दुश्मन को ढूंढकर मारेगी अग्नि-2 मिसाइल

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प्रतिरक्षा

योगेश कुमार गोयल

      सेना प्रमुख बिपिन रावत ने कुछ ही दिनों पहले सशस्त्र बलों में स्वदेशी प्रौद्योगिकी को बड़े स्तर पर शामिल करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा था कि भारत अगला युद्ध देश में ही विकसित समाधानों के साथ लड़ेगा और जीतेगा। स्वदेशी हथियारों के निर्माण में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा था कि भारत हथियारों तथा गोला-बारूद के सबसे बड़े आयातकों में से एक है लेकिन पिछले कुछ सालों से स्थिति बदल रही है। दरअसल भारत अब स्वदेशी हथियारों के निर्माण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। सेना प्रमुख के अनुसार हमें हमारे शस्त्रों का निर्माण अब भविष्य के युद्धों की रूपरेखा की ओर देखते हुए करना चाहिए क्योंकि यह जरूरी नहीं कि भविष्य के युद्ध आमने-सामने से ही लड़े जाएं। इसलिए हमें साइबर क्षेत्र, अंतरिक्ष, लेजर, इलैक्ट्रॉनिक युद्ध तथा रोबोटिक्स के विकास के साथ-साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता की ओर भी देखना होगा। स्वदेशीकरण पर जोर देते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा भी कुछ दिनों पहले डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से ऐसी प्रणाली स्थापित करने का आग्रह किया गया था, जहां सभी रक्षा उपकरणों का निर्माण हो। उनका कहना था कि कई पाबंदियों और सीमित क्षमताओं के बावजूद डीआरडीओ भारतीय सेना की ताकत को बढ़ाने के लिए कई प्रणालियां, उत्पाद तथा प्रौद्योगिकियां विकसित करने में सफल रहा है और उसने देश को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से समृद्ध किया है।

      पिछले दिनों भारतीय सेना ने उड़ीसा के बालासोर तट से दुश्मन के दांत खट्टे करने वाली ‘अग्नि-2’ नामक जिस बैलिस्टिक मिसाइल का पहली बार रात के समय परीक्षण किया, उसे भी डीआरडीओ ने ही विकसित किया है। इस मिसाइल को 16 नवम्बर की रात उड़ीसा के एपीजे अब्दुल कलाम आईलैंड से छोड़ा गया और स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड द्वारा किया गया यह परीक्षण पूरी तरह सफल रहा। इस मिसाइल की जद में अब पाकिस्तान व चीन सहित दक्षिण एशिया के कई देश आ गए हैं। भारत ने इससे पहले इसी साल 6 फरवरी को स्वदेश निर्मित ‘अग्नि-1’ बैलिस्टिक मिसाइल का भी परीक्षण किया था। बालासोर स्थित अब्दुल कलाम द्वीप से ही इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (आईटीआर) के लॉन्च पैड-4 से भारतीय सेना के सामरिक बल कमांड ने 700 किलोमीटर दूरी की मारक क्षमता वाली ‘अग्नि-1’ मिसाइल का सफल परीक्षण किया था।

      यह भी जान लें कि बैलिस्टिक मिसाइल आखिर होती क्या है? बैलिस्टिक मिसाइल तकनीकी दृष्टिकोण से उस प्रक्षेपास्त्र को कहा जाता है, जिसका प्रक्षेपण पथ सब-ऑर्बिटल बैलिस्टिक पथ होता है। इसका उपयोग किसी नाभिकीय अस्त्र को किसी पूर्व निर्धारित लक्ष्य पर दागने के लिए किया जाता है। यह मिसाइल अपने प्रक्षेपण के प्रारंभिक चरण में ही गाइड की जाती है, उसके बाद का पथ ऑर्बिटल मैकेनिक्स तथा बैलिस्टिक्स के सिद्धांतों से निर्धारित होता है। अभी तक इन्हें रासायनिक रॉकेट इंजनों द्वारा प्रोपेल किया जाता है। सबसे पहली बैलिस्टिक मिसाइल ‘ए-4’ थी, जिसे सामान्यतः वी-2 रॉकेट के नाम से जाना जाता है। वी-2 रॉकेट का पहला सफल परीक्षण 3 अक्तूबर 1942 को किया गया था और उसका प्रयोग 6 सितम्बर 1944 को फ्रांस के विरूद्ध तथा उसके दो ही दिन बाद लंदन पर किया गया था। उस मिसाइल को नाजी जर्मनी ने 1930 से 1940 के मध्य में रॉकेट साइंटिस्ट वेर्न्हेर वॉन ब्राउन की देखरेख में विकसित किया था। मई 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक वी-2 रॉकेट मिसाइल को तीन हजार से भी ज्यादा बार प्रयोग में लाया गया।

