन्द्र मोदी के सबसे क़रीबी बन गए। अमित शाह अहमदाबाद के सरखेज विधानसभा क्षेत्र से लगातार 4 बार से विधायक हैं। 2002 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राज्य की 182 में से 126 सीटें जीतीं, तो अमित शाह ने सबसे अधिक (1.58 लाख) वोटों से जीतने का रिकॉर्ड बनाया। अगले चुनाव में उनकी जीत का अंतर बढ़ कर 2.35 लाख वोट हो गया।2003 में जब उनको गुजरात का गृह राज्य मंत्री बनाया गया तो नवंबर 2005 में हुए सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले ने शाह को अर्श से फर्श पर ला पटका। 2004 में केंद्र सरकार द्वारा आतंकवाद की रोकथाम के लिए बनाए गए आतंकवाद निरोधक अधिनियम के बाद अमित शाह ने राज्य विधानसभा में गुजरात कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज क्राइम (संशोधित) बिल पेश किया। राज्य विपक्ष ने इस बिल का बहिष्कार किया था।
फर्जी मुठभेड़ : आरोप व क्लीनचिट:- अमित अमित शाह का राजनीतिक करियर कुछ विवादों के चलते काफी चर्चित रहा। अमित शाह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खासमखास हैं। शाह गृह राज्य मंत्री रह चुके हैं और नारानपुरा से बीजेपी विधायक हैं। अमित शाह पर जो आरोप लगे वो बेहद संगीन थे। शाह तब सुर्खियों में आए जब 2004 में अहमदाबाद के बाहरी इलाके में कथित रूप से एक फर्जी मुठभेड़ में 19 वर्षीय इशरत जहां, ज़ीशान जोहर और अमजद अली राणा के साथ प्रणेश की हत्या हुई थी। गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि 2002 में गोधरा बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए ये लोग गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे। इस मामले में गोपीनाथ पिल्लई ने अदालत में एक आवेदन देकर मामले में अमित शाह को भी आरोपी बनाने की अपील की थी। अमित शाह के नेतृत्व में 2005 में गुजरात पुलिस ने आपराधिक छवि वाले सोहराबुद्दीन शेख का एन्काउंटर किया था। इस केस में कुछ महीने पहले आईपीएस ऑफिसर अभय चूडास्मा गिरफ्तार हुए थे, जिनके बयान के बाद सीबीआई ने बताया कि राज्य सरकार जिसे एक मुठभेड़ बता रही है, सोहराबुद्दीन शेख की हत्या उसी राज्य पुलिस द्वारा की गई है। बाद में इसक केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई का आरोप था कि शाह के इशारे पर ही फर्जी मुठभेड़ का नाटक रचा गया। धूमकेतु की तरह उठे उनके राजनीतिक कैरियर पर सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले के साथ ही ग्रहण लग गया। सोहराबुद्दीन शेख की पत्नी तथा इस केस के प्रमुख गवाह तुलसी प्रजापति की भी हत्या कर दी गई थी। इस केस की जांच कर रही राज्य पुलिस की एक शाखा सीआईडी की टीम, अमित शाह को अपनी रोज़ की रिपोर्ट सौंपती थी। उन्हीं टीम के सदस्य चूडास्मा और वंजारा को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था। सीआईडी द्वारा इस केस की सही जांच नहीं करने तथा कोई पुख्ता सबूत इकट्ठा नहीं करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी थी। वंजारा सहित सभी अधिकारियों ने अमित शाह के इस केस में शामिल होने के सारे सबूत और कॉल डिटेल्स भी खत्म कर दिए थे। अंतत: सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ में अमित शाह को दोषी माना गया और उन्हें 25 जुलाई 2010 को जेल जाना पड़ा। उन पर हत्या, अपहरण तथा जबरन बयान बदलने के लिए मजबूर करने जैसे आरोप लगे हैं। उनका केस वरिष्ठ वकिल राम जेठमलानी ने लड़ा। गुजरात