अबुझमाड़ में पत्रकारों की पदयात्रा नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति

journalism  अबुझमाड़ से लौटकर – युवा साहित्यकार पत्रकार लक्ष्मी नारायण लहरे

अबुझमाड़ के ओरछा से बीजापुर तक 16 पत्रकारों की दल पदयात्रा कर सकुशल वापस आ गये। अबुझमाड में पत्रकारों ने जगह-जगह जनताना सरकार से मिलने की कोशिश की पर जनताना सरकार के करिंदे पत्रकारों से मिलने से बचते रहे और अबुझमाड़ में पत्रकारों के लिये रास्ते खोलकर बचते रहे।
दक्षिण बस्तर में एक वर्ष में दो पत्रकारों की निर्मम हत्या से दक्षिण बस्तर के पत्रकार चिंतित और स्तब्ध हैं। अपने अभिव्यक्ति और मीडिया की स्वतंत्रता पर आंच आते देख नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति के लिये निकल पडे हैं। पत्रकार नेमिचंद जैन और सांई रेड्डी की निर्मम हत्या नक्सलियों ने करके पत्रकारों को उलझाने की कोशिश में लगे हैं। दक्षिण बस्तर में जो पत्रकार जंगल के अंदर से खबर लाकर समाज के सामने रख रहे थे, अब उन्हें डर लग रहा है और डर लगना स्वाभाविक भी है। आखिर नक्सलियों पर कैसे विश्वास किया जाये ? एक वर्ष में दो पत्रकारों की हत्या कर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं ? ये बात समझ से परे है। बस्तर का अबुझमाड़ 50 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है, जहां दूर-दूर तक संचार की कोई सुविधा नहीं है जहां जनताना सरकार की तूती बोलती है और गणतंत्र की गण का कोई महत्व नहीं। सरकार अबुझमाड़ में पंगु नजर आती है। अबुझमाड़ को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है, जहां विकास की बात करना गलत है। आजादी के 6 दशक बीता जाने के बाद भी अबुझमाड़ जस का तस पड़ा है। अबुझमाड़ को सरकार जनताना सरकार को सौंप दी है, कहना गलत नहीं होगा।
26जनवरी 1950 को भारत का संविधान बना और उसी की याद में हर वर्ष 26 जनवरी को तिरंगे झंडे को फहराकर गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। संविधान में हर नागरिक के कर्तव्य और मौलिक अधिकार हैं पर अबुझमाड़ में गणतंत्र का कोई मतलब ही नहीं है आज भी आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद अबुझमाड़ के आदिवासियों को उनके कर्तव्य और अधिकार नहीं मिल पाया। बेबसी भरी जीवन जीने को मजबूर हैं। इस बात को आप झुठलाना चाहते हैं तो पहले आप को अबुझमाड़ आना होगा और देखना होगा कि क्या वाकई आजादी मिली है या नहीं। 26 जनवरी को एक ओर जगह जगह जनप्रतिनिधि और नेता शान से झंडा फहरा रहे थे तो दूसरी ओर अबुझमाड़ के ओरछा जहां जनताना सरकार की मिल्कियत है। ओरछा नाले के उस पार जनताना सरकार की राज चलती है और पत्रकार धीरे-धीरे इकट्ठा हो रहे थे जनताना सरकार के विरोध में। 26 जनवरी से 30 जनवरी तक ओरछा से बीजापुर मीडिया स्वतंत्रता पदयात्रा के लिये निकल पडी थी और गढ़बेंगाल के पास पत्रकार चौपाल लगाकर बैठ गये थे। वहीं से शाम को ओरछा पहुंचे। मीडिया स्वतंत्रता पदयात्रा के संयोजक वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ल और वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकल तथा हरी सिंह सिदार अपने अनुभवों को बांट रहे थे वहीं समाज सुधारक हरिसिंह सिदार ने सार्वजनिक बात रखते हुये बोले-अबुझमाड़ आने से पहले बहू ने खूब स्वागत किया और 5 दिन की खर्चा भी मिल गई। पहला पड़ाव ओरछा था जिसमें मिडिया स्वतंत्रता पदयात्रा के संयोजक कमल शुक्ल वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकल हरिसिंह सिदार ,युवा पत्रकार संजय शेखर, रोहित श्रीवास्तव ,प्रदीप कुमार ,नितीन सिन्हा ,सर्वेस कुमार मिश्रा ,लक्ष्मण चंद्रा बसंत कुमार सिन्हा बप्पी राय प्रभात सिंह सुभाष विश्वकर्मा मनोज ध्रुव हरजीत सिंह पप्पू रोहित , मंगल कुंजाम ,अब्दुल हामिद , नीलकमल वैष्णव , अशोक गबेल इस तरह 20 से 22 पत्रकार ओरछा में रात गुजारी और कुल 16 पत्रकारों ने ओरछा के लिये सहमति दी और सुबह पदयात्रा शुरू किये जिसमें गिरीश पंकल हरिसिंह सिदार,युवा पत्रकार संजय शेखर ,रोहित श्रीवास्तव ,प्रदीप कुमार सर्वेस कुमार मिश्रा कमल शुक्ल रंजन दास की दल निकल पडी और लंबी पदयात्रा के बाद बड़े टोंडाबेड़ा, आदेर, ढोडरबेड़ा,कुडमेल ,मुरूमवाड़ा, लंका, बेदरे बीहड़ जंगलों से होते हुये 100 किमी लंबी पदयात्रा तय कर गांधी जी की पुण्य तिथि 30 जनवरी को बीजापुर पहुंची, जहां पत्रकारों की सम्मान किया गया। इस 5 दिन की पदयात्रा में जनताना सरकार के करिंदों से कई बार संवाद के लिये कोशिश हुआ पर दो पत्रकारों की हत्या के विषय में उनके पास कोई उत्तर नहीं था शायद इसलिये नहीं मिले वहीं इस पदयात्रा में पत्रकारों की दल में अबुझमाड़ में मुरूमवाड़ा से लंका के रास्ते में रासमेटा गांव के जंगल में ब्रम्हरास सरोंवर की खोज की जो बहुत सुन्दर जलप्रपात है। पदयात्रा का मुख्य मकसद नक्सलियों से संवाद कायम कर मीडिया की स्वतंत्रता पर चर्चा करना था पर नक्सली नहीं मिले। आज भी अबुझमाड़ के ग्रामीण विकास से कोसों दूर है जहां जनताना सरकार की हुकूमत है। अबुझमाड़ में बसे आदिवासी शिक्षा ,स्वास्थ्य , सड़क , बिजली ,पानी ,संचार ,यातायात जैसे मूलभूत सुविधाओं से आज भी कोसों दूर नजर आते हैं। सरकार की योजनायें यहां नहीं दिखती हैं। ओरछा ही एक ऐसा बाजार है जहां पहुंचने के लिये ग्रामीणों को 80 किमी दूर जंगल के रास्ते से तय कर जाना पड़ता है और पहुंच जाते हैं तो रात को ओरछा में ही ठहरना पड़ता है। इस प्रकार अबुझमाड में आदिवासी सरकार और जनताना सरकार के बीच पिस रहे हैं। उन्हें भी उजाला की शौक है पर सूरज की रौशनी के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं, आखिर कब अबुझमाड़ के रहवासियों को जनताना सरकार से आजादी और सरकार की योजनाओं को लाभ मिल पायेगा।

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