आतंक से लहूलुहान होता देश

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अरविंद जयतिलक

downloadभारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की पटना रैली से चंद घंटे पहले जिस तरह रेलवे स्टेशन और रैली स्थल पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए उससे नीतीश सरकार की सुरक्षा व्यवस्था के दावे की पोल खुल गयी है। यह हैरान करने वाला है कि रैली में लाखों लोगों के आने की जानकारी के बाद भी राज्य सरकार ने उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किया। सिलसिलेवार धमाके में 6 लोग मारे गए हैं और 100 से अधिक घायल हुए हैं। बावजूद इसके मुख्यमंत्री नीतीश दावा कर रहे हैं कि लोगों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम था और किसी तरह की ढि़लाई नहीं बरती गयी। लेकिन उन्हें बताना चाहिए कि फिर इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी रेलवे स्टेशन से लेकर मंच के इर्द-गिर्द बम बिछाने में कामयाब कैसे रहे? धमाके कोई एक-दो नहीं पूरे सात हुए हैं। रैली के बाद भी बमों की बरामदगी हुई है। क्या यह साबित नहीं करता है कि राज्य सरकार ने लोगों की सुरक्षा की अनदेखी की? बिहार सरकार का यह कहना कि आतंकियों के बारे में कोई इनपुट नहीं था यह कुलमिलाकर अपनी नाकामियों पर परदा डालने जैसा ही है। इतनी बड़ी साजिश कुछ घंटों और एक-दो दिन में नहीं रची गयी होगी। निश्चित रुप से दहशतगर्द पटना में हफ्तों बिताए होंगे और रैली स्थल की रेकी की होगी।

सवाल तो उठेगा ही कि राज्य खुफिया तंत्र को इसकी भनक क्यों नहीं लगी? रैली स्थल पर सुरक्षा घेरा मजबूत था तो दहशतगर्द उसे भेदने में कामयाब कैसे रहे? राज्य सरकार के पास इसका ठोस जवाब नहीं है। गिरफ्तार आतंकी अफजल उस्मानी ने कबूला भी है कि उनके निशाने पर नरेंद्र मोदी थे। देखा जाए तो आतंकियों द्वारा नरेंद्र मोदी की हत्या का प्रयास पहले भी हो चुका है। लेकिन दुर्भाग्य कि मोदी विरोधी राजनीतिक जमात इसे कबूलने को तैयार नहीं है। बम धमाके के तुरंत बाद जिस तरह घुणित राजनीति शुरु हुई वह देष को हतप्रभ करने वाला रहा। कांग्रेस और जेडीयू के दर्जन भर नेता एक सुर में अलापते सुने गए कि बम धमाके की साजिश के पीछे मोदी और आरएसएस का हाथ है। राजनीतिक लाभ के लिए इन्होंने बम धमाके कराए हैं। लेकिन अब जब इंडियन मुजाहिदीन ने स्वीकार लिया है कि इस साजिश के पीछे उसका हाथ है तो इन नेताओं को मोदी, आरएसएस और देश से माफी मांगनी चाहिए। केंद्र सरकार को चाहिए कि मोदी की सुरक्षा घेरा मजबूत करे। गिरफ्तार आतंकियों ने खुलासा किया है कि मुजफ्फरनगर दंगा के बदले वे मोदी की हत्या करना चाहते हैं। मतलब साफ है कि आगे भी मोदी आतंकियों के निशाने पर आ सकते हैं। सितंबर माह में केंद्रीय गृहमंत्रालय ने मोदी की रैलियों को लेकर अलर्ट जारी किया था। बावजूद इसके बिहार सरकार ने संजीदगी क्यों नहीं दिखायी इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। एक अरसे से जांच एजेंसियां बिहार सरकार को अलर्ट कर रही हैं कि राज्य में इंडियन मुजाहिदीन की सक्रियता बढ़ रही है। वे नौजवानों को गुमराह कर अपने मिशन में शामिल कर रहे हैं। पिछले दिनों यह खुलासा हुआ कि आइएसआइ के इशारे पर इंडियन मुजाहिदीन ने बिहार के भागलपुर, दरभंगा, बांका और पूर्णिया जैसे कुछ शहरों से नौजवानों को केरल में ले जाकर आतंकी प्रशिक्षण दिया। खुफिया एजेंसियों की मानें तो बिहार के कई षहरों में इंडियन मुजाहिदीन के सदस्य पनाह लिए हुए हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि इस पर गौर फरमाने के बजाए बिहार सरकार सियासत में उलझी हुई है। पिछले दिनों जब जांच एजेंसियों ने बिहार से इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों की धर-पकड़ की तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगबबूला हो गए। निश्चित रुप से इससे आतंकियों का हौसला बुलंद हुआ होगा और बिहार को सबसे सुरक्षित पनाहगाह समझ लिए होंगे।

पटना रैली बम धमाके में प्रयुक्त सामग्री बोधगया मंदिर धमाके में प्रयुक्त विस्फोटकों जैसा ही है। यह इंडियन मुजाहिदीन की ओर इशारा करता है। संभव है कि इस साजिश में हूजी और सिमी के सदस्य भी शामिल रहे हों। इंडियन मुजाहिदीन के सरगना यासीन भटकल की गिरफ्तारी के बाद से ही आशंका जताया जा रहा था कि उसके शागिर्द देश को दहलाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन विडंबना है कि इसे संजीदगी से नहीं लिया जा रहा। न केवल बिहार के मुख्यमंत्री बल्कि देश के गृहमंत्री भी राग अलाप रहे हैं कि खुफिया तंत्र से कोई चूक नहीं हुई है। लेकिन वे बताने को तैयार नहीं हैं कि आखिर चूक की परिभाषा क्या होती है? क्या दस-बीस हजार लोग मारे जाएंगे तब चूक माना जाएगा? सरकार के गृहमंत्री आतंकवाद से निपटने के लिए हर रोज नयी रणनीति बनाते हैं। खुफिया तंत्र को मजबूत करने की बात करते हैं। लेकिन आतंकी अपने मकसद में कामयाब हो जाते है।

