मोदी, अशोक के बाद दूसरे बड़े शासक – प्रो. लोकेश चंद्र

 

lokesh  chandraजितेन्द्र गुप्ता

प्रोफेसर लोकेश चंद्र शास्त्रीय यूनानी, लैटिन, चीनी, जापानी, पारसियों की अवेस्ता, पुरानी फारसी और सांस्कृतिक महत्व की अन्य भाषाओं के ज्ञाता हैं। वह संस्कृत, पालि और प्राकृत भाषा के विद्वान हैं। उनके नाम 596 कार्य और पाठ संस्करण हैं। उनमें से तिब्बती-संस्कृत शब्दकोश, तिब्बती साहित्य के इतिहास के लिए सामग्री, तिब्बत का बौद्ध प्रतिमा विज्ञान और 15 खंडों में बौद्ध कला का उनका शब्दकोश जैसी कालजयी कृतियां हैं। उन्होंने बुद्ध और शिव तथा भारत एवं जापान के बीच सांस्कृतिक संगम पर भी लिखा है। फिलहाल वह भारत और चीन के बीच पिछले दो हजार वर्षों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर लिख रहे हैं। लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय से सन 1947 में स्नातकोत्तर करने वाले प्रोफेसर चंद्र भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् के अध्यक्ष हैं। साथ ही वह भारतीय संस्कृति की अंतरराष्ट्रीय अकादमी, एशियाई संस्कृतियों के लिए एक प्रमुख अनुसंधान संस्था के मानद निदेशक हैं। वह सन 1974 से 1980 और 1980 से 1986 तक दो अवधियों में लिए राज्यसभा से संसद सदस्य भी रह चुके हैं। प्रोफेसर चंद्र ने आउटलुक की सहायक संपादक आकांक्षा पारे काशिव से देश और प्रधानमंत्री मोदी की योजनाओं पर बात की।

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) की विदेश में भारतीय संस्कृति को समझाने में क्या भूमिका होती है?

विदेश में भारतीय संबंध बनाने के लिए आईसीसीआर काम करता है। भारत से भाषा, इतिहास, दर्शन, संगीत, नृत्य और अन्य विषयों के विद्वान विदेश जाते हैं। यह दो देशों के बीच आंतरिक संबंध और एक-दूसरे के देश की संस्कृति को समझने के लिए है। एशिया के बड़े-बड़े देश हैं जो एशिया की बातों को समझना चाहते हैं। वहां के लोग यहां आते हैं, यहां के लोग वहां जाते हैं। इससे परस्पर संबंध प्रगाढ़ होते हैं।

 

किसी देश में किस तरह के कार्यक्रम की मांग है, कैसे तय किया जाता है?

इसका पूरा दारोमदार उस देश में रह रहे भारत के राजदूत पर निर्भर है। बाहर के लोगों को भारत के बारे में जानना है तो वह देश भारत के दूतावास में अपनी जरूरत रखता है। इसके बाद भारत में कई स्तरों पर बात होती है। आईसीसीआर के बाद मंत्रालय और फिर हम उनकी जरूरत के अनुसार प्रोफेसर, विद्वान उस देश को भेजते हैं। संस्कृत, इतिहास, आधुनिक इतिहास यानी जो देश जैसी सेवाएं चाहता है हम वैसी सेवाएं देते हैं। अनेक देशों की अपनी-अपनी मांग है।

 

अनेक भाषाओं, संस्कृति के विद्वान होने के नाते आपको नहीं लगता भारत के लोगों को भी अपनी संस्कृति से जुड़ाव होना चाहिए? इसके लिए हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत को अनिवार्य कर देना चाहिए?