      जहां तक भारत की स्वदेशी ‘अग्नि द्वितीय’ (अग्नि-2) मिसाइल की बात है तो यह भारत की मध्यवर्ती दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल है, जो अत्याधुनिक तकनीक से बनी है। 21 मीटर लंबी और 1.3 मीटर चौड़ी यह मिसाइल परमाणु हथियारों से लैस होकर एक टन पैलोड ले जाने में सक्षम है और इसे तीन हजार किलोमीटर तक के दायरे में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें तीन चरणों का प्रोपल्शन सिस्टम लगाया गया है। डीआरडीओ की एडवांस्ड सिस्टम्स लेबोरेटरी द्वारा तैयार यह मिसाइल दो हजार किलोमीटर तक मार करने की क्षमता रखती है। इस मिसाइल को इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत बनाया गया है। हालांकि अग्नि सीरीज मिसाइल का हिस्सा ‘अग्नि-2’ को वर्ष 2004 में ही सेना में शामिल कर लिया गया था और इसका परीक्षण पिछले साल ही कर लिया गया था लेकिन भारत द्वारा रात के समय इसका सफल परीक्षण पहली बार किया गया है। सतह से सतह पर मार करने वाली दो स्तर की यह मिसाइल आधुनिक सटीक नौवहन प्रणाली से सुसज्जित है, जिसका परीक्षण समन्वित परीक्षण रेंज (आईटीआर) से किया गया। प्रोटोटाइप अग्नि-2 का सबसे पहला परीक्षण 11 अप्रैल 1999 को किया गया था। उसके बाद परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम अग्नि-2 का परीक्षण 17 मई 2010 को किया गया और अंतिम परीक्षण आईटीआर में 20 फरवरी 2018 को किया गया था।

      सतह से सतह पर प्रहार करने की क्षमता से लैस मध्यम दूरी की परमाणु क्षमता सम्पन्न इस इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (आईआरबीएम) परीक्षण के पूरे पथ पर अत्याधुनिक रडारों, टेलीमेट्री निगरानी केन्द्रों, इलैक्ट्रो-ऑप्टिक उपकरणों तथा दो नौसैनिक पोतों से नजर रखी गई और इसका परीक्षण पूरी तरह सफल रहा। यह मिसाइल अपने दुश्मन को ढूंढ़कर उसे ध्वस्त करने की विलक्षण क्षमता रखती है। इस तरह भारत के स्वदेशी हथियारों के निर्माण और विकास के क्षेत्र में सफलता का एक और अध्याय जुड़ गया। अग्नि-2 के परीक्षण से करीब चार दिन पहले ही डीआरडीओ द्वारा लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) ‘तेजस’ का भी रात के समय ही अरेस्टेड लैंडिंग का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया गया था। गौरतलब है कि करीब दो महीने पहले ही डीआरडीओ ने पहली बार दो सीट वाले एलसीए तेजस की गोवा के आईएनएस हंसा में अरेस्टेड लैंडिंग कराई गई थी।

      परमाणु हथियार ले जा सकने में सक्षम ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ के तहत तैयार ‘अग्नि-2’ मिसाइल की मारक क्षमता को जरूरत पड़ने पर दो हजार से बढ़ाकर तीन हजार किलोमीटर तक किया जा सकता है। अत्याधुनिक नेविगेशन सिस्टम से लैस इस मिसाइल में बेहतरीन कमांड और कंट्रोल सिस्टम है। इस पर लगे हाई एक्युरेसी नेविगेशन सिस्टम से सटीक निशाने पर मार की जा सकती है। अग्नि-2 बैलिस्टिक मिसाइल का वजन करीब 16 हजार किलोग्राम अर्थात् 16 टन है और दो स्टेज की यह मिसाइल सॉलिड ईंधन से चलेगी। भारत की ‘अग्नि’ सीरीज मिसाइलों में ‘अग्नि-2’ के अलावा सात सौ किलोमीटर तक जाने वाली अग्नि-1 और तीन हजार किलोमीटर तक जाने वाली ‘अग्नि-3’ मिसाइल भी शामिल हैं। इनके अलावा लंबी दूरी तक मार करने वाली ‘अग्नि-4’ और ‘अग्नि-5’ भी इसी सीरीज का हिस्सा हैं। डीआरडीओ द्वारा ही विकसित ब्रह्मोस के अलावा अग्नि सीरीज की मिसाइलें भारत की ऐसी स्वदेेशी मिसाइलें हैं, जिनके सामने पाकिस्तान तो क्या, चीन के भी पसीने छूटते हैं। कहना असंगत नहीं होगा कि पहले ‘अग्नि-1’ और अब रात के समय ‘अग्नि-2’ के सफल परीक्षण के बाद भारतीय सेना की आक्रामकता में और वृद्धि हो गई है। अग्नि-2 के सफल नाइट ट्रायल के बाद यह तय हो गया है कि पहले से ही भारतीय सेना के बेड़े में शामिल अग्नि -2 मिसाइल को रात के समय दागने और लक्ष्य को बेधने की क्षमता हासिल कर लेने के बाद भारतीय सेना की दुश्मन पर हमले की धार दिन की तरह ही रात में भी उतनी ही आक्रामक और घातक साबित होगी।

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