सच्चाई यह है कि जब तक आतंकवाद पर सियासत नहीं थमेगी, देश दहलता रहेगा। लेकिन राजनीतिक दल इसे समझने को तैयार नहीं है। वोटयुक्ति के लिए देश की संप्रभुता को दांव पर लगा दिया है। नतीजा देष को हर रोज लहूलुहान होना पड़ रहा है। आतंकवाद से निपटने के लिए एक अरसे से राश्ट्रीय आतंकरोधी केंद्र यानी एनसीटीसी के गठन की कवायद चल रही है। लेकिन अभी तक उसे अमलीजामा पहनाया नहीं जा सका। वजह केंद्र सरकार अपनी मनमानी पर उतारु है वहीं राज्य सरकारें इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बता विरोध कर रही हैं। अगर इसका गठन हो गया गया होता तो निष्चय ही खुफिया एजेसिंयों को आतंकियों की धरपकड़ में मदद मिलती। अभी तक उनके पास सिर्फ राज्य पुलिस को चेतावनी देने का ही अधिकार है। दुर्भाग्य यह है कि केंद्र की यूपीए सरकार अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ के लिए खुफिया तंत्र का दुरुपयोग करना षुरु कर दी है। इशरत जहां मामले में जिस तरह आइबी और सीबीआइ आमने-सामने हैं वह देष की सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक है।

यह शर्मनाक है कि जब अभी यह प्रमाणित होना बाकी है कि मुठभेड़ में मार गिरायी गयी इशरत जहां आतंकी थी या नहीं, इससे पहले ही कांग्रेस और तथाकथित सेक्यूलर दल गुजरात सरकार और उसके मुखिया नरेंद्र मोदी को गुनाहगार मानने लगे हैं। आतंकवाद को लेकर बिहार सरकार कितनी संजीदा है इसी से समझा जा सकता है कि पिछले दिनों जदयू के एक प्रवक्ता ने इशरत जहां को ‘बिहार की बेटी’ तक कह डाला। क्या इससे आतंकियों का हौसला बुलंद नहीं होगा? अगर यह प्रमाणित हो जाता है कि इशरत जहां आतंकी थी तब ये बरखुरदार और उनकी सरकार देश-दुनिया के सामने क्या मुंह दिखाएंगे? हालांकि आतंकियों के महिमामंडन और उनकी पैरोकारी देश के लिए कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह एक अरसे से मुनादी पीट रहे हैं कि बटला हाउस मुठभेड़ कांड फर्जी था। जबकि तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम और स्वयं प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह तक इस मुठभेड़ को सच बता चुके हैं। दिग्विजय सिंह जमात-उद-दावा के खूंखार आतंकी हाफिज सईद को ‘सईद साहब’ और दुनिया के खतरनाक आतंकी रह चुके ओसामा-बिन-लादेन को ‘ओसामा जी’ कहते हैं। गृहमंत्री शिंदे जिनकी जिम्मेदारी आतंकवाद का कमर तोड़ना है वे भी आतंकवाद पर पर जमकर सियासत करते हैं। पिछले दिनों जयपुर चिंतन में उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के कैंप में हिंदू आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है। इससे पहले तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम भी तमाम हिंदू संगठनों के उपर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा चुके हैं। सवाल लाजिमी है कि आखिर इस घृणित राजनीति से आतंकी घटनाओं पर रोक कैसे लगेगा? जब सरकारें ही आतंकवाद पर घृणित राजनीति करेंगी तो फिर आतंकी देश को क्यों नहीं दहलाएंगे? आतंकवाद के खिलाफ स्पष्‍ट नीति न होने का ही परिणाम है कि आज देश तीन दशक से लहूलुहान है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब भी आतंकियों के खिलाफ सख्त कानून बनाने का सवाल उठता है सियासी दल उसमें राजनीतिक नफे-नुकसान का हिसाब लगाना षुरु कर देते हैं। अगर इसका लाभ उठाकर आतंकी समूह बम विस्फोट करने में कामयाब होते हैं तो इसमें आश्‍चर्य क्या है? पटना रैली बम धमाका देश के राजनीतिकों के लिए एक सबक है। यह देश हित में होगा कि वे अपनी घृणित राजनीति से बाज आएं और आतंकियों के खतरनाक मंसूबों को ध्वस्त करें।

1 COMMENT

  1. पटना कि रैली में जो बम धमाके हुए उसे केवल एक नजरिये से ही देखा जा रहा है. कहीं पे कोई भी धमाका हो इंडियन मूाजहिदीन का नाम घोसित कर दिया जाता है. इस के दूसरे पहलु पर घौर क्यों नहीं किया जाता? मोदी जी के लिए सहानुभूती जुटाने के यह अंदरूनी प्रयास नहीं हो सकते क्या? चुनाव सर पे है. सभी प्रकार के हथकंडे अपनाए जा सकते हैं.

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