हाई कोर्ट तथा सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा कई बार जमानत को खारिज करने के बाद आख़िर गुजरात हाई कोर्ट ने 2010 में उन्हें जमानत दे दी। फिलहाल वो इन दोनों ही मामलों में क्लीनचिट पा चुके हैं। लेकिन ये ऐसे मामले हैं जिनका जिक्र किए बगैर उनका परिचय अधूरा है। अमित शाह करीब तीन महीने तक साबरमती जेल में रहे। इसके बाद उन्हें जमानत तो मिल गई लेकिन कोर्ट ने अमित शाह को गुजरात से बाहर रहने का आदेश दिया, क्योंकि सीबीआई ने आशंका जताई थी कि शाह जेल से बाहर आकर गवाहों और सबूतों को प्रभावित कर सकते हैं।सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामले की जांच कर रही सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में अमित शाह पर कई गंभीर आरोप लगाए। सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक अमित शाह पर हत्या, फिरौती, अपहरण और आपराधिक साजिश रचने के आरोप थे। सोहराबुद्दीन मुठभेड़ की साजिश रचने में वरिष्ठ पुलिस अफसरों के साथ साथ अमित शाह भी शामिल थे। सीबीआई का आरोप था कि अमित शाह के आदेश पर ही सोहराबुद्दीन को मारा गया। यह भी आरोप लगा कि शाह ने इसके लिए गुजरात के डीजीपी डी जी वंजारा की मदद ली थी। वंजारा ने क्राइम ब्रांच के मुखिया अभय चुडास्मा की मदद से फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया।लेकिन वही अमित शाह उत्तर प्रदेश लोक सभा चुनाव 2014 में बीजेपी की जीत के प्रमुख रणनीतिकार और शख्सियत बनकर उभरे। लोगों ने उन्हें मोदी का हनुमान तक कहा। आपको बता दें लोकसभा चुनाव के दौरान एक आमसभा में भड़काऊ भाषण का आरोप लगा और चुनाव आयोग ने चुनावी रैली में भाषण देने पर पाबंदी लगाई। लेकिन उसमें भी उन्हें क्लीनचिट मिली।
अभिन्न सहयोगी:- आडवाणी के उस चुनाव के बाद शाह ने पार्टी में अच्छी पहचान बना ली।भाजपा और गुजरात की राजनीति को क़रीब से देखने वाले कई लोग मोदी और शाह के रिश्ते को 1980 और 1990 में आडवाणी और मोदी के रिश्ते जैसा बताते हैं।शायद यही कारण है कि मोदी को शाह में अपने उस युवा जोश की झलक दिखी और उन्होंने अपना अभिन्न सहयोगी बना लिया।साल 2001 में जब केशुभाई पटेल को हटाकर मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो उससे पहले ही उन्होंने अमित शाह को एक कद्दावर नेता बना दिया था।शाह 1995 में गुजरात स्टेट फाइनेंसियल कारपोरेशन के चेयरमैन बनाए गए।इस पद पर रहते हुए वो कुछ खास असर नहीं दिखा पाए, लेकिन यहां रहते हुए उनकी नज़र गुजरात के कोऑपरेटिव बैंक सेक्टर पर पड़ी.बस कुछ दिनों में वो अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक के मुखिया बन गए।
मोदी के आँख-कान:-उन्हीं दिनों गुजरात में मोदी का बढ़ता विरोध देखकर पार्टी ने उन्हें दिल्ली बुला लिया।लेकिन गुजरात में रहते हुए शाह मोदी के आँख-कान बने रहे और गुजरात की राजनीति की पल-पल की ख़बर उन्हें पहुँचाते रहे।शाह ने इस दौरान गुजरात के कोऑपरेटिव बैंक और मंडलियों पर, जिस पर वर्षों से कांग्रेस का क़ब्ज़ा था, अपनी पकड़ मज़बूत करनी शुरू कर दी। साल 2002 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की दोबारा सरकार बनी तो क्षमता, सूझबूझ और वफ़ादारी देखते हुए सरकार में सबसे कम उम्र के शाह को गृहराज्य मंत्री बनाया गया। शाह को सबसे अधिक दस मंत्रालय दिए गए और उन्हें दर्जनों कैबिनेट समितियों का सदस्य बनाया गया। उन दिनों यह चर्चा थी कि शाह पर ये मेहरबानियां केशुभाई को हटाने में मदद करने के इनाम के रूप में की गई थीं।
