अशोक बजाज
चौंक गए ना इस घड़ी को देख कर ? आपका चौंकना जायज है क्योकि इस घड़ी की नंबरिंग सामान्य घड़ियों की तरह नही बल्कि उसके ठीक विपरीत है .ये ही नही बल्कि इसके कांटे भी सामान्य घड़ियों से उल्टे चलते है . किसी चीज के घुमने की दिशा प्रकट करना हो तो आम तौर पर ‘ क्लाँक -वाइस ‘ अथवा ‘ एन्टी क्लाँक -वाइस ‘ शब्द का प्रयोग किया जाता है ; लेकिन जो लोग इस घड़ी का प्रयोग करते है उनके लिए इसका अर्थ उल्टा होगा .इस घड़ी की परिकल्पना गोण्डवाना समाज ने की है , ये छत्तीसगढ़ में रहने वाले आदिवासी है जो प्रकृति प्रेमी होते है . आज जंगलों में यदि थोड़े – बहुत वृक्ष बचे है तो इनकी वजह से ही बचे है ,ये प्रकृति के रक्षक माने जाते है . ये पृथ्वी के पुजारी है . पृथ्वी के घुमने की दिशा ‘ एन्टी क्लाँक -वाइस ‘ होती है ,छत्तीसगढ़ में किसान जब खेतों में हल चलातें है तो उनके घूमने दिशा भी ‘ एन्टी क्लाँक -वाइस ‘ होती है शायद इसीलिए इन्होने इस प्रकार की घड़ी की परिकल्पना की है जो पृथ्वी की दिशा में घूमें .
मई २०११ के बस्तर प्रवास दौरान बचेली के एक कार्यकर्ता श्री संतोष ध्रुव ने मुझे दोपहर भोजन पर आमन्त्रित किया , उनकी बैठक में ऐसी ही घड़ी मुझे देखने को मिली . भोजन के दौरान इस घड़ी पर भी चर्चा हुई . ऐसा नही कि इस प्रकार की घड़ी को हमने पहली बार देखा हो , इससे पहले भी हमने ऐसी घड़ी देखी तो थी मगर तब हमने यह महसूस किया था कि शायद शौकिया तौर पर कुछ लोग जैसे गाड़ियों के नंबर प्लेट का कलात्मक डिजाइन बनवाते है उसी प्रकार अपनी घड़ी को भी बनावाये हों ,लेकिन ऐसा नही है . मेरी बस्तर-यात्रा के संस्मरण मे एक अध्याय बनकर इन् घड़ियों को देखना भी जुड गया. यात्रा यादगार रही.