आखिर दीपक क्यों जलाया जाता है?

happy-diwali-deepavaliभारतीय संस्कृति में हर धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम  में दीपक जलाने की प्रथा है। ऐसी अवधारणा है कि अग्नि देव को साक्षी मानकर उसकी मौजूदगी में किए काम जरूर सफल होते हैं।
शिक्षाविद और पलवल डोनर्स क्लब के संयोजक आर्यवीर लायन विकास मित्तल बताते है कि
हमारे शरीर की रचना में सहायक पांच तत्वों में से अग्नि भी एक है। दूसरा अग्नि पृथ्वी पर सूर्य का प्रतीक है। इसलिए किसी भी देवी- देवता के पूजन के समय ऊर्जा को केंद्रीभूत करने के लिए दीपक प्रज्वलित किया जाता है।
दीपक का जो असाधाण महत्व बताया गया है, उसके पीछे मान्यता यह है कि प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है। परमात्मा प्रकाश और ज्ञान रूप में ही सब जगह व्याप्त है। ज्ञान प्राप्त करने से अज्ञान रूपी मनोविकार दूर होते हैं और सासारिक शूल मिटते हैं। इसलिए प्रकाश की पूजा को ही परमात्मा की पूजा कहा गया है। मंदिर में आरती करते समय दीपक जलाने के पीछे उद्देश्य यही होता है कि प्रभु हमारा मन अधंकार सें प्रकाश की ओर ले चलें। मृत्यु  से अमरता की ओर हमें ले चलें। दीपक के प्रकाश से की गई प्रार्थना का उल्लेख ऋगवेद में यूं मिलता है!

अयं कविकविषु प्रचेता मत्र्येप्वाग्निरमृतो नि धायि।
समानो अत्र जुहुर: स्हस्व: सदा त्व्सुमनस: स्याम।।

यानी हे प्रकाश रूप परमात्मन। तुम अकवियों में कवि होकर, मृत्यों में अमृत बनकर निवास करते हो। हे प्रकाश स्वरूप तुमसे हमारा यह जीवन दुख न पाए हम हमेशा सुखी बने रहें।दीपक से हमें जीवन के उद्धर्वगामी होने, ऊंचा उठने और अंधकार को मिटा डालने की भी प्रेरणा मिलती है। इसके अलावा दीप ज्योति से पाप खत्म होते है।
शत्रु का शमन होता है और आयु, आरोग्य, पुण्यमय, सुखमय जीवन में बढ़ोत्तरी होती है। दीपक जलाने के संबंध में कहा जाता है कि सम संख्या में जलाने से ऊर्जा संवहन निष्क्रिय हो जाता है, जबकि विषम संख्या में जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। दीपक की लौ के संबंध में यह मान्यता है कि इससे आयु में वृद्धि होती है। पश्चिम की ओर लौ रखने से दुख और दक्षिण की ओर लौ रखने से हानि होती है।

दीपक क्या है?

दीपक एक प्रकार का पात्र है जिसमें रुई की बाती लगाकर घी या तेल डालकर ज्योति प्रज्वलित की जाती है। वैसे तो पारंपरिक तौर पर मिट्टी का दिया ज्योति प्रज्वलित होता है परन्तु अब धातु के दीपक भी अत्यधिक प्रचलन में हैं।
कई बड़ी-बड़ी अंधेरी गुफ़ाओं में इतनी अद्दभुत एवं अत्तयंत ही सुन्दर चित्रकारी मिलती है जिन्हें बनाना बिना दीपक के असंभव था। हमारे भारतवर्ष में दीपक का इतिहास प्रामाणिक रूप से ‘5000 वर्षों’ से भी अधिक पुराना हैं। कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले हिन्दू धर्म में पहले भगवान के सामने दीपक प्रज्वलित किया जाता है।

दीपक जलाने के धार्मिक कारण-
दीपक को ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। दीपक को पूजा पाठ में विशेष महत्व दिया जाता है। विषम संख्या में आमतौर पर दीपक जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पूजन के समय हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार दीपक जलाना अनिवार्य माना गया है। घी के दीपक से आरती करने पर घर में सुख समृद्धि आती है। घी के दीपक से आरती करने से घर में लक्ष्मी जी का स्थाई रूप से निवास होता है।

एन जी एफ रेडियो की सामाजिक संयोजिका अल्पना मित्तल बताती है कि दीपक जलाने के वैज्ञानिक कारण-
सकारात्मकता का प्रतीक दीपक को माना जाता है एवं दीपक प्रज्वलित करने से दरिद्रता दूर होती है। गाय के दूध से बनाये गये घी में रोगाणुओं को दूर करने की क्षमता अधिक मात्रा में होती है। यह गाय का घी जब भी दीपक में अग्नि के संपर्क से पूरे वातावरण को पवित्र बना देता है एवं प्रदूषण को दूर करता है।

यह मंत्र बोलिए दीपक जलाते समय-
“दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योति: नमोस्तुति।।”

जानिए नियम दीपक जलाने के-
1) पूर्व दिशा की तरफ़ दीपक की लौ रखने से आयु में वृद्धि होती है।
2) पश्चिम दिशा की तरफ़ दीपक की लौ रखने से दुख में बढ़ोतरी होती है।
3) उत्तर दिशा की तरफ़ दीपक की लौ रखने से धन लाभ होता है।
4) कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ़ दीपक की लौ को ना रखें इससे जन या धन की हानि होती है।

आर्यवीर लायन विकास मित्तल

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