‘आपातकाल की यादें’ विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन

दिनांक 25 जून, 2017 रविवार को विश्व संवाद केन्द्र और उत्तरांचल उत्थान परिषद द्वारा डी.ए.वी. (पी.जी.) काॅलेज के ‘दीनदयाल सभागार’ में ‘आपातकाल की यादें’ विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
सबसे पहले विश्व संवाद केन्द्र के निदेशक श्री विजय कुमार ने बताया कि इंदिरा गांधी ने पुराने कांग्रेसियों को किनारे कर कैसे क्रमशः पार्टी और फिर सरकार में अपनी पकड़ मजबूत की। 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में उनके प्रत्याशी वी.वी.गिरि की जीत हुई। 1971 के लोकसभा चुनाव और पाकिस्तान पर जीत से उनका दिमाग बहुत चढ़ गया। उन्होंने बिहार और गुजरात के भ्रष्ट मुख्यमंत्रियों के विरुद्ध हो रहे आंदोलनों की अनदेखी की।
12 जून, 1975 को प्रयाग उच्च न्यायालय ने जहां उनके चुनाव के विरुद्ध निर्णय दिया, वहां गुजरात चुनाव में कांग्रेस की भारी पराजय हुई। इससे उनकी दुष्ट मंडली ने आपातकाल की तैयारी कर ली। इसमें संजय गांधी, सिद्धार्थ शंकर रे, बंसीलाल और विद्याचरण शुक्ल शामिल थे। 25 जून को दिल्ली में जयप्रकाश जी की विशाल रैली हुई। इससे बौखलाकर उसी रात आपातकाल लगा दिया गया। देश के इतिहास में यह एकमात्र प्रसंग है कि किसी अध्यादेश पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर पहले हुए और मंत्रिमंडल के बाद में।
आपातकाल के साथ ही प्रेस पर प्रतिबंध लगाकर सैकड़ों विपक्षी नेताओं को बंद कर दिया गया। इसके बाद चार जुलाई को संघ पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इसके विरोध में संघ के एक लाख स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह किया। 1977 के चुनाव में इंदिरा जी की भारी पराजय हुई। इस प्रकार तानाशाही के उस काले अध्याय की समाप्ति हुई। विजय कुमार जी ने मेरठ जेल में बिताये 110 दिनों को अपने जीवन का सुनहरा काल बताया।
गोष्ठी के मुख्य अतिथि नैनीताल के सांसद एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भगतसिंह कोश्यारी थे। वे भी उन दिनों मीसा में बंद थे। उन्होंने कहा कि आपातकाल देश के लोकतंत्र पर यद्यपि काला धब्बा था, फिर भी उसे याद करना और नई पीढ़ी को बताना हमारी जिम्मेदारी है, जिससे भविष्य में देश ऐसे किसी संकट में न फंसे। जैसे हिटलर को भूलने से हजारों हिटलरों के पैदा होने का खतरा है। आपातकाल का संघ ने अहिंसात्मक विरोध किया। बाद में भी सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस ने ‘भूलो और माफ करो’ कहा और फिर से सब शाखा के काम में लग गये।
उत्तरांचल उत्थान परिषद के अध्यक्ष श्री प्रेम बड़ाकोटी ने आपातकाल में दी गयी प्रताड़नाओं की चर्चा की। वे स्वयं सहारनपुर थाने और जेल में इसके भुक्तभोगी रहे। देहरादून में भूमिगत गतिविधियों के बारे में जेलयात्री श्री हरीश काम्बोज ने बताया। इसके अलावा डा. विजयपाल सिंह, मोहनसिंह रावत गांववासी, विद्यादत्त तिवारी आदि जेलयात्रियों ने भी अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उस समय की स्थितियां बहुत गम्भीर थीं। भूमिगत कार्य करना तथा जेल जाना खतरे से खाली नहीं था। फिर भी लोगों ने इंदिरा गांधी की तानाशाही से टक्कर ली और उसे पराजित किया। जेल में रहकर भी लोगों ने पढ़ना, पढ़ाना तथा वृक्षारोपण जैसे अनेक रचनात्मक काम किये।
कार्यक्रम अध्यक्ष डी.ए.वी (पी.जी) काॅलेज के प्राचार्य डा. देवेन्द्र भसीन ने नयी पीढ़ी को आपातकाल की बातें याद दिलाने के लिए आयोजकों को बधाई दी। कार्यक्रम में देहरादून जेल में रहे श्री ताराचंद जी, श्री कुंवरसिंह तोमर, श्री रणजीत सिंह बिष्ट, श्री नीरज मित्तल, श्री राजकुमार टांक, श्री विजय शर्मा आदि जेलयात्री उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन वरिष्ठ पत्रकार निशीथ सकलानी ने किया। अतिथियों का स्वागत वि.सं.केन्द्र के सचिव श्री राजकुमार टांक तथा धन्यवाद ज्ञापन वि.सं.केन्द्र के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र मित्तल ने किया।
प्रस्तुति – सत्येन्द्र सिंह, विश्व संवाद केन्द्र प्रमुख

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