आखिर अहिंसा के पुजारी का घर अशांत क्यों?

0
156

gandhiप्रवीण सिंह

प्रिय बापू, “हैप्पी बर्थ डे!” हम जब से स्कूल जाना शुरू किये तभी से आपका जन्मदिन मना रहे,ये अलग बात है कि कभी दो लड्डू के लालच में और बाद में छुट्टी के रूप में। जब भी आपकी चर्चा होती है गोल चश्मे और लाठी लिए, इस गीत के साथ “दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल” आपकी छवि सामने आ जाती है।

आप बहुत सौभाग्यशाली लोगों में से एक थे जिनको गुलाम भारत में भी लंदन पढ़ने का मौका मिला और आपने इस अवसर का भरपूर दोहन किया तथा एक स्वाभिमानी बैरिस्टर और प्रभावशाली वैश्विक नेता बने जिसे हम नटॉल से नौआखली तक आपके संघर्षों में देखते हैं। आपने जीवन में बहुत प्रयोग किये जिनमें सबसे बेहतरीन उदाहरण आपकी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग में” है।

महत्वपूर्ण सवाल यह है कि अहिंसा के पुजारी का घर अशांत क्यों है? साहित्यों, लेखों और फिल्मों से मिली सूचनाओं के अनुसार आपके भगतसिंह, अम्बेडकर, नेताजी, मोहम्मद अली जिन्ना, गोलवलकर, आचार्य नरेन्द्र देव, अच्यूत पटवर्धन, जय प्रकाश नारायण, ई.एम.एस. नम्बूदरीपाद, मुजफ्फर अहमद, लोहिया व अन्य मार्क्सवादी नेताओं के साथ विचारों, तरीकों और उद्देश्यों को लेकर मतभेद ही नहीं मनभेद भी बने रहे। आजाद आधुनिक भारत के समाज के बीच खाँई और समस्याएँ जिस तरह से लगातार बढ़ता जा रही, कहीं इसकी वजह वही मतभेद और मनभेद तो नहीं जो अब तक बने हुए और जिसे दूर कर पाने में सरकारें, क्रांतिकारी नेता, विद्वान और विश्वविद्यालय असहाय, असमर्थ और असफल रहे।

आज की गाँधी इरोम शर्मिला ठगी हुई महसूस कर रही।अहिंसक आन्दोलनों की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है। कालाधन और भ्रष्टाचार चुनावी जुमले बन चूके है। दंगे का डर हर चुनाव में खड़ा रहता है। किसान-मजदूर, महिला, मुसलमान, दलित,आदिवासी और अपर कॉस्ट जैसे वोट बैंक महान भारतीय संविधान जैसे दीये के नीचे समता, न्याय और सम्मान के उजाले को तरस रहे। इस लोकतंत्र में चाहे UPA हो या NDA ,दक्षिण हो या वाम, पूँजीवादी हो या समाजवादी टाटा, बिरला और अंबानी जैसे चंद लोग ही बिना किसी वोट बैंक के नीतियाँ तय कर रहे।

जो बार्डर आपके आखिरी सांस पर बने वह आज भी सबसे बड़ी समस्या बने हुए हैं और जिसका निपटारा करते-करते हम परमाणु हथियार तक पहुँच गये लेकिन परिणाम नील बटे सन्नाटा ही निकला। आजादी की लड़ाई में जितना खून भगतसिंह और नेताजी के साथियों ने अंग्रेजों का नहीं बहाया उससे कई गुना ज्यादा हमने एक दूसरे का बहा दिया।

अजीब विडम्बना है कि कल तक हमें कालापानी और फाँसी की सजा सुनाने वाले गोरे अब हमारे दोस्त बन गये और जो साथ लड़े वो दुश्मन। इसलिए अब सडकों और दीवारों की गन्दगी साफ करने के साथ-साथ हमें अपने दिलों की गन्दगी भी साफ करनी पड़ेगी तथा पुनर्चिंतन करना पड़ेगा। गाँधी के गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री जी को “गाँधी के मन्तर” को अपने मन की बात बनानी पड़ेगी। महात्मा गाँधी,भगतसिंह, अम्बेडकर, नेताजी, मोहम्मद अली जिन्ना, गोलवलकर, खान अब्दुल गफ्फार खान, आचार्य नरेन्द्र देव, अच्यूत पटवर्धन, जय प्रकाश नारायण, ई.एम.एस. नम्बूदरीपाद, मुजफ्फर अहमद, लोहिया और मार्क्स के अनुयायियों तथा अन्य वैश्विक धाराओं से आने वाले लोगों को ग्राम पंचायत से लेकर संसद और सार्क से लेकर यू.एन.ओ. तक मिल-बैठकर सही राजनीतिक रास्ता निकालना पड़ेगा, नहीं तो आने वाली पीढ़ियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

प्रवीण सिंह

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here