संस्कृति से जुड़ाव नियम या कार्यक्रमों से नहीं आता। इसके लिए मन में इच्छा होनी चाहिए। यूरोप में जो लोग संस्कृत पढ़ते हैं वह क्लासिकल के रूप में पढ़ते हैं। चीन में 1009 वीं शताब्‍दी के ग्रंथ हैं, इसलिए वे संस्कृत पढ़ते हैं। जापान में बौद्ध धर्म के कारण संस्कृत पढ़ी जाती है। यूरोपीय देश  की भाषाएं संस्कृत से जुड़ी हुई हैं। उन लोगों को अपनी परंपरा समझने के लिए संस्कृत आवश्यक लगती है। वहां को प्रभाव के रूप में नहीं, अपनी अंतरात्मा के लिए संस्कृत पढ़ी जाती है।

 

मैं भारत की बात कर रही हूं। हमारे यहां स्कूलों में जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश है मगर संस्कृत…?

स्कूलों की छोडि़ए। विश्वविद्यालय में संस्कृत के विभाग हैं। भाषाओं में छात्रों की कमी रहती है। जो पढ़ना चाहेंगे कहीं भी पढ़ेंगे।

 

स्कूलों में संस्कृत अनिवार्य कर देना चाहिए?

संविधान में त्रि-भाषा सूत्र में विदेशी भाषा नहीं हो सकती। तीन भाषाएं निश्चित हैं और उसमें संस्कृत भी नहीं हो सकती। भाषा का कोई विरोध नहीं है। संविधान के नियम के अनुसार सब होता है। सरकार जो भी काम करेगी संविधान के अंतर्गत करेगी।

 

आईसीसीआर के काम को लेकर मोदी जी से बैठक होती है। वह कोई परामर्श देते हैं?

अभी तक उन्होंने हमें कुछ नहीं कहा। परामर्श तो बिलकुल नहीं। उन्हें मुझ पर विश्वास है कि मैं जो काम करूंगा अच्छा करूंगा। मैं कोई विवादास्पाद काम करना नहीं चाहता। मैंने यहां आकर बौद्धिक काम किया है। पहली बार मैंने रोमा कॉन्फ्रेंस बुलाई है। वियतनाम कॉन्फ्रेंस बुलाई है।

 

आप एक-दूसरे को समझते हैं क्या इसलिए आपने उन्हें ईश्वर का अवतार कहा था?

नहीं, मैंने कहा था, ही इज ए इनकारनेशन ऑफ डिवाइन। डिवाइन वैल्यू है। हमारे यहां ईश्वर की जो कल्पना है, वह हृदय स्थान में है। हम ईश्वर को दरिद्र नारायण कहते हैं। उनमें दिव्य तत्व है। मोदी जी मेरे लिए इसलिए दिव्य तत्व हैं कि मोदी जी सचमुच देश को ऊपर ले जाना चाहते हैं। और उसमें आधुनिकता के बिना कुछ नहीं हो सकता। उनके पास बहुत योजनाएं हैं। हमें सड़कें चाहिए। अब तो बुलेट ट्रेन भी होनी चाहिए।

 

साधारण ट्रेन ही समय पर नहीं चलतीं?

हमारे यहां एक तंत्र भी तो है। उसकी अपनी बाधाएं हैं। धीरे-धीरे सब चीजें दुरुस्त होंगी।

 

उन्हें उद्योगपतियों का प्रधानमंत्री कहा जाता है?

समाज समन्वय से चलता है। उद्योगपतियों का भी स्थान है और मजदूरों का भी। बिना मजदूरों के उद्योगपति नहीं चल सकते। मोदी जी का प्रयास बहुत अच्छा है। मेक इन इंडिया बड़ी योजना है। वह बिना भेदभाव के काम कर रहे हैं। मेक इन इंडिया से निर्यात बढ़ेगा इससे हमारी आर्थिक व्यवस्था सुधरेगी। मोदी जी सफल तंत्र को स्वीकार करने के हामी हैं। चीन में देखिए मेड इन चाइना से कितना बदलाव आाया। उनका दृष्टिकोण अस्ति है नास्ति नहीं।

 

राम, कृष्ण, अशोक बड़े शासक हुए हैं। आप उन्हें किस तरह का शासक मानते हैं।

अशोक के बाद वह दूसरे बड़े शासक हैं।

 

क्या कारण है?

