अपनों के विरूद्ध
हो रही है लामबंदी
बारूदी गंध
घुल रही फिजाओं में
अवसाद भरा कोरस
गूंज रहा हवाओं में
हो रही है हदबंदी
फिर दिलों के बीच
अपनों के विरुद्ध
ले कर हथियार
सब हैं तैयार
सड़कों पर, चौराहों पर
पिस रही हजारों
मासूम जिंदगियां
झुलस रही संवेदनाएं
बह रहे तमाम रिश्ते
नफरत के सैलाब में
अपनों के विरुद्ध
उठाने लगे फन
जहरीले नाग
साइबर संदेशों से
भड़क रही आग
बेबस और लाचार
निहत्थी- निरपराध
गरीब यह रियाया
भुगत रही सजा
जाने किन गुनाहों की
अपना ही देस
लगने लगा बेगाना
घर लौटने लगे
प्रवासी परिंदे
पेट की खातिर
भटकते हैं जो
इधर से उधर
हैं बसेरे से दूर
रहने को मजबूर
अपनों के विरुद्ध
वहशत और जुनूं
चलता हर कदम
नफरतों के बीज
बोता है कौन
हमारे बीच
पले-बढ़े साथ-साथ
बांटते हैं सुख-दुख
बन जाते अचानक
वही दुश्मन जान के
नफरत की आग में
सेंकते हैं सब
स्वार्थ की रोटियां
चलते हैं
अपनी-अपनी गोटियां
बंट रहा है खानों में
नेता, समाज, मीडिया
रौंदी जा रहीं हैं जड़ें
साझी विरासत की
अपनों के विरुद्ध
पैदा करती है
राजनीति अंदेशा
इंसानों के बीच
बढ़ाती है दूरियां
सत्ता के लालची
संकीर्ण स्वार्थ में
बाँट रहे हैं देश को
फैल रहा है विषवेल
हर तरफ है घेराबंदी
भाषा, जाति, धर्म की
कठुआ रही है एकता
अस्मिताओं के संघर्ष में
खत्म हो रही राष्ट्रीयता।