अफगान राष्ट्रपति का चुनाव -दूसरा चरण-

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-फख़रे आलम-
afghanistan

राष्ट्रपति चुनाव का प्रथम चरण जिस प्रकार से शान्ति और सौहार्द से सम्पन्न हो गया। दूसरा चरण उतना ही पेचिदा और चुनौतीपूर्ण दिखााई देने लगा है। अंतिम और दूसरे चरण का मतदान खतरनाक बनता जा रहा है। प्रथम चरण में अनियमितताओं की कोई खबर नहीं थी और चुनाव में भाग लेने वाले सभी प्रत्याशियों ने प्रथम चरण के परिणाम को स्वीकार कर लिया था। दूसरे चरण के परिणाम को न तो अब्दुल्ला स्वीकार करने को तैयार है और न ही प्रो. अशरफ अली के समर्थक इसे स्वीकार करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं। प्रथम चरण जातिवाद और क्षेत्रवाद से अलग परिणाम था। और ऐसी लगने लगा था कि अपफगान की जनता एकजुट होकर लोकतंत्र प्रक्रिया को बहाल रखने और स्वतंत्र मतदान के मूड में है। प्रथम चरण में- पंजशेर से सम्बन्ध् रखने वाले ताजिक उम्मीदवार अब्दुल्ला राष्ट्रपति के लिए और उपराष्ट्रपति के लिस गुलबुद्दीन हिकमतयार की पार्टी से अहमद खान! उपराष्ट्रपति के लिये हजारा कबीला के मोहनीक समर्थन दे रहे थे। और उनके समर्थन में चुनाव मैदानों में कूची, तुर्कमन, पखतुन कबीलो के प्रमुख दिखाई दिये थे। प्रथम चरण और दूसरे चरण के मतदान और चुनाव प्रचार में उम्मीदवारों ने जातिवाद ओर कबीलाओं से हटकर अफगान के हित ओर भविष्य की बात करते दिखाई दिये थे। अशरपफ अली जिनका सम्बन्ध् पखतुन कबीला से है। उसकी टीम में उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार उजबेक नेता रशीद रोस्तम थे। उन्होंने अपने पैनल को हजारा, पखतुन ताजिक और तुरकमन तक समेट रखा था।

दूसरे चरण में भी पैनल की राजनीति दोनों प्रमुख उम्मीदवार, अब्दुल्ला और अशरफ गनी ने बना रखी थी। अब्दुला के समर्थन में काबूल और गैर परखतुन क्षेत्रों में प्रदर्शन हो रहे है। अशरफ गनी पर धांधली का जो आरोप लगाया जा रहा है, वह पखतुन क्षेत्रों में लगाये जा रहे। वर्तमान राष्ट्रपति हामिद करजाई को मध्यस्थता करके मामलों का हल निकालना चाहिए, जबकि हकीकत है कि वह मामलों को सुझाने के बजाये उलझाते जा रहे है। जैसे जैसे दूसरे चरण का मामला पेचीदा होता जा रहा है। वैसे वैसे कबिलाई और जातीय रूप लेता जा रहा है। अफगान चुनाव के दूसरे चरण में पाकिस्तान और अमेरिका के मध्य अच्छे रिश्ते दिखाई देने लगे हैं। वही पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सम्बन्ध् खराब होते दिखाई पड़ने लगे हैं। पिछले पांच वर्षों के अन्दर पाक-अमेरिका सम्बन्ध इतने अच्छे कभी नहीं रहे, जितने बेहतर वर्तमान में है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में दोनों देशों के तालिबानों ने दोनों देशों को आमने-सामने ला खड़ा किया है। अब दोनों देश तालिबानों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। मगर अफगान और पाकिस्तान के तालिबान है कि दोनों के जान के जंजाल बने है और बीच में अमेरकिन मध्यस्थता में अफगानिस्तान में फंसा राष्ट्रपति चुनाव का दूसरा चरण। देखना होगा कि अमेरिका हित, अथवा पाकिस्तान हित कौन किस पर भारी पड़ता है और असल अफगान देशभक्त अपने देश के भविष्य को कहां पर ले जाकर खड़ा करते हैं।

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