क्योंकि वह देश को देश के रूप में देख रहे हैं। प्रशासन की दृष्टि से नहीं। उनके मन में कोई विदेश नहीं है। उनके लिए देश ही प्रधान है। जीव विज्ञान में कहा जाता है, टेरिटोरियल एंपेरिटी यानी पशु के लिए भी भूमि का प्रेम बड़ा है। शेर भी एक विशेष क्षेत्र में रहता है। मोदी भी भारत को पुण्य भूमि के रूप में देखते हैं। मैं मोदी जी का भक्त हूं। मुझे लगता है देश में बहुत कुछ होगा और अच्छा होगा।

 

आप कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित रहे हैं। फिर मोदी से प्रेम कैसे?

मोदी और कांग्रेस में कोई विशेष अंतर नहीं। दोनों देश को आगे ले जाना चाहते हैं। कैसे ले जाना चाहते हैं इसमें अंतर हो सकता है। मोदी मिट्टी से विकास को जोड़ते हैं। वह माटी पुत्र हैं। वह आधुनिकता को भी स्वीकार करते हैं और परंपराओं को भी।

 

उन्हें लेकर देश दो खानों में बंट गया है?

बहुत से कारण है। भारत अलग-अलग विचारधारा का देश है। मोदी जी ने किसी की विचारधारा को नहीं मारा। स्वीकृति-अस्वीकृति दोनों चलेगी। जरूरी है कि संसद चलना चाहिए, काम होना चाहिए।

 

उनके बारे में एक रहस्य सा लगता है। आम जनता उनके बारे में जानना चाहती है?

उनको कोई समझा नहीं है। देश में जो भी हो रहा है उसकी एक आत्मा होती है। यह आत्मा मोदी में विद्यमान है। उनको भारत से बहुत प्रेम है। वह सारा दिन यही सोचते हैं कि भारत को कैसे आगे ले जाया जाए। उन्होंने सड़क के लिए एक नई योजना बनाई है, जो अद्भुत है। बिना किसी रेलवे क्रॉसिंग को पार किए सड़कें बनाना। सोचिए इससे कितनी गति मिलेगी। ट्रांसपोर्ट सुधरेगा, किसानों का सामान यहां-वहां ले जाना आसान होगा। पत्रकारों ने उन्हें रहस्यमय बना रखा है।

 

प्रधानमंत्री के विरोध को कैसे देखते हैं?

विरोध एक प्रकार स्वीकृति है। लोग सोचते हैं वह ऐसा कर रहे हैं तो क्यों कर रहे हैं? वह यह चुनौती भी पार कर जाएंगे। लोग समझना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री क्या कर रहे हैं। यह उनके लिए बड़ी चुनौती है। जब लोगों को लगता है यह ऐसा क्यों कर रहे हैं तो यह विरोध प्रधानमंत्री के लिए यह प्रेरणा होता है।

(Courtesy : Outlook)

 

2 COMMENTS

  1. मोदी जी मौलिक नेतृत्व है। और मौलिकता किसी रेखापर चलकर आगे नहीं बढती। मैं भी मानता हूँ, मोदी जी अशोक के पश्चात सबसे बडे शासक हैं। आप में राम और कृष्ण दोनों का मिश्रण है।भ्रष्टाचारी विपक्ष के सामने कृष्ण की चतुराई चाहिए।
    हर मोड पर कूटनीति से काम ले रहा है। संसार में भारत की तुफानी सफलता हो रही है। विसा नकारनेवाले अमरिका ने भी लाल दरी बिछाई थी। मात्र काला धन मिडीया समाचार में मीन मेख निकालता रहता है। और जाति आधारित लल्लू-मुल्लु पार्टियाँ समाचार मोडने का धंधा करती रहती है।
    फिर त्यागी विरागी भी है। भारत भाग्यवान है, दो वर्ष पहले की हताशा आशा में बदल गयी है।इतनी समस्याओं से जूझते मोदी को जितनी शुभेच्छाएँ भेजी जाएँ, कम है। लोकेश जी से सहमति।
    मूर्ख==> साथ नहीं देंगे। पर विकास करके दिखा।
    ऐसा तो अषोक को भी करना ना पडा होगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here