अभी मरी नहीं हूं यह जतलाना
खुदसे कहना, घर को जाती हूं मैं
खुदसे कहना, घर को आती हूं मैं
खुद से कहना, खाना खा लिया क्या
खुद ही कहना, अभी कहां,खाती हूं मैं।
जब भी घर में अकेली होती है,
वह सभी काम कर रोती है
बर्तन-कपड़े साफ करना
खाना पकाना और खिलाना
एक मशीन वह बन जाती है
तकदीर उसकी दवा बनी,
दवा छोड़ वह खुद पछताती है।
बेटा-बेटी के घर में होने पर भी
वह तनहाई में खुदको ले जाती है
दिन बदले, मौसम बदले और
पीव बीत गये जीवन के कई साल
खुशमन रखना चाहे सभी पर
उदासी में रहता उसका बुरा हाल।
ईश्वर भक्ति में शक्ति नहीं है
भक्ति में ड़ूबी, खुद बड़बड़ाती है
ईश्वर को स्नान कराना, वस्त्र पहनाना
नित पूजाकर मन से भोग लगाना,
उसे यह बात अब कतई नहीं सुहाती है
पीव दुनिया से वह टूट जाती है
वह जब ईश्वर से रूठ जाती है।