आखिर कहां से आया गंगा नदीं में 40 शव, अनसुलझी गुत्थी का कौन है गुनहगार?

मुरली मनोहर श्रीवास्तव
वैश्विक महामारी कोरोना के इस संकटकाल कई अजीबोगरीब वाक्या देखने को मिल रहा है। बिहार के बक्सर के चौसा स्थित गंगा घाट से मन को विचलित कर देने वाली तस्वीर अब सामने आयी है। हम बात कर रहे हैं मानवता की, हम बात कर रहे हैं इंसानियत की। मगर कोरोना महामारी में इंसान इतना नीचे गिर जाएगा इसका एहसास गंगा किनारे तैरते शवों को देखकर हुआ। कल तक जहां अपनों को बचाने की जद्दोजहद चल रही थी, वहीं आज एक..दो…तीन नहीं बल्कि 40 शवों के एक साथ मिलने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। आखिर ये शव किसके हैं, कहां से आए हैं।
बक्सर में मिले शव
बिहार के बक्सर जिले के चौसा प्रखंड में गंगा नदी में तैरते 40 शव बरामद किए जाने के बाद से इलाके में भय का माहौल कायम हो गया है। कोरोना काल की यह सबसे भयावह तस्वीर कही जा सकती है। एक बात और कही जा सकती है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि 40 से भी ज्यादा शव हों और उस पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है। शवों के मामले में बक्सर के जिलाधिकारी अमन समीर का दावा है कि शव बह कर आए और उसको बक्सर में बरामद किया गया। इतनी बड़ी संख्या में शवों का मिलना कहीं न कहीं मानवता को शर्मसार तो करती ही है। चौसा बिहार और उत्तर प्रदेश का बॉर्डर है। इस जगह पर कुछ भी कह पाना मुश्किल प्रतीत होता है। मगर शवों का इस कदर मिलना प्रशासन पर ही कई सवाल खड़ा कर रहा है। लोगों का यह भी आरोप है कि शव अभी और हो सकते हैं उसे छुपाया जा रहा है। खैर, इतना शवों का एक साथ मिलना भी कम नहीं होता है।

आखिर क्या है हकीकत

चौसा प्रखंड के गंगा नदी के किनारे बहकर आए लगभग 40 शवों को क्षत-विक्षत स्थिति में पाया गया है। बक्सर के जिलाधिकारी अमन समीर का इस संदर्भ में कहना है कि गंगा नदी में पाए गए शव तीन से चार दिन पुराने हैं, इस कारण स्पष्ट है कि शव बक्सर जिले के नही हैं। शव बहकर आए हैं, यहां तक तो बात अलग है मगर कोरोना काल में मरने वाले मरीजों के शवों को उनके परिजनों को न देकर जलाने की बजाए बड़ी संख्या में गंगा में प्रवाह कर सरकारें अपना पीठ जरुर थपथपा रही हैं। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस इंसान के बूते सरकारें बनती है, सत्ता मिलती है, उनके लिए इन शवों का कोई मोल भले ही न हों मगर इन शवों का हर उस परिवार के लिए बहुत महत्व है, जिस घर से मौतें हुई हैं। इन शवों के मिलने के मामले में लोगों का कहना है कि पोस्टमार्टम से कैसे पता चल पाएगा कि ये शव कहां का है। इस जांच में ये पता चल सकता है कि इन लोगों की मौत कोरोना से हुई है या नहीं। वहीं बक्सर क्षेत्र के स्थानीय लोगों का ये भी मानना है कि ये शव बक्सर जिले के हैं। हलांकि उत्तर प्रदेश की सीमा से बहकर आने की बातों से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। इस तथ्य की सत्यता की पुष्टि के लिए बक्सर के जिलाधिकारी ने बताया कि सीमावर्ती जिलों के जिलाधिकारियों से इस मामले में बातचीत भी की गई है तथा भविष्य में ऐसी घटना को रोकने के लिए चौकसी करने का निर्देश दिया गया है। पर, सवाल ये उठता है कि शव बिहार का हो, उत्तर प्रदेश का हो, है तो इंसान का ही फिर इन शवों के साथ अमानवीय व्यवहार क्यों किया गया? आखिर इसका असली गुनहगार कौन है?

