Home साहित्‍य कविता अब न चुप रह पाऊंगी

अब न चुप रह पाऊंगी

tearsलक्ष्मी जयसवाल अग्रवाल

जो तूने किया वो
न मैं कर पाऊंगी।
कुछ भी हो मैं
अब न चुप रह पाऊंगी।
बचपन में देख मेरी
चहचहाट और खिलखिलाहट
तूने मुझे लाज-शर्म का
गहना पहनाया और मुझे
चुप रहना ही सिखाया।
अब तक तो रही खामोश
और इन गहनों का बोझ उठाया।
जीवन भर तूने जो सहा
वो न मैं सह पाऊंगी
अब न मैं इन गहनों का
बोझ कभी उठाऊंगी।
जो सिखाया तूने मुझे
अपनी बेटी को कभी न
मैं वो सिखाऊंगी।
अपनी मासूम कली को
यह जंजीरें न पहनाऊंगी
कुछ भी हो मैं
अब न चुप रह पाऊंगी।
यह अंगना कुछ दिन का है
और पति का घर ही ठिकाना है
यह शिक्षा मैं उस मासूम को
न दे पाऊंगी।
शादी के बाद भी उसकी मैं
मां का फ़र्ज़ निभाऊंगी।
यह अंगना भी उसका हो
हक उसे दिलाऊंगी।
खुशी को उसकी मैं
हर परंपरा तोड़ जाऊंगी।
हो सका तो इस समाज के
खिलाफ आवाज भी उठाऊंगी
कुछ भी हो मैं
अब न चुप रह पाऊंगी।
ससुराल जाकर अपमान का अश्क़
पीना उसे न सिखाऊंगी।
स्वाभिमान और आत्मसम्मान
से जीना मैं उसे सिखाऊंगी
ससुराल के तानों से उसका
जीवन बचाऊंगी
दहेज़ के लालचियों से
उसका बंधन छुडाऊंगी।
कुछ भी हो हर हाल में
जीवन उसका खुशहाल बनाऊंगी।
कुछ भी हो मैं
अब न चुप रह पाऊंगी।

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