आयुष्मान भव

  • श्याम सुंदर भाटिया

चौंकिएगा नहीं, देश में एक हजार से अधिक सरकारी और निजी विश्वविद्यालय हैं। 45 हजार डिग्री कॉलेज हैं। 15 लाख+ स्कूल हैं। एक करोड़ 9 लाख+ शिक्षक हैं। इनमें प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक छात्रों की संख्या 33.5 करोड़ है। इन छात्रों को घर पर ही ऑनलाइन शिक्षा दी गई है। भारी संख्या में ये छात्र घर पर ही पढ़ना शुरु कर देंगे, ऐसा किसी ने नहीं सोचा होगा। इस समय 30 से 40 प्रतिशत छात्र-छात्राओं के साथ दिक्कत है। नेट और मोबाइल की सुविधा नहीं है। इसके लिए हम काम कर रहे हैं, यह स्वीकारोक्ति  है, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की। डॉ. निशंक कहते हैं , हमारी सरकार संकल्पबद्ध है कि कोरोना महामारी को लेकर विद्यार्थियों को कोई दिक्कत नहीं होगी। विश्वविद्यालयों में पहले और दूसरे वर्ष के स्टुडेंट्स को उनके आंतरिक मूल्यांकन पर आगे बढ़ाया जाएगा। फाइनल वर्ष/फाइनल सेमेस्टर की परीक्षा अनिवार्य रूप से होगी। सितम्बर तक परीक्षाएं हो जाएंगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इसका संशोधित कार्यक्रम भी घोषित कर दिया है। ये गाइडलाइन्स मानव संसाधन मंत्रालय, गृहमंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय ने मिलकर तैयार की हैं। हाँ, यह सही है -महामारी और लॉकडाउन का असर भारत समेत दुनिया के लगभग 70 प्रतिशत छात्रों पर पड़ा है।

यूजीसी देश में विश्वविद्यालयों की सबसे बड़ी नियामक संस्था है। सभी डिग्री कोर्स इसकी मंजूरी के बाद ही मान्य होते हैं। इसके साथ ही सभी विश्वविद्यालयों को शैक्षणिक और शोध से जुड़ी गतिविधियों को संचालित करने के लिए यह वित्तीय मदद भी देती है। विश्वविद्यालय की अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को यूजीसी ने एक बार से जरूरी करार देते हुए इसे छात्रों के व्यापक हित में बताया है। ऐसे में राज्य परीक्षाओं को लेकर कोई भी फैसला लेने से पहले छात्रों के हितों और शैक्षणिक गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभाव का भी आंकलन करें। वहीं परीक्षाओं को लेकर जारी गाइडलाइन पर यूजीसी का कहना है कि आयोग के रेगुलेशन के तहत सभी विश्वविद्यालय उसे मानने के लिए बाध्य है। हालांकि यह विवाद का समय नहीं है। सभी विवि को तय गाइडलाइन के तहत परीक्षाएं करानी चाहिए।   

बकौल यूजीसी के सचिव श्री रजनीश जैन ने कहा कि उन्होंने सभी राज्यों को परीक्षाओं को लेकर जारी गाइडलाइन और उसे कराने के लिए तय किए गए मानकों का ब्यौरा भेज दिया है। फिर भी यदि विश्वविद्यालयों को किसी भी मुद्दे को लेकर कोई भ्रम है, तो वह संपर्क कर सकते है। उन्होंने कहा कि जहां तक बात परीक्षाओं की है तो कोरोना संकट के चलते वह पहले से इसे लेकर विश्वविद्यालयों को काफी सहूलियतें दे चुके हैं। इसमें वह ऑनलाइन और ऑफलाइन किसी भी तरीके से करा सकते हैं, जिसमें वह ओपन बुक एक्जाम, एमसीक्यू (मल्टीपल च्वायस क्यूश्चन) जैसे परीक्षा के तरीके भी अपना सकते हैं।  यूजीसी सूत्रों की मानें तो आयोग ने विवाद के बीच उन कानूनी पहलुओं को भी खंगालना शुरू कर दिया है, जिसके दायरे में सभी विवि आते हैं। हालांकि यूजीसी के जुड़े अधिकारियों का कहना है, कि वह इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं। वैसे भी इसे लेकर काफी राजनीति हो रही है। सूत्रों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी राज्यों के साथ इसे मुद्दे पर जल्द चर्चा कर सकता है। कोरोना के इस संकटकाल में भी दुनिया का कोई विवि या उच्च शैक्षणिक संस्थान बगैर परीक्षा या असेसमेंट के सर्टिफिकेट नहीं दे रहा है। ऐसे में यदि भारतीय विश्वविद्यालय ऐसा करते हैं, तो इसका असर उनकी वैश्विक साख पर भी पड़ेगा। साथ ही जो भारतीय छात्र अपनी डिग्रियों या सर्टिफिकेट को लेकर नौकरियों के लिए जाएंगे, उन्हें भी इस चुनौती की सामना करना पड़ सकता है।  