शाह मोदी के कवच:-साल 2002 में अमित शाह को पार्टी ने सरखेज विधानसभा से टिकट दिया। चुनाव में वह रिकॉर्ड एक लाख 60 हजार मतों से जीत कर आए।जीत का यह आंकड़ा नरेन्द्र मोदीकी चुनावी जीत से भी बड़ा था।यह 2007 में जाकर 2 लाख 35 हजार पर पहुंच गया।मोदी शाह के चुनावी दांवपेंच के प्रशंसक बन गए थे। मोदी मंत्रिमंडल में अमित शाह जल्द ही सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे.फिर क्या था ‘जो हुकुम मेरे आका’ के तर्ज पर शाह मोदी के हर मंसूबे को अंजाम तक पहुँचाते रहे।चाहे गुजरात की कोऑपरेटिव मंडली हो या सरकारी-निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की यूनियन, शाह ने भाजपा का झंडा हर जगह लहराया।शाह मोदी के कवच बन चुके थे और और फिर चाहे पुलिस अफ़सर हों या विपक्ष के नेता या गुजरात भाजपा में मोदी विरोधी, शाह ने सभी को मोदी के आदेश मानने को मजबूर कर दिया।
जन्मदिन का तोहफ़ा:-राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि शाह जैसी माइक्रो मैनेजमेंट और चुनाव के वक़्त बूथ मैनेजमेंट की क्षमता कम ही लोगों में है।एक बार मोदी ने शाह से गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन में कांग्रेस की पकड़ के बारे में चिंता जताई. फिर क्या था, शाह ने 2009 में मोदी को जन्मदिन के तोहफ़े के रूप में एसोसिएशन का अध्यक्ष पद दिया और ख़ुद उपाध्यक्ष बन गए। हालांकि शाह और मोदी के एसोसिएशन में आने से क्रिकेट का माहौल बिगड़ सा गया और राज्य का एक भी नया खिलाड़ी टीम इंडिया में अपनी जगह नहीं बना पाया। मोदी मानते थे कि जब तक पुलिस और सरकारी अधिकारी उनके साथ नहीं होंगे वह राज्य में लंबे समय तक टिक नहीं पाएंगे।एक पुलिस अधिकारी का कहना है, “शाह और मोदी ने 2005-06 से भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की जानकारी इकट्ठी करनी शुरू कर दी थी और इसके लिए सरकारी और निजी साइबर क्राइम एक्सपर्ट्स की भी मदद ली गई थी।”
अमित शाह और नरेंद्र मोदी के जीवन में कई समानता है। दोनों ने आरएसएस की शाखाओं में जाना बचपन से शुरू कर दिया था और दोनों ने अपनी जवानी में अपने जोश और कुशलता से वरिष्ठ नेताओं को प्रभावित किया था। हालांकि शाह और मोदी के जीवन में सबसे बड़ा राजनीतिक मोड़ तब आया जब उन्हें गुजरात से बाहर निकला गया।जहां मोदी को गुजरात में उनके ख़िलाफ़ बढ़ते विरोध के चलते निकाला गया, वहीं, शाह को सोहराबुद्दीन शेख फ़र्जी एनकाउंटर केस में आरोप लगने के बाद कोर्ट के आदेश पर तड़ीपार किया गया।अमित शाह अभी उस केस में ज़मानत पर चल रहे हैं। इसी मामले में पकड़े गए गुजरात के दर्ज़नों पुलिस अधिकारी जेल में हैं.शाह को जब गुजरात से निकाला गया, तब उन्होंने अपना डेरा दिल्ली में स्थित गुजरात भवन में डाला।
राष्ट्रीय नेता:-यहां रहते हुए वह भाजपा के बड़े नेताओं के क़रीब आते गए और मोदी के लिए दिल्ली आने के रास्ते बनाते गए।जब भाजपा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बना रही थी, तब मोदी और शाह जानते थे कि यूपी जीते बिना दिल्ली की कुर्सी पाना नामुमकिन जैसा है।तब शाह यूपी जाना नहीं चाहते थे, पर गुजरात में आनंदीबेन पटेल और अन्य खेमों की गुजरात भाजपा में बढ़ती पकड़ देख उन्होंने यह चुनौती स्वीकार कर ली। पार्टी की यूपी की कमान संभालते ही शाह एक राज्य के नेता से राष्ट्रीय नेता बन गए। हालांकि, शाह के गुजरात से बाहर रहने के दौरान उनके पुत्र जय पार्टी के भीतर और बाहर अपनी जगह बना रहे हैं। जय हाल ही में गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी बने हैं और टीम के चुनाव में बेहद दिलचस्पी रखते हैं, जिससे वरिष्ठ खिलाड़ी ख़ासे नाराज़ भी हैं।
