पड़ोसी देश पाकिस्तान न केवल आतंकी हव के रूप में अपनी पहचान बना चुका है बल्कि भारत देश के लिए अब वह नासूर हो गया है। यही कारण है कि लगातार हमले और उकसाने की कार्रवाई से भारत क्षुब्द्ध तो नजर आता है, लेकिन हरकत में नहीं। सवाल यही है कि आखिर कब तक भारतीय जवान शहादत देने को मजबूर होते रहेंगे। इसी साल की बात करें तो पठानकोट से अब तक 7 आतंकी हमले सामने आए हैं, जिनमें परोक्ष या अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान का हाथ होने के आरोप लगे हैं। इतना ही नहीं 2013 में खून खौलादेने वाला वह हादसा कैसे भुलाया जा सकता है जब लायंस नायक हेमराज और सुधाकर का सिर काटकर आतंकी ले गए थे। यह घटना 8 जनवरी 2013 की है और पूंछ सेक्टर में इस घटना को अंजाम दिया गया था। दोनों लायंस नायक राजपूताना रायफल के थे। उसके बाद 26 सितंबर 2013 को जम्मू के कठुआ में कर्नल सहित 8 लोगों की मौत हुई, जिनमें चार पुलिस के जवान शामिल बताए गए। 5 दिसंबर 14 को बारामूला के उरी सेक्टर में हमला हुआ एक लेफ्टिनेंट कर्नल और 7 जवान शहादत देने को मजबूर हुए। पठानकोट हमला इसी साल जनवरी में हुआ 7 जवानों ने देश की सरजमीं की खातिर जान न्यौछावर की। जून 16 में पंपोर हमला सीआरपीएफ काफिले पर इस हमले के दौरान 8 जवानों को शहादत देनी पड़ी, 20 जवानों के खून से देश की माटी लाल हुई और वह जख्मी हुए। 17 अगस्त 2016 को श्रीनगर बारामूला हाइवे पर सेना के काफिले पर हमला हुआ 8 जवानों को शहीद होना पड़ा। 7 सितंबर 16 को पुलवामा में हमला हुआ, भाग्य अच्छा था कि किसी की जान नहीं गई और अब उरी में हुआ आतंकी हमला जिसमें 17 जवान शहीद हुए। बेशक इस पूरे आंकड़े को करीब से समझते हुए यह आसानी से समझा जा सकता है कि खून बहाना पड़ोसी देश और उसकी सरपरस्ती में पल रहे आतंकियों को खूब भाता है। सवाल इस बात का है कि उसकी खून बहाने की इस आदत पर भारत कब तक चेतावनी देकर उसे भुलाकर आगे बढ़ता रहेगा। अगर चैन से सोना है तो भारत को क्या अब जाग जाने की जरूरत नहीं है। खून की इस होली पर अविलंब पूर्णविराम लगाने की आवश्यकता नहीं है और शायद देश अब यही चाहता है कि बहुत खून बहा लिया उन रक्तदानवों ने अब कोई राम का जन्म होना ही चाहिए। देश का एक वर्ग है जो कहता है कि जब भारत म्यामंमार की सीमा के अंदर जाकर आतंकियों को सबक सिखा सकता है तो पीओके में जाकर उन हत्यारों के साथ हमदर्दी कैसी। क्यों नहीं भारत पाकिस्तान के साथ सभी आर्थिक संबंधों और कूटनीतिक संबंधों को बंद कर देता। भारत और पाकिस्तान के बीच यात्रियों का आना-जाना क्यों प्रतिबंधित नहीं होता इस तरह के सुझावों की झड़ी लगी है। खासकर सोशल मीडिया पर यह सब देखा-सुना जा रहा है। इसके अलावा यह भी सामने आया है कि जम्मू कश्मीर में बहने वाली तीन बड़ी नदियों का पानी पाकिस्तान को दिया जाता है क्यों नहीं वह पानी देना भारत बंद कर देता। सोशल मीडिया के कुछ सोशल एक्टिविस्टों का मानना है कि ऐसा करने से उसकी कमर टूट जाएगी। भारत देश बढऩा चाहता है, पाक को ये गवारा नहीं और वह खुद बढऩे की कोशिश नहीं करता बल्कि भारत को गिराने की कोशिश में दिनरात एक करता है। हमारी ऊर्जा का करीब 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा पाक और उससे लगी सीमाओं की रक्षा करने और उन समस्याओं को निबटान में खर्च हो रहा है जो पड़ोसी देश पाकिस्तान हमारे देश भारत के लिए पैदा करता है। वर्षांे-बरस बीत गए यह बंद नहीं हो रहा है सोचो अगर पाक के साथ हमारे संबंध पूर्णत: तय हो जाएं और एक बार जो होना है वो हो जाए तो शायद हम खुलकर बढ़ सकेंगे। यह कहने में शायद आसान हो, लेकिन इसे मानसिक और प्रेक्टिकल रूप से लागू करना बड़ी चुनौती जरूर होगी। हर पहलू को खंगालना भारत की प्राथमिकता होगी, लेकिन अब डर का कोई पनाहगार नहीं है। कहते हैं कि डर के आगे ही तो जीत है। दरअसल भारत अगर अपने सारे विकल्प देखे तो अब पाक को मुंहतोड़ जबाव देने के अलावा उसके पास शायद कोई विकल्प मौजूद भी नहीं है। माना कुछ हमारा भी बिगड़ेगा जरूर पर यकी सबको है कि कुछ युद्ध जैसा हुआ तो पाक का वजूद खतरे में जरूर होगा। जब बयान आता है कि एक दांत के बदले पूरा जबड़ा निकाल लिया जाए तो हिन्दुस्तान की आवाम के रोम-रोम खिल उठते हैं। सोशल मीडिया ही नहीं देश का एक बड़ा वर्ग जो चाहता है कि वाकई अब समय आ गया है कि पाक को ईंट का जबाव पत्थर से देना ही होगा, उसने एक दांत निकाला है हिन्दुस्तान का, अब उसका पूरा जबड़ा गिराकर ही दम लेना होना। पाक तो शायद हमें चैन से जीने देना चाहता ही नहीं है, हमने लाख बार उसे समझाया पर उसे जियो और जीने दो का सिद्धांत कभी समझ ही नहीं आया। दरअसल उसने रंग खून का लाल अब तक बहता भारतीयों का देखा है। जब तक रंग खून का लाल पाकिस्तानियों का उसे नजर नहीं आएगा तब तक शायद उसे सच्चाई समझ में भी नहीं आएगी। उसकी सियासत इंसानियत से बड़ी है, नियत में खोट और आंखों में भारतीयता खटकती है, ऐसे में
अब हर कोई बस यही जतन करे,
हमले अव्वल तो न हो यूं हर रोज मेरे कश्मीरे वतन पर
और हो भी तो खून मेरे अपनो को न बहे।
सरकार सोच ले अबकी बार यूं हर बार शहादत को मजबूर न हो तेरे भारत के सैनिक हजार।
अतुल गौड़