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी, महाराष्ट्र सरकार में केबिनेट मंत्री श्री आदित्य ठाकरे, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अरविंदर सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल बार-बार यह कह रहे हैं। कोरोना के कहर के चलते परीक्षा न कराई जाएं। अंतिम वर्ष के स्टुडेंट्स भी प्रमोट कर दिए जाए। यूपी, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, केरल, ओडीशा जैसे राज्यों ने तो ऑनलाइन परीक्षा न कराने का फैसला लिया है, लेकिन एचआरडी मंत्रालय के अधीन आने वाले यूजीसी ऑनलाइन, ऑनलाइन/ऑफलाइन परीक्षाएं कराने के लिए दृढ़ संकल्पित है। डॉ. निशंक कहते हैं, हम हर बार शिक्षा को राजनीति  से दूर रखने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह सच है, शिक्षा हर बार इस तुच्छ राजनीति का शिकार होती है। उन्होंने दुख जताया, सीबीएससी बोर्ड के पाठ्यक्रम के संशोधन को लेकर उठाया गया एक सदभावनापूर्ण कदम दुर्भावनापूर्ण बन गया है। वह कहते हैं, जब बदले माहौल में स्कूल/कॉलेज खुलेंगे तो पढ़ने और पढ़ाने का तरीका बदल जाएगा। पढ़ने के साथ दो गज की दूरी भी महत्वपूर्ण होगी।

15 जुलाई, 1959 को पौड़ी गढ़वाल के पिनानी में जन्मे डॉ.निशंक की लेखन और यात्रा करना हमेशा पहली पसंद रही है। कविताएं, कहानियां, उपन्यास, यात्रा वृतांत आदि पढ़ना और लिखना उन्हें पसंद है। डॉ. निशंक की अब तब 50 से अधिक पुस्तकें आ चुकी हैं। ये पुस्तकें जर्मन, अंग्रेजी, फ्रेंच, नेपाली में अनुदित हो चुकी हैं जबकि तेलगू, मलयालम, पंजाबी, संस्कृत, कन्नड़, मराठी, गुजराती में भी ट्रांसलेट हो चुका है। इनके साहित्य पर आधा दर्जन से अधिक पीएचडी अवार्ड हो चुकी हैं। बहुप्रतिभा के धनी डॉ. निशंक के साहित्य पर देश और विदेश की दर्जन भर यूनिवर्सिटीज में शोध कार्य चल रहे हैं। इनकी झोली दर्जन भर से ज्यादा अवार्ड से भी भरी है। हरिद्वार के सांसद 2009 से 2011 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे हैं जबकि 1991 से 2012 तक वह पांच बार विधायक रह चुके हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी से कला में एमए और पीएचडी हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ. निशंक की साहित्य साधना के सदी के महानायक श्री अभिताभ बच्चन से लेकर विख्यात साहित्यकार श्री रस्किन बॉन्ड भी मुरीद हैं। श्री बच्चन कहते हैं, शब्द कभी मरते नहीं… डॉ. निशंक के देशभक्तिपूर्ण गीत हमेशा के लिए लोगों की जुबां  पर रहेंगे। पदम् श्री रस्किन बॉन्ड कहते हैं राजनीति में अत्यंत व्यस्त होने के बाबजूद निरन्तन लेखन डॉ. निशंक की साहित्य प्रतिभा को दर्शाता है। उनका लेखन राष्ट्र और लोगों को आपस में जोड़ता है।

