अगर जीत हजम न हो तो हाजमोला ले लो !

– अर्चना त्रिपाठी
 अब किसी ने मुख्यमंत्री बनने का सपना देखा हो और मुख्यम्नत्री बनने के लिए ही पार्टी से बगवात का राग अलाप कर नेतृत्व परिवर्तन की मांग पर परिवर्तन महारैली का आयोजन किया हो और अगर उनकी यह इच्छा परवान न चढ़े तो जाहिर है दुःख ही नहीं क्रोध आना भी वाजिब है। वैसे हुड्डा ने जिस प्रकार केंद्रीय नेतृत्व को अपने सामने झुकने पर मजबूर किया। अशोक तंवर को बाहर का रास्ता दिखाया, किरण चौधरी के पद पर भी कब्ज़ा किया, उसके बाद शैलजा के साथ खुद को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करते हुए जो चुनाव लड़ा उसी का नतीजा ही था कि इस बार हुड्डा ने जाट बेल्ट में अपनी महारत दिखाई और 2014 के आकड़ो को 31 तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की। हालाँकि 46 के जादुई आकड़े उनके पास होते हुए भी दूर थे। पास इसलिए क्योंकि उनको भरोसा था दुष्यंत का साथ मिल जाएगा, और दूर इसलिए क्योंकि उन्हें दुष्यंत के फैसले का इंतज़ार था। हुड्डा जानते थे कि मुख्यमंत्री की सीढिया निर्दलीय के भरोसे चढ़ी भी नहीं जा सकती थी। क्योंकि इन निर्दलीय को पहले ही भाजपा की सांसद सुनीता दुग्गल अपने उड़नखटोले में ले जाकर मुस्कुरा कर फोटो खिचवा रही थी। ऐसे में हुड्डा का सपना कोई पूरा कर सकता था तो वह था जजपा के नेता दुष्यंत चौटाला। इसलिए पहले ही जानबूझकर ऐसे माहौल और बयानबाजी कांग्रेस की तरफ से दी जा रही थी कि दुष्यंत भाजपा के साथ न जाए। दुष्यंत ने कहा कि जो कोई उनकी शर्त अर्थात चुनावी वादों की मानेगा तो समर्थन देने का सोचेंगे। कांग्रेस की हड़बड़ी तो देखो तुरत बयान भी आ गया हुड्डा जी का उचित मानसम्मान और बातों को भी माना जायेगा। अब दुष्यंत चौटाला भी कोई राजनीति के कच्चे खिलाड़ी तो है नहीं उनको पता है किसके साथ कब हाथ मिलाना है और उससे प्रदेश की जनता और खुद उनको क्या फायदा होने वाला है।  दुष्यंत ने जाट नेता की छवि के साथ खुद को नॉन जाट नेता की छवि भी लानी जरुरी थी, साथ ही उनकी चाह थी कि राजनीति में उनकी भागीदारी रहे और स्थानिक युवाओ को 75 % आरक्षण के साथ वृद्ध पैंशन जैसे कई मुद्दे उनके हल हो।  इसलिए उन्होंने सूझबूझ का परिचय देते हुए भाजपा को समर्थन देते हुए हरियाणा की जनता से जुड़े मुद्दों को हल करने की दिशा में उनके सफर की पहली सीढ़ी चढ़ी। मगर पता है न जब हरियाणा का एक जाट नेता आगे बढ़ रहा हो, वह युवा और ईमानदार छवि का हो तो जाहिर है, हरियाणा के दूसरे जाट नेता को यह बात नहीं सुहाई। माना जा रहा है कि हाथो से मुख्यमंत्री का पद जाने और सरकार बनने से चुकने के कारण विपक्ष का हाजमा ऐसा खराब हुआ है कि कांग्रेस आईटी सेल और कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओ ने जजपा के भाजपा में जुड़ने से ऐसी परव्शानी हुई की उन्होंने सोशल मीडिया में इसके खिलाफ गंदे भद्दे तस्वीर के साथ लिखना भी शुरू कर दिया। आईटी सेल वालो को यह समझ नहीं आ रहा था कि अब हाथ से सत्ता जाने के बाद वो अपनी खीज कैसे निकाले। क्योंकि अब तो दुबारा 5 साल विपक्ष में बैठना पड़ेगा। नयी नवेली जजपा की सरकार में हिस्स्सेदारी देखकर भी उनको यह बात जाहिर है हजम नहीं होगी।  इसलिए तो जब से शपथ ग्रहण समारोह हुआ है, तब से कांग्रेस जजपा के खिलाफ बयान बाजी कर यह दिखाने की कोशिश कर रहे है कि जजपा भाजपा की “B” टीम है। हुड्डा दुष्यंत के खिलाफ बयान दे रहे है।  जबकि अगर दुष्यंत उनको समर्थन देते तो शायद दुष्यंत उनके लिए अच्छे होते, मगर दुष्यंत साथ नहीं तो आज कांग्रेस के लिए वह दुश्मन है। भाई कांग्रेस भी सोचती होगी इतनी पुरानी पार्टी, इतनी सीट जितने के बावजूद भी वह तो सरकार बना नहीं पायी और 11 महीने की नव नवेली पार्टी जजपा ने न केवल अपनी सरकार बना ली बल्कि दुष्यंत ने उपमुख्यमंत्री बनकर कांग्रेस को और आईना दिखाने की कोशिश की है. उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि विपक्ष अर्थात कांग्रेस को दुष्यंत की जीत बर्दाश नहीं हो रही, बल्कि उसका एक ही उपाय है “हाजमोला” . 

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