अभिव्यक्ति पर आतंकी हमला

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Charlie hebdoगिरीश पंकज 

पेरिस से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक ”चार्ली हेब्दो” पर हुआ आतंकी हमला एक बार फिर सोचने पर विवश कर गया कि  आखिर कब तक पूरी दुनिया दहशत के साये में जीती रहेगी. इस्लामिक आतंकी संगठन आईएसआईएस के हौसले बुलंद है. इसको तोड़ना बहुत ज़रूरी है।  ये आतंकी लोग ही सिडनी में लोगो को बंधक बनाते है, पेशावर में मासूम बच्चो को मौत के घाट  उतार देते है और यही लोग है जो अपने नेता अबूबकर अल बगदादी के खिलाफ छपे कार्टून को भी बर्दाश्त नहीं करते.. इनको बहना चाहिए बस, इनके दो लोग भी आतंक मचने के लिए पर्याप्त होते है।  ”चार्ली हेब्दों’ के कार्यालय पर केवल दो नकाब पोशों ने हमला किया और उसके संपादक स्टीफन शर्बोनियर और मशहूर कार्टूनिस्ट काबू की हत्या कर कर दी. इस हमले में दस पत्रकार मरे और दो पुलिस वाले भी. फ्रांस के राष्ट्रपति होलांदे ने इस हमले  को ‘कायराना हरकत’ बताया तो भारत सहित दुनिया के अनेक राष्ट्राध्यक्षों ने खुल कर निंदा की है और वैश्विक हो चुके आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने की इच्छा भी जाहिर की है, मगर प्रश्न यही है कि  जो लोग पूरी तरह से असहिष्णु हो चुके है उनसे कैसे निबटा जाये?  ये लोग आखिर किस भाषा को समझेंगे?
”चार्ली हेब्दो” पेरिस का पुराना साप्ताहिक है. इस अखबार का इतिहास बताता है की यह अपने जन्मकाल से ही सनसनीखेज प्रवृत्ति का रहा है. 1960 के दशक में जब यह खबर शुरू हुआ तो इसका नाम था ‘हाराकीरी’ . (जिसका हिंदी में अर्थ होता है हत्या) तब यह मासिक था. 1969 में  इसका नाम बदल कर कर दिया गया- ”हाराकीरी हेब्दों” और यह सप्ताहिक हो गया. 1970  आपत्तिजनक समाचार प्रकाशित करने के लिए इस अखबार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और इसका प्रकाशन स्थगित हो गया, बहुत दिनों तक खामोश रहने के बाद इस अखबार के प्रबंधन ने ‘चार्ली हेब्दों’ नाम से एक मासिक कॉमिक पत्रिका शुरू की. लेकिन 1981 में फिर इसका प्रकाशन बाधित किया गया. यह अखबार दुबारा साप्ताहिक रूप मे शुरू हुआ 1992 में,  और उसके बाद से इसमें निरंतर कार्टून, समाचार, चुटकुले वगैरह प्रकाशित होते रहे. 2006  में इस खबर के खिलाफ अनेक मुस्लिमो ने उग्र प्रदर्शन किया था, जब इस अखबार ने एक दूसरे अखबार में छपे कार्टून को दुबारा प्रकाशित किया था।  2007  में यह तब और अधिक विवाद में आया जब अखबार में दो विवादास्पद कार्टून छपे.  2008  में इस अखबार पर जबरदस्त आर्थिक जुर्माना ठोंका गया. बाद में इस अखबार ने अपना इंटरनेट संस्करण निकलना शुरू किया. मतलब यह की ‘चार्ली हेब्दों’  अपनी सामग्री को लेकर निरंतर विवादों में रहता आया है. इसमें इसके पहले भी इस अखबार पर हमला हो चुका है. सन 2011 में भी इस अखबार पर हमला किया गया था. फ़्रांस को यह खबर थी कि  यहाँ कभी भी आतंकी हमला हो सकता है. इसके लिए हाई अलर्ट भी था लेकिन किसी ने सोचा नहीं था कि  इस बीच केवल दो नकाबपोश ऐसी भयानक वारदात कर देंगे. हमलवार घटना को अंजाम देने के बाद लौटे हुइ चीख-चीख कर कह रहे थे कि  हमने मोहम्मद पैगम्बर के अपमान का बदला ले लिया। मतलब यह भी है कि ‘चार्ली हेब्दो” में केवल बगदादी पर ही कार्टून नहीं छापा था, वरन पैगम्बर मोहम्मद पर भी टिप्पणी थी. इस घटना के बाद ऐसे अखबारों को सबक तो लेना ही चाहिए की आप