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आज कुछ आभास उनका ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
आज कुछ आभास उनका, आत्म उर में हो गया; विश्व के इन चराचर बिच, उन्हीं का नाटक हुआ ! रूप रंग आए सजे सब, रंग मंचों पर चढ़े; अड़े ठहरे खड़े ठिठुरे, ठिठोली होली किए ! रहा दिग्दर्शन उन्हीं का, प्रणेता वे ही रहे; काल की हर एक झाँकी के,…