खेल ऐसोसिएशन के चेयरमैन:- राजनीति से हट कर दूसरे क्षेत्रों में भी अमित भाई की नीतियों की बहुतों ने प्रशंसा की। अमित भाई शतरंज के अच्छे खिलाड़ी हैं और 2006 में वह गुजरात स्टेट चैस ऐसोसिएशन के चेयरमैन बने। उन्होंने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अहमदाबाद के सरकारी स्कूलों में शतरंज को शामिल करवाया। एक अध्ययन के अनुसार, इस प्रयोग के परिणामस्वरूप विद्यार्थी ज्यादा सजग बने, उनकी एकाग्रत का स्तर बढ़ा और समस्या सुलझाने की उनकी योग्यताओं में भी सुधार हुआ। वर्ष 2007 में श्री नरेन्द्र मोदी और अमित भाई गुजरात स्टेट क्रिकेट ऐसोसिएशन के क्रमशः चेयरमैन और वाइस-चेयरमैन बने तथा कांग्रेस के 16 साल के प्रभुत्व को समाप्त किया। इस अवधि में अमित भाई अहमदाबाद सेंट्रल बोर्ड ऑफ क्रिकेट के चेयरमैन भी रहे।2009 में वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बने। 2014 में नरेंद्र मोदी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने।
उत्तर प्रदेश प्रभारी:- सोलहवीं लोकसभा चुनाव के लगभग 10 माह पूर्व शाह दिनांक 12 जून 2013 को भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, तब प्रदेश में भाजपा की मात्र 10 लोक सभा सीटें ही थी। उनके संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता का अंदाजा तब लगा जब 16 मई 2014 को सोलहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आए। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें हासिल की। प्रदेश में भाजपा की ये अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। इस करिश्माई जीत के शिल्पकार रहे अमित शाह का कद पार्टी के भीतर इतना बढ़ा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष का पद प्रदान किया गया।1989 से 2014 के बीच शाह गुजरात राज्य विधानसभा और विभिन्न स्थानीय निकायों के लिए 42 छोटे-बड़े चुनाव लड़े, लेकिन वे एक भी चुनाव में पराजित नही हुये।
भाजपा महासचिव:- पार्टी ने उनकी चुनावी प्रतिभा का सम्मान करते हुए उन्हें 2013 में भाजपा का महासचिव बनाया। 2014 में होने वाले बेहद महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों के मद्देनजर उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया गया। उनकी लंबी और परिश्रम से भरपूर राजनीतिक यात्रा में यह बहुत ऊंचा पड़ाव था। अपनी विधानसभा जीत के पश्चात् अमित भाई के पास उत्सव के लिए समय बहुत कम था क्योकि आम चुनावों में भाजपा को संपूर्ण विजय दिलाने हेतु नेतृत्व का महाकाय दायित्व उनके सामने था। चुनावी गणित के महारथी अमित भाई को छोटे से छोटे आंकड़े पर गौर करने के लिए जाना जाता है और इसीलिए वह जानते थे कि केन्द्र में सरकार बनाने के लिए उत्तर प्रदेश में जीतना बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने अगला साल उत्तर प्रदेश के हर कोने में यात्रा करते हुए बिताया, पार्टी कार्यकर्ताओं को अभिप्रेरित किया, उन्हें नई ऊर्जा दी तथा भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के साथ पार्टी के विकास के एजेंडा को आगे बढ़ाया। इसका नतीजा शानदार रहा और उत्तर प्रदेश में भाजपा व उसके सहयोगियों ने 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल की। उत्तर प्रदेश से मिले इस व्यापक जनसमर्थन के बल पर भाजपा ने अकेले अपने दम पर ही लोकसभा में 272 के आंकड़े को पार करके बहुमत हासिल किया।