किसी भी धर्म या समाज के पीछे लगातार पड़े रहेंगे तो लोग चुप नहीं बैठेँगे. वैसे भी अब पूरी दुनिया में लोग निरंतर असहिष्णु होते जा रहे है,. बात-बात पर हत्याएं हो  रही हैं. फिर ये तो धार्मिक आतंकवादी हैं. किसी को भी एक सबक तो लेना चाहिए कि  वे आतंकवादियों पर तो लिखे, कार्टून भी  बनाये, मगर पैगम्बर मोहम्मद पर किसी किस्म की टिप्पणी नहीं होनी चाहिए. अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का मतलब यह भी नहीं कि  हम किसी भी मज़हब की परम  आस्था के केंद्र बिंदु पर ही कटाक्ष  करें.. बेशक हमें आतंकवाद के खिलाफ लिखना है, खूब कार्टून भी  बनाने है,  कट्टरपंथियों को भी जमकर निशाना बनाना है मगर मेरा निजी मत है कि भूल कर भी पैगम्बर मोहम्मद पर कोई रेखांकन या  कार्टून नहीं बनाना चाहिए। कुछ लोग जानबूझ कर ऐसी हरकते करते हैं. चित्रकार हुसैन ऐसा किया करते थे . वे हिन्दू देवियों पर कार्टून बन देते थे.  यह अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं उस अधिकार का दुरुपयोग था.दिल्ली की एक पत्रिका के संपादक को पैगंबर मोहम्मद के कार्टून को साभार छापने के कारण  जेल की हवा खानी  पडी थी।  भारत क्या पूरी दुनिया में पैगम्बर मोहम्मद को लेख आपत्तिजनक बात सामान्य मुसलमान बर्दाश्त नहीं करेगा तो फिर ये तो आतंकवादी है. इनका काम ही हिंसा है. इनकी नज़र में इस्लाम खतरे मे हैं।  और पूरी दुनिया को अपना दुश्मन समझते है. अमरीका को भी।  इसीलिये ओसामा-बिन-लादेन ने अमरीका पर हमला करवाया था. भारत पर समय-समय पर हमले होते रहे  है. पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह देता है, वो खुद अब अपने पाले हुए सांप से डसा जा रहा है
‘चार्ली हेब्दो” के बहाने मैं पत्रकारिता की दिशा और दशा पर बहस नहीं छेड़ना चाहता, बस लगे हाथ ‘चार्ली हेब्दों’ के अतीत को देखने का मन हुआ. बहरहाल पत्रकारिता के साथ-साथ पूरी दुनिया की चिंता यही है की क्या हिंसा के सहारे किसी अभिव्यक्ति का खात्मा किया जा सकता है? क्या हिंसा  रास्ता है? अखबार पर जुर्माना हो, उसे चेतावनी दी जाये, उसको कुछ समय के लिए पत्रातिबंधित भी कर दिया जाये, लेकिन उसके दफ्तर में घुस कर कत्लेआम करना किसी भी तरह से जायज करार नहीं दिया जा सकता. अखबार के कार्यालय पर हुए इस आतंकी हमले के बाद एक बार फिर से आतंकवादी के विरुद्ध दुनिया ने चिंता जताई है और सब मानने लगे हैं कि  अगर इसे पूरी तरह से ख़त्म नहीं किया गया तो ये आतंकी संगठन और उसके बगदादी जैसे क्रूर नेता पूरी दुनिया में दहशतगर्दी मचाते रहेंगे।  मीडिया को भी अपनी अभियक्ति के अधिकारों की रक्षा करते हुए अपनी सीमा भी पहचाननी होगी।  अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता किसी भी मनुष्य का मौलिक अधिकार है, मगर उसके इस्तेमाल करते हुए विचार भी ज़रूरी है की इससे कितने लोग प्रभावित होपंगे और इसका दुष्परिणाम क्या होगा.. यह ज़रूरी है की अब संयुक राष्ट्र संघ जल्द ही दुनिया के देशो को बुला कर वैश्विक आतंकवाद और इलम के नाम पर फैलाए जा रहे आतंकवाद पर चिंता करे और कोई रास्ता निकाले की आखिर इससे कैसे निबटा जाये, जैसे लादेन को ख़त्म किया गया, उसी तरह अब बगदादी जैसे आतंकवादियों और उसके संगठन को ख़त्म करने का समय आ गया है लेकिन यह केवल अमरीका के बूते नहीं होगा, इसके लिए इस्लामिक देशो को भी विश्वास  में लेना होगा।

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