डॉ. निशंक ने देश और विदेश की मीडिया से हमेशा बेबाकी से बात की है। पूरी शिक्षा ऑनलाइन हो जाए, क्या इसके लिए भारत का शिक्षा तंत्र तैयार है – बीबीसी संवाददाता के एक सवाल पर वह बोले, किसी को नहीं पता था कि कोरोना वायरस दस्तक देगा, इसीलिए कोई तैयार नहीं था। हम भविष्य की तैयारी में जरूर जुटे थे कि एक दिन ऐसा आना है, जिस दिन शिक्षा ऑनलाइन होगी। दूरस्थ क्षेत्र में बैठे स्टुडेंट्स को भी शहरी छात्रों जैसी सुविधाएं मिले। अब जब यह वक्त आया तो हमने अपनी तैयारियों की गति भी बढ़ा दी है। हमारी कोशिश है, देश के अंतिम छात्र तक ऑनलाइन शिक्षा पहुंचे। यशश्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का मंत्र दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनने का मौका है। डॉ. निशंक बोले, स्कूली शिक्षा के लिए दीक्षा और ई -पाठशाला सरीखे ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म हैं। अगर किसी छात्र के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है तो उनके लिए स्वयं प्रभा के 32 चैनलों के जरिए शिक्षा पहुंचाई जा रही है। भविष्य में जरुरत पड़ी तो रेडियो का भी इस्तेमाल करेंगे। मौजूदा माहौल में बदलाव के लिए कितना तैयार है, भारत का शिक्षा तंत्र ? मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. निशंक बोले, भारत से हर साल लगभग 7.5 लाख छात्र पढ़ाई के लिए विदेशों में जाते हैं, लेकिन अब उन्हें विदेश जाने की जरुरत नहीं है। बीबीसी संवाददाता से बोले, हमारी शिक्षा का स्तर किसी भी मायने में कमतर नहीं है। दुनिया की शीर्ष कंपनियों के सीईओ हिंदुस्तान से ही स्टडी करके गए हैं। अगर विदेशों में अच्छी पढ़ाई होती तो श्रेष्ठ कंपनियों के सीईओ वहीं के छात्र होते। सच यह है, आईआईटी, आईएमए, एनआईटी से निकलने वाले छात्र दुनिया में छाए हुए हैं। उन्होंने उम्मीद जताई,नई शिक्षा नीति भारतीय मूल्यों पर आधारित होगी। भारतीय विज़न, संस्कार और जीवन मूल्य दुनिया में छाएंगे क्योंकि आज इनकी दुनिया को जरुरत है।

छात्रों की सुरक्षा और भविष्य दोनों अहम हैं। विद्यार्थियों की सेहत, उनकी सुरक्षा, निष्पक्षता और समान अवसर के सिद्धांतों का पालन करना सर्वोपरि है। विश्वस्तर पर विद्यार्थियों की शैक्षिणक विश्वसनीयता, करियर के अवसरों और भविष्य की प्रगति को सुनिश्चित करना भी शिक्षा प्रणाली में बहुत मायने रखता है। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. निशंक ने चंद दिनों पहले अपने ट्वीट में देश के करोड़ों -करोड़ छात्र-छात्राओं के प्रति अपनी संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता जताई है। डॉ. निशंक माँ सरस्वती के सच्चे साधक हैं। कर्मयोगी हैं। जो ठान लेते हैं, उसे ईमानदारी और समर्पणभाव से पूरा करते हैं। डॉ. निशंक की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया था कि सीबीएसई के रिजल्ट 15 अगस्त तक जारी कर दिए जाएंगे, लेकिन सीबीएसई के रिजल्ट एक माह पूर्व ही जारी कर दिए गए हैं।

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