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष:- भाजपा ने अमित भाई के समर्पण, परिश्रम और संगठनात्मक क्षमताओं को सम्मानित कर उन्हें 2014 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया। ज्यादा शक्तियों के साथ ज्यादा जिम्मेदारियां आती हैं। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होने पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी का विस्तार होगा और पार्टी सर्वव्यापी एवं सर्वस्पर्षी होगी। पार्टी नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के यषस्वी जीवन की कामना की।श्री शाह के कुशल नेतृत्व में पार्टी संगठन का विस्तार होगाकेंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि अमित शाह के नेतृत्व में संगठन का विस्तार होगा। कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होगा। उनके कुशल मार्गदर्शन में पार्टी संगठन ऐतिहासिक उपलब्धि अर्जित करेगा। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव-2014 में श्री अमित शाह के नेतृत्व में पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की।
भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित भाई ने पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाने तथा पार्टी के सदस्यता आधार के विस्तार के लिए देश के हर राज्य का दौरा किया। उनके इस अभियान के परिणाम चकित करने वाले रहे। दस करोड़ से भी अधिक सदस्यों के साथ उन्होंने भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बना दिया। भाजपा को सशक्त करने के अपने संकल्प को उन्होंने यहीं विराम नहीं दिया बल्कि पार्टी की विचारधारा के प्रसार एवं जन संपर्क बढ़ाने के लिए उन्होंने बहुत से कार्यक्रम प्रारंभ किए। इनमें से एक कार्यक्रम था “महासंपर्क अभियान” जिसका लक्ष्य नए बने सदस्यों को पार्टी की मुख्यधारा में लाकर उन्हें पार्टी के कार्यक्रमों में सक्रिय करना था।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व एवं अमित भाई की सुविचारित चुनावी रणनीतियों का ही यह परिणाम था कि बतौर पार्टी अध्यक्ष अमित भाई के कार्यकाल के पहले वर्ष में भाजपा ने पांच में से चार विधानसभा चुनावों में विजय प्राप्त की। महाराष्ट्र, झारखंड व हरियाणा में पार्टी के मुख्यमंत्री बने तथा जम्मू और कश्मीर में उप मुख्यमन्त्री के पद के साथ भाजपा गठबंधन सरकार का हिस्सा बनी।अपनी अति-व्यस्तता एवं बहुत सारे सार्वजनिक कार्यक्रमों के बावजूद अमित भाई शास्त्रीय संगीत सुन कर और शतरंज खेल कर तरोताज़ा हो जाते हैं। समय मिलने पर वह क्रिकेट का भी आनन्द लेते हैं। रंगमंच में भी उनकी बहुत रुचि है तथा अपने विद्यार्थी जीवन में कई अवसरों पर वह मंच पर प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