शवों को बहाया जाना कोई और वजह तो नहीं
गंगा नदी में शवों के इस कदर बहाए जाने को लेकर तरहत-तरह की बातें सामने आ रही है। कोई इसके प्रशासनिक लापरवाही, सरकार की उदासीनता मान रहा है तो कोई इस भरी गर्मी में लकड़ी का अभाव बता रहा है। कहा तो ये भी जा रहा है कि लकड़ी की कमी की वजह से शवों को बहाया जा रहा है। पीपीई किटों में लिपटे शव भले ही परिजनों के लिए बहुत कीमती हो सकती है। मगर अस्पताल प्रबंधन के लिए यह सिर्फ शव से ज्यादा कुछ नहीं है। अगर सरकार इस कार्य में अक्षम है तो कोरोना से हुई मौत के बाद उनके शवों को आखिर क्यों नहीं दिखा रहे हैं। आपको एक बात बता दूं कि पटना के पीएमसीएच में एक ऐसा ही मामला सामने आया था जीवित व्यक्ति का मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत कर उसके परिजन को गंगा घाट पर भेज दिया गया था। जब उसके शव को देखा गया तो वो किसी और का था। लोगों का ये भी कहना है कि कई ऐसे परिजन हैं जो शव को जलाने के लिए लकड़ी खरीदने में भी असमर्थ हैं उनके शव गंगा नदी में बहा दिए जाते हैं। अगर ऐसी बात है तो प्रशासन और सरकार पर फिर से सवाल खड़े हो जाते हैं कि बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार कि मृतकों का दाह संस्कार कराने में मदद करेगी। जब मदद कर ही रही है तो शव क्षत-विक्षत गंगा में तैरते क्यों पाए जा रहे हैं। सभी को पता है कि कोरोना पीड़ितों का बिहार में शवों का दाह संस्कार प्रशासन के लोग ही करा रहे हैं इसलिए शव को बाहर फेंकने की घटना समझ से परे है। रही बात उत्तर प्रदेश की तो वहां की सरकार को अगर ऐसा हुआ है तो मानवता को शर्मसार करने वाली घटना है।
इस तरह शवों का बक्सर गंगा नदीं में मिलना कोरोना काल में कई राज को खोलने के लिए काफी है। यह तो सिर्फ एक जगह का मामला है। देश के विभिन्न हिस्सों में शवों की क्या स्थिति है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। आखिरकार शवों ने अपने नहीं होने का और गंगा में प्रवाहित किए जाने का खुद से ही खुलासा कर दिया, जिससे देश और राज्य की सरकारों पर लानत है। उन्हें सोचना होगा कि आखिर लाशों पर राजनीति कितने दिनों तक होगी। रोक लीजिए इस आंधी को वर्ना इस आंधी में अगर जनता जाग गई तो बहुत बड़ा बदलाव हो सकता है। आज 40 शवों तक ही यह बात आकर नहीं ठहरती जनाब बल्कि इसकी जद में कुछ और ही होने की आशंका बढ़ गई है। देश से लेकर बिहार-उत्तर प्रदेश में सरकारें एक हैं, फिर आरोप प्रत्यारोप किस बात का। बात तो इस तरह किए जा रहे अमानवीय कार्यों पर विराम लगाने की होनी चाहिए ना कि अपना-अपना पल्ला झाड़ लेने की। बस करों सरकार, एक तो कोरोना की लड़ाई लड़ रही है असहाय जनता और यहां आप है कि बहते शवों पर भी दो राज्यों के बीच सियासत को जन्म दे रहे हो।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here