प्रधानमंत्री ने सराहना की:- पं. बंगाल, असम, केरल, पांडुचेरी और तमिलनाडु में होने वाले चुनाव में श्री अमित शाह के असाधारण नेतृत्व में पार्टी ने नया मुकाम हासिल किया है। प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रयासों की भी सराहना की। इन दोनों राज्यों में भी पार्टी ने संकल्पबद्ध प्रदर्शन किया। श्री मोदी ने कहा कि पूरे देश में लोगों ने भाजपा पर भरोसा जताया और इसे एक ऐसी पार्टी के रूप में देखा जो समग्र और समावेशी विकास कर सकती है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट में कहा ‘असम में अभूतपूर्व जीत के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं को हृदय से बधाई। यह जीत सभी मानकों पर ऐतिहासिक है।श्री मोदी ने अन्य ट्वीट मंब कहा ‘मैं असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुदुचेरी और केरल के लोगों को समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं और यह आश्वस्त करता हूं कि हम हमेशा कठिन परिश्रम करेंगे और उनकी सेवा करेंगे।’ मोदी ने कहा कि केरल में पार्टी की मेहनत रंग लाई है और हम लोगों की और मजबूत आवाज बनेंगे। उन्होंने कहा ‘मैं उन सभी लोगों को नमन करता हूं जिन्होंने दशक दर दशक र्इंट से र्इंट जोड़ कर भाजपा को खड़ा किया। उनके ही प्रयासों का परिणाम आज हम देख रहे हैं।’ उधर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी असम चुनाव में पार्टी की पहली जीत और अन्य राज्यों में पार्टी का मत अंश बढ़ने को नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों का लोकप्रिय अनुमोदन बताया। उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल में पार्टी का मत अंश 2011 के विधानसभा चुनाव के 4.6 फीसद से बढ़कर 10.7 फीसद हो गया है। केरल में उसने अपने सहयोगी दल बीजेडीएस के साथ 15 फीसद से अधिक वोट हासिल किए हैं, जो 2011 में मात्र 6 फीसद थे। उन्होंने कहा कि लोगों ने कांग्रेस की नकारात्मक और बाधावादी राजनीति को खारिज कर दिया है। कुछ राज्यों में उपचुनाव के अलावा विभिन्न राज्यों में पार्टी के बहुत अच्छे प्रदर्शन ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए मजबूत बुनियाद रखी।
यूपी चुनाव के लिए मैजिक प्लान:-उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के लिए भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह नये गुरुमंत्र के साथ सामने आये हैं। एक बार फिर से श्री अमित शाह बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं को चुनाव मैदान में मेहनत करने के लिए जोर दे रहे हैं। श्री अमित शाह ने प्रदेश भर के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं को बूथ मालिक बताया है। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता संघर्ष करें हम उनका हर पल साथ देंगे। श्री शाह ने कांयकर्ताओं को नयी उर्जा के साथ चुनाव के मैदान में उतरने को कहा है। श्री शाह ने सभी बूथ अध्यक्षों के साथ बैठक की और उन्हें चुनाव में हर संभव जीत का मंत्र दिया। इस बैठक में संगठन मंत्री रामलाल, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य भी मौजूद थे। लोकसभा चुनाव की तर्ज पर एक बार फिर से अमित शाह ने बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं को पूरी ताकत झोंकने को कहा। उन्होंने मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाकर कार्यकर्ताओं में जोश भरने की पूरी कोशिश की। शाह ने कहा कि बूथ अध्यक्षों को खुद को मालिक समझकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर एक बार बूथ कार्यकर्ता जुट जाये तो हर जगह कमल खिल सकता है। वहीं इस मौके पर रामलाल ने कहा कि कार्यकर्ता हर घर में जायें तो हर घर में छह महीने में कमल खिल सकता है।

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